कई तस्वीरें एक साथ उभरीं…रामलीला मैदान के मंच पर किसी ओलंपिक स्प्रिंटर की तरह पहले कूद-फांद करते और फिर हरिद्वार में विलाप करते बाबा रामदेव…दिल्ली के राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान ठुमके लगातीं सुषमा स्वराज…कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनार्दन द्विवेदी को जूता दिखाता कथित पत्रकार सुनील कुमार…
लोकपाल पर प्रतिवाद करते टीम अन्ना के अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और सरकार के मंत्री…अब मेरे ज़ेहन में ये सारी तस्वीरें गड्मड् होती एक दूसरे पर छाती चली गईं…ठीक वैसे ही जैसे आज हर कोई एक दूसरे पर छाने की कोशिश कर रहा है…कुछ कुछ सीताराम केसरी अंदाज़ में…खाता न बही, जो केसरी कहे वो सही…(अरे इतनी जल्दी भूल गए अपने केसरी चचा को, वही सीताराम केसरी जो दशकों तक कांग्रेस के खजांची रहे, नेहरू परिवार की तीन-तीन पीढ़ियों के साथ काम किया)…
भ्रष्टाचार जैसे असली मुद्दे की राजनीति के इस चंडूखाने में मौत होना नियति है…भ्रष्टाचार पूरे देश का मुद्दा है, ये सिर्फ अन्ना हजारे या बाबा रामदेव की बपौती कैसे हो सकता है…टीम अन्ना और बाबा रामदेव दोनों जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं…लेकिन जिस तरह सिक्के के दोनों पहलू आपस में कभी नहीं मिल सकते…यही हाल टीम अन्ना और बाबा रामदेव का है…दोनों दावा करते हैं कि हम साथ-साथ हैं…लेकिन कहने का जो तरीका होता है और जो बॉ़डी लैंग्वेज होती है, उसी से समझ आ जाता है कि दोनों कितने एक-दूसरे के साथ हैं…पास आते भी नहीं, दूर जाते भी नहीं…क्या कशिश है कसम से….
अब सरकार की भी बात कर ली जाए…प्रधानमंत्री की बात कर ली जाए…सोनिया गांधी की बात कर ली जाए, कांग्रेस के नए कर्णधारों-कपिल सिब्बल, पवन कुमार बंसल, सुबोध कुमार सहाय, जनार्दन द्विवेदी की बात कर ली जाए…प्रधानमंत्री ने प्रणब मुखर्जी जैसे वरिष्ठतम मंत्री की अनिच्छा के बावजूद उन्हें दिल्ली एयरपोर्ट पर तीन मंत्रियों के साथ बाबा रामदेव की अगवानी के लिए भेज दिया…यानि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी ज़्यादा भाव बाबा रामदेव को उज्जैन से दिल्ली आने पर दिया गया…फिर बाबा से बातचीत के दौर चलते रहे, मंच से बाबा बयानबाज़ी करते रहे और मंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंसों में…लेकिन परदे के पीछे कुछ और ही खेल चलता रहा…बाबाजी भी क्लेरिजेस होटल में पिछले दरवाजे से पहुंचकर गुपचुप सरकार से मंत्रणा करते रहे…कपिल सिब्बल ने बाबा के खासमखास बालकृष्ण की साइन की हुई चिट्ठी सार्वजनिक की तो सभी को पता चला कि फिक्सिंग सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं होती…इस चिट्ठी के खुल जाने के बाद बाबा को पत्रकारों के सवालों का जवाब देना भारी हो रहा था…लेकिन चार जून की रात को रामलीला मैदान खाली कराने के लिए दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई कर दी…वजह बताई गई कि बाबा ने योग शिविर की इजाज़त सिर्फ पांच हज़ार लोगों के लिए ली थी…और वहां ज़्यादा लोगों के जमा होने से अनिष्ट का खतरा हो गया था…बाद में सफ़ाई में ये भी कहा कि इंटेलीजेंस एजेंसियों को लीड मिली थी कि बाबा रामदेव की जान को ख़तरा था…ये सब वजह जो बाद में बताईं गईं, ये उस वक्त कहां तेल लेने गई हुईं थी जब सरकार बाबा रामदेव को बातचीत के नाम पर पहले दो दिन मक्खन लगाती रही…
रामलीला मैदान पर लोगों का जमावड़ा पहले दो दिन तक दिल्ली पुलिस को क्यों नहीं दिखा…ये इसलिए क्योंकि सरकार को भरोसा था कि बाबा रामदेव को मना लिया जाएगा और अन्ना हज़ारे के उठाए लोकपाल के मुद्दे की हवा निकाल दी जाएगी…लेकिन बाबा सरकार के भी गुरु निकले…आरएसएस का खुला समर्थन मिल जाने से बाबा ने अपना रुख और कड़ा कर लिया…सरकार से कहते रहे तीन दिन ही अनशन होगा (लिखित में दिया पत्र), लेकिन मंच पर कुछ और ही तेवर दिखाते रहे…सरकार को भी लगा कि बाबा को जितना आसान टारगेट समझा था, उतने वो हैं नहीं…बस आनन-फ़ानन में रात को ही रामलीला मैदान खाली कराने का फैसला कर लिया गया…
लेकिन पुलिसिया कार्रवाई के दौरान बाबा ने जो बर्ताव दिखाया, वो और भी विचित्र था…मान लीजिए बाबा वहां शांति के साथ मंच पर बैठे रहते तो क्या होता…बाबा को गिरफ्तार कर लिया जाता…यहां ये भी न भूला जाए कि पूरे देश के मीडिया के कैमरे दिन-रात रामलीला मैदान के मंच पर बाबा को कवर कर रहे थे…उनके सामने गिरफ्तारी करने के बाद पुलिस क्या वो कर सकती थी जिसका कि दावा बाद में बाबा ने किया…एनकाउंटर…अब वो ज़माना गया जब सरकार या बाबा रामदेव छुप कर कोई डील कर लें और दुनिया को पता भी न चले…पुलिस का व्यवहार तो हर लिहाज़ से बर्बर कहा ही जाएगा लेकिन बाबा रामदेव और आयोजकों ने खुद भी क्या अपने समर्थकों की जान को खतरे में नहीं डाला…पुलिस को देखते ही इतना उग्र होने की क्या ज़रूरत थी…पुलिस के डंडा चलाने की तस्वीरें सब ने देखीं तो साथ ही पुलिस पर हमला करते, पत्थर बरसाते बाबा के समर्थकों को भी पूरे देश ने देखा…बाबा का दावा है कि महिला के कपड़ों में उन्हें रामलीला मैदान से निकलना पड़ा…वहां कोई भी वजह रही हो बाबा की इस हाल में निकलने की….लेकिन अगले दिन हरिद्वार पहुंचने के बाद भी वो क्यों महिला का सलवार, कमीज़, दुपट्टा ओढ़े रहे…क्या इसलिए कि इस हाल में मीडिया के सामने आकर रोने से पूरे देश में उनके लिए सहानुभूति लहर दौड़ जाएगी…बाबा जी, देशवासी अब इतने अपरिपक्व भी नहीं रहे कि कोई कुछ कहे और वो आंख मूंद कर यकीन कर लें….
अब ज़रा संघ परिवार की भी बात कर ली जाए…संघ गंगा को बचाने के अभियान में पहले बाबा रामदेव के हाथों धोखा खा चुका है…बाबा ने इस पूरे अभियान को हाईजैक कर मनमोहन सिंह सरकार से हाथ मिला लिया था…गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने पर बाबा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का संतों से सम्मान कराने की योजना भी बना ली थी…लेकिन बाद में मालेगांव, अज़मेर शरीफ़ जैसी जगहों पर धमाकों में साध्वी समेत कुछ हिंदुओं का नाम आने के बाद संतों की नाराज़गी के चलते रामदेव को अपनी योजना को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा…एक बार चोट खाने के बाद भी संघ परिवार फिर क्यों बाबा रामदेव के पीछे शिद्दत के साथ आ खड़ा हुआ है…सिर्फ इसलिए कि संघ परिवार को बीजेपी की काबलियत पर भरोसा नहीं रहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वो सरकार को प्रभावी ढंग से घेर सकती है…संघ परिवार को लग रहा है कि बाबा रामदेव को आगे कर जनमानस को उद्वेलित किया जा सकता है…
लेकिन संघ ये भूल रहा है कि बाबा रामदेव का सम्मान पूरा जहान योग की तपस्या के लिए करता है…राजनीति के आसनों के लिए नहीं…ये सही है कि बाबा को भी देश के आम नागरिक की तरह भ्रष्टाचार, काला धन के मुद्दों पर चिंता दिखाने का हक़ है…लेकिन राजनीति की बाज़ीगरी को बाबा अपना शगल बनाना चाहते हैं तो निश्चित रूप से उनकी योगगुरु की पहचान दरकेगी….
अब बीजेपी और बाकी राजनीतिक दल…मुख्य विरोधी दल के नाते बीजेपी का कितना रुतबा है इसकी झलक हाल में लखनऊ में संपन्न दो दिन की उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ही मिल गई…ये तो भला हो रामदेव का, बीजेपी को सड़कों पर तेवर दिखाने का मौका मिल गया…राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान विजय गोयल, सुषमा स्वराज के ठुमकों ने ही जता दिया कि रामदेव के समर्थकों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई का रोना रोते वक्त उनके आंसू कितने सच्चे थे…
रामदेव के समर्थकों पर कार्रवाई को लेकर मायावती और मुलायम सिंह यादव ने भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा…लेफ्ट की वृंदा करात ने भी कार्रवाई को निंदनीय बताया…वृंदा करात ने ये सावधानी ज़रूर बरती कि काले धन की मुहिम को लेकर बाबा की मंशा पर ज़रूर सवालिया निशान लगा दिया…ये वही वृंदा करात हैं जिन्होंने कभी बाबा की फॉर्मेसी की दवाईयों में मानव-अस्तियों के इस्तेमाल का आरोप बड़े जोर-शोर से लगाया था…मायावती-मुलायम कई मौकों पर पहले यूपीए सरकार को अभयदान दिला चुके हैं…आज उन्होंने रामलीला मैदान पर सरकार की कार्रवाई की सख्त शब्दों में भर्तस्ना की है है…लेकिन हो सकता है कल ये मौका पड़ने पर आरएसएस का नाम लेकर ही बाबा को उधेड़ें ठीक वैसे ही जैसे लालू यादव ने अब सरकार का साथ देते हुए किया है…लालू जी का ऐसा करना समझ में भी आता है…मंत्रिमंडल का विस्तार जल्दी ही होना है…लालू जी खाली है…शायद 10, जनपथ की कृपा हो जाए तो रेलवे मंत्रालय न सही तो कोई और मलाईदार महकमा ही हाथ लग जाए..
चलो जी, सब की ख़बर हो गई, अब हम सब अपनी ख़बर भी लें,,,हमें क्या करना है…बौद्धिक जुगाली करते रहना है और क्या…अभी नेताओं को कोसना है, लेकिन जब चुनाव आएंगे तो घर से बाहर निकलेंगे ही नहीं…हां अगर कोई जान-पहचान का खड़ा है और उससे भविष्य में कुछ फायदा होते दिखे तो ज़रूर वोट दे आएंगे…नहीं तो कहेंगे…क्या फर्क पड़ता है….सभी तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं…क्या मिलेगा इन्हें वोट देकर…तो फिर ढूंढिए न चिराग लेकर अपने आस-पास चंद ऐसे लोग जो सच में कुछ करने का जज़्बा रखते हैं…जिनका जीवन बेदाग है…डॉ अब्दुल कलाम, ई श्रीधरन जैसी निस्वार्थ हस्तियां…नेता न सही उन्हें अपना मार्गदर्शक ही बनाइए…शायद उनके बताए रास्ते ही इस देश को बचाने का कोई रास्ता निकल आए…
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Makkhan means 100% Laughter Gauranteed…Khushdeep
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अब पढ़ा…पहले पढ़ लिया होता तो ठीक रहता…
jai ho…..post…….par
jai hind……
pranam
बढिया लिखा है। आशीष श्रीवास्तव जी ने काफी महत्वपूर्ण बात कही है।
सरकार तो खैर अपनी खौंखियाहट जग जाहिर कर ही रही है, हर रोज गलती पर गलती करे जा रही है तो दूजी ओर ढिमाके शिमाके लोग शोक मनाने का दम भरते हैं और दूसरे पल ठुमके लगाते दिखते हैं। हद है।
वाह,खुशदीप!आप पहले इंसान देखे जो अपने नाम का सही माएना हैं.आप किसी भी निडर सम्पादक से कम नहीं हैं,जो किसी से नहीं डरता.मैंने अपनी फेस बुक पर यही सवाल मीडिया से किया कि आप बाबा कि तरह बोल रहे हैं कि पुलिस ने महिलाओं के कपडे फाड़े,लाठियां मारीं,,,तो बाही उनके एक एक पल कि जब फूटज है तो यह सब फुतागे क्यूँ केमरों में नहीं आयीं, वाह फुटेज तो दिखाओ !,बस फिर क्या था कुछ संघी और बाबा समर्थक मुझे गालियाँ देने लगे एक ने तो मुझे यह तक कहा कि में यह इसलिए पूछ रहा हूँ क्यूकी मेरा उपनाम मुसलमान है..यहाँ आपने ठीक उन्हीं मेरे सवालों को और उम्दा तरीके से बयान किया है.अब तो पुलिस को मिले सीसी केमरों कि फुटेज ही ४ जून कि रात कि सही असलियत बताएगी..
sateek.
सटीक पोस्ट,
बधाई हो आपको – विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आप ने सब की खबर तो ली, रास्ता नही बताया, दो ही रास्ते हे अब… या तो हम सब अब गुलामो की तरह से रहे जेसे आज तक रह रहे हे, नोकरी करे कर्जे पर गाडी , घर ले, ओर अपने ही देश मे डर कर जीये पता नही कब कोई नेताओ का गुंडा हमरी इज्जत से खेल ले, उस के बाद हम किस्मत को दोष दे दो चार दिन रोये, फ़िर भुल जाये.
दुसरा रास्ता, बाबा ओर अन्ना हजारे के बताये रास्ते पर चले, ओर इज्जत से शान से जीना सीखे, देश मे कानून व्यवस्ता हो, हर नागरिक इज्जत ओर मान से रहे, ओर इस रास्ते पर चलने के लिये इन लोगो का विशवास करना होगा, या खुद लडना होगा… वर्ना जीना जिसे कहते हे वो अभी जीना नही हमरी मां बहिन सडक पर सुरक्षित नही, कुछ हो जाये तो किसे रोये, कोन सा कानून हे इस देश मे? मियां बीबी सारी उम्र काम करे, फ़िर भी खाने को नही…. बाबा ने हमे रास्ता दिखाया हे, उस पर चलना ना चलना हमारी मर्जी हे, लेकिन हमे उलटा बाबा को ही दोषी नही कहना चाहिये, यह चाल इन नेताओ की हे ओर हमे इन नेताओ की चाल मे नही आना चाहिये.. किसी पर तो विश्वास करना ही हे….
.निहायत सलाहियत भरी अव्वल दर्ज़े की इमानदार पोस्ट !
मुम्बई की जुबान में बोले तो ’ सबकी खोल कर रख दी ’ ।
अपुन एक बात और बोलेंगा.. बाबा और नेता दोनों में कौन भाई है कौन सरकिट पब्लिक जानने नईं सकती । वो अपना उल्लू सीधा करते.. पब्लिक वाह वाह करती । बोले तो खुशदीप भाई, क्या बाबा आधाइच फ़िक्सिंग कियेला है… मेरे कूँ मेरा मन बोलता है नहीं… बाबा क्लेरिजेस होटेल में बी इसी माफ़िक रोया होगा.. अपुन फ़िक्सिंग करेगा तो पब्लिक को क्या बोलेगा…. सिब्बल बोले होयेंगा कि तुम मत बताना हम बता देंगा…. पिच्छू सहाय इसके आगे जोड़ा होयेंगा कि जब तुम हमको पेट भर गाली दे लेगा तो बोलना , हम तुमको किसी तिकड़म से निकालेंगा.. और अक्खा इँडिया ने देखा कि पब्लिक हलाल होता रहा.. और बाबा सलवार पहन कू सरफ़रोशी का तमना गाता चला गया ।
खुशदीप हम खाली पीली भँकास नहीं मारता, अपुन पहिलेइच अईसा माफ़िक सियासी तमाशा अँदर को घुस के देखेला है । प्रीस्ट बोलो पुजारी बोलो.. तो ये समझो कि प्रीस्ट प्रॉस, पॉलिटीशियन का कब्बी भरोसा नहीं करने का ।
अनशन एक दृश्य हज़ार 🙂
आम आदमी क्या सोचता है समझ नहीं आता है पहले कहता है की राजीनीतिक दल जनता के मुद्दे नहीं उठता भ्रष्टाचार के मुद्दे नहीं उठता और जब कोई मुद्दा उठता है तो सभी को उसमे राजनीति नजर आता है लगता है की ये मुद्दा उठा कर राजनीती की जा रही है मुद्दे उठाने वालो के कपडे का रंग नजर आता है और दुनिया जहान के सौ बहाने बना कर समर्थन देने से इंकार कर दिया जाता है ताकि आम आदमी को फिजूल के झमेले में न पड़ना पड़े चुप चाप अपने घर में पड़ा रहे या नेताओ को बस गलिया देता रहे | अब राजनीतिक दल भी देखता है की लोग भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उतने साथ नहीं आ रहे है जितना की धर्म जाति के मुद्दे पर खास कर वोट देने तो उसे क्या पड़ी है की वो उन मुद्दों को उठाये क्योकि उसने उठाया तो कह दिया जायेगा की आप मुद्दे ना उठाये आप खुद भ्रष्टाचारी है आप राजनीती कर रहे है | तो भैया ठीक है मुद्दा तो चला गया कही मुह छुपा कर अब बाकि चीजो पर ही चिल्ल पो किया जाये सरकार यही तो चाहती थी की लोग मुद्दा ही भूल जाये |
सार्थक विश्लेषण ..
शानदार और सधा आलेख्।
देश अगर हो गया खड़ा तो त्राहि त्राहि हो जाएगी
१० जनपथ के हर कोने में महाप्रलय आ जाएगी..
इस विचारोतेजक लेख के आखिर में आपने आम जनता की मानसिकता पर जो व्यंग किया है वो बेजोड़ है. हम ही पहले ऐसे भ्रष्ट लोगों को सत्ता में बिठाते हैं और बाद में उन्हीं के कृत्यों पर विलाप करते हैं…वाह.
नीरज
इसे कहते हैं आम आदमी के दिल से निकली डायरेक्ट आवाज़ , बहुत बढिया और खुल के लिखा आपने । द्विवेदी जी ने सही रास्ता सुझाया है । एकदम सटीक है वो
.राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान विजय गोयल, सुषमा स्वराज के ठुमकों ने ही जता दिया कि रामदेव के समर्थकों पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई का रोना रोते वक्त उनके आंसू कितने सच्चे थे…
मुझे तो पूरे भ्रष्टाचार आन्दोलन मे सुशमा स्वराज के ठुमके ही सही लगे तेलिफोन पर बाबा के साथ शोक किया फिर नाचने लगी कितने परिपक्व हैं हमारे नेता।
अब और सुन लो बालकिशन ,बाबा के अनुयायी भी विदेशी निकले सोनिया की तरह। क्या बाबा को एक स्वदेशी नागरिक भी नही मिला अपना राज़दार बनाने के लिये? अब कोई क्यों इस मुद्दे पर नही बोलता। लेकिन इसमे भी सरकार के विरोधी बहान ढूँढ लेंगे कि ये सरकार की चाल है। नेपाली बाहर से आ कर अकूत धन कमा कर सरकार को ही आँखें दिखाने लगा? वैसे सुशमा मंदली ने दिमागी जुगाली छोद रखी है आजकल चिन्गारी फेंको तमाशा देखो।
आलेख का सही विश्लेशन पढ कर आनन्द आ गया।अशीर्वाद, आशीर्वाद आशीर्4वाद।
ये आशीश श्रीवास्तव जी ने कितना सही कहा। लोक तन्त्र क्या करना? बाबा तो ऐसे सोचने लगे हैं कि देश सिर्फ और सिर्फ उनके कहे पर ही चले। प्रधान मन्त्री तो बाबा को ही चुना जाना है। और उस दिन लोक तन्त्र का आखिरी दिन होगा इस देश में एडवानी सुशमा जी तो यूँ ही नाच रहे हैं।
aaj subah subah aapne dhnya kar diya
itna badhiya likha aapne ki bas….main baanchta chala gaya
aur bahta chala gaya aapke sath.
सबकी खबर ले ली , सब की खबर दे दी ।
लेकिन समाधान क्या है , यह बात तो हवा हो गई ।
क्या अगले चुनाव तक इंतजार करना पड़ेगा ?
.
.
.
खुशदीप जी,
एक परिपक्व व निष्पक्ष विश्लेषण है आपका, आभार!
परंतु आज यह जो लोग भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई के स्वघोषित अगवा बने हुऐ हैं उनसे ज्यादा उम्मीद नहीं रखता मैं… यह लोग बड़े नहीं इनके पोस्टर व कट-आउट जरूर बड़े दिखते हैं… इस लड़ाई का सही अगवा वही होगा जो संसदीय लोकतंत्र को साध कर इस लड़ाई को लड़ेगा… यह बार बार के धरने व अनशनों के जरिये लोकतंत्र को बंधक बनाने की चाह रख अपनी मांगें पूरा करने का ख्वाब रखने वाले खुद लोकतंत्र में यकीन नहीं रखते हैं…यदि रखते तो इस लड़ाई को चंद दिनो या महीनों तक ही क्यों लड़ना चाहते हैं क्यों नहीं किसी राज्य के चुनावों में इसी एजेंडा के साथ उम्मीदवारों का पैनल उतारते/समर्थन करते ?
रही बात बौद्धिक जुगाली करते हम लोगों की तो अगर हम केवल यह ही सुनिश्चित कर लें कि हमारी संतानें एक ईमानदार नागरिक हों तो इसी से चंद ही सालों में देश को एक ईमानदार नई पौध मिल जायेगी…थोड़ा मुश्किल तो है हम में से अधिकतर के लिये अपने बच्चे की आंखों में आंखें डाल यह कहना कि तेरी माँ/बाप एक ईमानदार नागरिक है, पर असंभव नहीं, थोड़े-थोड़े त्याग करने होंगे सभी को… किसी अन्ना या बाबा के बूते का नहीं यह… हमें ही करना होगा यह… पर क्या कहूँ…हम में से अधिकतर खुद को नहीं अपने पड़ोसी को ईमानदार व नियमों का पालन करता हुआ देखना चाहते हैं… 🙁
…
बस देश सधा रहे, लड़खड़ाने न लगे।
रतन जी की टिप्पणी के बाद कहने को कुछ नहीं बचता..
भ्रष्टाचार के विरुद्ध इतना बड़ा जनमत खड़ा करने के योगदान को कोई नहीं देखना चाहता..
इतना ही छिद्रान्वेषण पिछले साठ सालों में सभी नेताओं का किया होता, ऐसी ही बारीक नजर से काम लिया होता तो यह नौबत न आती..
खबरिया चैनलों और अखबारों के रहनुमा जो बड़ी बड़ी ऊंची बातें करते हैं, खुद अपने पत्रकारों को किस तरह रखते हैं, वे स्वयं जानते हैं..
और कुछ हो न हो, लोकतन्त्र को क्षति जरूर पहुंची है…
खुशदीप भाई, तबियत से धो डाला…
वैसे आजकल ऐसे धोबीघाट गली-गली कूचा-कूचा बने हुए है… 🙂
बेहतरीन परिपक्व और विशद विवरण जिसमे कोई पक्ष अछूता नहीं छोड़ा गया
निष्पक्षता की अगर बात करूँ तो कम से कम मेरी निगाह और समझ में, ब्लॉग जगत में लिखे गए लेखों में से, यह बेहतरीन है !
पत्रकारिता क्षेत्र में यह लेख किसी भी सम्पादकीय से कम नहीं है !
बधाई खुशदीप भाई !!
अच्छी ख़बर ली है जनाब, सभी महानुभावो की…
क्यूँ चारो तरफ फैला है भरम?
========================
'अन्ना' पे करम, 'बाबा' पे सितम ,
'अम्मा' इस तरह करना न ज़ुलम!
'पैसा' है सनम, 'योगा' से शरम,
'मन'* है तुझको कैसा ये भरम ? [*PM]
'भगवे' से हुआ ख़तरा पैदा,
'शलवार' ने रखली 'उनकी' शरम.
रक्षा करना थी देश की जब,
'आँचल' को बना डाला परचम.
स्वागत करके लाये थे जिसे,
छोड़ा उसको हरी के द्वारम.
'अनशन' करने से रोको नही,
'सेवा' करना ही जिनका 'धरम'.
— mansoor ali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
आप की एक एक बात से सहमत हूँ। मार्ग तो जनता निकाल लेगी। लेकिन तब जब वह खुद संगठित होगी। हम क्यों न अपने घरों और काम की जगहों के आसपास से ही जनता के संगठनों का आरंभ करें।
हमें क्या करना है…बौद्धिक जुगाली करते रहना है और क्या…अभी नेताओं को कोसना है, लेकिन जब चुनाव आएंगे तो घर से बाहर निकलेंगे ही नहीं…हां अगर कोई जान-पहचान का खड़ा है और उससे भविष्य में कुछ फायदा होते दिखे तो ज़रूर वोट दे आएंगे.
@ इस देश में वोट मुद्दों पर नहीं जाति व धर्म के नाम पर दिए जाते है जब तक ये मनोदशा रहेगी तब तक ये राजनैतिक बेशर्मी इस देश को भुगतनी पड़ेगी | और इस मनोदशा की जड़े इतनी गहरी है कि उन्हें काटना आसान नहीं |
स्पष्ट विश्लेषण | सभी बातो से सहमत |
१-गिरफ्तारी के समय बाबा ने साबित कर दिया कि वे राजनैतिक तौर पर अपरिपक्व है ,साथ ही रिहा होने के बाद प्रेस कांफ्रेस में उनका रोना धोना देख साबित करता है कि वे सत्याग्रह करने के काबिल नहीं | उन्हें सिर्फ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनजागरण तक ही सिमित रहना चाहिए |
२- बाबा व अन्ना के आन्दोलन के बाद सरकार की धूर्तता भी सामने आ गयी कि ये लोग कितने निचे तक गिर सकते है |
३- बालकृष्ण की चिट्ठी प्रकरण में बाबा मिडिया को इतना भी नहीं समझाया पाए कि " उस चिट्ठी में यही वायदा था कि मांगे मानी जाने पर अनशन खत्म कर दिया जायेगा इसमें गलत क्या था ? पर बाबा सही जबाब नहीं दे पाए ये उनकी अपरिपक्वता की निशानी ही है |
भाजपा की हरकतों पर तो कमेन्ट करना भी अपना स्तर निचे गिराना है इसलिए नो कमेन्ट |
विचारणीय पोस्ट, किसी को नहीं छोड़ा कौन कहता है की रुदाली प्रथा अब खत्म हो गयी|
एक एक को चुन चुन के खड़ा किया कटघरे में…बहुत सटीक..
पास आते भी नहीं, दूर जाते भी नहीं…क्या कशिश है कसम से….
वाकई…
सम्यक विश्लेषण पढकर अच्छा लगा। सबकी क्लास ले डाली।
———
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
बाबाजी, भ्रष्टाचार के सबसे बड़े सवाल की उपेक्षा क्यों?
इन आंदोलनो से लोकतंत्र अपनी चमक खो रहा है। जब नियम कानून बाबा/अन्ना के अनशन से बनने लगें तो संसद की क्या जरूरत, क्या जरूरत लोकतंत्र की ?
बाबा के अनुसार प्रधानमंत्री सीधा चुना जाना चाहिये। क्या वह नही जानते की ऐसा प्रधानमंत्री किसी के प्रति उत्तरदायी नही होगा, एक तानाशाह ही सिद्ध होगा। वर्तमान व्यवस्था मे संसद मंत्रीमंडल के हर निर्णय को उलट सकती है।
भारत अमरीका नही है, वहां लोकतंत्र परिपक्व है। वहां योग शिविर के बहाने अनशन का मंडप नही ताना जा सकता।
ख़ुशदीप जी ! बाबा के साथ भी जो कुछ घटा रात में इसी टाइम घटा था और आपने भी इसी समय विस्तार से सब कुछ लिख डाला। जो लिखा दिल उसकी तस्दीक़ करता गया।
मैं आपसे सहमत हूं।
क्या आपने मेरा लेख पढ़ा है ?
घूंघट में सन्यासी और वह भी दाढ़ी वाला