मोदी पर विष्णु बैरागी जी को ज़रूर पढ़िए…खुशदीप

मैं आज मिले एक ई-मेल से धन्य हो गया…ये मेल प्रसिद्ध साहित्यकार, विचारक और एकोऽहम् ब्लॉग के मॉडरेटर विष्णु बैरागी जी से मिला…कल मैंने नरेंद्र मोदी पर पोस्ट लिखी थी… इसी पोस्ट को पढ़ने के बाद विष्णु जी ने अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से मुझे कृतार्थ किया…लेकिन इस प्रतिक्रिया का महत्व मेरी पोस्ट से भी कहीं ज़्यादा है, इसलिए आप सब को ये पढ़वाना चाहता हूं…लेकिन इससे पहले एक और बात…विष्णु जी के ब्लॉग पर इऩदिनों नरेंद्र मोदी पर ज्वलंत लेखमाला जारी हैं…मोदी के तिलिस्म को सही तरह से जानना है तो मेरा निवेदन हैं कि इस लेखमाला को अवश्य  पढ़िए….

यह राधा नहीं नाचेगी – 1

अब मेरी पोस्ट पर मिली विष्णु जी की ये प्रतिक्रिया…
अभी-अभी आपका आलेख पढा। पढ कर तन सन्‍न रह गया मन-मस्तिष्‍क  सुन्‍न हो गए। 

मुझे ऑंकडों की भाषा बिलकुल ही नहीं आती। मैं लोगों को उनके सार्वजनिक व्‍यवहार और वचनों पर तौलता हूँ। सबकी सदाशयता पर भरोसा करता हूँ, सबको भला मानता हूँ किन्‍तु यदि ‘दृष्‍य-सुविधा’ मिले तो उनके हाव-भाव, भाव-भंगिमा तथा वाक्-शैली को भी समझने-तौलने  की कोशिश करता हूँ  और तदनुसार आए निष्‍कर्षों में कमी रह जाने की भी भरपूर सम्‍भावनाऍं  रखता हूँ। इन सारे पैमानों पर मैं मोदी को बहुत ही निकृष्‍ट, प्रतिशोधी, दम्‍भी, असहिष्‍णु मनुष्‍य मानता हूँ।


किन्‍तु, गुजरात की प्रगति के सन्‍दर्भों में,  मुख्‍यमन्‍त्री और प्रशासक के रूप में उनकी जो जन-छवि बनी है, उसे मैंने अब तक प्राय: सच ही  माना है। गुजरात के विकास के, मोदी के दावों को झूठा कह कर उन्‍हें खारिज करनेवाले तमाम लोगों की तमाम बातों को मैंने ‘विरोध के लिए विरोध’ की राजनीति का अंग ही माना और यही तसल्‍ली करता रहा कि निकृष्‍ट मनुष्‍य यदि उत्‍कृष्‍ट मुखिया बन कर अपने लोगों के जीवन को बेहतर बनाता है तो उसकी ‘मानवीय निकृष्‍टता’ को अनदेखी कर देने की सीमा तक सहन किया जाना चाहिए।

लेकिन आपका यह आलेख पढकर  इस क्षण  मुझे लग रहा है मानो मेरे घर में कोई जवान मौत हो  गई है। मेरा एक जवान सपना असमय काल कवलित हो गया। मैं बहुत ही असहज हो गया हूँ। वास्‍तविकता को छुपाना एक बात है और अपनी कमियों को छुपाना एकदम दूसरी बात।  अपनी  कमियों को छुपाने का मेरे लिए एक ही अर्थ होता – खुद में सुधार की, बेहतरी की सारी सम्‍भावनाओं को समूल नष्‍ट कर देना। एक मुख्‍यमन्‍त्री को बेहतर बनने के लिए चौबीसों घण्‍टे सन्‍नध्‍द और सचेष्‍ट रहना चाहिए। लेकिन आपने जो कुछ  बताया उसका तो एक ही सन्‍देश मिल रहा है कि अपनी असफलताओं को अपना आभूषण बनाने के लिए न  केवल  किसी भी सीमा तक झूठ बाल लिया जाए  अपितु अपने विरोधियों को अपराधी भी साबित कर दिया जाए और यह सब अनजाने में, अनायास नहीं, सब कुछ जानते-बूझते, सुनियोजित रणनीति के अधीन किया जाए। मानता हूँ कि राजनीति में भजन करने के लिए नहीं आया जाता किन्‍तु इसका अर्थ यह तो बिलकुल ही नहीं होता  खुद को सुधारने की सारी सम्‍भावनाऍं ताक पर रख कर अपने सामनेवाले तमाम लोगों को पापी साबित कर दिया जाए।

मैं बहुंत ही निराश और उदास  हुआ हूँ आपका यह आलेख पढकर। मुझे वह राजनीति तनिक भी नहीं सुहाती जिसमें मनुष्‍यता न हो, ईश्‍वर का भय न हो।

मेरी इन भावनाओं का उपयोग आप अपनी इच्‍छानुसार करने के  लिए स्‍वतन्‍त्र और अधिकृत हैं।



Khushdeep Sehgal
Follow Me
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Khushdeep Sehgal
12 years ago

भारतीय नागरिक जी,

मैंने 21 जनवरी को ये पोस्ट लिखी थी- राहुल-सोनिया! आप क्यों रोए-रुलाए…लिंक ये रहा-

http://www.deshnama.com/2013/01/blog-post_21.html

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
12 years ago

प्रवीण भाई,

इस राजनीति से इतर कोई विकल्प ना तो नज़र आता है और ना ही इसे हम ढ़ूंढने की कोशिश करते हैं…

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
12 years ago

रोहित भाई,

मोदी तो कह ही चुके हैं कि वो आधे गिलास पानी को आधा हवा से भर कर पूरा देखते-दिखाते हैं…

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
12 years ago

संजय भाई,

मेरी पिछली पोस्ट में दिए आंकड़े किसी योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के नहीं है…ये आंकड़े आर्थिक सर्वे पर विश्वसनीय और सरकार से स्वतंत्र संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमिक्स के हैं…

जय हिंद…

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

ऐसी पोस्टें अन्य किसी दल के किसी भावी/प्रोजेक्टेड के बारे में क्यों नहीं लिखी जातीं?

प्रवीण पाण्डेय

किसने कितना किया, कितना नहीं किया, व्यक्तिगत मतभेद, अप्रचार या अतिप्रचार से सदा ही कलुषित रही है राजनीति। मानक जो भी हो वह सब पर लगाने से तुलना पूर्ण मानी जाती है। आँकड़ों का सच यथार्थ से परे होता है और दुखदायी भी।

Rohit Singh
12 years ago

बनाई गई इमेज से परे जाकर देखना हर किसी के बस की बात नहीं। मोदी का सच न पहला सच है न अंतिम…हर नेता प्रशासनिक मशीनरी की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल नहीं कर पाता है। अगर कर ले तो भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है। कुछ पैमाने पर कोई राज्य आगे होता है तो कुछ पर कोई। इसमें शक नहीं कि मोदी से पहले के मुख्यमंत्रियों की बदौलत औऱ अब मोदी की बदोलत गुजरात विकास के उस शिखर पर पहुंचा हुआ है जिसके बाद गति आमतौर पर धीमी हो जाती है। मोदी एक चतुर नेता हैं इसमें कोई दो राय नहीं। अपनी बात को किसी तरह जनता के सामने रखनी चाहिए औऱ विरोधियों के बारे में कुछ न बोल कर भी विरोधियों पर वार करना चाहिए ये उन्हें बाखूबी आता है।

संजय @ मो सम कौन...

आपकी, बैरागी जी की चिन्ता जायज है, वास्तविक लोकतंत्र के पहरुओं को कहीं से भी चुनौती मिलती दिखने पर चिन्ता होनी भी चाहिये। लेकिन जब बैरागी जी पहले ही उस राधा के न नाचने की बात कह रहे हैं तो फ़िर तो उन्हें उदास और खिन्न होने के स्थान पर प्रसन्न होना चाहिये, ये राज समझ नहीं आया। जिन आँकड़ों का आपने उल्लेख किया था, ऐसे ही आँकड़ों के दम पर सत्ताईस रुपये पर गरीबी रेखा नरेन्द्र मोदी ने नहीं चिन्हित की थी। कार्पोरेट घरानों के समर्थन की बात आपने बताई, ऐसा क्या पहली बार हो रहा है? कुछ दिन पहले भी रतन टाटा ने आर्थिक मंदी के मामले में मनमोहन सिंह की हिमायत जोर शोर से की थी। असहज होने वाली बात ये लगती है कि अब दूसरे विकल्पों को भी इन घरानों की तवज्जोह मिलने लगी है। और दूसरों को अपराधी बनाने वाली बात, लगता है मैं ही सन्दर्भ नहीं समझ पाया।
याद दिला दूँ, ’बिटवीन द लाईंस’ समझने में शुरू से थोड़ा सा कमजोर हूँ, इसीलिये ये नासमझी वाली बात पूछी है।

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x