ये किस्सा अरसा पहले एक भारतीय गांव का है…एक गरीब किसान को मजबूरी में गांव के साहूकार से कर्ज़ लेना पड़ा…साहूकार अधेड़ और बदसूरत होने के बावजूद किसान की खूबसूरत जवान लड़की पर बुरी नज़र रखता था…
साहूकार जानता था कि किसान कभी उसका कर्ज़ नहीं चुका पाएगा…साहूकार ने अपना नापाक मंसूबा पूरा करने के लिए चाल खेली…उसने किसान से पेशकश की कि अगर वो बेटी की शादी उसके साथ कर देगा तो वो सारा कर्ज़ माफ़ कर देगा…ये सुनकर किसान और बेटी दोनों के चेहरे फ़क़ पड़ गए…
साहूकार ने दोनों की हालत भांपते हुए कहा कि चलो ये मंज़ूर नहीं तो एक और प्रस्ताव देता हूं…मैं पैसे के एक खाली थैले में दो पत्थर डालता हूं…एक काला और एक सफे़द…फिर किसान की बेटी थैले में से कोई पत्थर निकाले…अगर काला पत्थर निकला तो लड़की को उससे शादी करनी पड़ेगी और वो किसान का सारा कर्ज़ माफ़ कर देगा…और अगर सफेद पत्थर निकला तो लड़की को उससे शादी करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी…इस सूरत में भी किसान का सारा कर्ज़ माफ़ हो जाएगा…लेकिन लड़की ने कोई भी पत्थर निकालने से मना किया तो उसके पिता को जेल भेज दिया जाएगा…
तीनों किसान के खेत पर ही पत्थरों से अटी पगडंडी पर ही खड़े थे…किसान मरता क्या न करता…उसने दो पत्थरों में से एक पत्थर चुनने वाला विकल्प चुना और बेटी को भी नसीब का हवाला देकर राज़ी कर लिया…अब साहूकार ने झट से पथरीले रास्ते से दो पत्थर चुनकर पैसे के खाली थैले में डाल लिए… लड़की की नज़रे बहुत तेज़ थी…उसने देख लिया था कि साहूकार ने दोनों काले पत्थर ही उठाकर थैले में डाले हैं…
साहूकार ने लड़की से थैले में से एक पत्थर निकालने को कहा…अब वो लड़की क्या करेगी…या आप उस लड़की की जगह होते तो क्या करते…ध्यान से लड़की के सामने मौजूद सभी विकल्पों के बारे में सोचिए…यहां तीन संभावनाएं हो सकती हैं…
1. लड़की पत्थर चुनने से मना कर दे…
2. लड़की थैले में से दोनों काले पत्थर निकाल कर साहूकार की बदनीयती की असलियत खोल दे…
3. लड़की काला पत्थर चुनकर खुद का बलिदान कर दे और पिता को कर्ज या जेल जाने की सूरत से बचा दे…
आखिर लड़की ने कौन सा फैसला किया…लड़की जिस दुविधा में थी, उसे सोचने के पारंपरिक तरीके से दूर नहीं किया जा सकता था…फिर लड़की ने लीक से हट कर कौन सा फैसला किया…सोचिए…सोचिए….और सोचिए…
नहीं सोच पा रहे है तो स्क्रॉल करके नीचे जाइए…
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लड़की ने थैले में से एक पत्थर निकाला….और हड़बड़ी का अभिनय करते हुए झट से पत्थर को पगडंडी पर फेंक दिया…लड़की का निकाला पत्थर पगडंडी पर फैले काले और सफेद पत्थरों में मिल गया…ये तय करना मुश्किल था कि लड़की ने सफेद पत्थर निकाला था या काला…लड़की ने फिर साहूकार से ही कहा कि थैले में से आप दूसरे पत्थर को निकाल कर देख लें…वो जिस रंग का भी होगा, स्वाभाविक है कि मेरे से गिरा पत्थर फिर उससे उलट रंग का ही होगा…थैले से काला पत्थर निकला…यानि लड़की का पत्थर सफेद था…लड़की को साहूकार से शादी भी नहीं करनी पड़ी और उसके पिता का सारा कर्ज़ भी माफ हो गया…अब साहूकार ये कहता कि लड़की का चुना पत्थर भी काला था तो साहूकार की चोरी पकड़ी जाती और वो खुद ही धोखेबाज़ साबित हो जाता…इस तरह लड़की ने नामुमकिन स्थिति से भी दिमाग के दम पर ऐसा रास्ता निकाला कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी…
स्लॉग चिंतन
मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी समाधान होता है…लेकिन दिक्कत ये है कि हम ईमानदारी और सच्चे मन से कोशिश ही नहीं करते…
(ई-मेल से अनुवाद)
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मै सोच रहा हूँ इस कहानी पर हिन्दी फिल्म बनती तो कैसे बनती ?
when we are ready for "making a difference", we can connect with creativity and get "the way forward".
the point is "Are we ready ?"
आज दिनांक 2 नवम्बर 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट थैले का पत्थर शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए जनसत्ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।
शिवम् मिश्रा जी से मैं तो मिल लिया, आप भी मिल लीजिए
great post,
motivational story
thanks for sharing this memorable story
वाकई लड़की की समझदारी काम कर गई…शिक्षा देती हुई एक बढ़िया कहानी…सार्थक ब्लॉगिंग के लिए बहुत बहुत धन्यवाद खुशदीप भैया…
मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी समाधान होता है…लेकिन दिक्कत ये है कि हम ईमानदारी और सच्चे मन से कोशिश ही नहीं करते…
हूम …. दाद देनी पड़ेगी लड़की की …बहुत सुन्दर कहानी
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उस्ताद! ईमानदारी और सच्चाई के साथ तिकड़म की भी तो भूमिका है? उसे क्यों भूल गए।
हमारा धंधा बन्द कराने का इरादा है क्या?
बहुत सही हल निकाला कुड़ी ने । हम तो सोचते ही रह गए ।
बहुत ही बढ़िया पोस्ट..हीरा हीरे को काटता है ,लोहा लोहे को काटता है….तिकरम को तिकरम के सहारे ही काटा जा सकता है …भ्रष्टाचार को भी भ्रष्टाचार के साधन और संसाधन के प्रयोग से ही काटा जा सकता है….कास कोई SPG का निदेशक स्तर का अधिकारी ईमानदारी से इस देश के भ्रष्ट मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को गोलियों से भूनने का प्लान बनाता ….ऐसा अगर कोई अधिकारी करेगा वही सच्चा कल्कि अवतार कहलायेगा …वैसे भी भ्रष्ट और गद्दारों को मारना देश और समाज भक्ति की मिसाल पेश करेगा …
सकरात्मक
आप तो प्यारे भाई खुशियों के दीप ही जला रहे हो। इसलिए मानना ही पड़ेगा कि हिन्दी ब्लॉगिंग खुशियों का फैलाव है
यह लडकी जरुर होशियार पुर के आसपास की होगी, बहुत सुंदर कहानी धन्यवाद
6.5/10
पठनीय पोस्ट
कठिन से कठिन परिस्थितयों में विवेक नहीं खोना चाहिए.
छोटी सी यह कहानी बिलकुल नयी सी होने के साथ ही रोचक
और उद्देश्यपूर्ण है.
क्या खूब, लड़की का प्रेसेंस ऑफ माइंड देखते ही बनता है..
बहुत शिक्षाप्रद कहानी है ……"विकट परिस्थियों में भी विवेक के सहारे मुसीबतों के पार आया जा सकता है "
बहुत बहुत धन्यवाद .
बहुत सुन्दर संदेश देती कहानी सुनाई।
इस प्रेरक कहानी के लिये आभार
लेकिन भेडिया मेमने को खायेगा ही, चाहे मेमने के बाप ने गाली दी हो या ना दी हो।
प्रणाम
यार खुशदीप भाई !
इस ढक्कन को मुझे बेच दो तो हमारी गाडी भी चल जायेगी :-))
गज़ब का द्रष्टान्त खुशदीप भाई !
यह कहानिया लाते कहाँ से हो ? हर बार एक नया हिट मसाला क्या मक्खन और ढक्कन इसी काम पर लगा रखे हैं …
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हमारी जितनी भी पौराणिक कथायें हैं उनमें नारी का चरित्र इसी विद्वता को लिए ही है। यह तो पता नहीं अभी कैसा काल आया है कि पुरुष अपने आपको विद्वान और नारी को मूर्ख समझने लगे हैं। बस यही से भारत का पतन होना प्रारम्भ हुआ है। अच्छी कथा।
कहानी पढ़ते समय यही उपाय समझ आया था। विपत्ति में धैर्य और विवेक का प्रयोग।
लेकिन हर कोई कहां सोंच पाता है ऐसा ??
खुशदीप जी, आज का समय होता तो पहले तो लड़की को जेल भेजा जाता और आरोप लगाया जाता कि थैली बदल दी है.. कहानियों और हकीकत में बहुत अन्तर है.. हम नैतिक होने का झूठा दावा करते हैं और घोर अनैतिक हैं.
बहुत बेहतरीन कथा सुनाई और साथ ही संदेश भी:
मुश्किल से मुश्किल समस्या का भी समाधान होता है…लेकिन दिक्कत ये है कि हम ईमानदारी और सच्चे मन से कोशिश ही नहीं करते…
पहली बार ये कहानी सुनी और सच में बहुत ही पसंद आयी… ऐसी प्रेरणादायक कहानियाँ अब कम देखने को मिलती हैं भैया..
ये कहानी सचमुच शिक्षाप्रद है …
स्लॉग चिंतन सकारात्मक चिंतन में मदद करता ही है …!