दूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन नेहरू की तरह राजनेता नहीं थे। नेहरू से उलट राधाकृष्णन धार्मिक प्रवृत्ति के थे। नेहरू राधाकृष्णन की काबलियत का सम्मान करते थे, लेकिन कई मौकों पर दोनों के बीच अलग राय भी दिखी। नेहरू ने 1963 में राधाकृष्णन के पटना जाकर पहले राष्ट्रपति डॉ प्रसाद के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने का विरोध किया था। नेहरू का कहना था कि राधाकृष्णन को अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक राजस्थान जाकर नेशनल रिलीफ फंड के लिए चंदा एकत्र करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस पर राधाकृष्णन ने जवाब दिया था कि नेहरू को अपने निर्धारित कार्यक्रम को छोड़कर उनके साथ पटना में प्रसाद के अंतिम संस्कार के लिए चलना चाहिए।
राष्ट्रपति भवन के पूर्व सिक्योरिटी ऑफिसर मेजर सी एल दत्ता के मुताबिक नेहरू और राधाकृष्णन के रिश्तों में खटास आने की वजह नेहरू की चीन नीति थी। चीन के आक्रमण के बाद राधाकृष्णन और कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष के कामराज ने नेहरू के रिटायरमेंट के लिए एक फॉर्मूला भी तैयार कर लिया था। दत्ता के अनुसार पीएम आवास पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी कामराज प्लान पर विचार करने के लिए रात भर बैठी। उधर राष्ट्रपति भवन में राधाकृष्णन बेसब्री से कमेटी में लिए जाने वाले नतीजे का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन नेहरू पहले ही सब भांप गए थे। बैठक में कामराज प्लान औंधे मुंह गिरा। ये राधाकृष्णन के लिए भी झटका था। 27 मई 1964 को नेहरू का निधन हुआ।
राधाकृष्णन के बाद अगले राष्ट्रपति गांधीवादी और स्कॉलर डॉ ज़ाकिर हुसैन बने। उपराष्ट्रपति के रूप में डॉ ज़ाकिर हुसैन पहले ही गरिमामयी छाप छोड़ चुके थे। लेकिन डॉ ज़ाकिर हुसैन का अपने कार्यकाल के बीच ही 3 मई 1969 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
1969 में राष्ट्रपति का चुनाव कांग्रेस की आपसी खींचतान के बीच हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी थे। लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने निर्दलीय उम्मीदवार वी वी गिरी का समर्थन किया। गिरी ही राष्ट्रपति चुनाव जीते।
गिरी के कार्यकाल में ही इंदिरा गांधी ने 1971 में लोकसभा को भंग करने की सिफारिश की। इस पर गिरी ने इंदिरा गांधी से पूछा था कि क्या मंत्रिपरिषद ने इस मुद्दे पर विचार किया है। संविधान में साफ़ है कि मंत्रिपरिषद की सलाह को ही राष्ट्रपति को मान देना होता है। इस पर इंदिरा गांधी ने कैबिनेट की बैठक बुलाई और उसकी सिफारिश राष्ट्रपति गिरी के पास भेजी।
जब गजटीय अधिसूचना जारी हुई तो उसमें साफ तौर पर उल्लेखित था कि सिफारिश मंत्रिपरिषद की तरफ से की गई और उस पर सावधानी से विचार किया गया। ये राष्ट्रपति की ओर से अपनी शक्ति दिखाने का स्पष्ट संकेत था।
17 अगस्त 1974 को फखरूद्दीन अली अहमद देश के अगले राष्ट्रपति बने। अहमद पहले कैबिनेट में सिंचाई, ऊर्जा, कृषि जैसे कई मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी संभाल चुके थे। 26 जून 1975 को राष्ट्रपति अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत इमरजेंसी लगाने की अधिघोषणा जारी की। राष्ट्रपति अहमद की इस बात के लिए आलोचना की जाती रही कि उन्होंने आपातकाल लगाने की इंदिरा गांधी की सिफारिश को सीधे ही मान लिया और पहले कैबिनेट की सिफारिश लेने की बाध्यता पर ज़ोर नहीं दिया।
क्रमश:
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आज पढ़ा ,दिलचस्पी न हो तो ये बाते मायने नहीं रखती आम आदमी को पता ही नही चलता क्या क्या होता है राजनीति में …
विगत का सही चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं आप , जारी रखिये ।
हम ने इतिहास से कुछ नही सीखा….. आज भी इसी नेहरु के खान दान को ही सर मे बिठाये जा रहे हे….,
बहुत उपयोगी जानकारियाँ हैं।
काफी ज्ञानवर्धक श्रंखला लग रही है.आगे का इंतज़ार है.
अगर आपकी लेखनी की खुशबू ना हो … तो पता नहीं इतिहास के इन पन्नो से आती राजनीती की दुर्गन्ध हम कैसे बर्दास्त करते !
जय हिंद !
यह सिरीज़ अच्छी और उपयोगी लगी खुशदीप भाई ! शुभकामनायें !
एक अच्छी जानकारी…
लोकतन्त्र का भारतीय इतिहास।
इस उपयोगी श्रृंखला का वाचन जारी है । अगली कडी की प्रतिक्षा सहित…
यह श्रृंखला उपयोगी साबित होगी।
पढ रहे हैं अपना अतीत। अगली कडी का इन्तजार।