सनकी मंत्री, बिनाका गीतमाला और रेडियो सीलोन…खुशदीप

सरकार तुगलकी फ़ैसले ले ले तो उसका नतीजा क्या होता है. या संस्कृति
के नाम पर कोई अपना एजेंडा चलाने की कोशिश करे तो उसके दीर्घकालीन परिणाम क्या आते
है. ये जानने के लिए आइए करीब सात दशक पहले चलते हैं जब देश को आज़ाद हुए पांच साल
ही हुए थे.


ये
वो ज़माना था जब 1952 में आज़ाद भारत के पहले पहले लोकसभा चुनाव संपन्न हुए थे.
इंडियन नेशनल कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला. पीएम जवाहर लाल नेहरू ने सूचना और
प्रसारण का अहम मंत्रालय डॉ बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर को सौंपा. केसकर पक्के
ब्राह्मण और भारतीय शास्त्रीय संगीत के समर्पित समर्थक थे.

बी वी केसकर



केसकर
का मानना था कि फिल्मों के गाने लोगों में राष्ट्रीय गौरव भरने की ज़िम्मेदारी
पूरी नहीं कर रहे. ये भी सोच थी कि इन गानों में उर्दू की भरमार होती है और वो
कामुक (इरोटिक) होते हैं. इसके अलावा उनका ये भी कहना था कि गानों में पश्चिमी
साजों और धुनों का समावेश बढ़ता जा रहा है. केसर इनकी पहचान
मानव विकास के निम्न स्तरके तौर पर करते थे.

केसकर
चाहते थे कि गानों में पश्चिमी इंस्ट्रूमेंट्स की जगह बांसुरी
, तानपुरा और सितार का इस्तेमाल किया
जाए. केसकर का मत था कि रेडियो के ज़रिए देश की संगीत विरासत को बचा कर रखा जा
सकता है. केसकर
1952 से 1962 तक देश के सूचना और प्रसारण मंत्री रहे.

शुरुआत
में केसकर ने आदेश दिया कि ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित होने वाले सारे गानों की
स्क्रीनिंग की जाएगी. उन्होंने साथ ही टोटल प्रोग्राम टाइम का
10 फीसदी कोटा इसके लिए फिक्स किया. केसकर
ने ये भी सुनिश्चित किया कि गाना बजाते समय उसकी फिल्म का नाम ना बता जाए
, सिर्फ गायक का नाम दिया जाए. केसकर के
मुताबिक फिल्म का नाम देने से उसका विज्ञापन होता था…

मध्य में बी वी केसकर
केसकर के इस रवैए के ख़िलाफ़ पूरी
फिल्म इंडस्ट्री एकजुट हो गई. इंडस्ट्री का कहना था कि केसकर का फैसला बाज़ार से
फिल्म संगीत को गायब करने की रणनीति है और फिल्म उद्योग की साख को धक्का पहुंचाने
वाला है.  विरोध में जिन फिल्म निर्माताओं
के पास गानों के अधिकार थे उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के साथ ब्रॉडकास्ट लाइसेंस
रद्द करने का फैसला किया. जैसे कि केसकर ने अनुमान लगाया था
, फिल्म संगीत तीन महीने में ही रेडियो
से पूरी तरह गायब हो गया. इसकी जगह ऑल इंडिया रेडियो शास्त्रीय संगीत का प्रसारण
करने लगा.

भारत
के लोग हिन्दी फिल्म संगीत को कितना पसंद करते थे
, इस ज़रूरत को तब रेडियो सीलोन ने समझा.
रेडियो सीलोन 1951 से ही स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम बनाने लगा था. वहां डायरेक्टर हमीद
सयानी थे.

रेडियो
सीलोन के कमर्शियल प्रोग्राम तब मुंबई के सेंट ज़ेवियर कॉलेज के टेक्नीकल इंस्टीट्यूट में बनते थे. उस समय अमीन सयानी उसी कॉलेज में पढ़ रहे थे. उनके बड़े भाई हमीद
सयानी तब तक स्थापित ब्रॉडकास्टर बन चुके थे. तभी बिनाका टूथपेस्ट बनाने वाली
कंपनी सीबा गाइगी के लिए हिन्दी फिल्मी गानों के काउंटडाउन के आधे घंटे के
स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम की योजना बनी. इसकी ज़िम्मेदारी किसी युवा को देने की सोची
गई
, जो
प्रोग्राम को लिखे भी
, गाने भी चुने, रेडियो पर प्रेजेंट भी करे और श्रोताओं के पत्र चुनकर उनके जवाब भी
दे. ये ज़िम्मेदारी तब 19 साल के अमीन सयानी को सौंप दी गई.
अमीन सयानी


इस
प्रोग्राम को हिन्दी सिनेमा प्रेमियों ने हाथों हाथ लिया. देखते ही देखते अमीन
सयानी अपनी जादुई आवाज़
, रिसर्च और प्रोग्राम पर पकड़ की वजह से घर-घर में पहचाने जाने लगे.
रेडियो सीलोन पर ये सिलसिला करीब
36 साल (1952-1988) चला. शुरू में ये प्रोग्राम आधे घंटे का होता था, बाद में इसे बढ़ाकर एक घंटे का कर दिया
गया.

हर
बुधवार रात
8
बजे लोग शॉर्ट वेव पर रेडियो सीलोन से चिपक कर बैठते. ये जानने के लिए कौन सा
गीत उस हफ्ते सरताज बना. साल के आखिरी बुधवार वार्षिक गीतमाला में साल के सरताज
गीत को जानने के लिए तो लोगों का क्रेज़ देखते ही बनता था…इसके लिए श्रोता गानों
की हिट परेड को नोट करने के लिए कागज-पेन साथ लेकर बैठते थे. बुधवार को इस
प्रोग्राम की तब दीवानगी ठीक कुछ ऐसे ही थी जैसे रामायण और महाभारत सीरियल्स के
दूरदर्शन पर प्रसारण के समय सड़कें-गलियां खाली हो जाती थीं.

प्रोग्राम
मुंबई (तब बंबई) में बनता था तो रेडियो सीलोन से कैसे प्रसारित होता था?
, इसका जवाब अमीन सयानी ने 2010 में एक इंटरव्यू में दिया. उनके
मुताबिक उनकी टीम हर दिन टेप पर शो को रिकॉर्ड करती थी. और फिर हर हफ्ते का कोटा
स्विस एयर
, एयर
सीलोन या एयर इंडिया की फ्लाइट से कोलंबो भेजा जाता.

जैसे
जैसे रेडियो सीलोन की भारत में लोकप्रियता बढ़ती गई
, सूचना और प्रसारण मंत्री केसकर का
प्रभाव घटता गया. आखिर सरकार को रेडियो से हिन्दी गानों पर लगा प्रतिबंध हटाना
पड़ा.

1957
में ऑल इंडिया रेडियो पर नॉन स्टॉप फिल्मी संगीत की अवधारणा पर ऑल इंडिया वैरायटी
प्रोग्राम (
AIVP)  शुरू करने की योजना बनी. पंडित नरेंद्र
शर्मा तब ऑल इंडिया रेडियो से जुड़े थे. उन्होंने इस अलग चैनल के लिए विविध भारती
नाम सुझाया जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया.
1967 में विविध भारती कमर्शियल हो गया और
विज्ञापन लेने लगा. सत्तर के दशक में विविध भारती भी काफी लोकप्रिय हो गया.

इस
पूरे एपिसोड से ये समझा जाना चाहिए कि कैसे केसकर के एक फैसले
, जिसे निजी सनक कहना ज्यादा सही रहेगा, ने ऑल इंडिया रेडियो की कीमत पर दूसरे
देश के रेडियो को भारत में लोकप्रिय होने और कमर्शियल होने की वजह से पैसे कमाने
का मौका दिया. केसकर को पचास के दशक के शुरू में हिन्दी फिल्मी गाने बर्दाश्त नहीं
थे तो आज अगर वो होते
, और आज के गानों के बोल सुनते तो क्या करते…

निष्कर्ष
यही है कि सब कुछ बदल रहा हो तो दुनिया के साथ कदमताल के लिए आप अपनी पसंदीदा विचारधारा दूसरों पर नहीं थोप सकते. आप बंदिशें लगाते हैं तो वैसे ही नतीजे
सामने आते हैं जैसे केसकर के फैसले पर आए और नुकसान ऑल इंडिया रेडियो को भुगतने
पड़े. ये कुछ वैसा ही है कि जैसे जिन राज्यों में शराब प्रतिबंधित है
, वहां पीने वालों को शराब मिल ही जाती
है…

 #हिन्दी_ब्लॉगिंग

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मन की वीणा

जानकारी युक्त रोचक पोस्ट जो कितने सत्य को बता रही हैं ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह }

रेडियो सीलोन से और भी कई प्रोग्राम आते थे जो लोकप्रिय हुए।

Ravindra Singh Yadav
5 years ago

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-10-2019) को " सनकी मंत्री " (चर्चा अंक- 3481) पर भी होगी।

रवीन्द्र सिंह यादव

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

ये बंदा केसकर, ग़लत पार्टी में था

Hari Joshi
5 years ago

अमीन सयानी साहब का रुतबा आज तक बरकरार है। बिनाका गीत माला पर आधारित कार्यक्रम की बजह से आज फिर कारवां के रूप में ट्रांजिस्टर को रिमार्केबल सफलता मिली है।
आपका आलेख सूचनात्मक और मेरे लिए नई जानकारियों से परिपूर्ण है।

डॉ टी एस दराल

बहुत सुंदर जानकारी। निश्चित ही यह पुरानी सोच थी जिसका फायदा विदेश को हुआ। समय के साथ चलना बहुत ज़रूरी है । कुछ सीमाएं रहें तो कोई बुराई नही।

Anil Pusadkar
5 years ago

बहुत बहुत आभार आपका,रेडियो सीलोन से प्रसारित बिनाका गीतमाला के हम भी दीवाने थे,पर सारी जानकारी आज मालूम हो रही है

Khushdeep Sehgal
5 years ago

सतीश भाई जब भी बंदिशें अपनों पर लगती हैं, फायदा बाहरी उठाते हैं… तब भी और अब भी…

Satish Saxena
5 years ago

आपका बहुत बहुत आभार खुशदीप भाई एक महत्वपूर्ण एवं मनोरंजक तथ्य से परिचय कराने के लिए !
आश्चर्य है की केलकर जैसे मंत्री की इस जिद पर तत्कालीन कैबिनेट ने कोई फैसला नहीं लिया और वे उदासीन बने रहे और रेडिओ सीलोन को पूरा देश जान गया !

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