मक्खन गुस्से से…आज मैंने स्प्राइट पिया है, इसलिए सीधी बात, नो बकवास…
चलिए आज मैं उलटा चल कर देखता हूं…इसलिए हंसी-ठठा पहले ही कर लिया…आज स्प्राइट पोस्ट लिखने के मूड में हूं, इसलिए सीधे काम की बात, नो बकवास…कुछ तीखे शब्दों का इस्तेमाल करूंगा, इसलिए पहले ही सबसे माफ़ी मांग लेता हूं…इस देश के लिए मेरे समेत सब बातें तो बहुत बहुत बड़ी करते हैं लेकिन दिल पर हाथ रखकर कहिए, कितने हैं जो ईमानदारी से अपने भीतर भी झांक कर देखते हैं…आज हम दो तरह के लोग हैं…एक ये कहने वाले…इस देश का कुछ नहीं हो सकता…ऊपर से नीचे तक सारा सिस्टम सड़ चुका है…दूसरे ये कहने वाले…रातों-रात क्रांति कर दो…भ्रष्टाचारियों का सिर कलम कर दो…
मेरी नज़र में ये दोनों बातें ही अपराध हैं…या यूं कहिए कि सच्चाई से मुंह मोड़ने वाली बात है…हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं तो हम किस मुंह से कह सकते हैं कि कुछ नहीं बदलने वाला…जब आपने कुछ करना ही नहीं तो चुपचाप बैठ कर माला फेरिए न जनाब…कुछ सवाब ही मिल जाएगा…दूसरी बात, कागज़ी क्रांतिवीरों से…गरज़ना छोड़ो, बरसना सीखो…जोश के साथ होश से काम नहीं लोगे तो खुद ही शहीद होगे, भ्रष्टाचारियों का एक बाल भी नहीं उखाड़ पाओगे…एक अन्ना हज़ारे से इतनी बड़ी उम्मीदें मत पाल लो कि वो देश के सिस्टम को घोट कर कोई मैजिक पिल खिला देंगे और देश से भ्रष्टाचार का नामोंनिशान मिट जाएगा….
आप सिस्टम को कोसते हैं, अन्ना को मसीहा बना देते हैं लेकिन खुद क्या करते हैं…बस इसी सवाल पर गौर करिए…मैं ये नहीं कह रहा कि कट्टा-तमंचा अंटी में लगाइए और निकल पड़िए भ्रष्टाचारियों को शूट करने…ऐसा करेंगे तो कल के अखबार में खुद ही ख़बर बने होंगे…कोई पुलिस वाला आपके साथ मूछों पर ताव देता हुआ फोटो खिचवा रहा होगा…अफसोस आप ही उस फोटो को नहीं देख सकेंगे…होंगे तो देखेंगे न…अन्ना हजारे टॉप लेवल पर टकरा रहे हैं…उन्हें उनका काम करने दीजिए…आप सिस्टम से जूझने के अपने खुद के इजाद किए हुए छोटे-छोटे तरीके निकालिए…यकीन मानिए देश बदलेगा तो हम सबके इसी रास्ते पर चलने से बदलेगा…बस आपको ये सोच छोड़नी होगी कि हमारा काम निकलना चाहिए, बाकी किसी से हमें क्या लेना…यही है वो सोच जिसकी वजह से इस देश को भ्रष्टाचार की दीमक चाट रही है…ऐसी नौबत आने देने के लिए दोषी और कोई नहीं, हम खुद हैं…
कड़ी से कड़ी जोड़िए और कसम खा लीजिए भ्रष्टाचार किसी भी रूप में सामने आए, बर्दाश्त नहीं करेंगे…अपने आस-पास कोई भ्रष्टाचारी दिखता है तो सब मिलकर उसका विरोध कीजिए…विरोध का तरीका ये नहीं कि उसकी ठुकाई कर क़ानून अपने हाथ में ले लीजिए…और भी कई कारगर तरीके हैं…जैसे सब मिलकर भ्रष्टाचारी कहीं जा रहा हो तो उसकी तरफ़ बस उंगली उठा दीजिए…एक साथ कई उंगलियां उठा कर इंगित करो आंदोलन चलाइए…बेल बजाइए…भ्रष्टाचारियों के सामने बैठकर सामूहिक भजन-कीर्तन कीजिए…वो पहले बौखलाएंगे लेकिन फिर धीरे-धीरे लाइन पर आ जाएंगे…मैं जानता हूं जो सब लिख रहा हूं उसके कोई मायने नहीं हैं…हम बातें बेशक आसमां में सुराख़ करने की कर लें लेकिन आपस में ही एक दूसरे का हाथ नहीं पकड़ सकते…इसी सोच में कि दूसरा कहीं मुझे सिरफिरा न समझ लें…जब आपस में मिलकर गली मोहल्ले, चौपाल-चौबारे, गांव-कस्बे में ही हम सामूहिक तौर पर कोई एक्शन नहीं ले सकते तो फिर किस मुंह से देश के सिस्टम के खिलाफ गज़ गज़ भर के फक्कड़ तौलते हैं….आप इसे मेरा नॉन प्रैक्टीकल होना भी कह सकते हैं…
चलिए अब थोड़ी उनकी बात भी कर ली जाए जो ये कहते हैं कि इस देश में रहना अपना भविष्य खराब करना है…यहां भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, बेइमानी, लूट-खसोट, कामचोरी इतनी है कि कोई विदेश से वापस आ भी जाए तो थोड़े दिनों में ही उसके हौसले पस्त हो जाते हैं…हां, अगर ये सब न हो तो हम फौरन मातृभूमि पर बसने के लिए तैयार हैं…वाह क्या बात है जनाब…सब कुछ मीठा मीठा हो जाए तो फिर तो उसे हर कोई गप कर लेगा…क्या आप इस देश की माटी से नहीं जन्मे हैं..क्या आप का अपनी मातृभूमि के लिए कोई फर्ज़ नहीं है…आपकी सारी काबलियत का आज कौन फ़ायदा उठा रहा है…सारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में रख कर चलने का सपना देखने वाला अमेरिका या फिर बरसों तक हमें गुलाम बनाकर हमारी दौलत लूट कर ले जाने वाला ब्रिटेन…आज अगर मां बीमार है तो हम उसकी बीमारी दूर करने की कोशिश करेंगे या उसे उसके हाल पर ही छोड़ देंगे…ये कहते हुए इसका कुछ नहीं हो सकता…हां खुद ठीक हो जाएगी तो हम इसके साथ रहने लगेंगे…और अगर आप तस्वीर बदलने के लिए कुछ योगदान नहीं दे सकते तो माफ़ कीजिए, आपको इसे कोसने का भी कोई हक़ नही है…इसे रहने दीजिए फिर जिस हाल में ये है…लड़ाई ग्राउंड ज़ीरो पर ही रह कर लड़ी जा सकती है…
समीर जी की किताब में लिखी बात याद आ गई…जड़ों से कटने का आप हर वक्त गम जताते हैं, लेकिन जड़ ने आपको नहीं छोड़ा था, बल्कि आपने ही उसे छोड़ा था…यहां ये सबको स्वीकार करना चाहिए कि हम अपना खुद का मुकद्दर संवारने के लिए घर से बाहर निकले…आप भारत से तो निकले लेकिन आपके दिल से भारत को कोई माई का लाल नहीं निकाल सकता…
आप अब लिपसर्विस मत करिए बस दिल से कोशिश करिए कि भारत बदले…आपका छोटे से छोटा कदम भी इस दिशा में बढ़ेगा तो भारत सही दिशा में खुद-ब-खुद आगे बढ़ेगा…जिस तरह घर पर कोई आपदा आती है तो सब मिलकर उसका सामना करते हैं, यही एप्रोच आज हम सबको अपनाने की ज़रूरत है…सिर्फ भारत में ही रहने वालों को नहीं बल्कि सारी दुनिया के भारतवंशियों को…आज भ्रष्टाचार का रावण सामने खड़ा है तो सबको मिलकर उस पर तीर चलाने चाहिए…आज किसी राम के आने की उम्मीद मत कीजिए…राम हम सबके अंदर है, बस ज़रूरत है उसे जगाने की…
वाकई आज मैं कुछ ज़्यादा ही बोल गया हूं…किसी को बुरा लगा हो तो अपना समझ कर जाने दीजिएगा…
अब बस इस तरह की छोटी-छोटी पहलें कीजिए…इस वीडियो के आखिर में बुज़ुर्ग साहब के भ्रष्टाचार से लड़ने के तरीके को ज़़रूर देखिएगा…
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seedhi baat no bakwas…
post bahut jabardast.
iska likha har shabd apna kaam kar raha hai.
me ek baat aur kahungi…agar bhrashtachaar ke virodh me ungli nahi utha sakte to kam se kam har ek insan itna kijiye ki khud apne tak to imandar rahe..matlab ki khud beimani na kare..kisi se ghoons na le, kahin farzi bil bana kar paisa na kamaye. aur sateesh ji ki baaton ko apne jiwan me utare.
महत्वपूर्ण लेख…
अपने अधिकारों के लिए लड़ना ही होगा…
आप सिस्टम को कोसते हैं, अन्ना को मसीहा बना देते हैं लेकिन खुद क्या करते हैं.
वाह खुशदीप भाई सौ बातों की एक बात कही है आपने…इस सवाल का जवाब ईमानदारी से हम सब को देना चाहिए…क्रांति अपने आप घटित हो जाएगी…
नीरज
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये……"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सबको कुछ न कुछ ठोस करना होगा।
बेशक कोशिश सभी को मिलकर करनी होगी मगर सच्चाइयो से मूंह भी नही मोडा जा सकता…………हम सभी दोषी भी है और हमे ही राह भी खोजनी है मगर एक प्रश्न ………क्या भ्रष्टाचार नीचे से शुरु होता है या ऊपर से? हर बुराई पहले ऊँचे पद वालो ने ही शुरु की है और बाद मे उसकी शाखायें फ़ैली हैं ………पहले लोग रिश्वत देते और लेते डरते थे खासकर बाबू वर्ग मगर आज तो चपरासी भी बिना रिश्वत के बात का जवाब भी नही देता…………जब तक ये भ्रष्टतंत्र ऊपर से नही सुधरेगा तब तक हम सबकी कोशिशें आटे मे नमक के बराबर हैं इसके लिये तो उन पर ही नकेल कसनी पडेगी…………वरना भ्रष्टाचारमुक्त देश का सपना छोडना पडेगा फिर चाहे लाख कोशिशे कर ले ज़माना…………जितने बडे घोटाले हुये सब ऊपरी तन्त्र मे ही हुये फिर चाहे हर्षद मेहता हो या बोफ़ोर्स या कामनवैल्थ या 2 जी स्पैक्ट्रम्…………आम आदमी की इतनी औकात नही कि वो इतना बडा कदम उठा ले …………आम आदमी तो बेचारा जब त्रस्त हो जाता है सरकारी व्यवस्था से लडते लडते तब जाकर मजबूरी मे रिश्वत जैसी चीज़ देने की कोशिश करता है………हमे जड पर ध्यान देना होगा ना कि फ़ूल पत्तियो पर क्योकि उनका अस्तित्व तभी तक है जब तक जड विद्यमान है।
खुद से और अपने आस-पास से शुरुआत करनी होगी….
अच्छा आलेख.
बहुत बढ़ियां आप अपना काम थोड़ी बहुत मजबूरियां होते हुए भी ईमानदारी से करने का प्रयास कर रहें हैं तभी नीचे से ऊपर तक बदलाव संभव है ..इसलिए हमसबको 24 केरेट गोल्ड ना सही लेकिन 22 केरेट गोल्ड की तरह इमानदार बनने का प्रयास हर हाल में करना ही चाहिये जिससे ये देश व समाज एक शानदार सोने की माला बन सके…काश ये बातें शरद पवार जैसे भ्रष्टाचारी तथा मुकेश अम्बानी जैसे धनपशुओं के थोरी भी समझ में आ जाती तो आज इस देश व समाज की इतनी दर्दनाक स्थिति नहीं होती..सीधी बात नो बकबास,ऐसे ही लिखते और सोचते रहिये बदलाव जरूर होगा …
@दराल सर,
अगर मेरी लिखी हुई किसी बात से ये आभास हुआ कि मैंने किसी का मज़ाक उड़ाने की कोशिश की है, तो मैं माफ़ी मांगता हूं…ये भी नहीं पूछता कि मेरी कौन सी लाइन पर ऐसा आभास हुआ…
जय हिंद…
@निर्मला जी,
वाकई एक मां का दिल ही बेटे के दिल से निकली हुई बात को इतनी अच्छी तरह से ले सकता है…आपकी टिप्पणी से मेरी पोस्ट का मकसद हल हो गया…चरण स्पर्श…
जय हिंद…
हर बात से सहमत हूँ। आज बच्चों को ये पोस्ट पढने के लिये लिन्क भी भेजा ताकि वो वापिस अमेरिका न जायें। सही कहा हमे खुद से3 भी ये लडाई शुरू करनी होगी। शुभकामनायें।
गांधीजी के समय स्प्राइट नहीं था, होता तो शराबबंदी कितना सरल हो जाता 🙂
बाबा जय गुरु देव का एक नारा है हम बदल गए तो युग बदल गया
बिलकुल सही नारा है अगर भारत का हर आदमी अपने को कुछ बदल ले तो
पूरा का पूरा भारत बदल गया समझो इस समाज मैं कुछ विसंगति है उनको बदलने के लिए
अपने आप को बदलना होगा बस एक छोटा सा काम करना है ……………………………..
आप सुविधा शुल्क अपने काम को करने के लिया दे जरुर …………क्या कह दिया ……..बिलकुल सही कहा है
लेकिन अगर आप किसी अईसे किसी पद है जहाँ पर आप किसी काम ईमानदारी से करते है तो आप पूरी पूरी ईमान दारी से करे बस एक काम करे …………आप सुविधा शुल्क न ले …धीरे धीरे सब कुछ पटरी पर आ जायेगा…..
अगर कुछ गलत कहा हो आप कुछ सुधार कर सकते है ………..
जय बाबा बनारस………………..
खुशदीप भाई , आज की बात तो कुछ ज्यादा ही सीधी हो गई ।
दूसरों के विचारों का सम्मान करना चाहिए । उनका मजाक उड़ाना सही नहीं है ।
देश से भ्रष्टाचार को मिटाना है तो अन्ना हजारे के साथ या पीछे नहीं चलना है , बल्कि खुद अन्ना हजारे बनना पड़ेगा । शुरुआत हमें खुद से करनी पड़ेगी । अभी तो उनकी टीम के सदस्य ही शक के घेरे में हैं ।
अगर हम राम नहीं हैं तो सीता की उम्मीद क्यों करते हैं ?
बाकि बातें तो सतीश भाई मेरे लिखते लिखते ही लिख दीं ।
सतीश जी से सहमत, और शुरुआत तो अपने से ही करनी होगी.
बहुत लंबी लड़ाई है…
खुद को बदलेंगे, तो देश बदलेगा
पोस्ट बहुत-बहुत-बहुत पसन्द आयी
प्रणाम
कुछ कडवी बातें और……
– ट्रेफिक पुलिस में पकडे जाने पर चालान के पैसे भर कर दिखाएँ
-बच्चों का एडमिशन कराने में सिफारिशें अथवा पैसा दिया है तो आपने यकीनन एक अच्छे मगर गरीब बच्चे का हक़ मारा है …यह अपने लालच के लिए निश्चित भ्रष्टाचार है…
-राशन कार्ड, पासपोर्ट बनवाने के लिए शोर्ट कट में पैसे खर्च किये हैं तब भी आप दोषी हैं …
-रात दस बजे के बाद शादी विवाह में शोर मचाने के लिए जांच करने आई पुलिस को पैसे ना दें बल्कि उस रात हवालात में जाने का साहस रखें अथवा क़ानून का पालन करें !
-अपने बच्चे को मुसीबत से बचाने के लिए प्रिंसिपल से अथवा पुलिस से झूठ न बोलें बल्कि उसे क़ानून के हवाले करें….
– अगर खुद कई जगह गलत स्टेटमेंट / एफिडेविट दिया हो तो उसकी स्वीकारोक्ति करते हुए अपने आपको क़ानून के हवाले करें…और ऐसी प्रोपर्टी सरकार को बापस करें ….
– इन्कमटैक्स चोरी के मामले में अपना दिल टटोल कर देंखें और चोरी को विभाग में जाकर एडमिट करते हुए पैसा जमा कराएं …..
-अपने मकान को खरीदते हुए कितना प्रोपर्टी टैक्स चुराया है और मकान की कीमत वास्तविक कीमत से जितनी कम दिखाई है उस पर ब्याज सहित पैसा अदा करने का साहस करें….
बहुत आसान है बातें करना उससे भी आसान है भाषण देना ! अपना काम कराने में शोर्टकट ढूंढ कर दूसरे गरीबों को उनके हक़ से वंचित करते हम लोग अपनी चालाकियों पर खुश होकर दूसरों का मज़ाक मनाने में सिद्ध हैं ! पैसा देकर अपना काम कराने वाले कम दोषी नहीं खुशदीप भाई !!
एक अच्छे लेख के लिए बधाई !
खुशदीप जी, दिल बहलाने को खयाल अच्छा है.. लेकिन……
आपने कहा किसी को बुरा न लग गया हो… मै तो कहता हूँ लोगों को आपकी बातें बुरी और बहुत बुरी लगनी चाहिए… इतनी बुरी कि लोग अपनी स्थिति से घृणा करने लग जाएँ… साठ सालों में जिन्हें हराम और आराम की खाने की आदत पड़ चुकी है उनके खून ठन्डे हो चुके हैं… जो पीड़ित वर्ग है वह अपने आप को लाचार मान चला है… जज्बे आज भी हैं जान लड़ा देने के… लेकिन कोई राह नज़र नहीं आती… अन्ना हजारे एक रौशनी की किरण बन कर आये ज़रूर लेकिन जिस तरह से प्रारंभिक दौर में ही अड़ंगे लगाए जाने लगे हैं … नहीं लगता कि अन्ना का सपना आसानी से पूरा होने वाला है… सिस्टम को सुधारना है तो पहले सिस्टम में घुसना होगा… बाबा रामदेव शायद इसे भांप चुके हैं… आगे क्या होता है यह भविष्य बताएगा… लेकिन ज़रूरी है कि जो अलख पिछले कुछ दिनों में जली है बुझनी नहीं चाहिए
हम तो जुटे हुए हैं अपनी तरफ से। कितना परिवर्तन कर सकते हैं, कह नहीं सकते लेकिन स्वयं ऐसा कोई कार्य नहीं करते जो देश के लिए घातक हो। बस सब ही अपने पर ध्यान दें तो बदलाव लाया जा सकता है।
न लो न दो, और इस न लेने और न देने के कारण आने वाली देरी या समस्या का सामना करो । अपने स्तर पर इतना योगदान भी शुरुआत के लिये कम नहीं होगा ।
"…जिस तरह घर पर कोई आपदा आती है तो सब मिलकर उसका सामना करते हैं, यही एप्रोच आज हम सबको अपनाने की ज़रूरत है…सिर्फ भारत में ही रहने वालों को नहीं बल्कि सारी दुनिया के भारतवंशियों को…आज भ्रष्टाचार का रावण सामने खड़ा है तो सबको मिलकर उस पर तीर चलाने चाहिए…आज किसी राम के आने की उम्मीद मत कीजिए…राम हम सबके अंदर है, बस ज़रूरत है उसे जगाने की…"
लगता है रातभर सो नहीं पाए हो खुशदीप भाई ,राम को जगाने की खातिर.जब ऐसा है तो राम भी जागकर रहेंगे.रावण का अवश्य मरण होगा .रामजन्म पर सभी सुधिजनों के साथ बस आ जाईये मेरे ब्लॉग पर ,त्रेता युग करवट ले रहा है.कलियुग का खात्मा जो करना है.
समीर लाल जी से सहमत…
हम सभी को अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होगी…
हम इस मुहिम में आपके साथ हैं!
लोगों को जगाना होगा, साथ लाना होगा। उंगलियाँ तोड़ी जा सकती हैं, उन्हें मुटठी बनाना होगा.
लड़ना जरूरी है। ध्यान करो या ध्यान ही मत दो
सभी को अपने अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी होगी-अन्ना अकेले क्या करेंगे.
अच्छा आलेख-जरुरी आलेख.