बाबा रामदेव की बम बम है…रामलीला मैदान चकाचक है…सरकार दंडवत है…संघ परिवार संग-संग है…भई मानना पड़ेगा बाबा जी के प्रताप को…हर एक को साधने की कला जानते हैं…अपने ब्रैंड को प्रमोट करना और फिर उसकी अधिक से अधिक कीमत वसूल करना…ये हावर्ड-ऑक्सफोर्ड वाले क्या खाकर दुनिया को मार्केटिंग सिखाएंगे…मैं तो कहता हूं सभी मार्केटिंग गुरुओं को बाबा के सामने शीर्षासन करना चाहिए…
ढाई लाख वर्ग फुट के पंडाल में बाबा अनशन के लिए पूरी तैयारी के साथ है…काले धन का मुद्दा भी सटीक है…देश में ऐसा कौन होगा जो कहेगा कि विदेशों मे काला धन जमा करने वाले भ्रष्टाचारियों का मुंह काला न हो…ये बात तो वो भी नहीं कहेंगे जो कि पैर से लेकर कंठ तक भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे हैं…लेकिन अब ये मुद्दा ज़ोरदार ढंग से बाबा उठा रहे हैं…वही बाबा जो पंद्रह साल पहले तक साइकिल से कनखल-हरिद्वार में आर्यसमाज से जुड़ी संस्थाओं में हवन कराने जाते थे…पंद्रह साल में बाबा ने अरबों रुपये का एम्पायर खड़ा कर लिया…आज बाबा देश-विदेश में योग-शिविरों में योग सिखाने की फीस वसूलने के साथ आयुर्वेदिक दवाओं का धंधा भी करते हैं…क्रीम, पाउडर, तेल, कास्मेटिक, दलिया, हल्दी, बेसन, बिस्किट, साबुन, दंत मंजन ऐसी कौन सी चीज़ है जो बाबा की दिव्य योग फार्मेसी के ज़रिए नहीं बेचा जाता…ये अच्छी बात है कि बाबा ने अपने मार्केटिंग के कौशल के बल पर मल्टी नेशन कंपनियों के सामने स्वदेशी के नाम पर अपने उत्पादों को खड़ा कर लिया है…कहने वाले बाबा के इन सब कामों को भी देश की सेवा बताते हैं…कहते हैं कि बाबा किसी से कुछ ले तो नहीं रहे, दे ही रहे हैं…बाबा के मुताबिक चार सौ लाख करोड़ का काला धन देश में वापस आ जाए तो एक ही झटके में भारत और भारतवासियों के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे…सुनने में ये बात बड़ी अच्छी लगती है….लेकिन करने में….
यहां मेरा एक सवाल भी है सबसे पहले देश के सारे बाबा और मठ ही क्यों नहीं अपनी सारी संपत्ति का ब्यौरा, उनके स्रोतों को देश के सामने सार्वजनिक कर देते…बाबा रामदेव कह सकते हैं कि रामलीला मैदान पर जो खर्चा हो रहा है, वो सब खुशी-खुशी उनके भक्त उठा रहे हैं…बाबा हिसाब के पक्के हैं, इसलिए इस खर्च को कागज पर बड़े सलीके के साथ ज़रूरत पड़ने पर पेश भी कर दिया जाएगा…लेकिन यहां क्या ये मुद्दा नहीं होना चाहिए कि देश के धार्मिक और चैरिटी संस्थानों को दिए जाने वाले दान का टैक्स-फ्री होना भी मनी लॉन्ड्रिंग का एक बड़ा ज़रिया है….
बाबा रामदेव योगी हैं, कर्मयोगी हैं, समाज सुधारक हैं, सफल कारोबारी हैं…और अब राजनीति को साधने की कला में भी सिद्धहस्त हैं…अपने ट्रस्ट के वालंटियर्स के साथ अब भक्तों की अच्छी खासी फौज भी उनके पीछे खड़ी है…बाबा का यही सच सत्ताधारी कांग्रेस को भी डरा रहा है और विरोधी दल बीजेपी को भी…संघ मान रहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने के लिए बीजेपी अपने बूते पर लड़ाई लड़ने में नाकाम है…अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी के पास एक भी नेता ऐसा नहीं है जिस पर पूरा देश भरोसा कर सके…संघ को बाबा रामदेव में वो करिश्मा नज़र आ रहा है जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को पटकनी देने के लिए देश-भर में जनमानस तैयार कर सकता है…संघ को बाबा की ज़रूरत है…बाबा को देश भर में अपनी मुहिम को फैलाने के लिए संघ के अनुशासित स्वयंसेवकों की दरकार है…
लेकिन बाबा रामदेव साथ ही सरकार के साथ गोटियां फिट करने की कला को भी बखूबी जानते हैं…पारदर्शिता की बात करते हैं लेकिन जब कांग्रेस के मंत्रियों से बात करनी होती है तो होटल क्लेरिज़ेस में पिछले दरवाजे से पहुंचते हैं…बाबा खुली किताब हैं तो सरकार को रामलीला मैदान में ही भक्तों के सामने ही आकर बात करने के लिए कहते…आखिर जिनके हक़ की लड़ाई लड़ने का बाबा दम भरते हैं, उन्हीं से ही कैसी राज़दारी…
अन्ना हज़ारे अनशन पर बैठे थे…बाबा रामदेव वहां समर्थन देने के लिए पहुंचे थे…लेकिन अन्ना के लिए स्वतस्फूर्त समर्थन के सामने बाबा को अपनी दाल गलती नहीं लगी…झट से वहां आने के बाद टीम अन्ना के शांति-भूषण, प्रशांत भूषण पर वंशवाद का आरोप ठोक डाला…दो दिन पहले ही बाबा ने लोकपाल के मुद्दे पर गुगली फेंकते हुए प्रवचन कर डाला कि प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश जैसे गरिमा वाले पदों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए या नहीं, इस पर बहस की आवश्यकता है…यही बात तो सरकार भी कह रही है…यही प्रश्न सभी मुख्यमंत्रियों और राजनीति दलों को चिट्ठी लिखकर पूछ रही है…
टीम अन्ना और सरकारी नुमाइंदों के बीच छह जून को बैठक निर्धारित है…सरकार का जिस तरह का रुख है उससे लगता नहीं कि वो प्रधानमंत्री के मुद्दे पर टीम अन्ना की मांग माने, सरकार तो सांसदों के सदन में आचरण को भी लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहती…ऐसे में बहुत संभव है कि टीम अन्ना लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमेटी का बहिष्कार कर दे…लेकिन जहां तक आसार नज़र आ रहे हैं, उस दिन भी बाबा रामदेव का अनशन चल रहा होगा…बाबा के सबसे विश्वासपात्र सहयोगी बालकृष्णा कह भी चुके हैं कि सरकार बाबा की सारी मांगें मान भी ले तो भी अनशन तीन दिन तक चलेगा…
अन्ना फक्कड़ हैं, धुन के पक्के हैं…हर कोई जानता है…पूरे देश को उन पर भरोसा है…लेकिन अन्ना के पास बाबा रामदेव के संगठन जैसी ताकत नहीं है…पैसा नहीं है…वहीं बाबा रामदेव के पास वो सब कुछ है जो देश के बड़े से बड़े कॉरपोरेटों के पास होता है…लेकिन बाबा को पसंद करने वाले करोड़ों हैं तो उन को शक की नज़रों से देखने वालों की भी कमी नहीं…ऐसे में क्या ये अच्छा नहीं होता बाबा खुद को योग और तपस्या तक ही सीमित रखते और अपनी पूरी ताकत अन्ना की मुहिम को कामयाब बनाने में लगा देते…लेकिन इसके लिए बाबा को खुद परदे के पीछे रहना पड़ता…जो बाबा को हर्गिंज गवारा नहीं…अगर देश में प्रभावी लोकपाल आ जाता है तो भ्रष्टाचार पर नकेल कसते हुए काले धन का नासूर भी उसकी स्क्रूटनी में आएगा ही…लेकिन अन्ना की मुहिम के समानांतर ही अपना आंदोलन चलाना क्या अन्ना का कद छोटा करने की कोशिश नहीं है…जो खबरें छन कर आ रही हैं उसमें बाबा रामदेव के साथ सरकार की जो सहमति बन रही है, उनके मुताबिक बाबा लोकपाल के मुद्दे को छुएंगे भी नहीं…
ओह अन्ना, आप क्यों रालेगन सिद्दि गांव के एक मंदिर में रहते हैं…काश आपने भी आंदोलन शुरू करने से पहले बाबा की तरह अपना एम्पायर खड़ा किया होता…फिर हम राजनीति का अन्ना युग देखते, बाबा काल नहीं….
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प्रवीण शाह जी की बात में दम है।
हाँ एक बात जरूर कहूँगी कि जहर को जहर ही मारता है तो नेताओं की नीयत को मारने के लिये भी बाबा जैसा शातिर ही चाहिये। लेकिन सवाल फिर वहीँ आता है कि क्या खुद करोडों के मालिक वो भी 10 साल मे किसी पर सवाल उठा सकते हैं? शीशे के घरों मे रह कर दूसरों को पत्थर मारने वाले की उम्र लम्बी नही होती।
आशीश जी लोगों से मत डरिये और ऐसी सियासत का हमेशा विरोध करें जिसकी कहनी और करनी मे अन्तर हो। शुभकामनायें। ये जरूरी नही कि जो भीड वहाँ जुडी थी वो बाबा के कहने पर किसी को वोट दे वो तो केवल भ्रश्ताचार के मुद्दे पर बाबा के साथ थे। हमारे एक जानकार गालियाँ निकालते हुये जब लौते तो समझ आया कि इतनी भीड किस लिये थी। निश्चित वो सियासत के लिये नही थी।
मै आपसे और विचारशून्य जी से सहमत हूँ कैसे यकीन करें इस तमाशे पर जब लोग लाटःइयाँ खा रहे थे[ जो बरसी नही देखी किसी तस्वीर मे} तो बाबा उन्हें छोद कर भाग गयेौर सब से बडा तमाशा तो सलवार कमीज पहन कर दिया। वैसे फिट्टिन्ग सही थी सूट की। ये सब सरकार को गिराने की साजिश के तहत ही कर रहे हैं आखिर 200 कम्पनियों के हिस्सेदार बाल किशन जी को प्राइमनिस्टर जो बनाना है। हमे स्वदेशी का नारा खुद विदेशों मे प्रपर्टी। जनता के बिना तैक्स दिये पैसे से अपना साम्राज्य खडा कर लिया। वैसे ये व्यापक़र बुरा नही रहा उनके लिये। हींग लगी न फटकरी अकूत दौलत इकठी हो गयी धन्य हैं हमारी परंपरा कि जहाँ भगवां चोला देखा बस उसी के पीछे हो लिये ऐसी सियासत कितने दिन चलेगी? ये झूठ के पुलिन्दे जल्दी खुल जायेंगे। बेचारे बाबा कुछ लोगों ने ऐसे हाइजैक किया कि बाबा उनकी सियासत समझ नही पाये और अपनी किरकिरी करवा ली। लेकिन एक बात है बी जे पी मे जान फूँक दी। उनके गले बहुत कुछ कहने के लिये सक्षम हो गये और बेचारे अन्ना अन्के पास ऐसा शातिर दिमाग नही सीधे सादे लोगों को कौन पूछता है। बधाई इस पोस्ट के लिये।
खुशदीप जी, वाकई ये बाबा काल है…….. चमचागिरी वाला अन्ना युग नहीं .
अब आप को ज्यादा क्या बतलाना …
सूर्य को दीपक दिखने वाली बात होगी.
ए लो । हो भी गई । अब सब खुश !
बाबा रामदेव की बम बम होने को ही है बस….
बाबा रामदेव की बम बम होने को ही है बस….
बाबा भक्त तो हम भी नहीं । लेकिन जहाँ करोड़ों के मूंह पर ताले लगे हों , वहां एक आवाज़ तो उठी ।
क्या नहीं उठनी चाहिए ?
और उस आवाज़ के साथ लाखों आवाजें भी उठें तो ?
@ विचार शून्य
१) "घर का भेदी लंका ढाए" वाली कहावत सिद्ध करते हुए बाबा रामदेव के इस दिखावटी आमरण अनशन का मूल कारण स्पष्ट कर दिया है.
@ यह कहावत आपने गलत जगह फिट करदी | मैं न तो बाबा रामदेव के घर का हूँ और ना ही मैं उनका या किसी बाबा का भक्त |
२) इस टिप्पणी से स्पष्ट है की बाबा के आमरण अनशन का मूल उद्देश्य सिर्फ अन्ना हजारे को नीचा दिखाना भर है.
@ आपने मेरी इस टिप्पणी से ये मतलब कैसे निकाल लिया ? मैं कोई बाबा का प्रवक्ता तो हूँ नहीं सो आपने मेरी इस टिप्पणी से ये निष्कर्ष निकाल लिया | मेरी टिप्पणी मात्र खुशदीप जी के विश्लेषण पर विश्लेषण मात्र है | खुशदीप जी से भी मेरा कोई वैचारिक मतभेद नहीं है |
वैसे दाद देनी पड़ेगी आपको की दस टिप्णियों में जो आपको आपके विचारों के अनुरूप लगी उन्ही पर आप अपना विश्लेषण कर रहे हो बाकि भी तो पढ़ते |
– यहाँ एक और बात में साफ करदूं मेरी टिप्पणियाँ सिर्फ इस विश्लेषण पर तटस्थ जबाब मात्र है मेरे लिए चाहे कोई बाबा हो या हजारे सभी एक बराबर है जो भी देश व जनहित की बात करेगा मैं उसके साथ हूँ | मैं न तो बाबा का अंध भक्त हूँ और न ही मेरी आपकी तरह की मनोदशा है कि- हर उस व्यक्ति का विरोध करो जो अपने को पसंद नहीं भले वो देश व् जनहित का मुद्दा ही क्यों ना उठा रहा हो |
भावनाओं को भुनाने का अच्छा तरीका है यह तो!
देशहित,त्याग,परोपकार व सामाजिक सरोकार में अन्ना हजारे ***** जबकि बाबा रामदेव …..? अभी समीक्षा नहीं कर रहा हूँ इस सत्याग्रह के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा हूँ….
baba ki babagiri bhi dekh lenge kay parinam lati hai ….
लगता है आप लोग बड़े समझदार है और जो रामलीला मैदान मे एक लाख पुरुष महिलाये इस भरी गर्मी मे अनशन करने पहुचे है. और जो मैदान के बाहर 1किलो मीटर तक लँबी लाइन लगी है.
वो सब मूर्ख है.
अजीब तमाशा है.
खुद तो कोई कुछ करता नही.
जब कोई आदमी करता है तो उसकी टांगे खीचने लगते है.
केवल ब्लाग पर बाते बनाने से देश की समस्या नही हल होती.
कुछ ठोस करना पढ़ता है.
जैसे रामदेव कर रहे है.
अगर समर्थन नही कर सकते हैँ तो बिना वजह विरोध भी न करिये.
क्या कहूँ इस लेख पर.
हसी आती है ऐसे लेखो पर.
खुशदीप जी इस बेहतरीन पोस्ट के लिए धन्यवाद. अपने बहुत खुलकर और बेबाकी से बाबाजी के आन्दोलन का विश्लेषण किया है और जो रही सही कसर थी वो श्रीमान शेखावत जी ने पूरी कर दी है. शेखावत जी ने अपनी टिप्पणी के द्वारा "घर का भेदी लंका ढाए" वाली कहावत सिद्ध करते हुए बाबा रामदेव के इस दिखावटी आमरण अनशन का मूल कारण स्पष्ट कर दिया है. शेखावत जी कहते हैं:
अन्ना की मुहिम के समानांतर ही अपना आंदोलन चलाना क्या अन्ना का कद छोटा करने की कोशिश नहीं है..
@ थोड़ी सी सफलता मिलने बाद जिस तरह से अन्ना टीम ने बाबा को साइड में किया तब उन्हें बाबा की अहमियत का पता नहीं था,उन्हें बाबा द्वारा इस मुद्दे पर की सालों की गयी मेहनत का पता नहीं था ? क्या उस वक्त बाबा को अलग करना उचित था ? क्या बाबा का मुद्दा देशहित में नहीं था ? क्या देशहित के वो ही मुद्दे होते है जो गाँधी टोपीधारी उठाये ?
इस टिप्पणी से स्पष्ट है की बाबा के आमरण अनशन का मूल उद्देश्य सिर्फ अन्ना हजारे को नीचा दिखाना भर है. भ्रष्टाचार उन्मूलन , देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति तो सिर्फ उपरी आवरण हैं. पुरे आन्दोलन की असलियत इस टिप्पणी से साफ़ है.
बाबा रामदेव एक बहुत उचे दर्जे के तमाशेबाज हैं. उन्होंने योगासनों और प्राणायाम की शुरुवाती स्वांस क्रियाओं को भारतीय आम लोगों के मध्य एक चमत्कारिक दर्जा दिलवा दिया है. ये आसन और स्वांस क्रियाएं सैकड़ों वर्षों से हमारे देश में विद्यमान थी परन्तु किसी भी योग गुरु ने इन्हें एक जादू के रूप में आम इन्सान के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया क्योंकि उन्हें इनकी वास्तविक सीमा का पता था. पर बाबा रामदेव ने एक आम तमाशेबाज की तरह से प्राणायाम को भोलेभाले लोगों के समक्ष हर रोग की रामबाण औषधि के रूप में प्रस्तुत कर अपना एक ब्रांड स्थापित कर लिया. ये सब कुछ वैसा ही है जैसे की लोगों को गोरा बनाने वाली क्रीम बेचने वाली कम्पनियाँ करती हैं या फिर केश्वर्धक तेल बेचने वाली कम्पनियाँ लोगों को काले घने लम्बे केश का सपना बेच कर करती हैं.
इस सारे ड्रामे में मुझे भाई राजीव दीक्षित की बहुत याद आ रही है. भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की सारी विचारधारा उनकी दी हुयी है और आज उनका कोई नामलेवा नहीं है क्योंकि उनकी मृत्यु दिल के दौरे से हुयी जिसका रामबाण सटीक इलाज बाबा जी के अनुसार अनुलोम विलोम और कपाल भातीं हैं.
खैर मैं शेखावत जी को धन्यवाद दूंगा की उन्होंने अनजाने में ही एक भला काम कर दिया.
खुशदीप जी आपके साथ साथ शेखावत जी को भी दिल से आभार.
देखा जाये तो भ्रष्टाचार से सब त्रस्त हैं, सब चाहते हैं कि कोई निदान निकले।
इस वक्त तो मुझे सिर्फ एक ही चीज दिखाई दे रही है और वह है रामदेव का समर्थन, क्यूंकि वह एक सही कार्य कर रहे हैं|
मुझे आपके द्वारा उठाये गए सवाल सही लगे और जो उत्तर मैं देना चाहता था वह रतन सिंह जी ने दे दिए|
यहाँ पर सिर्फ एक ही गडबड है और वह है बाबा का अपना स्वार्थ जो उनके आंदोलन के खिलाफ जाएगा और इस आंदोलन से कोई लाभ नहीं होगा|
veerji post me uthaye gaye apke sawal bare imandar lage…….saath hi ooska jawaw bhai ratanji ke……bare
lajawaw lage……..
yahan intazar karte hain…..mo sum wale naamrashi ki…….
vyaktigat taur pe 'anna' imandari aur samaj seva me 'baba ke mukabale (khud bawa ke dwara taiyaar samrajya se bana kad) bahut ooncha
kad rakhte hain……lekin rashtra-janit samasyaon ko suljhane ke liye
jo taur-tarike hain oos-se anna ke mukable bawa jyada kargar hain….
phir bhi 'wait & watch'………..
is-se jyada hum kya jugali kar sakte……….
pranam.
अंधआस्था का चिकना पत्थर ठोकरें खा-खाकर भी धीरे-धीरे ही दरकता है…
युग या काल कुछ भी हो…
इंतज़ार की कीजिए…भ्रष्टाचार तीन-चार दिनों में ही समूल ख़त्म हो जाएगा…
बेहतर आलेख…
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मुझे तो अन्ना व बाबा में केवल एक ही फर्क नजर आता है और वह है वस्त्रों के रंग का !
…
बहुतों की निगाह में बाबा भगवान से कम नहीं। आप बेकार ही उन्हें नाराज कर रहे हैं। दो दिन में सच सामने आ जाएगा। आप, हम और डाक्टर अमर कुमार जैसे लोगों फोकट जुगाली कर रहे हैं।
खुशदीप भाई, क्यों बाबा की सफलताओं के पीछे पडे हो? रतन जी से सहमत।
भाई रतन जी ने हर एक बात का उत्तर दे दिया, अब मुझे इस पर कुछ टिपियाने की जरूरत नहीं…
मैं आपसे सहमत हूँ खुशदीप भाई ….
हार्दिक शुभकामनायें !
लेकिन अन्ना के पास बाबा रामदेव के संगठन जैसी ताकत नहीं है
@ यही उनकी सबसे बड़ी कमी भी है इसी कमी के चलते अग्निवेश जैसे इनके साथ है जो इन्हें अपने मकसद से कभी भी भटका सकते है अपनी सेकुलरता चमकाने के चक्कर में | जिस आदमी के पास अपनी टीम तक नहीं हो वो क्या खाक सरकार के आगे टिक पायेगा ? स्वत : स्फूर्त आन्दोलन भी एक आध बार ही होते है हमेशा नहीं | आज अन्ना फिर अनशन करके देखले उसे पता चल जायेगा |
ओह अन्ना, आप क्यों रालेगन सिद्दि गांव के एक मंदिर में रहते हैं…काश आपने भी आंदोलन शुरू करने से पहले बाबा की तरह अपना एम्पायर खड़ा किया होता
@ इसके लिए भी क़ाबलियत चाहिए अन्ना को एम्पायर खड़ा करने में कौन रोक रखा है ?
अन्ना की मुहिम के समानांतर ही अपना आंदोलन चलाना क्या अन्ना का कद छोटा करने की कोशिश नहीं है..
@ थोड़ी सी सफलता मिलने बाद जिस तरह से अन्ना टीम ने बाबा को साइड में किया तब उन्हें बाबा की अहमियत का पता नहीं था,उन्हें बाबा द्वारा इस मुद्दे पर की सालों की गयी मेहनत का पता नहीं था ? क्या उस वक्त बाबा को अलग करना उचित था ? क्या बाबा का मुद्दा देशहित में नहीं था ? क्या देशहित के वो ही मुद्दे होते है जो गाँधी टोपीधारी उठाये ?
बाबा ने लोकपाल के मुद्दे पर गुगली फेंकते हुए प्रवचन कर डाला कि प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश जैसे गरिमा वाले पदों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए या नहीं, इस पर बहस की आवश्यकता है
@ फिर तो लोकपाल ही सब कुछ हो जायेगा ,चुनाव कराकर प्रधानमंत्री चुनने की क्या जरुरत रह जाएगी लोकपाल ही सब कुछ कर लेगा | और लोकपाल में भ्रष्ट लोग चुन लिए गए तो उनपर नकेल कौन कसेगा ?
लेकिन बाबा रामदेव साथ ही सरकार के साथ गोटियां फिट करने की कला को भी बखूबी जानते हैं..
@ कमीने राजनेताओं के साथ ये काबिलियत भी जरुरी है वरना अन्ना की तरह अपनी शर्ते मनवाने के बाद सरकरी दल के घटिया हथकंडों में फंस कर बाबा भी अपना मन मसोसते रह जायेंगे |
संघ को बाबा रामदेव में वो करिश्मा नज़र आ रहा है जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार को पटकनी देने के लिए देश-भर में जनमानस तैयार कर सकता है…संघ को बाबा की ज़रूरत है…बाबा को देश भर में अपनी मुहिम को फैलाने के लिए संघ के अनुशासित स्वयंसेवकों की दरकार है…
@ यदि ये सब देशहित में होता है तो इसमें बुरा क्या ?
.लेकिन यहां क्या ये मुद्दा नहीं होना चाहिए कि देश के धार्मिक और चैरिटी संस्थानों को दिए जाने वाले दान का टैक्स-फ्री होना भी मनी लॉन्ड्रिंग का एक बड़ा ज़रिया है….
@ बिलकुल ये मुद्दा होना चाहिए पर इस मामले में सिर्फ बाबा ही नहीं चर्च,मस्जिदे,मदरसे सब आयेंगे तो क्या ये सरकार उनके खिलाफ किसी तरह का कदम उठाने की हिम्मत कर पायेगी | ये मुद्दा उठाने वाले के खिलाफ तुरंत छद्म सेकुलर ताकते इकठ्ठा हो चिल्लाने लग जाएगी और उसे साम्प्रदायिक घोषित कर देगी ,सरकार भोंपू बना मिडिया भी इसमें पूरा सहयोग करेगा |
देश के सारे बाबा और मठ ही क्यों नहीं अपनी सारी संपत्ति का ब्यौरा, उनके स्रोतों को देश के सामने सार्वजनिक कर देते.
@ सरकार के हाथ खुले है यदि उसे शक है तो इन बाबाओं के यहाँ छापा डालकर दूध का दूध पानी का पानी किया जा सकता है पर इतनी ताकत तो उसी सरकार में होगी ना जो खुद इमानदार होगी |
क्या ये अच्छा नहीं होता बाबा खुद को योग और तपस्या तक ही सीमित रखते और अपनी पूरी ताकत अन्ना की मुहिम को कामयाब बनाने में लगा देते.
@ जो व्यक्ति खुद नेतृत्व करने में सक्षम है वो किसी का पिछलग्गू क्यों बने | दूसरा बाबा योग तक ही सिमित क्यों रहे ? ये तो वो बात हुई कि कोई हमें कहे कि तुम्हे राजनीती व भ्रष्टाचार के मुद्दों से क्या लेना देना तुम लोग तो अपने व्यवसाय व नौकरी करते रहो उसी मे मस्त रहो |
बाबा ने इतना बड़ा एम्पायर खड़ा कर लिया ये उनकी व्यवसायिक काबिलियत है इससे किसी को एतराज नहीं होना चाहिए ,हाँ उनकी कमाई के तौर तरीकों पर कोई संदेह हो तो उसकी जाँच करायी जा सकती है | और बाबा कही गलत होते तो शायद ये कमीनी सरकार अब तक बाबा को लपेट भी देती |
अन्ना बेशक अपने मिशन के प्रति इमानदार हों पर उनके साथ अग्निवेश जैसे लोग ठीक नहीं उनकी संगत का फल तो अन्ना को भुगतना ही पड़ेगा | देर सवेर अन्ना भी छद्म सेकुलर गिरोह के चुंगल में फंस कर इस्तेमाल होने लगेगा |
मै ये कमेंट दोहरा रहा हूँ. एक बार पहले भी(एक दूसरे ब्लॉग पर) दिया था, लोगो ने बहुत गालीयाँ दी थी!
अन्ना निस्वार्थ कार्य की कोई क़द्र नहीं है इस देश में! एक गाँव को आपने आत्म निर्भर कर दिया! पूरा देश अभी इस लायक नहीं है, अन्ना , आप रालेगन सिन्दी लौट जाओ!
.बाबा अपने को युगपुरुष साबित करने की चाह में हर रास्ते टटोल चुके हैं, अब एक यह भी… हो जाने दो भाई !
बाबा इतनी तैयारी से, इतने जोशो खरोश से आये हैं कि उन्हें एक या दो दिनों का अनशन तो करना ही पड़ेगा… उन्हें अपने प्रायोजकों को मुँह भी तो दिखाना है । वह सरकार से किस स्तर की और क्या बातचीत कर आये हैं, यह उनका जयकारा लगाने वाले भी नहीं जानते । क्या बाबा के मुखमँडल पर किसी को गँगोत्री में किये तप का तेज, या साधना से अर्जित विद्वता दिखती है.. कम से मुझे तो नहीं ! तुलनात्मक रूप से अन्ना हज़ारे अपने शुभ्र गृहस्थ वेष में अधिक त्यागी और सरल लगते हैं, बज़ाय भगवे वेष में करतबबाज बाबा श्री के !
तुम जितना भी कुछ गिना दो, भारतीय भीड़तँत्र का चरित्र लोकतँत्र से अधिक व्यक्तितँत्र को लेकर प्रतिबद्ध रहा है… और वह दिख भी रहा है ! मास हिस्टीरिया एक तरह की बेपेंदी महामारी है… …