SHAME…किस मुंह से बनते हो संविधान के कस्टोडियन…खुशदीप

अन्ना हज़ारे के सामने सांसद कुतर्क देते हैं कि उन्हें भी जनता चुन कर ही भेजती है…इसलिए सिविल सोसायटी से ज़्यादा वो जनप्रतिनिधि हैं…लेकिन कोई सांसद महोदय ये भी बताएंगे कि जनता एक बार चुनने के बाद सांसद-विधायकों को मनमानी छूट का अधिकार भी दे देती है क्या…जैसा चाहे आचरण करें उन्हें कोई कुछ कहने वाला नहीं है…कल लोक लेखा समिति (पीएसी) की बैठक के दौरान जो हुआ, जिस तरह अखाड़ा बना दिया गया, क्या उसके बाद भी हमें ये कहने का हक़ बाकी रह जाता है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र है…क्या सरकार और उनके पिछलग्गु और क्या विरोधी दल, सभी ने संसदीय मर्यादा को एक बार फिर तार-तार किया…अगर ऐसे ही पार्टी लाइन पर काम करना है तो फिर इन संसदीय समितियों का मतलब ही क्या रह जाता है…अगर आपके मतलब की बात की जा रही है तो तो आप उसे मानेंगे, नहीं की जा रही तो चाहे आप अल्पमत में है, हंगामे और बाहुबल के दम पर आप मनमानी करके ही छोड़ेंगे…इस पीएसी के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में प्रधानमंत्री, पीएमओ, कैबिनेट सचिवालय, चिदंबरम को टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में राजा को खुला मैदान देने के लिए कटघरे में खड़ा किया तो जाहिर है सरकार और डीएमके को तो नागवार गुज़रना ही था….और उन्होंने साम दाम दंड भेद से जोशी की रिपोर्ट को खारिज करने की ठान ली…

लेकिन इस मामले में जोशी और विरोधी दलों का आचरण भी संसद की श्रेष्ठ परंपराओं के अनुसार अनुकरणीय नहीं रहा…इस पीएसी का कार्यकाल 30 अप्रैल को खत्म हो रहा है…इसलिए रिपोर्ट देने की जल्दी को समझा जा सकता था…लेकिन क्या ये ज़रूरी नहीं था कि पार्टी लाइन से ऊपर उठ कर पीएसी में ही सहमति बनाई जाती है…अगर नहीं बनती तो वोटिंग के ज़रिए किसी नतीजे पर पहुंचा जाता…जोशी ने ऐसा नहीं किया और पीएसी की आखिरी बैठक होने से पहले ही ड्राफ्ट रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गई…सरकार को अपनी गोटियां ठीक करने का वक्त मिल गया…मुलायम सिंह यादव और मायावती को साथ देने के लिए सेट कर लिया गया…मुलायम और मायावती धुर विरोधी होने के बावजूद जिस तरह बार बार सरकार के संकटमोचक बन रहे हैं, उससे ये संदेह होता है कि यूपी में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी में आपस में खिंची तलवारों का मतलब ही क्या रह जाता है…

हां तो मैं बात कर रहा था पीएसी की…पीएसी संविधान की प्रदत्त वो व्यवस्था है जिसके ज़रिए सरकारी खज़ाने के रुपये के लेनदेन में गड़बड़ी पाए जाने पर जांच कराई जा सके…कमेटी में बाइस सदस्य होते हैं, लेकिन मौजूदा समिति कांग्रेस के अश्विनी कुमार के मंत्री बन जाने की वजह से 21 सदस्यों की ही रह गई थी…इसमें कांग्रेस के सात, चेयरमैन जोशी समेत बीजेपी के चार, डीएमके और एआईडीएमके के दो-दो, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, बीजेडी, सीपीएम और जेडीयू के एक सदस्य थे…कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और बीएसपी के एक पाले में आने से सरकारी साइड का पीएसी में बहुमत यानि ग्यारह सदस्य हो गए…बाकी सारे दस सदस्य जोशी के साथ विरोधी खेमे में हो गए…यहां एक बड़ा ही दिलचस्प तथ्य ये है कि जोशी के पाले में खड़े जेडीयू के एनके सिंह का नाम नीरा राडिया से टेप में बातचीत की वजह से सामने आया था…यानि जिस आदमी के दामन पर खुद दाग हो वो फिर भी मुंसिफ़ों की कमेटी में बना रहा…एन के सिंह ने एक बार हटने की इ्च्छा भी जताई थी लेकिन न जाने क्या सोचकर उन्हें पीएसी में बनाए रखा गया…

क्या सरकार और क्या विरोधी दल किस तरह एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, ये समझने के लिए आपको मेरे साथ आठ साल पीछे 2003 में चलना होगा…जैसे आज टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले का हल्ला है, ऐसे ही उस वक्त करगिल युद्ध के शहीदों के ताबूतों की खरीद समेत डिफेंस सौदों में गड़बड़ी को लेकर हायतौबा मची हुई थी…तब वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार थी…जांच का काम इसी तरह पीएसी के ज़िम्मे आया था…उस वक्त बूटा सिंह पीएसी के चेयरमैन थे…

इस बार जिस तरह जोशी ने पीएसी चेयरमैन की हैसियत से मनमोहन सरकार को अपने हिसाब का आईना दिखाने की कोशिश की, आठ साल पहले ठीक इसी तरह बूटा सिंह ने भी इसी हैसियत से वाजपेयी सरकार को कटघरे में खड़ा करना चाहा था…जोशी टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में चेयरमैन के नाते रिपोर्ट पेश करने को अपना हक़ मानते हैं लेकिन सत्ताधारी दल जोशी को चेयरमैन न मानते हुए उन्हें ही खारिज कर देता है और सैफ़ुद्दीन सोज़ को अपना चेयरमैन मान लेता है…2003 में बूटा सिंह ने डिफेंस सौदों से जुड़े घोटाले पर अपनी रिपोर्ट पेश करते वक्त पीएसी के किसी दूसरे सदस्य के दस्तखत कराना भी गवारा नहीं समझा था…

जिस तरह आज कांग्रेस और उनके संकटमोचक मायावती-मुलायम पीएसी की रिपोर्ट को जोशी की रिपोर्ट बताते हुए खारिज कर रहे हैं ठीक इसी तरह आठ साल पहले बीजेपी समेत समूचे एनडीए ने बूटा सिंह पर राजनीतिक द्वेष का आरोप जड़ दिया था…जैसे आज कांग्रेस ने जोशी पर रिपोर्ट लीक करने का आरोप लगाया, ठीक ऐसा ही आरोप पर बूटा सिंह पर तब एनडीए ने लगाया था….दरअसल तब ताबूत खऱीद समेत करगिल में ऑपरेशन विजय के लिए डिफेंस खरीद को लेकर तत्कालीन डिफेंस मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस चौतरफ़ा आरोपों के घेरे में थे…बूटा सिंह ने उस वक्त पीएसी रिपोर्ट में साफ़ कहा था कि सरकार के सहयोग न देने की वजह से वो घोटाले की जांच को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके…उस वक्त डिफेंस मंत्रालय ने घोटाले को उजागर करने वाली सीवीसी रिपोर्ट को गोपनीयता का हवाला देते हुए पीएसी को नहीं सौंपा था…सरकार का ये रुख बताने वाला कम छुपाने वाला ज़्यादा था…उस वक्त सीएजी रिपोर्ट को लेकर बावेला मचा हुआ था…सीएजी रिपोर्ट में 2163 करोड़ रुपये के 123 डिेफेंस सौदों में कई गड़बड़ियों को इंगित किया था…

बताते हैं कि उस वक्त सीएजी को ही खारिज करने के लिए जॉर्ज फर्नांडीस ने सीएजी पर अपमानजनक टिप्पणी वाली एक किताब भी सभी सांसदों में बंटवाई थी…जॉर्ज ने सीवीसी रिपोर्ट पीएसी को न सौंपने के पीछे तर्क दिया था कि इसमें आईबी और सीबीआई से जुड़े कुछ टॉप सीक्रेट दस्तावेज़ों का हवाला है…जॉर्ज ने ये भी कहा था कि आज पीएसी इन्हें खोलने की मांग कर रही है तो कल को बॉर्डर खोलने के लिए भी कह सकती है….यानि कहने का लबोलुआब यही है कि उस वक्त बूटा सिंह एनडीए सरकार की आंखों की किरकिरी बने तो आज जोशी यूपीए सरकार की नज़रों में कांटा बन गए…लेकिन मेरा सवाल यही है कि संसदीय समितियों जैसी परंपराओं का यूंही पार्टीलाइन पर चीरहरण करना है तो फिर इन्हें बनाने का औचित्य ही क्या है…क्या यहां हमारा संविधान फेल नहीं हो रहा…और फिर जब संविधान के गैर-प्रासंगिक हो जाने का यही सवाल अनुपम खेर उठाते हैं तो उन्हें देशविरोधी क्यों करार दिया जाने लगता है….

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राज भाटिय़ा

यह सब इंसान नही गरीब जनता का खुन पीने वाले कीडे हे, जिन्हे पिस्सू भी कहते हे

सहज समाधि आश्रम

खुशदीप जी मेरे पास एक नोकिया ३११० में रिकार्डर में
रिकार्ड की गयी amr file है । मैं इसको amr प्लेयर
से mp3 और wav में कन्वर्ट भी कर चुका हूँ । अब
कृपया इसे ब्लाग में पोस्ट करने का तरीका बतायें ।
मेरा ई मेल – धन्यवाद ।
golu224@yahoo.com

अजय कुमार झा

यही वजह है कि जब उस दिन जंतर मंतर पर अन्ना ने कहा था कि जनलोकपाल की ड्राफ़्टिंग कमेटी में पांच सदस्यों को सरकार से लिया जाएगा जो ईमानदार और स्वच्छ छवि वाले होंगे तो आम जनता ने सीधा पूछा कि वे पांच नाम लाएंगे कहां से ..अफ़सोस है आज के इस राजनीतिक हालातों पर .. राजनीतिक विश्लेषण से परिपूर्ण पोस्ट …

डा० अमर कुमार

.
आप यह क्यों नहीं मानने को तैयार हैं, कि जनता कुटिल नेताओं के बाप की जागीर है ।
आप यह भी नहीं मानेंगे कि हमारे लोकतँत्र को बाज़ारवाद चला रहा है ?
तो… क्या आप यह मानने को तैयार हैं कि, जिस दिन नीरा राडिया का बयान हुआ था, उसी दिन मेरे मुँह से निकला कि गयी भैंस पानी में… अब देख लीजिये जो औरत मँत्रीपद पर अपने माकूल व्यक्ति को बैठाने की कुचालें चल सकती है, उसके लिये जोशी को हूट करवा देना कौन सी बड़ी बात है ?
खुशदीप जी , अब मान भी लीजिये कि राजनीति बड़ी कुत्ती चीज़ है, गहरे पानी पैठ !

Satish Saxena
14 years ago

बहुत बढ़िया निष्पक्ष आकलन के लिए बधाई !

rashmi ravija
14 years ago

बिलकुल खरी खरी कह दी आपने….बहुत कुछ सोचने-समझने को विवश करती पोस्ट….

Udan Tashtari
14 years ago

विचार एवं मनन करने योग्य आलेख, खुशदीप!!!

Er. सत्यम शिवम

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये……"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

anshumala
14 years ago

चोर चोर मौसेरे भाई, ये नेता एक दुसरे पर आरोप लगाने के मामले में हमेशा सबसे आगे होते है किन्तु जब एक दुसरे के खिलाफ जमीनी कार्यवाही करने की बात आती है तो कोई भी सामने नहीं आता है इन सब जांचो का एक ही मकसद होता है की अन्दर की बात जान कर विरोधियो की नब्ज अपने हाथ में रखना और जब जरुरत हो उसे अपने लिए प्रयोग करना न की दोषियों को सजा दिलाना | आज तक देश में कई तरह की जांचे हो चुकी है घोटालो की पर आज तक किसी एक भी नेता को सजा मिली है |

प्रवीण पाण्डेय

सत्य को अभी प्रतीक्षा करनी होगी।

DR. ANWER JAMAL
14 years ago

आपकी पोस्ट अच्छी है । देश हो या विदेश या फिर कोई भी छोटा सा समुदाय , बाहरी दुनिया हो या ब्लॉग जगत , निरंकुशता और स्वहितसाधन पैर पसारे पड़ी है। जिनकी आवाज़ को सुना जा सकता है वे तो बोलते नहीं और जो बोलते हैं उनकी आवाज पर ध्यान नहीं दिया जाता।

Sushil Bakliwal
14 years ago

सिर्फ अपने वेतन व भत्तों के बढे हुए आकार को मंजूर करवाने वाले मसले को यदि छोडदें तो शेष समय देश की जनता की आवाज के ये कर्णधार सिर्फ अपने स्वार्थों के निमित्त ही मरते मारते दिखाई दिये हैं और कल की घटना भी इसका अपवाद नहीं लगती ।

एस एम् मासूम

नेताओं का तर्क सही नहीं है लेकिन यह भी सत्य है कि जनता को अपने वोते के अधिकार का सही इस्तेमाल करना चाहिए. यदि जनता ही चोरों को वोट देगी तो अन्ना हजारे जैसे लोगों को ऐसे जवाब मिलते ही रहेंगे.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

यह तो होना ही था. कौन सी परम्परायें और कौन से सिद्धान्त. दर-असल पहले जेपीसी इसलिये गठित नहीं की जा रही थी कि पीएसी है. और पीएम स्वयं पीएसी के सामने आने को तैयार थे और अब पीएसी के सदस्यों के ये तेवर. यहां भ्रष्टाचार मिटाना कौन चाहता है. सब दिखावा है, जनता को बेवकूफ बनाने का काम है. और ये जो कल हुआ है ये भी हिटलरशाही का ही नमूना है प्रजातान्त्रिक औजारों का प्रयोग कर. शायद अब अजीत अन्जुम साहब इस हिटलरशाही पर कुछ विचार व्यक्त करना पसन्द करेंगे.

और संविधान फेल नहीं हुआ, फेल वे हुये हैं जिनके बारे में बाबा साहब ने ये सोचा था कि संसद में बैठने वाले लोग पार्टी के या सत्ता के एजेंट के रूप में कार्य न करके देश के प्रतिनिधि के बतौर काम करेंगे.

मुझे तो एक ही विकल्प नजर आ रहा है रामदेव जी के रूप में, आगे क्या होगा भविष्य के गर्भ में है..

Unknown
14 years ago

jaan dena bhee bawale jaan hai………………

jai baba banaras…………………

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