अजय कुमार झा जी कह रहे हैं कि हिंदी ब्लागरों और साहित्यकारों का पहला विश्वयुद्ध छिड़ने ही वाला है...ये पंक्ति पढ़कर मुझे शोले में धर्मेंद्र का कहा वो डायलाग याद आ गया जिसमें वो अमिताभ से पूछते हैं कि कुछ ज़्यादा तो नहीं कह गया पार्टनर…इस पर अमिताभ का जवाब होता है…अब कह ही दिया तो पार्टनर देख लेंगे…अब अजय भैया ने विश्व युद्ध में कूदने के लिए कह ही दिया है तो सोचने-समझने का सवाल ही कहां होता है…अब अपना अंदाज़ साहित्याना तो कभी नहीं रहा, हमेशा स्लागओवराना ही रहा है…इसलिए उसी शैली में बात कहता हूं…
भाई सुशील कुमार जी ने लंगोट कस कर एक पोस्ट से इस दंगल की शुरुआत की है…साहित्यकारों के सामने ब्लागरों को तुच्छ जीव साबित करने में सुशील जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी…इधर ये पोस्ट टाइप कर ही रहा था कि सामने टीवी पर आ रहे कामेडी सर्कस पर नज़र पड़ गई…इसमें रऊफ़ लाला बता रहे हैं कि उन्होंने एक पठान को शेखर सुमन के बड़ा कलाकार होने के बारे में समझाना शुरू किया…इस पर पठान का जवाब था…ओेए कितना बड़ा कलाकार है, क्या पैरों में बारह नंबर का जूता पहनता है…कितना बड़ा कलाकार है, क्या छत पर लगे पंखे बिना स्टूल पर चढ़े खुद उतारता है…कितना बड़ा कलाकार है, क्या दुबई जाकर ऊंट की ज़मीन पर खड़े खड़े चुम्मी ले लेता है…अब ऐसे में वही पठान पूछने लगे कि ओए कितना बड़ा साहित्यकार है…तो क्या जवाब देंगे…
सुशील जी की साहित्य ही श्रेष्ठ की ग्रंथि से मुझे लखनऊ के एक नवाब साहब का किस्सा भी याद आ रहा है…
नवाब साहब को अपनी नवाबियत का बड़ा गुरूर था…काम तो कभी पुरखों ने नहीं किया तो नवाब साहब खैर क्या ही करते…लेकिन मुगालते की गाड़ी आखिर कब तक खिंचती…नवाब साहब के सारे कारिंदे जी-हुजूर, जी-हुजूर कर नवाब साहब का माल अंटी में लगाते गए और एक दिन नवाब साहब के सड़क पर आने की नौबत आ गई…नवाब साहब को भी थोड़ा इल्म हुआ…भईया अब तो कुछ हाथ-पैर चलाने ही पड़ेंगे नहीं तो फाकों की नौबत आ जाएगी…नवाब साहब लखनऊ में तो आन-बान-शान की खातिर कुछ कर नहीं सकते थे…अपने गांव पुरानी हवेली में आ गए…अब वहां नवाब साहब ने गांव के सारे बच्चों को इकट्ठा कर लिया और उनसे कहा कि चवन्नी-चवन्नी घर से लाओ, तुम्हे बायस्कोप दिखाऊंगा…बच्चे चवन्नी-चवन्नी ले आए….नवाब साहब ने पर्दे के पीछे जाकर शेरवानी उतारकर अपने मरगिले से डौले दिखा दिए…बच्चों ने घर जाकर शिकायत की कि नवाब ने उनसे पैसे लेकर ऐसी हरकत की …ये सुनकर बच्चों के घरवाले लठ्ठ लेकर नवाब की हवेली पहुंच गए…नवाब को घेर कर बोले…अबे ओ नवाब की दुम, ये बच्चों को क्या उल्लू बना रहा है…इस पर नवाब का जवाब था…सालों…ये तो वक्त की ऐसी-तैसी हो रही है वरना चवन्नी-चवन्नी में कहीं नवाबी चीज़ें देखने को मिला करती थी…
अब इसके बाद कहने के लिए कुछ और बचता है क्या सुशील कुमार जी…
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सही खिंचाई की है मित्र…लगे रहो
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/06/skdumkagmail.html#comments
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aur mujhe to tab hi yae dhamki dae dii gayee thee ki maere virudh itna kuchh kiyaa jayegaa ki mae ghar sae bahar nahin nikal sakungi
bahar thee varna pehlae hi yae link uplabdh karaa daete
अजय भैया के ब्लॉग पर लिख दिया है .. बाकी सब ठीक है .. सही है अब तो चवन्नी भी कहाँ चलती है ।
चवन्नी-चवन्नी में कहीं नवाबी चीज़ें देखने को मिला करती थी..
समझते ही नहीं…:)
बहुत सटीक!
जब ब्लोगिंग के आगाज का आलम ये है तो आगे चलकर क्या होगा!!
ब्लोगिंग जैसे स्वतंत्र माध्यम को साहित्य आदि से जोड़ कर उसे बन्धनों में मत बांधिए उसे स्वतंत्र ही रहने दीजिये | जिन्हें ये कूड़ा लगता है वो इससे दूर ही रहे किसी ने इसे पढ़ने के लिए बाध्य नहीं किया है |
पोस्ट पढने में बहुत मजा आया
बाकि मामले के लिये अपने पास दिमाग नहीं है।
प्रणाम
हा हा हा हा हा हा हा…नवाबी चीजें…हा हा हा हा हा हा हा…भाई ब्लॉग का विश्वयुद्ध गया तेल लेने…अपने को तो नवाबी में मज़ा आ गया…
नीरज
ek aur naya vivad ————-
jai baba banaras—
भैया पहलं हमें इन सुशील कुमार जी की पोस्ट दिखाओ, तब टिप्पणी करेंगे।
आप भी पुराने नवाब हो खुशदीप भाई !
मज़ा आ गया …
मेरे खयाल से इस विषय पर बहुत विमर्श हो चुका है अगर ब्लागर ही ब्लागिंग को ऊँचा दिखाने मे लगे रहते हैं तो कोई बात नहीं बनने वाली। उचित यह होगा कि ब्लागिंग पर आत्मविश्लेषण करते हुए इसे निरंतर ऊर्ध्वारोही गति दिया जाय। और उस मुकाम पर ले चलें जहां इसे दोयम दर्जे का समझने वाले इसे अपनाने को मजबूर हो जाएँ। अभिव्यक्ति की बेबाक स्वततंत्रता ब्लागिंग की सबसे बड़ी शक्ति है। अगर यह प्रश्न किसी के द्वारा उठाया गया है तो इस पर स्वस्थ बहस होना चाहिए, न कि किसी का उपहास करते हुए प्रश्न को नज़रअंदाज़ कर दिया जाय।
तीन दिन से सुशील कुमार जी पर इतनी पोस्टें आ चुकी हैं कि उन्हें शहीदों जैसी ख्याति प्राप्त हो गयी है। इसके लिए उन्हें ब्लाग जगत का एहसानमंद भी होना चाहिए।
नेट पर साहित्य अभी अकादमिक साहित्य से तुलना अभी जल्दबाज़ी होगी। लेकिन इससे नेट की महत्ता कहीं से कम होने वाली नहीं है। बहुत कुछ स्तरीय यहाँ भी रचा जा रहा है। बस यूं समझिए मुफ्त मे मिली चीज़ की कीमत नहीं आँकी जा रही है।
लेख और टिप्पणियां सभी मस्त !
………………वैसे ये भी बता देते की ये सुशील कुमार कौन हैं . और क्या क्या ' साहित्य ' लिख चुके हैं 🙂 .
ye to maamle ko anavashyak tool dena ho gaya.. jahan ye kaha gaya tha Sushil ji ki usi post par comment dekar maamla khatm kar dena tha.
is tarah to wo har jagah dikh rahe hain.. na chaahte hue bhi log poochh hi rahe hain 'ye sushil kumar kaun?'
पठान तो हमे बहुत पसंद आया जी:) क्या बिना साहित्य कार के नही चल सकता? पता नही क्यो लोग( हम भारतिया) बात का बतंगड जरुर बनायेगे, इस पठान की सब को राम राम, अरे यह राम राम भागने वाली नही:) कल फ़िर मिलने वाली हे राम राम हे
हमारे मौसा जी एक शेर अक्सर ही कहते है, शेर क्या शायद मुग़ल ऐ आज़म फिल्म का संवाद है … पर अब जो भी है … है मस्त … आप भी देखिये …
" अनारकली अगर जंग का सिला है तो बगावत हो के रहेगी …"
ऐसे ही अब अगर खुद को ब्लॉगर + साहित्यकार बताना है तो भाई यह जंग तो लड़नी पड़ेगी !
वैसे हम तो ब्लॉगर भले … यह साहित्यकार होने में बहुत लोचे है … सुने है खुद अपने घर के लोग भी नहीं पूछते औरो की क्या कहें ! वैसे ज्यादा जानकारी तो कोई साहित्यकार ही दे सकता है इस बारे में ! भाई कोई है क्या यहाँ … ज़रा रोशनी डालो इस मुद्दे पर !
जय हिंद !
"bura jo dekhan mai chala,bura naa
milyo koi,jo man jhanka aapno,mujh
se bura na koi"
doosro ki burai dekhne se pehle apne girebaan me to jhaankana hi
chahiye.
Vandana ji ko sunder si rachana ke liye dhero bandhai aur aapko bhi,
kyonki aapki post per ye likhi gayi.
blogger dosto , main aapke saath hoon ,, jai hind , jai hindi , jai blogging .
बहुत सटा के लिखे हैं हो खुशदीप भाई …जाईये आप भी न ..अब आपको भी ई जनम में साहित्यकार बनने का सुख हासिल न हो सकेगा हम कहे दे रहे हैं ..पद्म पुरस्कार भी ..लेखन को छोड कर बकिया सब फ़ील्ड में मिल जाएगा लेकिन लिक्खाडी में नहीं । नवाब लोग को चवन्नी में नचा रहे हैं न ..रुकिए रुकिए …
http://teremeregeet.blogspot.com/2011/02/blog-post_21.हटमल
:):)
ये सुशील कुमार हैं कौन ? साहित्य के किस मुकाम पर विराजमान हैं और इनका साहित्यमापक पैमाना कौन सा है ?
खुशदीप भाई, लोग शेर भी देखना चाहते हैं और डर भी लगता है।
बैल सींग कटाकर बछड़ा नहीं बन सकता लेकिन बछड़ा ही बैल बनता है, यह जग जानता है।
और नवाब साहब के तो क्या कहने। चाळा पाड़ दिया।
हा हा हा हा
खुशदीप जी
कभी इसी साहित्य की बहस पर कुछ लिखा था वो यहीं लगा रही हूँ …………जो अपने आप सब कह देगा…………।
"हर इंसान में है साहित्यकार छुपा""
ये आसमान में उड़ने वाले
उन्मुक्त पंछी हैं
मत रोको इनकी उडान को
मत बांधो इनके पंखों को
बढ़ने दो इनकी परवाज़ को
फिर देखो इनकी उड़ान को
क्यूँ बांधते हो इन्हें
साहित्य के दायरों में
साहित्य तो ख़ुद बन जाएगा
एक बार उडान तो भरने दो
मत ललकारो प्रतिभावानों को
प्रतिभा स्वयं छलकती है
किसी भी साहित्य के दायरे में
प्रतिभा भला कब बंधती है
साहित्य भी कब बंधा है किसी दायरे में
हर इंसान में है साहित्य छुपा
जिसने भी रचना को रचा
वो ही है साहित्यकार बना
साहित्य ने कब बांधा किसी को
वो तो स्वयं शब्दों में बंधता है
शब्दों के गठजोड़ से ही तो
साहित्यकार जनमता है
हर लिखने वाला इंसान भी
बाँध रहा संसार को
वो भी तो साहित्यकार है
एक घर है परिवार है
इसलिए
मत रोको इनकी उडान को
अब समझदार के लिये इशारा ही काफ़ी है शायद्।
खुशदीप भाई,
ये लखनवी नवाब की नफासत की कहानी आपने केवल सुशील कुमार को सुनाया है या उसके बहाने साहित्य के अन्य पुरोधाओं को ?
खैर किसी को भी सुनाया हो मगर इंशाल्लाह कहा खूब है आपने …आपकी किस्सागोई का जवाब नहीं हुजुर , विल्कुल नहले पे दहला मारा है !
.
.
.
"सालों…ये तो वक्त की ऐसी-तैसी हो रही है वरना चवन्नी-चवन्नी में कहीं नवाबी चीज़ें देखने को मिला करती थी…"
हा हा हा हा,
सही कहा खुशदीप जी, नवाबों को नवाबी मुबारक… हम साले टटपूंजिया ब्लॉगर ही भले… ब्लॉगिंग अलग विधा है, साहित्य से इसका न कोई टकराव है और न तुलना ही… पता नहीं क्यों फिर लोगों के आसन डोल रहे हैं ?
…
निर्मला कपिला said…
ब्लागिन्ग साहितय का महत्वपूर्ण हिस्सा है आने वाला समय सब को बता देगा। इस पोस्ट पर एक joke याद आ गया उसे इस पोस्ट का हवाला दे कर ब्लाग पर लगाऊँगी। समझदार के लिये ईशारा ही काफी है। रतन सिंह शेखावत जी ने बिलकुल सही कहा है। शुभकामनायें।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
🙂
ब्लागिंग भी साहित्य की महत्वपूर्ण विधा है।
हिन्दी ब्लागिंग को बन्द करवाने के लिये भी ब्लाग पोस्ट का ही सहारा ?
तथाकथित बुद्धिजीवी साहित्यकारों के लिये मुझे भी श्री रतनसिंहजी सेखावत के विचार पर्याप्त वजनदार लग रहे हैं ।
खुशदीप सहगल जी!
आप जरूर पहले जनम में भी ब्लॉगिंग के गुरू रहे होंगें।
उदाहरण सहित हम जैसे ब्लॉगिंग के छात्रों को सब कुछ सिखला दिया!
साहित्य का अपना महत्व है। लेकिन यह भी सही है कि लगभग सारे साहित्य को इंटरनेट पर आना होगा, आगे-पीछे वर्ना उसे पढ़ने वाले उंगलियों पर गिने जाएंगे।
ब्लॉग लेखन को एक बर्ष पूर्ण, धन्यवाद देता हूँ समस्त ब्लोगर्स साथियों को ……>>> संजय कुमार
1-ब्लोगिंग के चलते नेट पर जितना लिखा जा रहा है उसके चलते आने समय में लोग नेट पर हर विषय पढेंगे ,साहित्यकारों की किताबें धुल चाटती रह जाएँगी | और सुशील जैसे कथित साहित्यकारों के साथ वही होगा जैसे आपने नबाब साहब के किस्से में बताया |
2-साहित्य के बारे में मैं तो इतना ही समझ पाया हूँ कि साहित्य वही जिसे पढ़कर पाठक को मजा आये और वो उसे आसानी से समझ जाये , अब ब्लॉग पर आपके स्लोगओवर पढने में मजा आता है तो किसी साहित्यक ग्रिन्थी से ग्रस्त कथित साहित्यकार का लिखा कचरा पुस्तक के रूप में खरीदकर मैं क्यों पढूं ?