पिछले दो-तीन में मौका मिला तो देखा, लखनऊ के कार्यक्रम को लेकर ब्लॉग और फेसबुक पर पोस्ट-एंटी पोस्ट, टिप्पणी-प्रतिटिप्पणियों की भरमार थी…इन्हें पढ़कर ऐसा लगा कि जैसे अपमैनशिप के लिए रस्साकशी हो रही है…पुरस्कार आवंटन को लेकर पक्ष-प्रतिपक्ष की ओर से कुछ दंभपूर्ण बातें की गईं, ठीक वैसे ही जैसे नौ दिन से संसद में कोल ब्लाक आवंटन को लेकर कांग्रेस और बीजेपी भिड़े हुए हैं…
यहां सवाल टांग-खिंचाई का नहीं, दोनों तरफ़ से एक सार्थक सोच दिखाने का है…जिससे नए ब्लॉगरों में भी अच्छा संदेश जाए…नवोदित प्रतिभाओं को प्रोत्साहन के लिए रवींद्र भाई इस तरह के कार्यक्रम करते हैं तो उनका भी हमें मनोबल बढ़ाना चाहिए…हां, जो लोग अब ब्लॉग में खुद को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं, अगर उन्हें ही ये सम्मान साल दर साल दिए जाते रहेंगे, तो मेरी दृष्टि से दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में इसके प्रतिगामी परिणाम आएंगे…
मेरा मानना है कि एक ब्लॉगर को सबसे ज़्यादा खुशी दूसरे ब्लॉगरों से मिलने से होती है…सम्मान समारोह में भी ज़्यादातर ब्लॉगर खुद के सम्मान से ज़्यादा दूर-दराज़ से आए ब्लॉगरों के साथ मिलने की चाहत से ही पहुंचते हैं…अब सवाल यही रह जाता है कि एक दिन के अल्पकाल में औपचारिकताओं को निभाते हुए क्या ब्लॉगरों की आपस में मिल-बैठने की कसक पूरी हो पाती है…विशिष्ट अतिथियों की नसीहतों से ज़्यादा ब्लॉगरों को एक-दूसरे को सुनने की ज़्यादा ख्वाहिश होती है…इसी पर विमर्श किया जाना चाहिए कि क्या इस तरह के आयोजन इस ख्वाहिश को पूरा कर पाते हैं…
यहां इसी संदर्भ में मैं उदाहरण देना चाहूंगा, जर्मनी से राज भाटिया जी के हर साल हरियाणा में आकर आयोजन करने का…इन आयोजनों में न कोई पूर्व निर्धारित एजेंडा होता है, न ही सम्मान जैसा कोई झंझट…लेकिन भाटिया जी की स्नेहिल मेज़बानी में ब्लॉगरों की एक-दूसरे के साथ मिल-बैठने की चाहत बड़ी अच्छी तरह पूरी होती है…यहां सभी ब्लॉगर होते हैं…राजनीति या साहित्य जगत से कोई बड़ा नाम नहीं होता, जिस पर पूरा कार्यक्रम ही केंद्रित हो जाए और ब्लॉगर खुद को नेपथ्य में जाता महसूस करें… कार्यक्रम के बाद सभी हंसी-खुशी विदा लेते हैं कि फिर मिलेंगे अगले साल…ऐसे में कम से कम मुझे तो भाटिया जी के कार्यक्रम का हर साल बेसब्री से इंतज़ार रहता है…
अगर मेरी बात को किसी दुराग्रह की तरह न लिया जाए तो मैं लखनऊ जैसे कार्यक्रम के लिए अपने कुछ सुझाव देना पसंद करूंगा, जिससे कि आने वाले वर्षों में इस तरह के कार्यक्रमों की सार्थकता बढ़ सके…
पहली सौ टके की बात, सम्मान से ज़्यादा इन कार्यक्रमों में ब्लॉगरों के मेल-मिलाप को बढ़ावा देने पर फोकस रखा जाए…
पहले दिल्ली और अब लखनऊ में टाइम मैनेजमेंट के चलते ब्लागरों के लिए महत्वपूर्ण सत्रों को रद करने की गलती हुई, जिससे वहां शिरकत करनेवाले ब्लॉगरों को असुविधा हुई…इस पक्ष पर सुधार के लिए प्रयत्न किया जाना चाहिए..
इतने बड़े आयोजन के लिए एक दिन पर्याप्त नहीं है…कम से कम दो दिन का आयोजन होना चाहिए…ऐसे में सवाल कार्यक्रम पर आने वाले खर्च का उठ सकता है…तो मेरा नम्र निवेदन है कि इसका सारा बोझ आयोजकों पर डालने की जगह, ब्लॉगरों से ही अंशदान लिया जाना चाहिए…मैं समझता हूं कि सभी ब्लॉगर इसके लिए हंसी-खुशी तैयार होंगे..
ब्लागर इतने दूर-दराज़ से आते हैं तो ब्लॉगरों के ठहरने की समुचित व्यवस्था आयोजकों की ज़िम्मेदारी हो जाती है…बेशक इस काम पर आने वाला खर्च खुद ब्लॉगर ही उठाएं..लेकिन अनजान शहर में कम खर्च पर पहले से ही ब्लॉगरों को ऐसी सुविधा मिले तो उनके लिए बहुत आसानी हो जाएगी…
ब्लॉगर जगत के लिए आदर्श हैं, जिनका हर कोई सम्मान करता है…जैसे कि रूपचंद्र शास्त्री जी मयंक…अगर उन जैसे ब्लॉगर को कार्यक्रम को लेकर कोई शिकायत है तो निश्चित तौर पर ये अच्छा संदेश नहीं है…खटीमा से इतनी दूर तक गए शास्त्री जी को पूरा मान-सम्मान मिलना चाहिए था…उनका आसन मंच पर ही होना चाहिए था…मैं जानता हूं कि रवींद्र भाई और ज़ाकिर भाई को भी दिल से इस बात के लिए खेद होगा…
मुझे ये जानने की बड़ी इच्छा थी कि कार्यक्रम में पिछले साल हमसे बिछड़े डा अमर कुमार को याद किया गया या नहीं…उनकी पुण्यतिथि 23 अगस्त को, जन्मदिन 29 अगस्त को था…इन्हीं दो तिथियों के बीच यानी 27 अगस्त को ये कार्यक्रम हुआ…लेकिन मैं इस बारे में कहीं पढ़ नहीं पाया…अगर उन्हें कार्यक्रम में याद किया गया तो इसे जानकर मुझे सबसे ज़्यादा संतोष मिलेगा…
स्लाग ओवर
मैं इस तरह के सम्मान समारोह के लिए एक रामबाण नुस्खा सुझाता हूं, जिससे कि सम्मान को लेकर ये किसी को शिकायत ही नहीं रहेगी कि इसे मिला तो उसे क्यों नहीं मिला…इसके लिए नोएडा में जिस तरह फ्लैटों के ड्रा के लिए तरीका अपनाया जाता है, वहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए…इसमें शीशे के दो तरह के बक्से होते हैं, जिन्हें घुमाया जा सकता है…एक बक्से में सभी आवेदकों की पर्चियां होती हैं…दूसरे बक्से में आवंटित होने वाले फ्लैटोंके नंबर होते हैं…जाहिर है कि आवेदक हज़ारों (कई बार लाखों) में होते हैं तो फ्लैट सिर्फ पचास-सौ ही होते हैं…ऐसे में पहले फ्लैट वाले बक्से से पर्ची निकालीजाती है और दूसरे बक्से से आवेदक वाली…जिस आवेदक का नाम आता है उसी को फ्लैट आवंटित हो जाता है…यानी सब लाटरी सरीखा, किसी को शिकायत का कहीं मौका नहीं…इसी तरह की प्रक्रिया ब्लॉगरों को सम्मान आवंटित करने के लिए अपनाई जानी चाहिए….सभी ब्लॉगर एक समान…कोई किसी से श्रेष्ठ नहीं, कोई किसी से कमतर नहीं.