बच्चा एक, ‘पिता’ तीन…खुशदीप

आम आदमी की दुहाई देने वाली कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार देश का क्या हश्र कर रही है, सब देख रहे हैं…आज बीजेपी के मुखिया नितिन गडकरी को भी प्रेस कांफ्रेंस में सुशासन, सुराज, भ्रष्टाचार मुक्त देश, भयमुक्त समाज की बड़ी बड़ी बातें करते सुना…आडवाणी की रथ यात्रा के उद्देश्य के बारे में बताते सुना…इससे कितनी जनचेतना जागेगी ये तो वक्त ही बताएगा…लेकिन गडकरी जी फिलहाल आज की बात कर ली जाए…आपकी पार्टी के शासन वाले मध्य प्रदेश की बात…वहां जबलपुर में ऐसी घटना घटी है कि शिद्दत के साथ शर्म महसूस हो रही है…ये सोच कर कि हमारे देश में कैसे कैसे बेगैरत लोग भी बसते हैं…ये घटना किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक से कम नहीं…

जबलपुर के डिंडोरी के निगवानी गांव में आज से आठ साल पहले पंद्रह साल की एक लड़की अपने गरीब बाप का हाथ बंटाने के लिए मजदूरी का काम करती है…मजदूरी कराने वाला ठेकेदार लड़की पर बुरी नज़र रखता है…और एक दिन मौका देखकर अपने दो साथियों के साथ उसकी अस्मत को तार-तार कर देता है…लड़की डर के मारे घर पर कुछ नहीं बताती…लेकिन कब तक…खुद तो मुंह सिल सकती थी, लेकिन पेट में आई नन्ही जान को कब तक छुपाती…आखिर पिता को बताना ही पड़ा कि किन तीन वहशियों ने उसके साथ दरिंदगी की थी…

ठेकेदार समेत तीनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई…लेकिन पैसे और रसूख के आगे बेचारी लड़की और उसके गरीब पिता की लड़ाई कहां तक चल पाती…मुकदमे के दौरान लड़की अपने बयान से पलट गई और तीनों आरोपी बरी हो गए…

यहां तक तो थी लड़की की कहानी…लेकिन लड़की ने जिस मासूम को जन्म दिया उसके साथ क्या हुआ ये जानकार किसी का भी कलेजा मुंह को आएगा…मासूम का नाना निगवानी पंचायत से उसका जन्म प्रमाण पत्र बनवाने गया तो ऐसा भद्दा मज़ाक किया गया जिसका दर्द बलात्कार से भी बड़ा है…बच्चे का जो जन्म प्रमाणपत्र जारी किया गया उसमें पिता के नाम के तौर उन तीनों लोगों का नाम लिख दिया गया, जिन पर बलात्कार का आरोप लगा था…

ये बेहूदगी करते हुए एक बार भी नहीं सोचा गया कि बच्चा बड़ा होगा तो उस पर क्या बीतेगी…जब पंचायत ऐसा कर सकती है तो दूसरे लोग भी उस बच्चे के बारे मे क्या क्या नहीं कहते होंगे…सात साल का मासूम अब दूसरी क्लास में पढ़ रहा है…औसत बच्चों से वो ज़्यादा होशियार है…अभी उन बातों को मतलब नहीं समझता होगा जो उसकी मां के साथ बीती…लेकिन जैसे जैसे ये बच्चा बड़ा होगा, समझने लायक होगा तो भावनात्मक रूप से उस पर क्या असर होगा, ये सोच कर ही दहल उठता हूं…


मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर याद आ रही है…जिसे परमेश्वर कहा जाए क्या वो पंचायत किसी बच्चे को लेकर इतनी अंसवेदनशील भी हो सकती है…धिक्कार है ऐसी पंचायत पर, ऐसे समाज पर, जहां एक अबला और मासूम का ये हाल किया जाए…

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पठान का इंटरव्यू…खुशदीप

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