आज आपको अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक कविता सुनाता हूं…क्यों सुना रहा हूं ये आज आपको पाबला जी की पोस्ट से शायद पता चल जाए…अटल जी जिस राजनीतिक धारा से जुड़े रहे, उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं लेकिन एक कवि, एक वक्ता और एक व्यक्ति के नाते मैं उनका बड़ा सम्मान करता हूं…जबसे वो सक्रिय राजनीति से हटे हैं, उनके छायावादी भाषणों की कमी भारतीय राजनीति को बहुत खल रही है…यही कामना करता हूं कि वो अति शीघ्र स्वस्थ हों…लीजिए उनकी कविता का आनंद लीजिए…
नए मील का पत्थर
नए मील का पत्थर पार हुआ,
कितने पत्थऱ शेष न कोई जानता,
अंतिम कौन पड़ाव नहीं पहचानता,
अक्षय सूरज, अखंड धरती,
केवल काया जीती-मरती,
इसलिए उम्र का बढ़ना भी एक त्यौहार हुआ,
नए मील का पत्थर पार हुआ…
बचपन याद बहुत आता है,
यौवन रसघट भर लाता है
बदला मौसम, ढलती छाया,
रिसती गागर, लुटती माया,
सब कुछ दांव लगाकर घाटे का व्यापार हुआ
नए मील का पत्थर पार हुआ…
-अटल बिहारी वाजपेयी
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