गोपू बना ‘हनुमान’…खुशदीप

भगवान श्रीराम अयोध्या लौट चुके हैं…उनके स्वागत में घर-घर दीप जलाए जा रहे हैं…यही प्रार्थना है कि हमारे अंदर के राम भी हमारे अंतर्मन के अंधकार को दूर करें…अगर ये राम हमें मिल गए तो दीप से दीप जलते हुए दुनिया का अंधकार अपने आप ही दूर हो जाएगा…इसी कामना के साथ सभी ब्लॉगर भाई-बहनों को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं…साथ ही पिछले दो महीने में ब्लॉग जगत में मुझे जो प्यार मिला…उसके लिए शब्दों में क्या कहूं…बस दिल की बात दिल से ही समझ लीजिए…

खैर अब आता हूं गोपू महाराज पर…यथा नाम तथा गुण…नाम के अनुरूप ही गोल-मटोल…गोपू जी बेहद सीधे-साधे, दिल के सच्चे इंसान है लेकिन किस्मत का न जाने कौन सा छत्तीस का आंकड़ा है कि हमेशा रूठी ही रहती है…उनकी शक्ल देखते ही लगता है कि ऊपर वाले ने कौन से जन्म का बदला लिया है बेचारे से, जो इस बेरहम दुनिया में उतार दिया…गोपू जी एक सांध्य दैनिक में प्लेट-मेकिंग, डिजाइन के ब्रोमाइड बनाने से आजीविका कमाते रहे हैं..साथ ही स्क्रीन प्रिंटिंग के डिजाइन बनाकर भी थोड़ा-बहुत कमा लेते हैं..लेकिन बदकिस्मती से अखबार बंद हो गया…गोपू जी को घर चलाना मुश्किल हो गया…यदा कदा जो मुझसे बन पड़ता था गोपू की मदद कर देता था…लेकिन गोपू की परेशानियों का ये हल नहीं था…

गोपू जब भी मिलता हर बार कोई काम दिलाने की गुजारिश करता…एक दिन गोपू मेरे पास आया…कुछ हिचकते…कुछ अटकते बोला…भाई जी… दरअसल स्क्रीन प्रिटिंग की दुकान वाले मुरली ने मुझे कहा है कि आजकल काम मंदा है, तू एक काम कर…हापुड़ में मेरे मामा रामलीला मंडली के अध्यक्ष हैं…उनकी रामलीला में बरसों से जो हनुमान का रोल करता आ रहा था, उसे टायफाइड ने जकड़ लिया है…मामा ने कहा है कि अगर मेरठ में कोई रंगमंच का कलाकार हनुमान के रोल के लिेए तैयार हो तो मेरे पास भेज दो…15 दिन के लिए करीब 250 रुपये रोज के हिसाब से 4000 रुपये मिलेंगे…साथ ही तीनो टाइम खाना और रहने का भी बढ़िया इंतज़ाम…गोपू यहां तू भी खाली बैठा है…तू 15 दिन के लिए यही काम क्यों नहीं कर लेता…तेरी शक्ल भी हनुमान जैसी लगती है…तू दो-तीन दिन पहले ही हापुड़ चला जा…मैं मामा से कह दूंगा वो डायरेक्टर को बोल कर तुझे ट्रेंड कर देंगे…

अब गोपू जी के खानदान में दूर-दूर तक एक्टिंग से किसी का कोई वास्ता नहीं रहा था…गोपू तैयार हो भी तो कैसे …लेकिन चार हजार की रकम भी कम नहीं थी…कंगाली में कई काम संवर जाते…गोपू ने मुझसे सलाह मांगी…मैंने कहा…देख ले ये काम तेरे बस का भी है…सोच समझ कर फैसला लेना…गोपू बोला…भाई जी यहां भी कौन से तीर मार रहा हूं…15 दिन हवा-पानी बदलने से ही शायद दिन बदल जाएं…

आखिरकार गोपू ने हनुमान बनने का फैसला ले ही लिया…रामलीला शुरू होने से तीन दिन पहले ही गोपू हापुड़ पहुंच गया…रामलीला मंडली के अध्यक्ष मुरली के मामा को मुरली का हवाला दिया तो उन्होंने चेले-चपाटों को गोपू का खास ध्यान रखने का आदेश दे दिया…गोपू जी की तो जैसे निकल पकड़ी…मेरठ में कहां खाने को वांदे…और कहां रामलीला में तीनों टाइम देसी घी से तर खाना…

एक दिन डायरेक्टर साहब ने गोपू को बुलाकर ताकीद किया कि हनुमान का रोल बेहद अहम है…लेकिन तुम्हारा काम रामलीला शुरू होने के तीन-चार दिन बाद ही आएगा…इसलिए अभी से जमकर अपने डायलाग याद कर लो…बाकी अगर कोई डायलाग कभी भूले भी तो स्टेज के पीछे से याद दिला दिया जाएगा…इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है...अब गोपू बेचारे के लिए एक जुमला बोलना भी बेहद भारी…डायलाग की तो बात ही छोड़ दो…खैर मरता क्या न करता…दिन-रात अपनी स्क्रिप्ट बोलने की प्रैक्टिस शुरू कर दी…जैसे जैसे हनुमान के रोल वाला दिन नजदीक आने लगा गोपू जी की हवा शंट होने लगी…फिर भी हौसला बनाए रखा…

आखिर कयामत का दिन आ ही गया…गलती से गोपू जी स्टेज के पीछे के उस हिस्से तक पहुंच गए जहां उसको तो रामलीला देखने आए दर्शक नहीं देख सकते थे, लेकिन भीड़ को गोपू साफ देख सकता था…गोपू जी की जैसे ही भीड़ पर नज़र पड़ी…सिट्टी-पिट्टी गुम…भीड़ में जबरदस्त शोर…कोई कलाकारों को हूट कर रहा है…कोई सीटी बजा रहा है…कोई खड़ा होकर जोर-जोर से चिल्ला रहा है…गोपू जी ने मंच की आड़ से कोई तीन-चार मिनट ये नज़ारा देखा…और फिर जो गोपू महाराज की हालत हुई, बस पूछो नहीं….गुलाबी ठंड में भी उनके माथे से पसीना झर-झर बहने लगा…हाथ-पैर जैसे सुन्न पड़ गए…दिमाग ने काम करना बंद कर दिया…मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए…गोपू जी झट से अपने कमरे में आकर बैठ गए…ये किस फट्टे में जान फंसा ली…यहां तो भीड़ को देखते ही गले की घिग्गी बंध गई…लंबे चौड़े डायलाग मुंह से खाक निकलेंगे…

अब गोपू जी इस टंटे से बच निकलने की तरकीब सोचने लगे…लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था…इतने में ही डायरेक्टर साहब की कड़कदार आवाज गूंजी…हनुमान कहां हो, चलो तुम्हारी एंट्री आने वाली है…

गोपू को काटो तो खून नहीं…ब़ड़ी हिम्मत जुटा कर बोला…उस्ताद जी, मैं स्टेज पर नहीं जाऊंगा…

क्या…क्या कहा…डायरेक्टर साहब को गोपू की बात सुनकर जैसे कानों पर भरोसा ही न रहा हो…

गोपू फिर बोला…उस्ताद जी किसी और को हनुमान बना दो, मुझसे ये काम नहीं होगा…

डायरेक्टर… अबे पागल हो गया है क्या…ये भीड़ देख रहा है न, तेरे समेत हम सबके कपड़े फाड़ डालेगी, अगर स्टेज पर हनुमान न दिखा तो…हम इस वक्त नया हनुमान कहां से तैयार करेंगे…और तू दामाद समझ कर चार-पांच दिन से यहां माल-पानी उड़ा रहा था…पहले दिन ही मना नहीं कर सकता था क्या…अब यहां बवाल कराएगा क्या…

गोपू… उस्ताद जी आप कुछ भी कह लो, मैं स्टेज पर नहीं जाऊंगा..ये मेरे बस का ही नहीं है..

डायरेक्टर साहब बोले…तो तू आसानी से स्टेज पर नहीं जाएगा…

गोपू…नहीं…किसी हाल में नहीं…

डायरेक्टर ने अपने चेलों को आदेश दिया…ये ऐसे नहीं मानेगा, इसे उठाकर स्टेज पर धक्का दो…एकाध डायलाग बोलेगा…फिर अपने आप ठीक हो जाएगा….

चेलों ने उस्ताद की बात मानी…हनुमान के गैट-अप वाले गदाधारी गोपू को स्टेज पर पटक दिया…गोपू भी कच्ची गोलियां कोई खेला था….मंच के बायीं ओर से धकेला गया था…झट से उठा…गदा समेत ही दायीं ओर से ज़मीन पर छलांग लगा दी…उठा और मैदान में 100 मीटर फर्राटा की तरह शूट लगा दी….मैदान के गेट पर पहुंचने के बाद दीवार पर चढ़ा और सीधे सड़क पर…ये जा और वो जा….अब सड़क पर जिसने भी रात को गदाधारी हनुमान को यूं सरपट भागते देखा, मामला उसकी समझ में नहीं आया…खैर गोपू सीधे बस अड़्डे आ गया…और मेरठ वाली बस में बैठ गया…गदा, पूंछ वगैरहा गोपू इसलिए नहीं फेंक रहा था कि उसका सामान रामलीला वालों के पास पड़ा था…अगर गदा, पूंछ न मिली तो कहीं कपड़ों समेत उसका सामान ही वापस करने को मना न कर दें…खैर गोपू जी हनुमान बने बस में बैठे थे और बस की सारी सवारियां, कंडक्टर-ड्राइवर उन्हें देख-देख कर निहाल हो रहे थे…कडंक्टर बोला…धन्य हो गई बस हमारी, आज इसे हनुमान जी की सवारी बनने का मौका मिला…अब ये तो बेचारा गोपू ही जानता था कि वो हनुमान बनने के चक्कर में खुद कितना धन्य हो गया….

हनुमान बने गोपू जी खुदा..न..खास्ता किसी तरह मेरठ पहुंच गए…बस अड्डे पर उतरते ही रिक्शा रोका…रिक्शा वाला भी गोपू को ऐसे देख रहा था जैसे दुनिया का आठवां अजूबा देख लिया…गोपू ने रिक्शा वाले को मुरली के घर का पता बताकर वहां ले चलने को कहा…मुरली वही जिसने गोपू को रामलीला के काम के बारे में बताया था…गोपू की सोच यही थी कि ये हनुमान जी की गदा, पूंछ और दूसरा सामान मुरली को दे दूंगा..तो वो उनकी कपड़ों वाली संदूकची हापुड़ से मंगा देगा…मुरली के घर पहुंचते-पहुंचते गोपू को रात के 12 बज गए…गोपू ने मुरली का किवाड़ खटखटाया और धीरे से आवाज देना शुरू कर दिया…मुरली….मुरली….

खटखटाहट सुनकर पहली मंजिल पर रहने वाले मुरली की पत्नी की नींद खुल गई…छज्जे से नीचे झांक कर देखा तो आंखें फटी की फटी रह गईं…टिमटिमाती रोशनी में गदाधारी हनुमान जो खड़े नज़र आ रहे थे….वो भी पतिदेव मुरली को आवाज देते…मुरली की पत्नी ठहरी धर्म-कर्म को बहुत मानने वाली…सुबह शाम पूजा-पाठ करने वाली…फौरन मुरली को जगाते बोली…ऐ जी, सुनते हो रामजी ने खुश होकर आज साक्षात हनुमान जी को हमारे द्वार पर भेजा है…

खैर…मुरली को तो गोपू को देखते ही सारा किस्सा समझ आ ही गया…
 
मुरली ने दो दिन बाद गोपू के साथ हुआ ये सारा वाकया मुझे सुनाया…मेरी समझ नहीं आया कि मैं हंसू या गोपू की इस दशा पर रामजी से शिकवा करूं कि उसका नसीब ऐसा क्यों लिखा…

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