सांझ का अंधेरा

ब्लॉग का इस्तेमाल फोरम की तरह भी किया जाना चाहिए…बीबीसी की तरह ऐसे मुद्दों पर सार्थक बहस होनी चाहिए जो हमारे समाज को उद्वेलित करे रखते हैं…ऐसा ही एक मुद्दा मैं रखता हूं…घरों में बुज़ुर्गों की उपेक्षा…बीबीसी की सलमा जैदी जी ने ताजा ब्लॉग में दिल्ली जैसे महानगरों में अकेले रहने वाले बुज़ुर्गों की हत्याओं की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई है…सलमाजी के ब्लॉग पर भेजी अपनी राय को यहां जस की तस पेश कर रहा हूं…जानता हूं इस विषय में चटकारे नहीं मिल पाएंगे..लेकिन कभी-कभी खुद को आइना दिखाने के लिए कुनैन का कड़वा घूंट भी पीना चाहिए…शायद इसी तरह मंथन करते रहने से ही थोड़ा अमृत निकल आए..

बीबीसी को भेजी मेरी राय
सलमाजी, बुज़ुर्गों की इस हालत के लिए कहीं ना कहीं हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं. आज भौतिक सुख-सुविधाएं जुटाने की खातिर हम रोबोट बने घूमते हैं और अपनी जड़ों को ही भूल जाते हैं. पश्चिम की तरह ज्यादा से ज़्यादा फादर्स डे और मदर्स डे पर बुज़ुर्गों को कोई उपहार देकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं. बड़े-बूढ़ों की भूमिका बस घर की रखवाली तक ही सीमित रह गई है. आजकल युवा पीढ़ी कोई रोक-टोक ना हो इसलिए संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवार में ही रहना पसंद करती है.
हमें ये भी सोचना होगा कि बुज़ुर्ग ज़्यादातर महानगरों या बड़े शहरों में अपराधियों के हाथों निशाना क्यों बनते हैं. दरअसल छोटे शहरों-कस्बों में आज भी सामुदायिक भावना दिखती है. अगर कोई बु्ज़ुर्ग किसी घर में अकेला होता है तो पास-पड़ोस से कोई न कोई उसे पूछने आ जाता है. नोएडा जैसे आधुनिकता की पहचान वाले शहर में, जहां देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग आकर बसे हुए हैं, कोई ये भी नहीं जानता कि साथ वाले घर में कौन रहता है. पीछे एक ऐसी ही घटना हुई, मेरे घर के पड़ोस में किसी घर में बुज़ुर्ग की मौत हो गई. पूरी कॉलोनी में किसी को ख़बर तक नहीं हुई. अस्पताल की एम्बुलेंस आई और शव को ले गई. कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले वक्त में ऐसे दिन भी आ जाएं कि आपको किसी शव को कंधा देने के लिए चार आदमियों की ज़रूरत है, तो उसके लिए किराए पर आदमी देने वाली एजेंसियां खुल जाएंगी. ठीक वैसे ही जैसे राजनीतिक दलों की सभाओं के लिेए भाड़े पर आदमियों का इंतज़ाम किया जाता है.

आशा है सुधी ब्लॉगर्स इस बहस को सार्थक ऊंचाई तक ले जाएंगे.
 
क्या कहा….कुछ ज़्यादा ही गंभीर विषय हो गया तो आइए जनाब…अपने स्लॉग ओवर पर…
 
स्लॉग ओवर
क्या आपके पास ये सब है-
टूटता जिस्म…
नशीली आखें…
कपकपाते होंठ…
सिमटी हुई आवाज़…
इंतजार किस बात का कर रहे हैं, जनाब….डॉक्टर के पास जाइए, आपको स्वाइन फ्लू है…

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