यहां सब ज्ञानी हैं…खुशदीप

किसी पोस्ट पर ही पढ़ा था, लेकिन लिखने वाले ब्लॉगर भाई का नाम याद नहीं आ रहा…इसलिए क्षमा चाहता हूं…पढ़ा ये था कि एक पान वाला शाम को दुकान पर वक्त से कुश्ती लड़ने वाले ठलुओं के जमघट से परेशान हो गया…लेना एक नहीं और हर ठलुआ मुफ्त में बिन मांगे लगता ज्ञान बधारने…दूसरे ठलुए भी कम घिसे हुए थोड़े ही होते…एक से एक लंबी छोड़ी जाती…मां-बहन एक करने पर आते तो ओबामा तक की खाट खड़ी कर दी जाती…पान वाला भी सुनते-सुनते कुछ ज्ञानी तो हो ही गया था…उसने ठलुओं को भगाने की गरज से दुकान पर बड़ी सी तख्ती टांग दी…जिस पर लिखा था…यहां ज्ञान मत बधारिए….यहां सब ज्ञानी हैं…

वैसे ज्ञानी भी किस्म-किस्म के होते हैं…ज्ञानियों की सबसे खतरनाक नस्ल वो होती है जो अपने सोचे…कहे…लिखे…पढ़े को ही ब्रह्मा का वाक्य मानती है…ज़रा सा कोई आइना दिखा दे तो तर्क-कुतर्क के ऐसे-ऐसे फंडे कि चेताने वाला ही हाथ जोड़ ले…भईया जग में तू अकेला ज्ञानी, बाकी सब कूप-मंडूक…बस हमें माफ़ कर…
आज स्लॉग ओवर में ऐसे ही एक ज्ञानी का किस्सा

स्लॉग ओवर
एक राजा की बड़ी सुंदर राजकुमारी थी…बिटिया ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो राजा को उसके हाथ पीले करने का फिक्र हुआ…लेकिन दामाद भी तो राजकुमारी की टक्कर का ही चाहिए…ऊपर से राजकुमारी का और फरमान…शादी करेगी तो सिर्फ सर्वगुण संपन्न लड़के से जिसमें 100 के 100 गुण हों…अगर एक भी गुण कम हुआ तो शादी नहीं करेगी…राजा ने बिटिया की इच्छा को देखते हुए पूरे राज्य में मुनादी करा दी कि जिसमें भी 100 गुण होंगे, उससे वो बिटिया की शादी कर देगा साथ ही एक जागीर का मालिक भी बना देगा…

लेकिन अब सर्वगुण संपन्न, 100 कलाओं को जानने वाला लड़का मिले तो मिले कहां से…किसी में 30 गुण तो किसी में 40… ज़्यादा से ज़्यादा राजा की नज़र में 60 गुण वाला लड़का ही आ सका…लेकिन राजकुमारी कहां शादी के लिए तैयार होने वाली…ऐसे ही मनचाहा लड़का मिल नहीं पा रहा था…और वक्त गुज़रता जा रहा था…राजा की परेशानी भी बढ़ती जा रही थी…राजकुमारी भी टस से मस होने को तैयार नहीं…

उसी राज्य में एक ताऊ रहता था…उसे राजा की परेशानी का पता चल गया…उसने अपने निखट्टू छोरे से कहा…चल भई चल, जैसे हर कुत्ते का दिन आता है, ऐसे ही तेरा भी आ गया है…तेरी शादी होगी राजकुमारी से…बस अब जैसे जैसे मैं कहता जाऊं, तू करता जाइओ…बस तुझे बोलना एक शब्द नहीं है…जो बोलूंगा मैं ही बोलूंगा…ये समझाने के बाद ताऊ छोरे को लेकर राजा के दरबार में जा धमका…

ताऊ राजा से सीधे लठ्ठमार लहजे में ही बोला…देख भई राजा…मैं झूठ तो बोलूं ना…तू कभी फेर कहे कि ताऊ ने झूठ बोल्या…मेरे छोरे में 98 गुण हैं…बस दो गुण नहीं है…अब इसमें तेरी लल्ली का मिज़ान बनता हो तो देख ले…98 गुण की बात सुनकर राजा की आंखों में चमक आ गई…बेचारा हर जगह की खाक जो छान चुका था…राजा ने ताऊ और छोरे को मेहमानखाने में ले जाकर तगड़ी खातिरदारी करने का हुक्म दिया और खुद बिटिया के कक्ष में जा पहुंचा…राजा ने बेटी को समझाया…बिटिया 98 से ज़्यादा गुण वाला लड़का नहीं मिल सकता…मैं ढूंढ ढूंढ कर हार चुका हूं…अब तेरी भलाई इसी में है कि तू इस लड़के से शादी कर ले…और मैं भी कन्यादान के फर्ज से मुक्ति पाऊं…राजकुमारी को भी पिता पर तरस आ गया और उसने शादी के लिए हां कर दी…धूमधाम से शादी हो गई…जागीर भी मिल गई…

शादी के बाद राजा के महल से बिटिया की विदाई का वक्त आया तो राजा ने ताऊ को अपने पास बुला कर कहा कि अब तो मेरी बिटिया आपकी हो गई है…अब बस मुझे वो दो गुणों के बारे में बता दो जो तुम्हारे बेटे में नहीं हैं…भई मेरी बिटिया भी समझदार है, पढ़ी लिखी है…हो सकता है कि वो ही उन दो गुणों के लिए तुम्हारे बेटे को तैयार कर दे…राजा की बात सुनकर ताऊ बोला…देख भई राजा… वैसे तो मैं अपने बेटे की दो कमजोरियों के बारे में किसी को बताता नहीं…अब तू इतना कह रहा है तो बता देता हूं…पहली बात…ये छोरा कुछ जाणता नहीं…और दूसरी बात…कोई इसे समझाने की कोशिश करे तो ये माणता नहीं…इब लगा ले तेरी बेटी कितना भी ज़ोर…

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