कल गुरुदेव समीर लाल जी की पोस्ट से उनके ब्लागिंग में पांच साल पूरे होने का पता चला…संयोग ही है कि कल ही मुझे देशनामा के डैशबोर्ड से पता चला कि आज मेरी ये 500वीं पोस्ट है…15 अगस्त 2009 की रात को मैंने पहली पोस्ट डालते वक्त सोचा नहीं था कि ब्लागिंग में इतना रम जाऊंगा…पिछले 18-19 महीने में बस इसी मकसद से लिखता गया कि एक पोस्ट बिना नागा ज़रूर डालूं…इस चक्कर में जो अच्छा-बुरा लिख सका, उससे आप सबको खूब पकाया…कोशिश यही रही कि जिस तरह अखबार मिस नहीं होता, उसी तरह अपनी पोस्ट भी मिस न करूं…इस रूटीन को बनाए रख सका, इसकी सबसे बड़ी वजह आपका अपने दिल में जगह देना रहा…
मलाल है तो बस इस बात का कि अब मैं पहले की तरह दूसरों की पोस्ट पर कमेंट नहीं कर पाता…आप भी सोचते होंगे कि कैसा इनसान है…क्या खुदगर्ज़ी है जो रोज एक पोस्ट चेप देती है लेकिन खुद दूसरों को टिप्पणियां देने में कंजूसी बरतती है…यकीन मानिए पोस्ट लेखन मेरे लिए अब रिफ्लेक्स एक्शन सरीखा हो गया है… मैं यहां कबूल करता हूं कि चाह कर भी मैं अपने सभी प्रिय ब्लागों को पढ़ने के लिए वक्त नहीं निकाल पाता…लेकिन मेरी एक बीमारी भी है जब तक किसी पोस्ट को अच्छी तरह पढ़ कर आत्मसात न कर लूं टिप्पणी नहीं दे सकता…और इस काम के लिए यकीनन वक्त चाहिए होता है…
टिप्पणी शास्त्र के गिव एंड टेक सिद्धांत पर मैनें कभी भरोसा नहीं किया…टिप्पणी की परिभाषा को प्रशंसा से बढ़ाकर विचार-मंथन, स्वस्थ बहस, आलोचना के स्तर पर ले जाने से लेखन और लेखक का विकास होता है, इस संदर्भ में ब्लॉगिंग के कर्मयोद्धा जी के अवधिया जी की बातों को शुरू में मैं भी अनाड़ी होने की वजह से समझ नहीं पाता था…जब से अवधिया जी को पढ़ना शुरू किया है, उनका हमेशा ज़ोर रहा है कि किस तरह ज़्यादा से ज़्यादा पाठक पोस्ट पढ़ने के लिए आएं…अवधिया जी से ही सीखा कि हिंदी ब्लॉगिंग के साथ अपना विकास तभी होगा जब इसे ज़्यादा से ज़्यादा पाठक मिलेगें…ऐसे पाठक जो खुद ब्लॉगर न हों लेकिन अखबार के पाठकों की तरह हमेशा कुछ नया जानने के लिए उत्सुक हों…अब मेरी भी ये धारणा बनने लगी है कि असली चीज़ आपका स्टेटकाउंटर हैं, जिससे ये पता चलता रहे कि रोज़ आपके ब्लॉग पर कितने विजिटर आ रहे हैं…मैंने ब्लॉगिंग शुरू करने के दो-तीन महीने तक स्टेटकाउंटर का विजेट नहीं लगाया था (लगाता भी कैसे घोर अनाड़ी जो था)…किसी ने विजेट लगा कर दिया तो बड़ा खुश हुआ था…अब इस विजेट के मुताबिक करीब डेढ़ साल में एक लाख तीस हज़ार विजिटर देशनामा पर आ चुके हैं…मेरे लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि है…
कभी कभी ये सवाल भी ज़ेहन में चोट करने लगता है कि क्यों कर रहा हूं ब्लागिंग…इसका मेरे लिए मकसद क्या है…क्या हर पोस्ट पर कुछ टिप्पणियां…वैचारिक जुगाली का संतोष…थोड़ा सा नाम…कुछ नए दोस्त…कुछ नए रिश्ते…लेकिन किस कीमत पर…ज़ाहिर है किसी काम को दिल से करना है तो उसके लिए आपको वक्त तो देना ही होगा…लेकिन वक्त तो आपके पास गिना-चुना है…प्रोफेशन की प्रतिबद्धता से जो वक्त बचता है, उसमें घर,पति/पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार, दोस्त सब के लिए आपकी ज़िम्मेदारियां हैं…आखिर आप समाज में रहने वाले प्राणी है…इसके बावजूद ब्लागिंग के लिए वक्त निकालते हैं तो ये आपकी इस विधा के प्रति निष्ठा है, समर्पण है…ऐसे में वक्त का प्रबंधन आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है…कितना वक्त आपको पोस्ट का मुद्दा ढूंढने पर लगाना है…कितना वक्त लेखन में लगाना है…कितना वक्त दूसरे ब्लाग को पढ़ने में लगाना है…कोशिश कर रहा हूं कि खुद को और व्यवस्थित करूं और कम से कम शनिवार-रविवार को दूसरे ब्लॉगों को ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ूं और संभव हो सके तो सार्थक और पोस्ट के पूरक कमेंट कर सकूं…
इस ब्लॉग के सफ़र में बेशुमार दोस्त मिले…बड़ों का आशीर्वाद मिला…छोटों से प्यार और सम्मान मिला…अपनी दो पोस्टों में ज़्यादा से ज्यादा साथियों का नाम लेने की कोशिश की थी…उसके बावजूद कई नाम रह गए थे…(उम्र बढ़ रही है यादाश्त पर कुछ तो असर पड़ेगा ही)…उन्हीं पोस्ट के लिंक दे रहा हूं…
ऊपर के दोनों लिंक में जो नाम हैं, उनके बाद भी इस सफ़र पर कई साथी और मिले जैसे कि राकेश कुमार जी, अशोक बजाज जी, राधारमण जी, सर्जना शर्मा, गीताश्री, सुशील बाकलीवाल जी,अरुण कुमार रॉय,प्रवीण पांडे, अतुल श्रीवास्तव, मासूम भाई, केवल राम,संजय झा, सुनील कुमार, तृप्ति, पूरबिया, दीपक बाबा, संजय कुमार चौरसिया, पटाली द विलेज, राजेश उत्साही, संवेदना के स्वर, राहुल सिंह जी, पदम सिंह, देवेंद्र पांडेय,संजय भास्कर, उस्मान, ,’सुज्ञ’,वेदिका, कोरल, प्रतिभा, पंकज उपाध्याय, स्तुति,अभिषेक अपूर्व, पूजा, दर्शन, किशोर, निशांत मिश्र, अमित शर्मा, डॉ महेश सिन्हा जी, अरुणेश मिश्र,शंभू, बिरमा राम,राजित सिन्हा,प्रतिभा कटियार और भी बहुत नाम…
आखिर में बस यही कहूंगा…
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों,
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों…
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