“हम क्यों नहीं मरते”…खुशदीप

संसद से सड़क तक महंगाई का शोर है…एक दिन पहले…कांटा लगा, हाय लगा…में मैंने कोशिश की थी ये बताने कि महंगाई की जड़ कहां है…आज उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए बताता हूं कि महंगाई आखिर है किसके लिए…नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन जब पांच साल के थे तो उन्हें एक सवाल ने वो अर्थशास्त्री बना दिया, जिनका लोहा पूरी दुनिया मानती है…दरअसल जब अमर्त्य सेन छोटे थे तो उसी वक्त बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था…हज़ारों हज़ार लोग बेवक्त काल के मुंह में समा गए थे…गांवों से लोग अन्न की तलाश में पलायन कर रहे थे…कई लोग सड़कों पर ही दम तोड़ रहे थे…ये देखकर नन्हे अमर्त्य सेन अपने घर वालों से सवाल पूछा करते थे कि अकाल से लोग मर रहे हैं तो हमारे घर पर कोई क्यों नहीं मर रहा…ज़ाहिर है अमर्त्य सेन का परिवार खुशहाल था…अकाल के बावजूद घर में धन-धान की कोई कमी नहीं थी…बस इसी फर्क से अमर्त्य सेन को अपना जवाब मिल गया…मौतें अकाल से नहीं अनाज के असमान बंटवारे की वजह से हो रही हैं…जिनके पास पैसा है उन्होंने ज़रूरत से ज़्यादा अनाज घर में भर रखा है…और जिनके पास पैसा नहीं है, उनके घर में खाने को अन्न का दाना तक नहीं है…ये तो रही सात दशक पहले की बात..

अब आता हूं आज पर…विपक्ष के सांसदों ने संसद में सरकार को घेरते हुए कहा कि आम आदमी महंगाई से मरा जा रहा है और सरकार उसे राहत दिलाने के लिए कुछ नहीं कर रही है…कमाल देखिए जिस वक्त दिल्ली में कांग्रेस को घेरा जा रहा था ठीक उसी वक्त दिग्विजय सिंह और रीता बहुगुणा जोशी की अगुआई में कांग्रेसी लखनऊ में मायावती सरकार के खिलाफ नारे लगाकर-लगाकर ज़मीन आसमान एक कर रहे थे…मुद्दा यहां भी महंगाई था…लेकिन ये किसानों को महंगाई से राहत दिलाने के लिए मायावती सरकार से गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग कर रहे थे…इन दो उदाहरणों से मैं सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि विपक्ष दिल्ली में केंद्र को घेरता है तो वही केंद्र लखनऊ जाकर ऐसे विरोधी दल को घेरता है जिसकी यूपी में सरकार है…ज़ाहिर है इस चूहे-बिल्ली के खेल का मकसद अपने-अपने राजनीतिक हितों को साधना है…आम आदमी या किसान को तो इस खेल में बस एक ज़रिेए की तरह ही इस्तेमाल किया जाता है…अगर सच में ऐसे नहीं होता तो लोकसभा में करोड़पति सांसदों की भरमार नहीं होती…

(साभार- सुभानी)

खास और आम का फर्क

2004 में लोकसभा में 29 फीसदी यानि कुल 156 सांसद करोड़पति थे…2009 में करोड़पति सांसदों की संख्या 305 यानि सदन के कुल सांसदों की 59 फीसदी हो गई…दूसरी ओर देश में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग 2004 में 31 फीसदी थे जो 2009 में बढ़कर 37 फीसदी हो गए…


2004 में सांसदों की औसत संपत्ति 1.86 करोड़ थी जो 2009 में बढ़कर 5.33 करोड़ हो गई…दूसरी ओर देश में 2004 में प्रति व्यक्ति आय 2475 रुपये थी जो 2009 में बढ़कर 2962 रुपये के स्तर पर ही पहुंची…


97 फीसदी सांसदों की संपत्ति दस लाख या ज्यादा है, वहीं देश की 77 फीसदी आबादी 20 रुपये दिहाड़ी पर गुज़ारा करती है…

उत्तर प्रदेश पिछड़ा हुआ राज्य माना जाता है इसलिए यहां महंगाई का असर घर-घर में देखा जा रहा है…लेकिन त्रासदी देखिए कि लोकसभा में सबसे ज़्यादा 52 करोड़पति सांसद यूपी से ही आते हैं…

महाराष्ट्र में दुनिया के सबसे ज़्यादा शहरी गरीब हैं लेकिन महाराष्ट्र के 75 फीसदी सांसद यानि 48 में से 38 करोडपति हैं…

हरियाणा के नब्बे फीसदी लोकसभा सांसद यानि नौ सांसद और पंजाब के 100 फीसदी यानि 13 के 13 लोकसभा सांसद करोड़पति हैं…दिल्ली के भी सातों सांसद करोड़पति हैं…


अब थोड़ी पार्टियों की भी बात कर ली जाए…कांग्रेस आम आदमी का नारा पूरी ताकत से बुलंद करती है…लोकसभा में कांग्रेस के 146 सांसद करोडपति हैं…

बात-बात पर नैतिकता की दुहाई देने वाले सबसे बड़े विरोधी दल बीजेपी के 59 सांसद लोकसभा में करोड़पति हैं..

लोहिया की सादगी के मंत्र का जाप करने वाली समाजवादी पार्टी के लोकसभा में 14 सांसद करोड़पति हैं

दलितों की मसीहा कहलाने में फख्र करने वाली बीएसपी के लोकसभा में 13 सांसद करोड़पति हैं…

डॉ अमर्त्य सेन ने बचपन में घर वालों से सवाल पूछा था कि अकाल से उनके घर में मौत क्यों नहीं होती…आज मैं अमर्त्य सेन जी से फिर सवाल करना चाहता हूं कि महंगाई का असर हमारे माननीय सांसदों पर क्यों नहीं होता..क्यों महंगाई सिर्फ गरीबों के लिए ही अकाल बन कर आती है…रहा आम आदमी…वो तो अधर में लटका हुआ है…न पूरी तरह मर रहा है और न ही जी पा रहा है…

स्लॉग ओवर

एक कंजूस व्यापारी के दादाजी की मौत हो गई…वो अखबार में शोक विज्ञापन देने के लिए गया…उसने विज्ञापन दिया…दादाजी खत्म….अखबार के स्टॉफ ने कहा…इतना छोटा विज्ञापन हम स्वीकार नहीं करते, कम से कम पांच शब्द विज्ञापन में होने चाहिए…कंजूस व्यापारी ने बिना एक मिनट गंवाए कहा…दादाजी खत्म, व्हील चेयर बिकाऊ