ये तो सच है के भगवान है…खुशदीप

 

कल रात ठीक 12 बजे मुंबई से भतीजे करन का फोन आया…फोन उठाते ही उसने कहा…हैप्पी फादर्स डे, चाचू…सुन कर अच्छा भी लगा अजीब भी…करन इन दिनों ढाई महीने की इंटर्नशिप करने के लिए मुंबई में है…सुबह उठा तो बेटे सृजन और बिटिया पूजन ने भी विश किया…दोनों ने फिर मेरठ अपने डैडू (ताऊजी) को भी फोन पर हैप्पी फादर्स डे कहा…उधर से भतीजी पंखुरी ने मेरे लिए वही क्रम दोहराया…

आप सोचेंगे कि ये नितांत अपने से जुड़ी बात ब्लॉग पर क्यों लिख रहा हूं…इसी के सामाजिक  पहलू पर सब की राय जानने के लिए ये पोस्ट लिख रहा हूं…ये मदर्स डे और फादर्स डे मनाने की परंपराओं को बेशक मार्केट फोर्सज़ ने पश्चिमी दुनिया से आयात किया है…अक्सर इन्हें भारत में ये कहकर खारिज़ करने की कोशिश की जाती है कि हम तो रोज़ ही माता-पिता को याद करते हैं…ये तो विदेश में लोगों के पास वक्त नहीं होता, इसलिए मां और पिता के नाम पर एक एक दिन मनाकर और उन्हें तोहफ़े देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली जाती है…

लेकिन क्या ये वाकई सच है…भारत के महानगरों में रहने वाले हम लोगों को भी अब रोज़ इतना वक्त मिलता है कि बीस-पच्चीस मिनट माता-पिता के साथ हंस-बोल लें…उनकी ज़रूरतों को सुन लें…लाइफ़ ने यहां बुलेट ट्रेन की तरह ऐसी रफ्तार पकड़ी हुई है कि कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं…बस इसी आपाधापी में भागे जा रहे हैं कि अपना और अपने बाद बच्चों का भविष्य सिक्योर कर दें…

ऐसे में गाइड का गाना याद आ रहा है…वहां कौन है तेरा, मुसाफिर जाएगा कहां, दम ले ले घड़ी भर, ये आराम पाएगा कहां...लेकिन कौन रुक कर घड़ी भर दम लेना चाहता है…जिन माता-पिता ने हमें बड़ा कर कुछ करने योग्य बनाया, उनके लिए हमारे पास वक्त नहीं…और जिन बच्चों के लिए हम दावा करते हैं कि उन्हीं के लिए तो सब कर रहे हैं, उनके लिए भी कहां क्वालिटी टाइम निकाल पाते हैं…बच्चे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, उनके अपने सपने हो जाते हैं…ऐसे में हमारी व्यस्तता और उनकी अलग दुनिया की वजह से गैप और बढ़ता जाता है… …

फिर एक दिन ऐसा भी आ सकता है दो पीढ़ियों के बीच सिर्फ बेहद ज़रूरत की बात होने लगती है…एक-दूसरे के पास बैठने से ही बचने की कोशिश होने लगती है…अगर आप थोड़ा सा अलर्ट रहें तो ऐसी नौबत को टाला जा सकता है…छोटी छोटी बातों से रिश्तों की अहमियत बच्चों को सिखाई जा सकती है…सिर्फ इतना ही कर लें जब आप काम के लिए घर से निकलें तो घर में बड़ों से आशीर्वाद ले लें…साथ ही बच्चों का माथा चूम कर बाय बोलें…

बच्चे चाहें जितने बड़े हो जाएं ये क्रम दोहराना न भूलें…मैं यही करने की कोशिश करता हूं…किसी दिन जल्दी में भूलने लगता हूं तो बिटिया ही सिर आगे कर याद दिला देती है…चाहता हूं ये रूटीन कभी न टूटे…

फादर्स डे हमारी जेनेरेशन ने तो कभी मनाया नहीं था…लेकिन आज इस दिन पर पापा की बेहद याद आई…पिछले साल ठीक दीवाली वाले दिन पापा का हाथ सिर से उठा था…सात महीने से ज़्यादा गुज़र चुके हैं…उनके रहते हुए जो कभी महसूस नहीं हुआ, वो अब शिद्दत के साथ हो रहा है…काश उन्हें और ज़्यादा वक्त दे पाता…

अंत में दुनिया के सभी माता-पिता को समर्पित ये गीत…

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