मेजर ध्यानचंद ने कैसे मीडिया में मेरा बेस बनाया…खुशदीप


मीडिया में भविष्य देख रहे युवाओं के साथ मैं आज अपना
ढाई दशक से भी पुराना एक अनुभव शेयर करना चाहता हूं. उन दिनों मुझे प्रिंट पत्रकारिता
से जुड़े एक डेढ़ साल ही हुआ था. मैं मेरठ में दैनिक जागरण में ट्रेनी था. तब
जागरण का दफ्तर मेरठ में साकेत इलाके में हुआ करता था. मेरी तब फर्स्ट पेज पर ही
ड्यूटी थी. अधिकतर पीटीआई से आने वाले डिस्पैचेस का हिन्दी में अनुवाद किया करता
था. साथ ही एजुकेशन बीट पर रिपोर्टिंग भी कर लिया करता था.


हालांकि दैनिक जागरण से जुड़ने से पहले भी एक चीज़ स्कूल-कॉलेज
के वक़्त से ही मुझे बहुत लुभाती थी. वो थी एडवरटाइजिंग के लिए कॉपीराइटिंग. मैं
स्कूल के वक्त से ही मेरठ में अपने पारिवारिक बिजनेस हाउस के सारे विज्ञापन खुद डिजाइन
करता था. कॉपीराइटिंग भी करता था. ये विज्ञापन लोगों का ध्यान खींचते थे. जब दैनिक
जागरण से जुड़ गया तो भी एडवरटाइजिंग के लिए कॉपीराइटिंग का ये कीड़ा मेरे दिमाग़
में लगातार बना रहा.


ये 1995 की बात है. अगस्त की शुरुआत थी. 29 अगस्त 1995 को
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की 90वीं जयंती आने वाली थी. मेरठ किसी ज़माने में
हॉकी स्टिक्स की मैन्युफैक्चरिंग का गढ़ रहा है. मेरठ के बॉम्बे बाज़ार में बिजली
के दफ्तर के सामने पंडित सोहन लाल हॉकी मेकर्स की दुकान थी. मैंने सुन रखा था कि
ये दुकान इतनी मशहूर थी कि मेजर ध्यानचंद भी यहीं से अपने लिए हॉकी लिया करते थे.
बचपन में हॉकी मैचों की कमेंट्री सुनना मुझे क्रिकेट से भी अधिक अच्छा लगता था. रेडियो
पर स्वर्गीय जसदेव सिंह, जितनी तेज़ हॉकी खेली जाती थी, उतनी ही तेज़ी से मैच का
रोमांच सुनने वालों तक पहुंचाने में सिद्धहस्त थे.


दैनिक जागरण में ट्रेनी रहने के दौरान ही एक आइडिया मेरे
दिमाग़ में कौंधा. मैंने सोचा कि मेजर ध्यानचंद की 90वीं जयंती को यादगार बनाने के
लिए क्यों न कुछ किया जाए. 29 अगस्त 1995 को दैनिक जागरण में एक खास सप्लीमेंट
(परिशिष्ट) निकालने का आइडिया मुझे आया. मुझे पता था कि मेजर ध्यानचंद से जुड़ी
सारी सामग्री जुटा कर मैं लेख तो तैयार कर दूंगा. लेकिन परिशिष्ट निकालने के लिए
जो खर्च आएगा और साथ ही अपने संस्थान को मुनाफ़ा भी हो, इसके लिए विज्ञापन की
व्यवस्था भी करनी होगी.


मैं अपने इस आइडिया के साथ उस वक्त मेरठ जागरण में मैनेजर
के तौर पर विज्ञापन की व्यवस्था देख रहे भाई अखिल भटनागर से मिला. तब तक मेरी उनसे
कोई खास जान पहचान नहीं थी, बस दुआ-सलाम ही थी. मुझे खुशी हुई जब अखिल भाई ने मेरे
आइडिया को पसंद किया. लेकिन तब ये सवाल उठा कि विज्ञापन लाएगा कौन. इस सप्लीमेंट
के लिए मार्केटिंग कौन करेगा. अख़बारों में एडवरटाइजिंग एजेंसीज़ के ज़रिए ही
विज्ञापन आने की व्यवस्था रही है. मैं उत्साह में था, दद्दा की जयंती पर खेल दिवस
के नाम से किसी भी तरह सप्लीमेंट निकालने के सपने को पूरा करना चाहता था. मैंने
अखिल भाई से कमिटमेंट कर लिया कि विज्ञापन भी मैं ही ले आऊंगा और उनका पेमेंट लाने
की ज़िम्मेदारी भी मैं ही उठाऊंगा.


भाई अखिल भटनागर की फेसबुक वॉल से साभार


मैं शुक्रिया अदा करना चाहूंगा अखिल भाई का, उन्होंने
मेरे जैसे नौसिखिए पर भरोसा किया. साथ ही सप्लीमेंट निकालने के लिए जागरण के
प्रबंधन से अनुमति ले ली. अब मैंने जो वादा कर लिया था, उसे निभाना तो था ही. तब
अख़बार में फर्स्ट पेज डेस्क पर होने की वजह से मेरी ड्यूटी शाम 4-5 बजे से देर
रात तक रहती थी. मैंने सोचा कि हर दिन सुबह 4-5 घंटे मुझे विज्ञापन लाने के लिए
मिल जाएंगे. साथ ही अपने वीकली ऑफ वाले दिन को पूरा इस काम में लगा दूंगा.


अब कहते हैं न जिस काम को ठान लो तो कायनात भी उसे
पूरा कराने में मदद करती है. दरअसल मेरठ स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के लिए मशहूर रहा है.
अधिकतर स्पोर्ट्स सामान मोहकमपुर इंडस्ट्रियल इलाके में बनता था. स्पोर्ट्स हाउसेज के
मालिक ज़्यादातर मेरठ के विक्टोरिया पार्क इलाके में रहते थे. इनमें से अधिकतर क्रिकेट
का सामान बनाते थे. सप्लीमेंट मेजर ध्यानचंद की 90वीं जयंती पर था जो हॉकी के
जादूगर रहे थे. लेकिन हमने सप्लीमेंट को खेल दिवस के नाम से ही मार्केट किया. सुखद
संयोग है कि आगे चलकर 17 साल बाद भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर ही दद्दा की
जन्मतिथि 29 अगस्त को हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने के तौर पर एलान कर दिया.


सबसे पहला विज्ञापन लेने के लिए मैं पंडित सोहन लाल हॉकी
मेकर्स पर ही गया. जब उन्होंने मेजर ध्यानचंद पर सप्लीमेंट निकालने का सुना तो
बहुत खुश हुए. उन्होंने मुझे न सिर्फ विज्ञापन और उसका चेक हाथों-हाथ दिया बल्कि
दद्दा और हॉकी से जुड़े सुनहरे पलों को भी याद किया. मैंने उनका सप्लीमेंट के लिए
लेखों में ज़िक्र भी किया. इसके बाद मैंने मोहकमपुर जाकर सरीन स्पोर्ट्स, एसजी,
नेल्को, बीडीएम, स्टैग जैसे बड़े स्पोर्ट्स हाउसेज को खेल दिवस के बारे में मुत्तमईन
कर विज्ञापन हासिल कर लिए. सभी ने मुझे हाथों-हाथ चेक भी दे दिए जो मैं अखिल भाई
के हवाले करता रहा. तब ट्रकों के टायर बनाने के लिए मोदी रबर बड़ा नाम था और उनकी
फैक्ट्री भी पल्लवपुरम इलाके में थी. मुझे पता था कि मोदी घराने का हॉकी को लेकर
बहुत लगाव था और सत्तर के दशक के आखिर में वो रायबहादुर गूजरमल मोदी के नाम पर
मेरठ में बड़ा हॉकी टूर्नामेंट भी कराया करते थे.मैं वहां से भी विज्ञापन ले आया.
इसके अलावा मैंने सिंधी स्वीट्स और वत्स स्पोर्ट्स से भी विज्ञापन लिए. उस ज़माने
में कुल मिलाकर 35-40 हज़ार रुपए के विज्ञापन मैंने जुटा लिए थे और लगभग सभी की
पेमेंट एडवांस में. इस बात से अखिल भाई भी बहुत खुश थे.


29 अगस्त आई. सप्लीमेंट निकला. ऊपर वाले की दुआ से दद्दा पर वो विशेष सप्लीमेंट और उसमें छपे मेरे लेख बहुत पसंद किए गए. दैनिक जागरण और
अमर उजाला उस वक्त मेरठ में दो ही बड़े अख़बार हुआ करते थे. संयोग से मैंने बाद में अमर
उजाला में जूनियर सब एडिटर के लिए एप्लाई किया तो इस सप्लीमेंट ने मेरे लिए बड़ा रोल
निभाया. अमर उजाला को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने वाले स्वर्गीय अतुल माहेश्वरी को
सप्लीमेंट में मेरे लेखों और विज्ञापन जुटाने के बारे में पता था. उन्होंने मुझे
नौकरी ही नहीं दी बल्कि मेरे लिए फिर मेंटर का रोल भी निभाया. इसके लिए मैं ताउम्र
उनका शुक्रगुज़ार रहूंगा. अतुल भाईसाब ने मुझे बहुत जल्दी चीफ सब एडिटर बना दिया.
नोएडा में अमर उजाला डॉट कॉम की शुरुआत हुई तो मैंने भाईसाब से खुद आग्रह किया कि
मुझे डिजिटल पत्रकारिता सीखने के लिए नोएडा भेज दिया जाए. भाईसाब ने तत्काल मेरा आग्रह
मान कर मुझे नोएडा भेज दिया. उस वक्त हरजिंदर साहनी सर अमर उजाला डॉट कॉम के हेड
हुआ करते थे. मैंने उनके डिप्टी के तौर पर काम करना शुरू कर दिया.


ये थी वो बात कि दद्दा मेजर ध्यानचंद के नाम ने मुझे
मेरठ में पत्रकारिता में पैर जमाने में कैसे मदद की…


कल हमारा देश और हम अपनी आज़ादी के 75वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं. जैसा कि वादा किया था 15 अगस्त को पोस्ट लिखूंगा जिसमें अपने दोस्तों, युवा साथियों और अपनी राय के आधार पर ज़िक्र करूंगा कि हमारे लिए आज़ादी के मायने क्या है, कौन सी चीज़ है जिसे हम बदलना चाहेँगे और 1947 के बाद देश में सबसे बड़ा डेवेलपमेंट का कौन सा काम हुआ.


(#Khush_Helpline को मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. मीडिया में एंट्री के इच्छुक युवा मुझसे अपने दिल की बात करना चाहते हैं तो यहां फॉर्म भर दीजिए)

 

 

 

 

 

Khushdeep Sehgal
Follow Me
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Khushdeep Sehgal
3 years ago

आलोक भाई कर्म के बिना तो ऊपर वाला भी फल नहीं देता…

Alok sharma
3 years ago

Sweet memories. Lekin is se ye bhi sabit hota hai ki bina mehnat ke kuch bhi hasil nahi kiya ja sakta

Unknown
3 years ago

इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

Khushdeep Sehgal
3 years ago

जी बिल्कुल, यही बात मैं अपने युवा साथियों से कहना चाहता हूं…

Unknown
3 years ago

इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

Unknown
3 years ago

अगर आदमी ठान ले, तो कुछ भी asmambhav नही

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x