चलो इस बात की तसल्ली है कि भारतीय क्रिकेट टीम ने बड़ी उपलब्धि हासिल की, वो भी उस दिन जिस दिन भारतीय क्रिकेट की महान विभूति लाला अमरनाथ की 98वीं जयंती थी. वही लाला अमरनाथ जिन्होंने भारत को 1933 में उसका पहला टेस्ट शतक दिया…वही लाला अमरनाथ जिनकी कप्तानी में भारत को 1953 में पहली टेस्ट सीरीज जीत हासिल हुई…वही लाला अमरनाथ जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को मोहिंदर अमरनाथ जैसा हीरा दिया.
खैर ये तो हो गई क्रिकेट की बात…अब आता हूं, असली मुद्दे पर…कल सुबह अविनाश वाचस्पति जी के आदेश पर ब्लॉगर्स मीट में हिस्सा लेने फरीदाबाद जाना है……लेकिन ब्लॉगर्स मीट में जाने से पहले मैं अपनी समझ (जो थोड़ी-बहुत है) के अनुसार हिंदी ब्लॉगिंग के टॉप टेन आइकन का जिक्र जरूर करना चाहूंगा…दरअसल इनकी कल ब्लॉगर्स मीट में कमी बहुत खलेगी…इसलिए चाहता हूं कि इस पोस्ट के ज़रिए ही इन सभी आइकन का आशीर्वाद ब्लॉगर्स मीट के साथ रहे…दरअसल मुझे 25 दिन हो गए ब्लॉगियाते हुए…लेकिन पत्रकारिता का मेरा 15 साल का अनुभव है…उसके आधार पर आस-पास जो कुछ भी होता है, उसे थोड़ा-बहुत ऑब्सर्व करना तो सीख ही गया हूं…उसी तजुर्बे के आधार पर मैंने 25 दिन में दूसरों की जितनी भी पोस्ट पढ़ीं, उनमें से मैंने अपने टेन आइकन चुने हैं..यहां मैं साफ कर दूं कि दूसरी सारी पोस्ट न तो मैं पढ़ सका हं और न ही मेरे में इतना सामर्थ्य है…हां जितना पढ़ा उसी में से मैंने अपने लीडर चुन लिए..ये मुमकिन है कई दूसरे ब्लॉगर भाई भी बहुत अच्छा लिखते हो, जिन्हें पढ़ने का मुझे सौभाग्य ही प्राप्त नहीं हुआ…लेकिन जो भी मैं नाम लेने जा रहा हूं, उन पर शायद ही किसी को ऐतराज हो..ये चुनाव ज़्यादा पढ़ी जाने वाली, ज़्यादा पसंद वाली, ज़्यादा टिप्पणियों वाली पोस्ट के आधार पर नहीं है…ये चुनाव है सिर्फ एक शब्द पढ़ कर ही ये अंदाज लगा लेने का कि लिखने वाले की सोच की कितनी गहराई है…इंसान के नाते उसके कद की कितनी ऊंचाई है…मेरे इस चुनाव को लोकप्रियता के पैमाने से न लिया जाए, बल्कि इस आधार पर लिया जाए कि ब्लॉगर्स परिवार में इन आइकन का कितना सम्मान है…कैसे ये आइकन… परिवार में कोई नया सदस्य आता है तो उसका हौसला बढ़ाते हैं…ऊंच-नीच समझाते हैं….लिस्ट बताने के बाद मैं एक-दो उदाहरणों से अपनी बात स्पष्ट भी करूंगा…हां, एक बात और इस लिस्ट को 1 से 10 नंबर के पैमाने पर भी न आंका जाए…क्योंकि ये सभी नंबर वन है…बस नाम लिखने हैं तो किसी का नाम पहले-बाद में आएगा ही…
डॉ अमर कुमार जी
ज्ञानदत्त पाण्डेय जी
दिनेशराय द्विवेदी जी
संगीता गुप्ता जी
निर्मला कपिला जी
रंजना जी (संवेदना संसार)
अनूप शुक्ल जी
जी के अवधिया जी
शरद कोकास जी
और समीर लाल जी समीर (गुरुदेव क्लासेस और मासेस दोनों में ही एक जितने लोकप्रिय हैं)
हां तो मैं बात कर रहा था एक-दो उदाहरण दूंगा…जैसे आज ही मेरी पोस्ट पर संजय तिवारी सँजू जी की टिप्पणी आई…लेखनी प्रभावित करती है…डॉ अमर कुमार ने इसे पढ़कर अलग से मेरी पोस्ट पर टिप्पणी दी…सँजू जी, आज सुबह से यह तीसरी जगह आपको लेखनी से प्रभावित होते देखना अच्छा लग रहा है…दरअसल सँजू भाई ने आज तीन-चार अलग-अलग ब्लॉगर्स भाइयों की पोस्ट पर यही टिप्पणी- लेखनी प्रभावित करती है…भेज दी थी…इसमें सँजू भाई का कोई कसूर नहीं …दरअसल हममें से कई के साथ ऐसा होता है…समय कम हो, और कुछ पोस्ट अच्छी लगे तो हम जल्दी में एक जैसे ही शब्द या मिलते जुलते शब्द टिप्पणी में भेज देते हैं… सँजू भाई, इसे अन्यथा न लेकर डॉक्टर साहब के प्यार भरे आशीर्वाद के रूप में ले…ज़रिया आप बने और डॉक्टर साहब ने कितने शालीन शब्दों के साथ हम सब ब्लॉगर्स को नसीहत दे दी कि टिप्पणी देते समय हमें क्या ध्यान रखना चाहिए..
ये जितने भी आइकन का जिक्र मैंने ऊपर किया है, उनका हर शब्द, हर कृत्य हमारे लिए प्रेरणा-स्रोत है…हां, इस मामले में गुरुदेव का ज़िक्र अलग से ज़रूर करना चाहूंगा…कोई भी नया ब्लॉगर अपनी पारी की शुरुआत करता है तो सबसे पहले उसका हौसला बढ़ाने के लिेए सर्र से उड़न तश्तरी से गुरुदेव ही पहुंचते हैं…
अब मैं नाम लेना चाहूंगा, हिंदी ब्लॉगिंग के कुछ सिपाहियों का…सेना के जवान जिस तरह निस्वार्थ भाव से कड़ाके की ठंड हो या झुलसाने वाली गर्मी, देश की सेवा करते हैं, उसी तरह ये सिपाही भी ब्लॉगिंग जगत और ब्लॉगर्स की मदद करने में जुटे रहते हैं…ये नाम हैं- पीएस पाबला, अजय कुमार झा, विनोद पांडेय और अविनाश वाचस्पति…अभी एक भाई ने अजय भाई पर ही चर्चा में अपना नाम न होने को लेकर उंगली उठा दी थी…उस भाई को मेरा जवाब है…न तो मेरा अजय भाई से पहले कोई संपर्क रहा है, और न ही मेरी उनसे कभी ईमेल, फोन या किसी दूसरे माध्यम से बात हुई है…मुझे जुम्मा-जुम्मा 20-21 दिन ही ब्लॉगिंग में हुए हैं…लेकिन मुझे अजय जी ने एक से ज़्यादा बार चर्चा में जगह दी…आरोप लगाने वाले भाई की भावना को मैं समझ सकता हूं…कभी भावावेश या नासमझी में हम ऐसी कोई बात कह जाते हैं जिसका कोई आधार नहीं होता…लेकिन हम ऐसा करके जिस पर आरोप लगा रहे हैं, उसका कद कम नहीं करते, बल्कि गलत साबित होने पर खुद ही बौने हो जाते हैं. ऐसा ही नहीं कि पाबलाजी या अजयजी को अपने कोई काम नहीं हो…वो भी अपने रूटीन में उतने ही बिज़ी है जितने कि हम और आप…लेकिन वो फिर भी हमारे लिेए टाइम निकालते हैं…मैं फिर कहूंगा कि दोबारा मत पूछना कि हम क्लोरोमिंट क्यों खाते हैं…
बस बहुत हो गया, सुबह जल्दी उठना है, नहीं तो अविनाश वाचस्पति जी को कान पकड़ने का अधिकार तो है ही…क्या कहा स्लॉग ओवर, अब वो कैसे भूल सकता हूं…
स्लॉग ओवर
एक बार जंगल में शेर महाराज सभी जानवरों को इकठ्ठा कर हेकड़ी जता रहे थे…हा…हा…हा…मैं कौन, इस जंगल का राजा…जब मैं दहाड़ता हूं तो पूरा जंगल थर्र-थर्र कांपने लगता है…तभी एक बारीक सी आवाज आई….ओए, शेर, ज़्यादा चौड़ा मत हो, तू क्या खाकर मेरा मुकाबला करेगा…मैं ज़रा सी छींक भी मारता हूं…जंगल तो क्या पूरी दुनिया सर पर पांव रखकर दौड़ने लगती है…(बारीक आवाज सुअर के बच्चे यानि मिनी स्वाइन की थी)
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