Watch- Corona: हाथ मिलाना छोड़ने से लोग हुए रूखे, गुस्सैल


No Handshake Symbolic Photo from Social Media



ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटी की रिसर्च: कोरोना काल में हाथ मिलाना बंद होने से
इनसान का बर्ताव बदला
पहले डर से एहतियात बरती गई फिर जानबूझ कर
रूखा बर्ताव करना शुरू कर दिया गया, छोटी छोटी बात पर होते हैं गुस्सा,
पैसेंजर्स को डील करने के लिए फ्लाइट अटैंडेंट्स को खास ट्रेनिंग

 



नई दिल्ली (27 अक्टूबर)।

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,

ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो…

बशीर बद्र साहब ने बरसों पहले इंसानी फितरत पर जो कहा, पिछले
दो साल में कोरोना महामारी के डर से चली आ रही बंदिशों ने मुहर लगा दी. कुछ माहौल
सही होना शुरू होता है तो ये वायरस नई लहर के साथ धमक कर फिर सब कुछ थाम देता है.

अब वो हाथ मिलाना, गले लगाना अतीत की बातें हो गई हैं.
त्योहारों पर एक दूसरे के घरों पर जाकर मुबारकबाद देना
, हाथ पर हाथ मार
कर खिलखिलाना सब इतिहास हो गया है. दफ्तरों में काम का अंदाज़ बदला
, वर्क
फ्रॉम होम करते करते लोग घर की दीवारों में ही कैद हो कर रह गए
, बाज़ारों
में खरीदारी के बरसों से चले आ रहे रिवाज भी बदल गए. बाहर सैर-सपाटा भी अब हसीन
सपना ही बन कर रह गया है.

ये सच है कि सोशल डिस्टेंसिंग ने कुछ हद तक कोरोना से हमें बचाया
लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स अब सामने आ रहे हैं. कोरोना के इन दो साल ने इनसान को
झगड़ालू और चिड़चिड़ा बना दिया है. 21 सितंबर को फिलडेल्फिया में एक फास्ट फूड
रेस्टोरैंट ने एक महिला को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए कहा तो उसने पिस्टल निकाल ली.
फ्लाइट्स के दौरान भी कस्टमर्स के उग्र व्यवहार दिखाने की घटनाएं बढ़ी हैं. इससे
निपटने के लिए फ्लाइट अटैंडेंट्स को खास ट्रेनिंग दी जा रही है. ये सच है कि कुछ
इनसान जल्दी आपा खो देते हैं. लेकिन कोरोना काल में ऐसी घटनाओं में तेज़ी से
बढ़ोतरी हुई है. खास तौर पर ऐसे लोग जल्दी गुस्से से बेकाबू हो रहे हैं जो मानते
हैं कि कोरोना की बंदिशें गैर ज़रूरी हैं या इन्हें अनावश्यक तौर पर लंबा खींचा जा
रहा है. एक तो ये डर कि कोरोना की नई लहर न जाने कब आ जाए और एक अपने
दोस्तों-करीबियों से लंबे समय से दूरी
, ये लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी
असर डाल रहा है
, इसीलिए उनके व्यवहार से चिड़चिड़ापन अधिक झलकने लगा है.

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में मोनाश यूनिवर्सिटी में पॉलिटिक्स
डिपार्टमेंट में प्रोफेसर माटेओ बोनोटी और स्टीवन टी ज़ेक ने इंसान के बर्ताव में
आए इस बदलाव के लिए कुछ हद तक हाथ मिलाने की परंपरा पर रोक लगने को बताया है. इन
दोनों प्रोफेसर्स ने रिकवरिंग सिविलिटी ड्यूरिंग कोविड19 नाम से लिखे पेपर में
लोगों के बर्ताव में आए बदलाव पर रौशनी डाली है.

प्रोफेसर ज़ेक के मुताबिक शुरू में लोगों को ये मालूम नहीं था कि
कोरोना की तमाम बंदिशों के बीच कैसे विनम्र बना रहा जाए. स्माइल देना भी उनके लिए
मुश्किल हो गया. एक दूसरे से मिलने की जगह लोग पास आने से कतराने लगे. ये सारा
रुखापन शुरू में कोरोना के डर की वजह से बिना सोचे समझे था. लेकिन कुछ समय बीतने
के बाद इसी की आड़ लेकर लोगों ने जानबूझकर रूखा बर्ताव करना शुरू कर दिया.

मनोवैज्ञानिक लोगों को सलाह दे रहे हैं कि जब वो इस तरह की मुश्किल
स्थिति या चिड़चिड़े लोगों का सामना करें तो सांस धीरे लेना शुरू करें और अपनी
आवाज़ को नीचा रखने की कोशिश करें जिससे हालात बेकाबू न होने पाए. एंगर मैनेजमेंट
में आपको अधिक पॉज़ लेने की जरूरत होती है.

बहरहाल, वो दोस्तों का हाथ पर हाथ मार कर ठहाके लगाना अभी दूर की कौड़ी लगता
है.

Khushdeep Sehgal
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