राजनीति का चंडूखाना और रामदेव विलाप…खुशदीप

कई तस्वीरें एक साथ उभरीं…रामलीला मैदान के मंच पर किसी ओलंपिक स्प्रिंटर की तरह पहले कूद-फांद करते और फिर हरिद्वार में विलाप करते बाबा रामदेव…दिल्ली के राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान ठुमके लगातीं सुषमा स्वराज…कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनार्दन द्विवेदी को जूता दिखाता कथित पत्रकार सुनील कुमार…

लोकपाल पर प्रतिवाद करते टीम अन्ना के अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और सरकार के मंत्री…अब मेरे ज़ेहन में ये सारी तस्वीरें गड्मड् होती एक दूसरे पर छाती चली गईं…ठीक वैसे ही जैसे आज हर कोई एक दूसरे पर छाने की कोशिश कर रहा है…कुछ कुछ सीताराम केसरी अंदाज़ में…खाता न बही, जो केसरी कहे वो सही…(अरे इतनी जल्दी भूल गए अपने केसरी चचा को, वही सीताराम केसरी जो दशकों तक कांग्रेस के खजांची रहे, नेहरू परिवार की तीन-तीन पीढ़ियों के साथ काम किया)…

भ्रष्टाचार जैसे असली मुद्दे की राजनीति के इस चंडूखाने में मौत होना नियति है…भ्रष्टाचार पूरे देश का मुद्दा है, ये सिर्फ अन्ना हजारे या बाबा रामदेव की बपौती कैसे हो सकता है…टीम अन्ना और बाबा रामदेव दोनों जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं…लेकिन जिस तरह सिक्के के दोनों पहलू आपस में कभी नहीं मिल सकते…यही हाल टीम अन्ना और बाबा रामदेव का है…दोनों दावा करते हैं कि हम साथ-साथ हैं…लेकिन कहने का जो तरीका होता है और जो बॉ़डी लैंग्वेज होती है, उसी से समझ आ जाता है कि दोनों कितने एक-दूसरे के साथ हैं…पास आते भी नहीं, दूर जाते भी नहीं…क्या कशिश है कसम से….

अब सरकार की भी बात कर ली जाए…प्रधानमंत्री की बात कर ली जाए…सोनिया गांधी की बात कर ली जाए, कांग्रेस के नए कर्णधारों-कपिल सिब्बल, पवन कुमार बंसल, सुबोध कुमार सहाय, जनार्दन द्विवेदी की बात कर ली जाए…प्रधानमंत्री ने प्रणब मुखर्जी जैसे वरिष्ठतम मंत्री की अनिच्छा के बावजूद उन्हें दिल्ली एयरपोर्ट पर तीन मंत्रियों के साथ बाबा रामदेव की अगवानी के लिए भेज दिया…यानि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी ज़्यादा भाव बाबा रामदेव को उज्जैन से दिल्ली आने पर दिया गया…फिर बाबा से बातचीत के दौर चलते रहे, मंच से बाबा बयानबाज़ी करते रहे और मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंसों में…लेकिन परदे के पीछे कुछ और ही खेल चलता रहा…बाबाजी भी क्लेरिजेस होटल में पिछले दरवाजे से पहुंचकर गुपचुप सरकार से मंत्रणा करते रहे…कपिल सिब्बल ने बाबा के खासमखास बालकृष्ण की साइन की हुई चिट्ठी सार्वजनिक की तो सभी को पता चला कि फिक्सिंग सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं होती…इस चिट्ठी के खुल जाने के बाद बाबा को पत्रकारों के सवालों का जवाब देना भारी हो रहा था…लेकिन चार जून की रात को रामलीला मैदान खाली कराने के लिए दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई कर दी…वजह बताई गई कि बाबा ने योग शिविर की इजाज़त सिर्फ पांच हज़ार लोगों के लिए ली थी…और वहां ज़्यादा लोगों के जमा होने से अनिष्ट का खतरा हो गया था…बाद में सफ़ाई में ये भी कहा कि इंटेलीजेंस एजेंसियों को लीड मिली थी कि बाबा रामदेव की जान को ख़तरा था…ये सब वजह जो बाद में बताईं गईं, ये उस वक्त कहां तेल लेने गई हुईं थी जब सरकार बाबा रामदेव को बातचीत के नाम पर पहले दो दिन मक्खन लगाती रही…

रामलीला मैदान पर लोगों का जमावड़ा पहले दो दिन तक दिल्ली पुलिस को क्यों नहीं दिखा…ये इसलिए क्योंकि सरकार को भरोसा था कि बाबा रामदेव को मना लिया जाएगा और अन्ना हज़ारे के उठाए लोकपाल के मुद्दे की हवा निकाल दी जाएगी…लेकिन बाबा सरकार के भी गुरु निकले…आरएसएस का खुला समर्थन मिल जाने से बाबा ने अपना रुख और कड़ा कर लिया…सरकार से कहते रहे तीन दिन ही अनशन होगा (लिखित में दिया पत्र), लेकिन मंच पर कुछ और ही तेवर दिखाते रहे…सरकार को भी लगा कि बाबा को जितना आसान टारगेट समझा था, उतने वो हैं नहीं…बस आनन-फ़ानन में रात को ही रामलीला मैदान खाली कराने का फैसला कर लिया गया…

लेकिन पुलिसिया कार्रवाई के दौरान बाबा ने जो बर्ताव दिखाया, वो और भी विचित्र था…मान लीजिए बाबा वहां शांति के साथ मंच पर बैठे रहते तो क्या होता…बाबा को गिरफ्तार कर लिया जाता…यहां ये भी न भूला जाए कि पूरे देश के मीडिया के कैमरे दिन-रात रामलीला मैदान के मंच पर बाबा को कवर कर रहे थे…उनके सामने गिरफ्तारी करने के बाद पुलिस क्या वो कर सकती थी जिसका कि दावा बाद में बाबा ने किया…एनकाउंटर…अब वो ज़माना गया जब सरकार या बाबा रामदेव छुप कर कोई डील कर लें और दुनिया को पता भी न चले…पुलिस का व्यवहार तो हर लिहाज़ से बर्बर कहा ही जाएगा लेकिन बाबा रामदेव और आयोजकों ने खुद भी क्या अपने समर्थकों की जान को खतरे में नहीं डाला…पुलिस को देखते ही इतना उग्र होने की क्या ज़रूरत थी…पुलिस के डंडा चलाने की तस्वीरें सब ने देखीं तो साथ ही पुलिस पर हमला करते, पत्थर बरसाते बाबा के समर्थकों को भी पूरे देश ने देखा…बाबा का दावा है कि महिला के कपड़ों में उन्हें रामलीला मैदान से निकलना पड़ा…वहां कोई भी वजह रही हो बाबा की इस हाल में निकलने की….लेकिन अगले दिन हरिद्वार पहुंचने के बाद भी वो क्यों महिला का सलवार, कमीज़, दुपट्टा ओढ़े रहे…क्या इसलिए कि इस हाल में मीडिया के सामने आकर रोने से पूरे देश में उनके लिए सहानुभूति लहर दौड़ जाएगी…बाबा जी, देशवासी अब इतने अपरिपक्व भी नहीं रहे कि कोई कुछ कहे और वो आंख मूंद कर यकीन कर लें….

अब ज़रा संघ परिवार की भी बात कर ली जाए…संघ गंगा को बचाने के अभियान में पहले बाबा रामदेव के हाथों धोखा खा चुका है…बाबा ने इस पूरे अभियान को हाईजैक कर मनमोहन सिंह सरकार से हाथ मिला लिया था…गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने पर बाबा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संतों से सम्मान कराने की योजना भी बना ली थी…लेकिन बाद में मालेगांव, अज़मेर शरीफ़ जैसी जगहों पर धमाकों में साध्वी समेत कुछ हिंदुओं का नाम आने के बाद संतों की नाराज़गी के चलते रामदेव को अपनी योजना को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा…एक बार चोट खाने के बाद भी संघ परिवार फिर क्यों बाबा रामदेव के पीछे शिद्दत के साथ आ खड़ा हुआ है…सिर्फ इसलिए कि संघ परिवार को बीजेपी की काबलियत पर भरोसा नहीं रहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वो सरकार को प्रभावी ढंग से घेर सकती है…संघ परिवार को लग रहा है कि बाबा रामदेव को आगे कर जनमानस को उद्वेलित किया जा सकता है…

लेकिन संघ ये भूल रहा है कि बाबा रामदेव का सम्मान पूरा जहान योग की तपस्या के लिए करता है…राजनीति के आसनों के लिए नहीं…ये सही है कि बाबा को भी देश के आम नागरिक की तरह भ्रष्टाचार, काला धन के मुद्दों पर चिंता दिखाने का हक़ है…लेकिन राजनीति की बाज़ीगरी को बाबा अपना शगल बनाना चाहते हैं तो निश्चित रूप से उनकी योगगुरु की पहचान दरकेगी….

अब बीजेपी और बाकी राजनीतिक दल…मुख्य विरोधी दल के नाते बीजेपी का कितना रुतबा है इसकी झलक हाल में लखनऊ में संपन्न दो दिन की उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ही मिल गई…ये तो भला हो रामदेव का, बीजेपी को सड़कों पर तेवर दिखाने का मौका मिल गया…राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान विजय गोयल, सुषमा स्वराज के ठुमकों ने ही जता दिया कि रामदेव के समर्थकों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई का रोना रोते वक्त उनके आंसू कितने सच्चे थे…

रामदेव के समर्थकों पर कार्रवाई को लेकर मायावती और मुलायम सिंह यादव ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा…लेफ्ट की वृंदा करात ने भी कार्रवाई को निंदनीय बताया…वृंदा करात ने ये सावधानी ज़रूर बरती कि काले धन की मुहिम को लेकर बाबा की मंशा पर ज़रूर सवालिया निशान लगा दिया…ये वही वृंदा करात हैं जिन्होंने कभी बाबा की फॉर्मेसी की दवाईयों में मानव-अस्तियों के इस्तेमाल का आरोप बड़े जोर-शोर से लगाया था…मायावती-मुलायम कई मौकों पर पहले यूपीए सरकार को अभयदान दिला चुके हैं…आज उन्होंने रामलीला मैदान पर सरकार की कार्रवाई की सख्त शब्दों में भर्तस्ना की है है…लेकिन हो सकता है कल ये मौका पड़ने पर आरएसएस का नाम लेकर ही बाबा को उधेड़ें ठीक वैसे ही जैसे लालू यादव ने अब सरकार का साथ देते हुए किया है…लालू जी का ऐसा करना समझ में भी आता है…मंत्रिमंडल का विस्तार जल्दी ही होना है…लालू जी खाली है…शायद 10, जनपथ की कृपा हो जाए तो रेलवे मंत्रालय न सही तो कोई और मलाईदार महकमा ही हाथ लग जाए..

चलो जी, सब की ख़बर हो गई, अब हम सब अपनी ख़बर भी लें,,,हमें क्या करना है…बौद्धिक जुगाली करते रहना है और क्या…अभी नेताओं को कोसना है, लेकिन जब चुनाव आएंगे तो घर से बाहर निकलेंगे ही नहीं…हां अगर कोई जान-पहचान का खड़ा है और उससे भविष्य में कुछ फायदा होते दिखे तो ज़रूर वोट दे आएंगे…नहीं तो कहेंगे…क्या फर्क पड़ता है….सभी तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं…क्या मिलेगा इन्हें वोट देकर…तो फिर ढूंढिए न चिराग लेकर अपने आस-पास चंद ऐसे लोग जो सच में कुछ करने का जज़्बा रखते हैं…जिनका जीवन बेदाग है…डॉ अब्दुल कलाम, ई श्रीधरन जैसी निस्वार्थ हस्तियां…नेता न सही उन्हें अपना मार्गदर्शक ही बनाइए…शायद उनके बताए रास्ते ही इस देश को बचाने का कोई रास्ता निकल आए…

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