एक बटा दो, दो बटे चार,
छोटी छोटी बातों में बंट गया संसार…
नहीं नहीं, मैं बीमारी का झटका सह कर इतना भी मक्खन नहीं हुआ कि बाबाओं की तरह आपको उपदेश देने लगूं…इस काम के लिए तो पहले से ही बहुत सारे महानुभाव सक्रिय हैं…दरअसल,मुझे फिल्में भी हल्की-फुल्की ही पंसद आती हैं, जिन्हें देखकर दिमाग में कोई टेंशन न हो…इसी तरह की पोस्ट मैं लिखने और पढ़ने की कोशिश करता हूं…जिसे पढ़कर आपके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाए, मेरी नज़र में वही लेखन सबसे ज्यादा कामयाब है…इससे पहले कि मैं रौ में बहने लगूं और सारी कसर इसी पोस्ट में निकालने लगूं, सीधे मुद्दे की बात पर आता हूं…
मुझसे अक्सर आफ़िस में नए सहयोगी (अपनी पारी की शुरुआत करने वाले लड़के-लड़कियां) पूछते रहते हैं कि अड़सठ को इंग्लिश में क्या कहते हैं…सेवेंटी नाइन या एटी नाइन को हिंदी में क्या कहा जाएगा…फोर्टी नाइन हिंदी में कैसे लिखा जाएगा या उच्चारण कैसे किया जाएगा…ये समस्या सिर्फ आफिस की ही नहीं, मेरे घर की भी है…मेरा बेटा सृजन और बिटिया पूजन भी अक्सर ऐसे ही सवाल मुझसे करते रहते हैं…
ये बच्चे विदेश से पढ़ कर नहीं आ रहे हैं…ये हमारे भारत के स्कूलों से ही पढ़े हैं या पढ़ रहे हैं…अगर हमारे बच्चों को हिंदी की गिनती का ठीक से पता नहीं है तो कसूर किसका है…हमारे एजुकेशन सिस्टम का, स्कूलों का या फिर खुद हमारा…लेकिन आप खुद ही सोचिए आज आप हिंदी के अंक मसलन १,२,३,४,५,६,७,८,९ कितनी जगह लिखा देखते हैं…यहां तक कि हिंदी अख़बारों में भी रोमन अंक ही इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे कि 1,2,3,4,5,6,7,8,9…जब हिंदी के अंक खुद ही प्रचलन से विलुप्त होते जा रहे हैं तो फिर हम अपने बच्चों को क्यों दोष दें…
यहां तक तो ठीक है, लेकिन मेरा सवाल दूसरा है…हिंदी लिखते हुए रोमन अंकों का इस्तेमाल कितना जायज़ है…इस विषय में एक ही तरह का मानदंड क्यों नहीं अपना लिया जाता…जिस तरह हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि भविष्य में हिंदी के अंकों का कोई महत्व रह जाएगा…आप इस बात को पसंद करें या न करें, हिंदी को बढ़ावा देने का कितना भी दम भरें, लेकिन मुझे तो यही लग रहा है कि हिंदी अंकों का कोई नामलेवा भी नहीं रह जाएगा…हिंदी के ये अंक बस संदर्भ ग्रंथों या संग्रहालयों की ही शोभा बन कर रह जाएंगे…जैसे कि आज गांधी जी के चरखे का हाल है…
आप सब ब्लॉगरजन इस विषय में क्या सोचते हैं…क्या हिंदी लिखते वक्त भी हिंदी अंकों की जगह अंग्रेज़ी के अंकों को अपना लिया जाना चाहिए…मुझे खुद ऐसा करने में ही सुविधा महसूस होती है…या फिर मैं गलत हूं…और हिंदी लिखते वक्त सिर्फ हिंदी के अंकों का ही इस्तेमाल करना चाहिए….
स्लॉग ओवर
मक्खन हिसाब किताब में खुद को बड़ा तेज़ समझता है…बाज़ार से सारी खरीददारी भी खुद ही करता है…मज़ाल है कि कोई दुकानदार मक्खन को बेवकूफ़ बना ले…(बने बनाए को कौन बना सकता है)…एक बार मैं घर के पास डिपार्टमेंटल स्टोर में खरीददारी करने गया तो देखा मक्खन आस्तीने चढ़ा कर बिलिंग काउंटर पर सेल्समैन से भिड़ा हुआ था…अबे तू देगा कैसे नहीं…हराम का माल समझ रखा है…खून पसीने की कमाई है…ऐसे कैसे छोड़ दूं फ्री की चीज़…
मेरी समझ में माज़रा नहीं आया…मैंने जाकर पूछा…क्या हुआ मक्खन भाई, कैसे पारा चढ़ा रखा है…मक्खन कहने लगा…देखो भाई साहब, मैंने स्टोर से जूस के दो बड़े पैक खरीदे हैं…और उन पर दो-दो चीज़ें फ्री लिखी हुई हैं और ये मुझे जूस के साथ वो दे नहीं रहा…मैंने कहा…दिखाओ मक्खन भाई, जूस के पैक के साथ क्या फ्री दे रहे हैं...मक्खन ने जूस के पैक मेरी तरफ बढ़ा दिए… उन पर लिखा था- शुगर फ्री, कोलेस्ट्रॉल फ्री…