ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करतीं…खुशदीप

भेड़ियों के झुंड में दो दिनों से बहुत खलबली है,
एक गाय ने अपने सींग में शमशान की राख मली है…


सम्वेदना के स्वर की ये टिप्पणी कल मेरी पोस्ट पर आई थी…अन्ना हजारे के बारे में देश में इतना कुछ लिखा जा रहा है, टीवी पर दिन-रात दिखाया जा रहा है…लेकिन ऊपर लिखी दो लाइनों से सटीक और कुछ नहीं हो सकता…अन्ना के साथ जनशक्ति जितनी जुड़ती जा रही है उतना ही देश की भ्रष्ट ब्रिगेड के माथे पर पसीने की धार बढ़ती जा रही है…भ्रष्ट नेताओं की ये दलील अब कोई नहीं सुनने वाला कि उन्हें जनता ने चुन कर भेजा है…इसलिए उन्हें पांच साल तक जो चाहे करने का अधिकार है…अब ये लोग राम मनोहर लोहिया के इन शब्दों को याद कर लें- जिंदा कौमें पांच साल का इंतज़ार नहीं करतीं…इसी कौम, इसी जनता को अन्ना जागना सिखा रहे हैं…अब लोग न खुद सोएंगे और न ही देश के तथाकथित कर्णधारों को सोने देंगे…

अन्ना की हुंकार का ही असर है पवार को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स से खुद ही किनारा करना पड़ा…पहले जिस सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी, आज वही सरकार सारा कामकाज छो़ड़ सिर्फ अन्ना का अनशन तुड़वाने के लिए जुगत लगा रही है…अन्ना की दो मांगों को छोड़ बाकी सारी मांगे सरकार ने मान ली है…साझा कमेटी बनाने के लिए सरकारी अधिसूचना और साझा कमेटी का मुखिया कौन बने, इन सवालों को लेकर ही सरकार अब भी अपने रुख पर अड़ी है…आज कपिल सिब्बल और अन्ना के नुमाइंदों के बीच तीसरे दौर की बातचीत में शायद इस पर भी सहमति बन जाए…चलिए उम्मीद पर दुनिया कायम है…

लेकिन अब ज़रा ये भी जान लिया जाए कि 73 साल के अन्ना आखिर किस मिट्टी के बने हैं…कौन सी जड़ों से उन्हें संघर्ष का खाद-पानी मिला है…

अन्ना हजारे का पूरा नाम बाबूराव हजारे है…

महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के रालेगान सिद्धि गांव में 15 जून 1938 को किसान परिवार में जन्म हुआ…


अन्ना सातवीं तक ही तालीम प्राप्त कर सके…


25 साल की उम्र में सेना में भर्ती हुए…(1963 का ये वो दौर था जब सेना को शिद्दत से जवानों की कमी महसूस हो रही थी)


सेना में जीप और ट्रक चलाया करते थे…


1965 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया…

खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तान के विमानों की बमबारी का सामना करना पड़ा…

उस वक्त अन्ना की यूनिट में कई जवान शहीद हो गए थे…तभी अन्ना ने आजीवन अविवाहित रहने का प्रण लिया…

1975 में सेना से स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेकर अपने गांव रालेगान सिद्धि लौटे…

तब गांव में सूखा, अपराध, नशेखोरी की लत देखकर अन्ना ने पहले गांव को ही सुधारने का फैसला किया…


अन्ना की प्रेरणा से ही गांव में नहर, जलाशय बने…साथ ही सोलर एनर्जी और बायोगैस का इस्तेमाल करना भी गांव वालों को सिखाया…


चंद साल में ही अन्ना की मेहनत से रालेगान सिद्धि गांव का नक्शा ही पलट गया…


अन्ना अब भी गांव के पास यादवबाबा मंदिर में रहते हैं…

इसके बाद अन्ना ने महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार की बीमारी की ओर रुख किया…


अन्ना अस्सी के दशक के आखिर में पुणे के आलंदी में पहली बार भूख हड़ताल पर बैठे…(नतीजा फारेस्ट डिपार्टमेंट के कई भ्रष्ट अफसरों को सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ा…)


अन्ना ने 1991 में “भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन” नाम से संगठन बनाया…

1995 में अन्ना ने महाराष्ट्र में मनोहर जोशी की अगुवाई वाली शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सरकार के तीन मंत्रियों को भ्रष्ट बताते हुए मोर्चा खोल दिया था…नतीजा शशिकांत सुतार और महादेव शिवांकर को मंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी थी…बबन घोलप नाम के मंत्री पर भी अन्ना ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे…लेकिन घोलप ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया…अन्ना अदालत में घोलप के खिलाफ लगाए आरोपों को सिद्ध नहीं कर सके..अन्ना को तीन महीने की सज़ा भी मिली…लेकिन तब मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के खुद दखल देने के बाद अन्ना को एक दिन बाद ही रिहा कर दिया गया…


2003 में अन्ना ने फिर महाराष्ट्र में भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाफ बिगुल बजाया…तब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार थी…अन्ना के गुस्से का शिकार इस बार सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पदम सिंह पाटिल को होना पड़ा था….सुरेश जैन और नवाब मलिक को मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा था…सुरेश जैन एनसीपी छोड़कर शिवसेना में आ चुके हैं लेकिन अन्ना को लेकर आज भी उनकी ज़ुबान पर कड़वे बोल ही आते हैं…


अन्ना इससे पहले भी आठ बार भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं…

अन्ना के परिवार के नाम पर सिर्फ दो विवाहित बहनें हैं…एक मुंबई और दूसरी अहमदनगर ज़िले के ही सागाम्नेर में रहती है…

चलिए अन्ना की कामयाबी के लिए हाथ जोड़िए और साथ ही गुनगुनाइए- अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आज़ाद है…

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