मैं शर्मसार हुआ, क्या आप नहीं हुए…खुशदीप

लिखना आज कुछ और चाहता था…लोकतंत्र की कीमत के मुद्दे पर…लेकिन कल मैं ब्ल़ॉगवाणी पर जाकर कई बार शर्मिंदा हुआ…शर्मसार हुआ एक पोस्ट के शीर्षक की वजह से…और वो शीर्षक सबसे ज़्यादा पढ़े गए वाले कॉलम में सबसे टॉप पर नज़र आ रहा था…जितनी बार भी मेरी नज़र उस शीर्षक पर पढ़ती मन में वितृष्णा और ग्लानि भर जाती थी…

अगर मुझे इतना बुरा लग रहा था तो मातृशक्ति का क्या हाल होगा…ये ठीक है इस तरह के शीर्षक देखते ही हम ऐसी पोस्ट को नमस्कार कह देते हैं…लेकिन एग्रीगेटर पर शीर्षक का क्या करे जो पूरा दिन मुंह चिढ़ाता रहा…ये मेरा मानना है कि ब्लॉगिंग के नाम पर गंदगी फैलाने वालों को किसी भी तरह का भाव नहीं देना चाहिए…

मैं खुद ही अपनी पोस्ट पर कहता रहा हूं कि गेंद को जितना ज़मीन पर मारो वो उतना ही सिर पर चढ़ कर उछलती है…इसलिए गेंद को ज़मीन पर पड़े रहने देना चाहिए…लेकिन इस शीर्षक को देखने के बाद मुझे लगता है कि गेंद उछलने के लिए खुद ही नंगा नाच करने लगे तो उसका कुछ इलाज किया ही जाना चाहिए…ये ठीक है हम ऐसी पोस्ट को नहीं पढ़ते… लेकिन ब्लॉगर के नाम पर कोई घर को गंदा करने लगता है तो क्या हमें चुपचाप बैठे रहना चाहिए…

मैं जिस शीर्षक की बात कर रहा हूं उस पोस्ट का न तो मैं यहां लिंक दूंगा और न ही पोस्ट को लिखने वाले महानुभाव के नाम का उल्लेख करूंगा…क्योंकि वो शीर्षक इतना अश्लील और भद्दा है कि उसे कोई भी सभ्य व्यक्ति रिपीट नहीं कर सकता है….इसलिए उस बेहूदी पोस्ट को मेरी पोस्ट के ज़रिए ज़रा सा भी भाव मिले मैं ये कतई नहीं चाहूंगा….और जिसने ये पोस्ट लिखी है उन्होंने तो लगता है कि ब्लॉगिंग को अपने प्रचार का ज़रिया बनाया हुआ है…इसे भी वो मंच की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं….लेकिन इन बेहूदी बातों पर स्टेज प्रोग्राम में बेशक तालियां मिल जाती हों लेकिन ब्लॉग जगत एक सार्वजनिक मंच है….मातृशक्ति, बुजुर्ग, किशोर सभी एग्रीगेटर पर आते हैं…ऐसे में खुद ही शब्दों के चयन पर बेहद संयम से काम लिया जाना चाहिए....

जिन महानुभाव ने ये शीर्षक दिए हैं वो पहले भी ऐसे ही और भी भद्दे शीर्षकों का इस्तेमाल कर चुके हैं…ऊपर से तु्र्रा ये है कि वो अपनी ताजा पोस्ट के जरिए पाठकों को ही हड़का रहे हैं कि श्रेष्ठ (जिसे उन्होंने खुद ही घोषित किया है) रचना पर ज़्यादा पाठक नहीं आते और जब ऐसा-वैसा शीर्षक लगाया तो पढ़ने वालों के सारे रिकॉर्ड टूट गए…यानि इसमें भी ब्लागर्स का ही कसूर है…वैसे कसूर तो है जो ऐसी घटिया सोच वाली पोस्ट को भी इतने पाठक मिल जाते हैं…लेकिन इसका मतलब क्या है अगर आपको अपनी पोस्ट पर पाठक न मिलने की इतनी छटपटाहट है तो इसका मतलब ये है कि आप चौराहे पर कपड़े उतार कर खड़े हो जाएं….जिससे कि लोग आपको देखें…अगर ये आपकी सोच है, फिर तो इतनी ही प्रार्थना की जा सकती है कि रामजी आपको सदबुद्धि दें…

अब आप ये प्रश्न कर सकते हैं कि मैं ही क्यों दूसरे के फट्टे में हाथ डाल रहा हूं….लेकिन क्या यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी नहीं है कि हम गलत चीज़ देखते हुए भी उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं…चुप बैठे रहते हैं…इससे गलती करने वाले का दुस्साहस और बढ़ता है….मेरा इस पोस्ट को लिखने का मकसद किसी विवाद को न्यौता देना नहीं है…बल्कि मैं चाहता हूं कि हिंदी ब्लॉगिंग स्वस्थ प्रतिमान स्थापित करते हुए आगे बढ़े….अगर कहीं गंदगी दिखे तो उसका प्रतिकार करें…उसे किसी भी तरह से बढ़ावा न दे जिससे कि आगे फिर उसकी कभी हमारा घर गंदा करने की जुर्रत न पड़े…मैंने किसी दूसरी पोस्ट के खिलाफ पहले सिर्फ एक बार आवाज उठाई थी…वो थी तब जब बबली जी को एक पोस्ट के ज़रिए शर्मसार करने की कोशिश की गई थी….आज फिर मुझे कुछ गलत लगा, और मैं चुप नहीं रह सका…मैं सही हूं या नहीं…अब ये आप मुझे बताएं…हां जिस शीर्षक से मैं इतना असहज हुआ, उसको लिखने वाले की मैं कोई परवाह नहीं करता…जिसे मर्यादा का ध्यान नहीं, उसका होना या न होना मेरे लिए एक बराबर है….

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