ये पोस्ट जिस वक्त लिख रहा हूं, बीबीसी न्यूज़ से मिल रही ख़बरों के मुताबिक काहिरा की सड़कों पर ज़बरदस्त संघर्ष चल रहा है…मिस्र के राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के समर्थक बदलाव की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों को तहरीर स्क्वॉयर से ज़बरदस्ती खदेड़ने पर तुले हैं…प्रदर्शनकारी भी करो या मरो की तर्ज पर डटे हुए हैं…दोनों तरफ़ से भारी पत्थरबाज़ी चल रही है…स्थानीय डॉक्टर से मिली रिपोर्ट के मुताबिक ताज़ा संघर्ष में कम से कम तीन लोगों की मौत की ख़बर है…बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए हैं…
प्रदर्शनकारियों की आवाज़ को दबाने के लिए 82 साल के हुस्नी मुबारक ने समर्थकों के ज़रिए दमन का रास्ता चुना है…फौज को जानबूझकर पीछे रखा जा रहा है…तीस साल से मिस्र पर निरकुंश राज कर रहे पूर्व सैनिक कमांडर मुबारक ने फौज में बगावत की संभावना को टालने के लिए आदेश जारी कर दिए हैं कि अगर कोई सैनिक अफसर विद्रोह करता है तो उसे बिना वक्त गंवाए गोली मार दी जाए…मुबारक का इरादा साफ़ है कि वो प्रदर्शनकारियों की ओर से की जा रही देश छोड़ने की मांग को फिलहाल हर्गिज कबूल नहीं करेंगे…कल अपने संबोधन में मुबारक ने ये तो कहा कि वो सितंबर में अगला राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ेंगे…लेकिन साथ ही ये भी साफ कर दिया कि मिस्र में जो भी बदलाव होगा, उसकी स्क्रिप्ट वो ही लिखेंगे…
दरअसल ये शब्द मुबारक के ज़रूर हैं, लेकिन उनके पीछे ताकत व्हाईट हाउस की है…जास्मिन क्रांति के ज़रिए ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति का हश्र देखने के बाद भी मुबारक सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं…मिलियन मैन मार्च के बावजूद मुबारक विचलित नहीं है…मुबारक जानते हैं कि मिस्र के संकट को अमेरिका अपनी विदेश नीति का संकट मान रहा है…पिछले तीन दशकों में मध्य पूर्व में मुबारक को अमेरिका अपना सबसे विश्वसनीय मोहरा मानता रहा है…इस्राइल अकेले ही अरब वर्ल्ड से भिड़ा रहता है तो इस दम के पीछे मुबारक जैसे अमेरिकी एजेंटों से सहयोग मिलना भी बड़ी वजह है…
मिस्र के सत्ता पटल से मुबारक एक झटके से अलग होते हैं तो ये मध्य पूर्व में अमेरिकी हितों के लिए भी करारा झटका होगा…कहने को लोकतंत्र के नाम पर अमेरिका ज़रूर लिप सर्विस कर रहा है कि मुबारक को सत्ता में बदलाव की प्रकिया के लिए कदम उठाना शुरू करना चाहिए…लेकिन वो सीधे तौर पर मुबारक से हटने के लिए नहीं कह रहा…मिस्र के प्रदर्शनकारियों की नाराज़गी की एक बड़ी वजह मुबारक की अमेरिकापरस्ती भी है…समूचे अरब वर्ल्ड की तरह मिस्र भी अमेरिका की तेल की ज़रूरत का एक साधन है…पिछले तीन दशकों में मिस्र के लोगों में भूख, गरीबी और बेरोज़गारी बढ़ी है…लेकिन मुबारक के रिश्तेदार और करीबी अमीर से अमीर होते गए…मुबारक के घर वाले पहले ही अटैचियों में दौलत भर-भर कर दुबई में अपने ठिकानों पर पहुंचाते रहे हैं…काहिरा के जिस हेलियोपोलिस इलाके में मुबारक का महल है, या उनके करीबियों के घर हैं, वो जन्नत से कम नज़र नहीं आता…काहिरा के दूसरे इलाकों से अलग हेलियोपोलिस दुनिया के विकसित से विकसित रिहाइशी इलाकों को होड़ देता नज़र आता है…
कहते हैं कि पाप का घड़ा कभी तो भरता ही है…मिस्र से भी प्रदर्शनकारी पूरी दुनिया के लिए यही संदेश दे रहे हैं…अब वो मुबारक और उनकी चौकड़ी की लूट को बर्दाश्त नहीं करेंगे…अमेरिका को भी वो यही संदेश दे रहे हैं कि वो मिस्र के लोगों का वाकई भला चाहता है तो लोकतंत्र का झूठा रोना छोड़कर मुबारक को मिस्र से बोरिया-बिस्तर बांधने के लिए कहे…अमेरिका स्टैंडबाई प्लैन के तहत मिस्र की गुप्तचर एंजेसी के प्रमुख रह चुके उमर सुलेमान को मिस्र के नए शासक के तौर पर देखना चाहता है…उमर सुलेमान को मुबारक ने ही अभी उपराष्ट्रपति बनाया है..सुलेमान से ही फिलहाल मिस्र की सेना आदेश ले रही है…एक रणनीति के तहत ही सेना प्रदर्शनकारियों को घर लौटने के लिए कह रही है….यहां ये भी बताना ज़रूरी है कि मिस्र की सेना को हर साल अमेरिका से डेढ़ अरब डॉलर की सैनिक सहायता मिलती है…इसलिए मिस्र की सेना एकदम से अमेरिकी हितों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती…अमेरिका का गेमप्लान यही है कि फिलहाल किसी तरह प्रदर्शनकारियों को समझाबुझा कर सितंबर तक का वक्त निकाल लिया जाए….तभी मिस्र की संसद और राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं…यानि सत्ता में बदलाव के लिए जो भी प्रक्रिया अभी शुरू की जाए, अमेरिका का दांव यही है कि उसकी कमान या तो मुबारक के हाथ में रहे या फिर उमर सुलेमान जैसे किसी और प्यादे के पास…
वैसे मिस्र या अरब वर्ल्ड के और देशों में सत्ता में बदलाव के लिए हो रही सुगबुगाहट से अकेला अमेरिका ही नहीं घबरा रहा…घबरा चीन जैसे देश भी रहे हैं…चीन थ्येन आन मन चौक के विद्रोह को भूला नहीं है…विरोध की ज़रा सी भी चिंगारी को चीन में हवा न मिले, इसलिए उसने तमाम वेबसाइट पर रोक लगा दी है…और तो और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में भी सोनिया गांधी को कहने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि सरकार और कांग्रेस जनता की आवाज़ की ताकत को समझें…सोनिया कांग्रेस में 64 साल से ऊपर के बुज़ुर्ग राजनेताओं को आराम करने की सलाह दे रही हैं या सरकार और पार्टी के नेताओं को भोग-विलासिता से दूर रह कर देश और देशवासियों की सेवा का संदेश दे रही हैं तो उसके मायने हैं…सोनिया जानती हैं कि सरकार भ्रष्टाचार, मंहगाई को लेकर जिस तरह अब निशाने पर हैं ऐसी साढ़े छह साल के कार्यकाल में पहले कभी नहीं रहीं…सोनिया की चिंता विरोधी दलों से ज़्यादा लोगों के आक्रोश को लेकर है…इसलिए वो छुपे शब्दों में सरकार और पार्टी के नेताओं को संभलने की नसीहत दे रही हैं…
स्लॉग कंट्रास्ट
जिस दिन काहिरा के तहरीर स्कवॉयर पर सत्ता में बदलाव की मांग को लेकर जनसैलाब उमड़ा ठीक उसी दिन भारत के सबसे बड़े सूबे यूपी के बरेली शहर में भी बेरोज़गार युवकों का हुजूम उमड़ा …इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस में ट्रेडमैन की महज़ 412 नौकरियों की भर्ती के लिए ढाई तीन लाख युवक बरेली में जुट गए…इस पद के लिए मात्र दसवीं पास होना ही ज़रूरी है…भर्ती के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू न होने से नाराज़ इन युवकों ने अराजकता का जो तांडव किया वो पूरे देश ने देखा…ये संदेश था कि भीड़ जब बेकाबू हो जाए तो किस तरह के विध्वंस पर उतर आती है….आक्रोश फूटता है तो ये नहीं देखता कि क्या गलत है और क्या सही…बरेली से हिमगिरी एक्सप्रेस पर भेड़-बकरियों की तरह लौटते युवक शाहजहांपुर के पास हादसे का शिकार हो गए…हैवी वायर में फंसे हो या काठ के पुल पर टकराएं हो 17 युवकों की मौत हो गई…नौकरी के लिए जो युवक बरेली गए थे उनमें से अस्सी फीसदी से ज्यादा ग्रामीण इलाकों से थे…क्या ये सरकार की आर्थिक नीतियों का नतीजा नहीं कि आज ग्रामीण युवक खेती से नहीं जुड़ना चाहता…एक अदद नौकरी की तलाश में शहर में मारा-मारा फिरता है…दरअसल किसानों की बदहाली इन युवकों से भी छुपी नहीं है…
उद्योग और विदेशी निवेश की खातिर किसान, जंगल और आदिवासियों की ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है…ये विकास की लकीर भारत और इंडिया के फर्क को कम नहीं कर रही बल्कि और चौड़ा कर रही है…ऐसे मे जनाक्रोश सड़कों पर आंदोलन बनकर न फूटने लगे ये डर हमेशा सत्ताधारियों के दिल में बना रहता है…इसलिए नीतियां बेशक अमीरों को और अमीर बनाने वाली बनें लेकिन ज़ुबां पर हमेशा आम आदमी, किसान, गरीब-गुरबों की भलाई का राग ही रहता है…
मिस्र के संदेश को तानाशाह हुक्मरान ही न समझें बल्कि लोकतात्रिक देशों की वो सरकारें भी समझें जो एक बार चुनाव जीतने के बाद पूरे कार्यकाल के लिए खुद को सिक्योर समझ लेती है…राम मनोहर लोहिया के इन शब्दों को हर सरकार को याद रखना चाहिए…ज़िंदा कौमें पांच साल का इंतज़ार नहीं करती…
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