Watch: 13 साल नहीं बोले दिलीप-लता? फिर कैसे हुई सुलह

लता मंगेशकर और दिलीप कुमार 13 साल बोलचाल बंद रहने के बाद कैसे बने भाई-बहन जानिए, अपने
अच्छे उर्दू तलफ़्फ़ुज़ के लिए लता मंगेशकर दिलीप कुमार के एक रिमार्क को बताती थीं
वजह,1970 में
दिवंगत पत्रकार खुशवंत सिंह ने तैयार किया था दिलीप और लता की सुलह का आधार

 


नई दिल्ली (6 फरवरी)।

एक ऑल टाइम ग्रेट जब
दूसरे ऑल टाइम ग्रेट कलाकार के लिए कुछ कहता है तो
अल्फाज़ सुनने वालों पर जादू सा असर
दिखाते हैं. 47 साल पहले दिलीप कुमार को लता मंगेशकर का तार्रुफ़ कराते यहां सुनिए…



1974  में किसी भी पहली भारतीय
कलाकार के तौर पर लता मंगेशकर को लंदन के रॉयल अलबर्ट हॉल में  परफॉर्म करने का मौका मिला
था…और पहली बार ही लता ने देश की सीमा से बाहर निकल कर किसी दूसरे देश में जाकर
स्टेज पर अपनी आवाज़ से लोगों को मंत्रमुग्ध किया.

सिर्फ
सात महीने पहले ही 7 जुलाई 2021 को हमने अदाकार-ए-आज़म दिलीप कुमार को खोया…और
अब सुर की सबसे बड़ी साधक लता मंगेशकर भी हमें छोड़ कर चली गईं. ये भी संयोग है
कि लता मंगेशकर दिलीप कुमार से 7 साल ही छोटी थीं. 

ये
इत्तेफ़ाक है कि दिलीप कुमार और लता मंगेशकर ने एक ही दौर में कुछ साल के अंतराल
में हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए संघर्ष शुरू किया. लता अपने
करियर की शुरुआत में रिकॉर्डिंग्स के लिए लोकल ट्रेन से मुंबई के मलाड जाया करती
थीं. एक बार संगीतकार अनिल बिस्वास भी उनके साथ थे. संयोग ही था कि दिलीप कुमार
ने भी वही ट्रेन पकड़ी. दिलीप कुमार और अनिल बिस्वास पहले से एक दूसरे को जानते
थे…

लता ने
ईटी टाइम्स को दिए इंटरव्यू में खुद दिलीप कुमार से हुई इस पहली मुलाकात का ज़िक्र
किया था. लता ने बताया कि “मैं यूसुफ साहब यानि दिलीप कुमार से पहली बार मुंबई की लोकल
ट्रेन में मिली, शायद 1946-47 में…
अनिल बिस्वास और उनके एक
असिस्टेंट भी साथ थे. तभी ट्रेन पर बांद्रा से एक लंबे से युवक उसी कंपार्टमेंट
में चढ़े. अनिल दा ने उन्हें साथ बैठने के लिए कहा.” तभी अनिल दा ने लता का परिचय दिलीप
कुमार से महाराष्ट्र की युवा गायिका के तौर पर कराया.
दिलीप कुमार को जब पता चला कि लता मंगेशकर
महाराष्ट्र से हैं तो उन्होंने कहा कि इस राज्य के लोगों की उर्दू पर अच्छी कमांड
नहीं होती, इनके उर्दू तलफ्फ़ुज़ यानि उच्चारण से दाल-भात यानि दाल-चावल की महक
आती है. ये सुनकर लता को पहली बार में तो अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर उन्होंने उर्दू
पर पकड़ बनाने के लिए संगीतकार मोहम्मद शफ़ी से कहा कि क्या वो उनके लिए उर्दू के
एक ट्यूटर का इंतज़ाम कर देंगे.

 लता ने इंटरव्यू में कहा कि “आज कोई मेरे उर्दू
तलफ्फुज़ की कोई तारीफ करता है तो इसका क्रेडिट मैं यूसुफ़ साहब को देती हूं. उनके
एक छोटे से रिमार्क ने मुझे उर्दू के करीब ला दिया जो बहुत ही खूबसूरत ज़बान है.
युसूफ साहब की उर्दू पर कमाल की पकड़ थी, जिसे सुनना कानों को मधुर संगीत की तरह
लगता था.”

जिस
वक्त लता ने हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाना शुरू किया तो उस वक्त नूरजहां
सबसे मशहूर प्लेबैक सिंगर थीं. दिलीप कुमार भी उस वक्त नूरजहां की आवाज़ के मुरीद
थे. तभी दिलीप कुमार ने लता से पहली मुलाकात के वक्त हिन्दी प्लेबैक सिंगिंग में
उर्दू की अच्छी पकड़ होने पर ज़ोर दिया था.

फिर 1957 में एक ऐसा वक्त भी आया जब दिलीप कुमार और लता
मंगेशकर के बीच 13 साल तक बोलचाल भी बंद रही थी. दरअसल
फिल्म मुसाफिरजो साल 1957 में आई थी, तब ये
वाकया हुआ था. ये ऋषिकेश मुखर्जी की पहली डायरेक्ट की गई फिल्म थी. इस फिल्म में
दिलीप कुमार, उषा किरण, सुचित्रा सेन और किशोर कुमार की मुख्य भूमिकाएं थीं.
संगीतकार सलिल चौधरी ने इसके ड्यूट गाने
लागी नाहीं छूटे रामा चाहे जाए जिया
के लिए लता मंगेशकर के साथ दिलीप कुमार की आवाज़ को लेने का फैसला किया. लेकिन
लता मंगेशकर को इस बारे में जानकारी नहीं थी. जब उन्हें इस बारे में पता चला तो वो
सोचने लगीं कि दिलीप गाना गा भी सकेंगे
?
वहीं, दिलीप कुमार
गाने की प्रेक्टिस में लग गए. लेकिन रिकॉर्डिंग के समय वो लता मंगेशकर के साथ गाते
हुए कुछ असहज महसूस कर रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक
, सलिल ने हिचक कम करने
के लिए दिलीप को ब्रांडी का एक पेग पिला दिया. इसके बाद उन्होंने गाना तो गा लिया
लेकिन आवाज़ सही नहीं बैठी.
 लता मंगेशकर ने गाना हमेशा की तरह बेहतरीन गाया. 



मीडिया रिपोर्ट्स के
मुताबिक
, इस रिकॉर्डिंग के बाद
से ही दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच मतभेद शुरू हो गए. दोनों ने
13 साल तक एक-दूसरे से
ठीक से बात नहीं की थी. फिर साल
1970 में ये सिलसिला खत्म हुआ जिसके बाद लता मंगेशकर ने दिलीप कुमार को राखी भी बांधना शुरू कर दिया. 

11 दिसंबर 2020 को लता ने दिलीप कुमार के जन्मदिन पर उन्हें
राखी बांधने के साथ इंस्टाग्राम हैंडल पर इस फोटो को पोस्ट किया था जिसमें लिखा
था- नमस्कार आज मेरे बड़े भाई दिलीप कुमार जी का जन्मदिन है. मैं उनको बहुत बधाई
देती हूं और ये प्रार्थना करती हूं कि उनकी सेहत अच्छी रहे.

 

दिलीप कुमार के इंतकाल के बाद लता ने 7 जुलाई 2021 को
इंस्टाग्राम हैंडल पर इस फोटो के साथ लिखा-

यूसुफ़ भाई आज अपनी छोटीसी बहन को
छोड़के चले गए.. यूसुफ़ भाई क्या गए
, एक युग का अंत हो गया. मुझे कुछ सूझ
नहीं रहा. मैं बहुत दुखी हूँ
, नि:शब्द हूँ.कई बातें कई यादें हमें देके चले गए. यूसुफ़ भाई
पिछले कई सालों से बिमार थे
, किसीको पहचान नहीं पाते थे ऐसे वक़्त सायरा भाभीने सब छोड़कर
उनकी दिन रात सेवा की है उनके लिए दूसरा कुछ जीवन नहीं था. ऐसी औरत को मैं प्रणाम
करती हूँ और यूसुफ़ भाई कीं आत्मा को शान्ति मिले ये दुआ करती हूँ.

 

13 साल
की अनबन के बाद 1970 में दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के रीयूनियन के पीछे का
किस्सा भी बहुत दिलचस्प है.
दिवंगत मशहूर पत्रकार
खुशवंत सिंह उन दिनों द इलेस्ट्रेड वीकली ऑफ इंडिया के संपादक थे. उन्होंने मैगजीन
का अगस्त 1970 में स्वतंत्रता दिवस विशेष संस्करण निकाला तो हिन्दू मुस्लिम भाई
भाई स्टोरी के लिए कवर पर दिलीप कुमार और लता मंगेशकर को एक साथ लाने की सोची. वो
ऐसी फोटो चाहते थे जिसमें लता दिलीप कुमार को राखी बांधे. लेकिन दोनों पिछले 13
साल से एक दूसरे से बोल नहीं रहे थे. उस वक्त दिवंगत पत्रकार राजू भारतन मैगजीन
में असिस्टेंट एडीटर थे, उनके मुताबिक लता को दिलीप कुमार के पाली हिल स्थित घर पर
लाने का जिम्मा उन्हें सौंपा गया. राजू खुद लता की सफेद फिएट कार में उनके साथ
बैठकर दिलीप कुमार के घर तक आए.

राजू भारतन के मुताबिक लता के आने पर दिलीप
कुमार के घर पर यही सोचा गया कि वो वेजेटेरियन होंगी. लेकिन जब उन्हें बताया गया
कि लता नॉन वेजेटेरियन की भी शौकीन हैं तो उनकी दुविधा दूर हो गई.

राजू
भारतन के शब्दों में जिस तरह दिलीप कुमार ने पोर्च में आकर लता का गर्मजोशी से
स्वागत किया तो लगा ही नहीं कि पिछले 13 साल से वो एक दूसरे से बात नहीं कर रहे
थे.

उस मुलाकात के दौरान लता ने कहा, यूसुफ साब मैंने हमेशा
सुना है कि आपने मुझे मुसाफिर के लागी नहीं छूटे रामा चाहे जिया जाए, गाने को लेकर
हमेशा नापसंद किया लेकिन मैंने उसी तरह गाया था जैसे मैं हमेशा गाती हूं. इस पर
दिलीप कुमार ने कहा कि जिस तरह आप गाती हैं उसे लेकर मेरा परिवार और मैं आपको बहुत
पसंद करता है. मैं उस आवाज़ जो इतनी डिवाइन है, कैसे नापसंद कर सकता हूं.

बस वो
दिन था जिसके बाद दिलीप कुमार और लता मंगेशकर के बीच भाई-बहन का अटूट बंधन शुरू और
और दोनों ने इसे ज़िंदगी भर निभाया…

दिलीप
सा’ब…लता दी…जाने कहां गए वो लोग…

 

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