कल पूरा दिन ब्रॉडबैंड ठप रहने की वजह से दिमाग भन्नाया रहा…न पोस्ट डाल सका और न ही कमेंट कर सका.. आज बड़ी मिन्नत-खुशामद कर बीएसएनएल वाले भाईसाहबों को पकड़ कर लाया…बड़ी मुश्किल से ब्रॉडबैंड जी को मनाया जा सका और आप से मुखातिब होने की स्थिति में लौट सका हूं…
कल रात ब्लॉगिंग तो कर नहीं सकता था, इसलिए राजकुमार और दिलीप कुमार की पुरानी फिल्म पैगाम (1959) डीवीडी पर देखने बैठ गया…फिल्म देख कर ही सोचने को मजबूर हो गया कि राजकुमार में ऐसी क्या खासियत थी कि दिलीप कुमार जैसे दिग्गज कलाकार भी राजकुमार के सामने पानी भरते नज़र आते थे…राजकुमार बीते दौर में भी मल्टीस्टारर फिल्मों की जान हुआ करते थे…दूसरे टॉप स्टार राजकुमार के साथ आने से डरा करते थे…बरसों बाद सुभाष घई सौदागर (1991) में राजकुमार और दिलीप कुमार को साथ लाए तो भी पूरी फिल्म में राजकुमार दिलीप साहब के आगे कहीं दबे नहीं…उजाला में शम्मी कपूर हो या वक्त और हमराज में सुनील दत्त, काजल में धर्मेंद्र हो या दिल एक मंदिर में राजेंद्र कुमार, नील कमल में मनोज कुमार हो या मर्यादा में राजेश खन्ना, कर्मयोगी में जीतेंद्र हो या सूर्या में विनोद खन्ना….या फिर मरते दम तक में गोविंदा जैसे नई पीढ़ी के कलाकार…राजकुमार हमेशा इक्कीस ही साबित हुए…
बेमिसाल डॉयलॉग डिलीवरी…गले में मफलर, कंधे पर कोट, पाइप से कश लगाना…राजकुमार का अलग ही अंदाज़ था.. वैसे तो राजकुमार के कई डॉयलॉग बड़े हिट हुए हैं लेकिन वक्त (1965) फिल्म में साथी कलाकार रहमान के सामने राजकुमार की ये लाइन बेजोड़ थी…
चिनॉय सेठ, जिनके घर खुद शीशे के बने हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं उछाला करते…
कश्मीरी मूल के राजकुमार का असली नाम कुलभूषण पंडित था और फिल्मों में आने से पहले वो पुलिस में इंस्पेक्टर थे…अगर सनक की बात की जाए तो राजकुमार का बॉलीवुड में दूर-दूर तक कोई जोड़ नहीं था…अगर राजकुमार की सनक न होती तो आज अमिताभ बच्चन वो अमिताभ बच्चन न होते जिन्हें हम सब जानते हैं…दरअसल 1973 में निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा की फिल्म ज़ंज़ीर ने अमिताभ को एंग्री यंग मैन के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित किया था…लेकिन कम लोग ही जानते हैं कि अमिताभ को प्रकाश मेहरा ने और कोई विकल्प न होने की स्थिति में मजबूरी में ज़ंज़ीर के लिेए साइन किया था…ज़ंज़ीर के लिए प्रकाश मेहरा की पहली पसंद राजकुमार ही थे…लेकिन जब राजकुमार को प्रकाश मेहरा साइन करने के लिए पहुंचे तो राजकुमार से उन्हें जो जवाब मिला, उसे सुनकर प्रकाश मेहरा ने ज़िंदगी में फिर कभी राजकुमार से मिलने की हिम्मत नहीं दिखाई थी…राजकुमार का जवाब था…
जानी…तुम्हारे पास से बिजनौरी तेल की ऐसी बदबू आ रही है, हम फिल्म तो दूर तुम्हारे साथ एक मिनट और खड़ा होना बर्दाश्त नहीं कर सकते…
राजकुमार की एक और अदा थी…वो किसी साथी कलाकार को उसके सही नाम से नहीं बुलाते थे…राजकुमार के दौर में ही राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र और जीतेंद्र भी फिल्मों में अच्छा मुकाम हासिल कर चुके थे…लेकिन राजकुमार धर्मेंद्र को जीतेंद्र और जीतेंद्र को धर्मेंद्र नाम से संबोधित कर देते थे…इस पर धर्मेंद्र को एक बार ज़बरदस्त गुस्सा भी आ गया था…लेकिन राजकुमार ठहरे राजकुमार…किसी शुभचिंतक ने इस आदत पर राजकुमार को एक बार टोका तो उनका जवाब था…राजेंद्र हो या धर्मेंद्र या जीतेंद्र या बंदर…क्या फर्क पड़ता है…राजकुमार के लिए सब बराबर हैं….
एक और किस्सा जीनत अमान को लेकर है…ज़़ीनत इंसाफ का तराजू आते आते फिल्म इंडस्ट्री की टॉप हीरोइन में शुमार की जाने लगी थीं…एक समारोह में किसी ने जीनत की मुलाकात राजकुमार से कराई तो उनका कहना था…जानी शक्ल-सूरत से तो माशाअल्लाह लगती हो, फिल्मों में ट्राई क्यों नहीं करती…ज़ीनत अमान ने ये सुना तो काटो तो खून नहीं…
लेकिन राजकुमार का सबसे बेहतरीन मास्टरस्ट्रोक मशहूर संगीतकार भप्पी लाहिरी के लिए था…सब जानते हैं भप्पी लाहिरी को जेवरों से लदे रहने का बहुत शौक है…किसी ने भप्पी लाहिरी का राजकुमार से इंट्रोडक्शन कराया तो उन्होंने इन शब्दों से भप्पी लाहिरी का स्वागत किया….जानी और तो सब ठीक है लेकिन तुम्हारा मंगलसूत्र कहां है…
3 जुलाई 1996 को मुंबई में राजकुमार ने 69 साल की उम्र में दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा… अगर पाठकों को भी राजकुमार के ऐसे ही कुछ किस्से पता हो तो ज़रूर बताएं…
स्लॉग ओवर
मक्खन का पुतर गुल्ली सरकारी प्राइमरी स्कूल में गिरते-पड़ते पांचवीं पास कर गया…वो स्कूल पांचवी तक ही था…अब प्राइवेट स्कूल में छठी क्लास में दाखिला कराने के लिए मक्खन पंहुचा तो प्रिसिंपल ने कहा कि हम टेस्ट लिए बगैर दाखिला नहीं देते…मक्खन ने कहा…ले लो जी टेस्ट….टेस्ट हो गया…प्रिसिंपल ने टेस्ट का नतीजा देखकर कहा कि हमारे हिसाब से इसे चौथी क्लास में ही एडमिशन दिया जा सकता है…मरता क्या न करता…गुल्ली का चौथी में एडमिशन हो गया…लेकिन महीने बाद ही स्कूल से मक्खन को बुलावा आ गया…प्रिंसिपल ने कहा कि गुल्ली चौथी लायक भी नहीं है…इसे तीसरी में डाल रहे हैं…अब पढ़ाना तो था ही मक्खन ने कहा.. डाल दो जी तीसरी में…लेकिन ये सिलसिला यहीं नहीं थमा…हर हफ्ते-दो हफ्ते बाद मक्खन को बुलावा आता और गुल्ली को एक क्लास और पीछे कर दिया जाता…दूसरी, पहली, केजी…अब जब गुल्ली जी केजी में वापस आ गए तो मक्खन बड़ी तेज़ी से स्कूटर चलाता हुआ घर लौटा…घर के नीचे से ही पत्नी मक्खनी को आवाज दी….नी मक्खनिए…नी मक्खनिए…छेती तैयार हो जा…मुंडा जित्थो आया सी ओथे ही जाण लई बड़ी तेज़ी नाल वापस आ रेया ई….( ओ मक्खनी…ओ मक्खनी…जल्दी से तैयार हो जा…लड़का जहां से आया था, वहीं लौटने के लिए बड़ी तेज़ी से वापस आ रहा है…)
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