पिछली २६ मार्च को लंदन में करीब ढाई लाख लोगों ने प्रदर्शन किया था…सरकार की ओर से पब्लिक फंडिंग में कटौती और संस्थानों में हो रही छंटनी के विरोध में…ऊपर से प्रिंस विलियम और प्रिंसेस केट की शाही शादी का चोंचला और…कहने वाले कह रहे हैं कि इस शादी से ब्रिटेन को आर्थिक मंदी से उबरने में थोड़ी मदद मिलेगी…लेकिन हक़ीक़त ठीक इससे उलट है…पूरी दुनिया में दो अरब लोगों के टीवी पर इस शादी के गवाह बनने की ख़बर दी जा रही है…शादी के लिए दुनिया भर से १९०० खास लोगों को ही शाही परिवार की ओर से शिरकत का न्यौता भेजा गया था…
मौजूदा क्वीन एलिजाबेथ की २० नवंबर को प्रिंस फिलीप के साथ २० नवंबर १९४७ को विवाह बंधन में बंधने के बाद ब्रिटेन के राजघराने में ये तीसरी बड़ी शादी हुई…२९ जुलाई १९८१ को प्रिंस चार्ल्स और प्रिंसेस डायना…और अब २९ अप्रैल २०११ को प्रिंस विलियम और प्रिंसेस केट…कहने को १९७३ में क्वीन की बेटी एनी की प्रिंस मार्क फिलीप के साथ और फिर २००५ में प्रिंस चार्ल्स की कैमिला पार्कर बोल्स से भी शादी हुईं…लेकिन वो इतने चर्चित आयोजन नहीं बनीं जितनी कि १९४७, १९८१ और अब २०११ की शादियां…इन तीनों शादियों में सबसे बड़ी समानता है तीनों ही बार -ब्रिटेन की आर्थिक तौर पर खस्ता हालत…
१९४७ में प्रिंसेस एलिजाबेथ (क्वीन १९५२ में बनीं) और प्रिंस फिलीप की शादी के वक्त ब्रिटेन दूसरे विश्व युद्ध के बाद के झटकों की मार सह रहा था…आर्थिक हालत ये थी कि जब एलिजाबेथ और फिलीप शाही चर्च वेस्टमिंस्टर एबे से शादी के बाद महल में लौटे तो सिर्फ १५० मेहमानों के लिए ही खाने का इंतज़ाम किया गया था…
इसी तरह २९ जुलाई १९८१ को चार्ल्स-डायना की शादी के वक्त भी ब्रिटेन ज़बरदस्ती मंदी की चपेट में था…उस वक्त ब्रिटेन में महंगाई की दर ११.९ फीसदी की दर से आसमान पर थी…करीब २७ लाख लोग बेरोज़गार थे…उस वक्त ३६४ अर्थशास्त्रियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर को चिट्ठी लिखकर शाही शादी में कमखर्ची बरतने की सलाह दी थी। तब भी ४० लाख डॉलर का खर्च आ गया था…
अब कल हुई विलियम-केट मिडिलटन शादी की बात करें तो जिन गाड़ियों से सारे हिज़ हाईनेस और हर हाईनेस चर्च पहुंचे, उन गाड़ियों को चलाने वाला पेट्रोल करीब पौने दो पौंड (१३० रुपये) पर मिल रहा है…इसी से समझी जा सकती है वहां आर्थिक स्थिति की हालत…आर्थिक मंदी की मार के चलते हज़ारों लोगों को पिछले दो साल मे नौकरियों से हाथ धोने पड़े हैं…ब्रिटेन में इस वक्त २५ लाख लोग बेरोज़गार हैं…बैंक पब्लिक फंडिग में कटौती के चलते बेहाल हैं…बीबीसी जैसे संस्थान को कमखर्ची के चलते स्टॉफ कम करना पड़ा है…लेकिन इसके उलट शाही शादी पर देखिए किस तरह पैसा बहाया गया-
रिसेप्शन पार्टी- छह लाख डॉलर
फूलों की सजावट- आठ लाख डॉलर
प्रिंसेस केट का वैडिंग गाउन- ४ लाख ३४ हज़ार डॉलर
केक- अस्सी हज़ार डॉलर
साफ़-सफ़ाई- ६४ हज़ार डॉलर
शादी से जु़ड़े सीधे खर्चों के लिए बेशक शाही परिवार और प्रिंसेस केट का परिवार आर्थिक योगदान दे रहा हो लेकिन अकेले सिक्योरिटी अरेंजमेंट पर ही ब्रिटेन सरकार को तीन करोड़ डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं…ये सारा पैसा टैक्सपेयर्स की जेब से ही जाएगा…वैसे भी ब्रिटेन के शाही परिवार को हर साल सरकारी खजाने से एक करोड़ तीस लाख डॉलर के भत्ते दिए जाते हैं…
शादी के लिए कल पूरे ब्रिटेन में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया था…इससे होने वाले मैनडे लॉस को जोड़ लिया जाए तो शाही शादी से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कम से कम एक अरब डॉलर की चपत लगेगी…ब्रिटेन में अब ऐसा कहने वाले लोग भी बढ़ते जा रहे हैं कि राजशाही की अब तुक ही क्या है…क्यों इतना पैसा राजघराने पर खर्च किया जाता है…
लेकिन कल जिस तरह भारत में भी इस शाही शादी के लिए मीडिया पलक-पांवड़े बिछा रहा था, उसे देखकर बस यही याद आ रहा था- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…
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लेकिन बात सिर्फ भारत की नहीं…
पूरा विश्व देख रहा था और सारे मीडिया दिखा रहे थे. इसमें गुलामी की मानसिकता का क्या प्रश्न आन खड़ा हुआ?
अमेरीका/कनाडा में लोग एलार्म लगाकर ३.३० बजे रात जागे इस एतिहासिक कार्यक्रम के साक्षी बनने के लिए.
इन्टरनेशनल ग्लैमर, और बड़े नाम, बड़े झाम तो सभी को आकर्षित करते हैं फिर वो चाहे ब्रिटेन के राजकुमार की शादी हो या माईकल जैक्सन की अंतिम यात्रा….
मानसिकता की गुलामी नहीं, जिज्ञासा और उत्सुक्ता का विषय था यह शादी…
इसे गुलामी या मानसिकता से जोड़ कर देखना सरासर गलत है.
देखा तो हमने भी बड़े मनोभाव से. 🙂
यही याद आ रहा था- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…
jai baba banaras…….
हां, दिखावा तो है ही. मंदी हो या नहीं, फ़िजूलखर्ची तो कभी भी अच्छी नहीं होती.
जब बात विवाह के आयोजन का हो तो गरीब से गरीब आदमी खुद के हैसियत से कही आगे जा का कर खर्च करता है लोग तो कर्ज तक ले कर विवाह में शान बघारते है फिर तो ये शाही शादी थी उनका तो हक़ बनता था इस शान और शौकत की आम आदमी क्या कहेगा वो खुद भी यही करता है |
यहां लोग सड़क किनारे नाली खुदते घंटों देखने तैयार रहते हैं, यह तो शाही शादी है.
मैं भी यही कहूंगा कि चरण-चापन हम अभी तक नहीं भूले. जो वे कर रहे हैं उन्हें करने दीजिये…हम क्यों अब्दुल्ला बन रहे हैं बेगानी शादी में..
गुलामी की जड़ें ख़त्म करना आसान नही होता … और वैसे भी ये मीडीया पूरा का पूरा बिकाऊ ही तो है ….
हाल बुरा टैक्स पेयर का ही होता है..यह तो हमेशा की बात है.
सहगल साहब मैंने तो इस शाही शादी के प्रसारण का उतना ही मजा लिया जितना अपने राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन समारोह के प्रसारण का लिया था. मेरे लिए तो ये तीन घंटे का असली खेला था जिसे बड़े आनंद के साथ मैंने सपरिवार देखा. शादी को देख बहुत से मजेदार ख्याल भी अपनी खोपड़ी में आये. भई मेरे लिए तो कुल मिला कर ये एक मजेदार अनुभव था.
लेकिन कल जिस तरह भारत में भी इस शाही शादी के लिए मीडिया पलक-पांवड़े बिछा रहा था, उसे देखकर बस यही याद आ रहा था- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…
गुलामो को भी उम्मीद होती हे उस के मालिक की शादी मे उसे भी जूठन मिल जायेगी….यह वो ही इन कुते अग्रेजो के गुलाम हे जो पलके बिछा रहे हे….
नीरस सी दुनिया में यही सरसता का स्रोत है।
असल में हम सब राजशाही के भक्त हैं, अभी भी हमारे मन में राजाओं के प्रति अनुराग है इसलिए उन्हें देखते हैं और उनके ग्लेमर से खुश भी होते हैं।