‘टाइम’ ने भारतीयों से माफ़ी मांगी…खुशदीप

क्या अमेरिका और ब्रिटेन के मूल निवासी अपने देशों में रहने वाले भारतीयों को दोएम दर्जे का नागरिक मानते हैं…आखिर गोरी चमड़ी वाले खुद को इतना सुपीरियर क्यों समझते हैं…ऐसा करने वाले क्या रंगभेद का अपराध नहीं करते…टाइम जैसी सम्मानित मैगजीन भी पहले अमेरिका में रहने वाले भारतीयों की खिल्ली उड़ाने वाले लेख को छपने की अनुमति देती है…मामले के तूल पकड़ने पर टाइम भारतीयों से खेद भी जता देती है…

दुनिया भर में पढ़ी जाने वाली प्रतिष्ठित मैगजीन टाइम ने अमेरिका में रहने वाले भारतीयों से माफ़ी मांगी है…दरअसल टाइम में नियमित कॉलम लिखने वाले जोएल स्टेन के एक लेख को लेकर अमेरिका, खास तौर पर न्यूजर्सी में रहने वाले भारतीयों में गुस्सा भड़का हुआ है…उन्होंने टाइम से तत्काल माफ़ी मांगने के लिए कहा था…

टाइम ने माफ़ीनामे में कहा है कि जोएल स्टेन के 5 जुलाई को छपे ह्यूमर कॉलम ‘माई ओन प्राइवेट इंडिया’ से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची है तो हम इसके लिए दिल से खेद जताते हैं…ये लेख जानबूझकर किसी मंशा के साथ नहीं लिखा गया…

जोएल स्टेन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि मैंने इतने सारे लोगों को आहत किया, इसके लिए मैं पेट से बीमार महसूस कर रहा हूं…दरअसल जोएल स्टेन ने अपने इस लेख में ये कहना चाहा था कि न्यूजर्सी में उनके शहर एडीसन का स्वरूप देसी लोगों (भारतीयों) के बड़ी तादाद में आने के बाद कितना बदल गया है…

जोएल स्टेन के मुताबिक न्यूजर्सी के इस शहर (एडीसन) में रहने वाला हर पांचवां नागरिक भारतीय है…मान भी लिया जाए कि भारतीय जीनियस होते हैं..अस्सी के दशक में डॉक्टर और इंजीनियर भारत से अपने चचेरे व्यापारी भाइयों को यहां लाए…हम आश्वस्त नहीं थे भारतीयों के जीनियस-फैक्टर के…फिर ये चचेरे व्यापारी भाई भी अपने से कम बुद्धिमान भाइयों (चाचा, ताऊ, मामा, मौसा, फूफा के लड़के ) को भी यहां ले आए…और हमने ये समझना शुरू किया कि भारत इतना गरीब क्यों है…

फिर धीरे धीरे एडीसन में इतने भारतीय हो गए कि उन्होंने यहां की संस्कृति को ही बदलना शुरू कर दिया…ये देखकर मेरे शहर के लोग एडिसन के नए बाशिंदों (भारतीयों) को डॉट हेड्स बुलाने लगे…एक बच्चे को मैं जानता हूं, उसने भारतीयों की बहुलता वाली एक स्ट्रीट पर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया…जाओ अपने घर भारत वापस जाओ…

मेरे इस शहर को छोड़ने के कुछ अरसे बाद एडिसन शहर में बोझिल भारतीय दुकानों और रिहाइशी ठिकानों की भरमार हो गई…मैं जब भी वापस जाता हूं तो सोचता हूं कि अरिजोना के लोग अविश्वास के साथ क्या बाते करते हैं…कोई कैसे इतना मसालेदार ख़ाना खा सकता है…

अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने टाइम और सीएनएन से इस लेख को ऑनलाइन एडिशन से हटाने के लिए ऑनलाइन पेटीशन शुरू की है…पेटीशन में कहा गया है कि पहले तो टाइम जैसी प्रतिष्ठित मैगजीन को इस तरह के लेख को छपने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी…हम टाइम मैगजीन से पूरे सम्मान के साथ आग्रह करते हैं कि इस लेख को वेब से हटा ले और जोएल स्टेन से समुचित माफ़ीनामा लिखने के लिए कहे…

जोएल स्टेन ने अपनी सफाई में कहा है कि मैं ये बताना चाह रहा था कि भारत से आए लोगों ने किस तरह अमेरिकी ज़िंदगी और मेरे शहर को समृद्ध किया…हम इस प्रतिक्रिया को समझें तो उन लोगों से अच्छी तरह बहस की जा सकती है जो इमिग्रेशन मुद्दे पर विरोध में बोलते हैं…जोएल स्टेन लाख सफ़ाई दे, जिस तरह बंदूक से निकली गोली वापस नहीं आ सकती, इसलिए शब्दों से निकले बाण भी कभी वापस नहीं आते…

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