चलिए सरकार की दुकान…
क्या खरीदना है…पेट के लिए रोटी, हाथ के लिए रोज़गार, सिर के लिए छत…
सरकार की दुकान से जवाब मिलेगा….ये तो नहीं है…सपने हैं वो ले लो…सिनेमा है वो ले लो…माई नेम इज़ ख़ान है, वो ले लो, मल्टीप्लेक्स ले लो, ब्लू टूथ वाले एक से बढ़ कर एक मोबाइल ले लो…चमचमाती कारें ले लो…
आप कहेंगे कि न जी न इनकी भला हमारी औकात कहां…हमें रोटी न सही सिक्योरिटी दे दो…
सरकार कहेगी…मज़ाक करते हो, शर्म नहीं आती…तुम्हे सिक्योरिटी की क्या ज़रूरत…आम आदमी तो फैंटम होता है…निहत्था मैदान में खड़ा रहता है…ललकारता हुआ सरहद पार के कसाबों को, बोट से बैठ कर आओ बेरोकटोक…चलाओ जितनी चाहे गोलियां…आम आदमी फीनिक्स है…फिर खड़ा हो जाएगा अपनी राख़ से धूल झाड़ता हुआ…
लेकिन ये बेचारे मंत्री, नेता, अभिनेता…असली बकरी तो ये हैं…फाइव स्टार सुविधाओं वाले घरों में रहते हैं…बेचारे आसमान में उड़ते रहते हैं…ज़मीन पर तो कभी-कभार ही पैर धरते हैं…सिक्योरिटी इन्हें दें या अपने अंदर सुपरमैन लिए आम आदमी तुझे….
ए रे आम आदमी…तू क्यों अपने से इतना मोह करता है…रोटी तुझे मिलेगी नहीं…तुझे तो मरना ही है…भूख से मर या कसाब की गोली से…फिर काहे ये नवाबों जैसे नखरे दिखाता है…सिक्योरिटी-सिक्योरिटी चिल्लाता है…खामख्वाह हमसे भी झूठ बुलवाता है…रावणराज में रामराज की बात कराता है…
जनता का स्पीकर ऑन है…
लेकिन सरकार अब मौन है…
स्लॉग ओवर
हमारे ख़िलाफ़ सक्रिय शक्तियां कभी भी हमारे अंदर की शक्ति से बड़ी नहीं हो सकतीं..
ऊपर वाले पर भरोसा रखिए…
वो ऐसी किसी शक्ति को हमारे सामने नहीं भेजेगा जिसका कि हम सामना न कर सकें…
लेकिन पत्नी के सामने ऊपर वाला भी मदद करने में हाथ खड़े कर देता है…
जय पत्नी शक्ति…
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