माई नेम इज खुशदीप एंड आई एम नॉट ए कांग्रेसमैन…

माई नेम इज खुशदीप एंड आई एम नॉट ए कांग्रेसमैन…

माई नेम इज ख़ान एंड आई एम नॉट ए टेररिस्ट…शाहरुख ख़ान के इस डॉयलॉग ने ही उनकी फिल्म माई नेम इज़ ख़ान को नए मायने दिए थे…देश में ही नहीं विदेश में भी इस फिल्म ने एक सोच विशेष पर गहरी चोट की थी…इसी तरह आज देश में अन्ना हज़ारे (या टीम अन्ना) की थीम…माई वे ऑर हाईवे…से ज़रा अलग हट कर कोई बात कहता है तो उसे झट से कांग्रेसी करार दे दिया जाता है…

अन्ना ने हमेशा यही कहा कि उनका आंदोलन सरकार, कांग्रेस या किसी पार्टी के ख़िलाफ़ नहीं है…व्यवस्था के ख़िलाफ़ है…वो सिस्टम को बदलना चाहते हैं…लेकिन आंदोलन की अंडर-स्ट्रीम देखी जाए तो आज कांग्रेस और सरकार की छवि ही देश में सबसे बड़े खलनायक की हो गई है…खास कर कपिल सिब्बल, चिदंबरम, मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह अपने कुछ क्रियाकलापों से लोगों की आंख की किरकिरी बन गए हैं…आज हालत ये है कि सरकार या कांग्रेस की तरफ़ से अच्छा सुझाव भी सामने आता है तो कोई उसे सुनने को तैयार नहीं है…

लोकपाल का स्वरूप कैसा हो…इस पर अब तक तस्वीर साफ़ नहीं है…स्टैंड़िंग कमेटी जब तय करेगी तब करेगी, फिलहाल तो विच-हंटिंग का खेल शुरू हो गया है…अन्ना के अनशन के दौरान आंदोलन चरम पर था तो राहुल गांधी ने संसद में खड़े होकर एक बयान दिया था…लोकपाल को चुनाव आयोग की तरह संवैधानिक संस्था बना दिया जाए…ऐसी संस्था जिस पर सरकार का कोई दखल न हो…ठीक वैसे ही जैसे चुनाव के वक्त चुनाव आयोग के आदेश ही सर्वोपरि हो जाते हैं…उस वक्त केंद्र या राज्य सरकारों की कुछ नहीं चलती…अगर देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ असरदार लोकपाल लाना है तो राहुल गांधी के सुझाव में कम से कम मुझे तो दम नज़र आता है…टीम अन्ना के जस्टिस संतोष हेगड़े, अरविंद केजरीवाल और मेधा पाटकर ने भी राहुल के सुझाव को अच्छा बताया है…पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन के मुताबिक वो भी ऐसा ही सुझाव टीम अन्ना के साथ मध्यस्थता करने वाले आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को भेज चुके हैं…हो सकता है कि अभिषेक मनु सिंघवी की सरपरस्ती वाली स्टैंडिंग कमेटी जब लोकपाल के अंतिम स्वरूप पर माथापच्ची करे तो लोकपाल को चुनाव आयोग जैसी संस्था बनाने के सुझाव पर भी गौर करे…

सवाल आज टकराव का नहीं, सबके मिल बैठकर ऐसी व्यवस्था बनाने का है जिसमें कोई भ्रष्ट आचरण अपनाने की ज़ुर्रत न करे…गलत काम करने से पहले सौ बार सोचे कि उसका नतीजा क्या निकलेगा…मेरा यही मानना है कि देश में आज़ादी के बाद टी एन शेषन ने चुनाव आयोग को अकेले दम पर जिस तरह दांत दिए, उसकी टक्कर का और कोई सुधार का काम नहीं हुआ…ठीक वैसे ही आज देश को पैनी धार वाले लोकपाल की आवश्यकता है…शेषन से पहले चुनाव आयोग की देश में कोई बिसात नहीं थी…

खैर ये तो रही लोकपाल की बात…लेकिन आज एक सवाल राहुल गांधी या सोनिया गांधी को भी सोचना चाहिए…क्यों कांग्रेस की आज ऐसी छवि हो गई है कि लोग उसका नाम भी सुनना पसंद नहीं कर रहे…मनमोहन सिंह जैसी बेदाग छवि वाला ईमानदार शख्स प्रधानमंत्री होने के बावजूद भ्रष्टाचार को लेकर सरकार आज सबके निशाने पर है…क्या ये कुछ व्यक्तियों के अहंकार या लालच की वजह से हो रहा है…या सरकार में हर मंत्री के अपनी ढपली, अपना राग अलापने की वजह से हो रहा है…

चिदंबरम 1 सितंबर को कहते हैं कि केंद्र को भोपाल की आरटीआई कार्यकर्ता शेहला मसूद की हत्या की सीबीआई जांच की सिफारिश की चिट्ठी नहीं मिली…इसकी काट में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री उमाशंकर निकल कर कहते हैं कि केंद्र को 20 अगस्त को सिफारिश भेजी गई थी…जिसकी 23 अगस्त को कार्मिक मंत्रालय से प्राप्ति रसीद भी मिल गई…तो एक हफ्ते तक माननीय चिदंबरम जी को क्या इसकी जानकारी ही नहीं मिली..

.ऐसे ही सहजधारी सिखों को एसजीपीसी चुनाव में वोटिंग का अधिकार वापस होने को लेकर भी गलत संदेश गया…पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में वकील की तरफ से जानकारी दी गई कि केंद्र सरकार ने आठ साल पहले की उस अधिसूचना को वापस ले लिया है जिसमें सहजधारी सिखों को वोट डालने पर पाबंदी लगाई गई थी…केंद्र के हाईकोर्ट में इस जवाब से पंजाब में बवाल मच गया…एसजीपीसी के 18 सितंबर को चुनाव होने जा रहे हैं…अगर सहजधारी सिखों को वोटिंग का अधिकार मिल जाता तो सारी वोटर लिस्ट को नए सिरे से बनवाना पड़ता…ऐसी सूरत में हर हाल में एसजीपीसी चुनाव को टालना पड़ता…लेकिन एसजीपीसी और पंजाब की अकाली सरकार ने केंद्र के इस फैसले को सिखों के धार्मिक मामले में दखल बताते हुए कहा कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा…मामले ने तूल पकड़ा तो चिदंबरम साहब फिर संसद में खड़े हुए और कहा कि केंद्र ने अधिसूचना वापस लेने का कोई फैसला नहीं किया…यानि सहजधारी सिखों के एसजीपीसी चुनाव में वोटिंग पर पाबंदी लगी रहेगी और चुनाव तय वक्त पर ही होंगे…

पंजाब में बात तो संभल गई लेकिन सवाल बड़ा ये है कि वकील ने फिर हाईकोर्ट में क्यों झूठ बोला…वो वकील यही कहता रहा कि उसके पास दिल्ली से कानून मंत्रालय से अधिसूचना वापस लेने का फैक्स आया था और दिल्ली से फोन पर भी यही सूचना दी गई थी…अब कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच, ये तो राम जाने…लेकिन क्या सरकार का कामकाज इसी तरह से चल रहा है…बायां हाथ क्या कर रहा है, ये दाएं हाथ को ही नहीं पता…

प्रधानमंत्री कार्यालय से सभी मंत्रियों को 31 अगस्त तक अपनी और अपने परिवार वालों की कुल संपत्ति का ब्यौरा उपलब्ध कराने के लिए कहा गया था…जिससे कि उसे पीएमओ की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जा सके…तीन तीन रिमाइंडर देने के बावजूद एक कैबिनेट मंत्री और पांच राज्य मंत्रियों ने ब्यौरा नहीं दिया…क्या इन मंत्रियों को प्रधानमंत्री की बात की भी कोई फिक्र नहीं है…जिन मंत्रियों ने ब्यौरा दिया उनमें से एक मंत्री महोदय कमल नाथ के पास सबसे ज़्यादा ढाई सौ करोड़ की संपत्ति है…इसमें उनकी पत्नी के नाम की संपत्ति भी शामिल है…दो साल पहले लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ ने चुनाव आयोग को दिए ब्यौरे में अपनी संपत्ति 14 करोड़ दर्शाई थी…कहां से जुट गई इतनी संपत्ति…इस पर गौर करने की जगह सरकार का नोटिस अरविंद केजरीवाल को जा रहा है…नौ लाख रुपये के बकाया की वसूली के लिए…देश में संदेश यही गया कि सरकार बदले की भावना के तहत टीम अन्ना को शिकंजे में लेना चाह रही है…

ये सब राहुल गांधी और सोनिया गांधी को ही सोचना है कि आखिर क्यों कांग्रेस के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है…क्यों सरकार के मंत्री या पार्टी के प्रवक्ता जब बयान देने आते हैं तो उनके हाव-भावों में अहंकार झलकता है…पार्टी और सरकार में मोहरे ठीक करने के लिए अब भी प्रयास नहीं किए तो फिर तो जनता तैयार बैठी ही है सबक सिखाने के लिए…और विरोधी दल अन्ना की आंधी पर सवार होकर मौके का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते…सोनिया गांधी इलाज के बाद अब देश लौटने वाली हैं…करनी नहीं तो कथनी में तो सोनिया पब्लिक परसेप्शन पर बड़ा ज़ोर देती रही हैं…अब उनके सामने बड़ा सवाल यही होगा कि आम आदमी की दुहाई देने वाली कांग्रेस से आम आदमी ही क्यों बिदक रहा है….

Khushdeep Sehgal
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Atul Shrivastava
13 years ago

काफी सारे सवाल लिए बेहतरीन लेख।
राहुल गांधी की सलाह सही है, इस पर अमल किया जा सकता है….
अजीत जी की टिप्‍प्‍णी पर मैं कहना चाहता हूं कि तत्‍कालिक समस्‍या को लटकाने और भ्रमित करने वाली बात जरूर हो सकती है यह पर दीर्घकालिक फायदे के लिए यदि कुछ विलंब होता भी हो तो क्‍या बुरा है…..
वैसे भी क्‍या लोक पाल बिल या जन लोकपाल बिल के पारित हो जाने से रातों रात भ्रष्‍टाचार समाप्‍त हो जाएगा…..
हां मुद्दा किसी एक दल को लेकर नहीं है, व्‍यवस्‍था में सुधार को लेकर है और इस पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम होना चाहिए…..
पर सबसे बडी दिक्‍कत यह है कि राजनीति के इस हम्‍माम में सभी दल के नेताओं की हालत एक जैसी है….
बहरहाल, खुशदीप जी आपका आभार कि आपने इस गंभीर मसले को लेकर गंभीरता से चिंतन करने का अवसर दिया।

Geeta
13 years ago

aapne to apne sawalo se hume gher hi liya khusdeep ji, mere ghar mei construction ka kaam chal raha hai wo majdoor aapas mei anna ji ke bare mei baat kar rahe the tab mai wahi thi, to usme se ak bhai mujhse bola bibi ji anna ji ki baat sarkaar maan gai hai, ab ye bataiye ki ye mehngai kab tak kam ho jayegi ?

वाणी गीत
13 years ago

@ उसी कार्यक्रम में प्रशांत भूषण जी ने बताया कि ये चाहे तो सत्रह मिनिट में उन्नीस कानून बिना किसी चर्चा के पास कर सकते हैं , किया भी है !

DR. ANWER JAMAL
13 years ago

भाई एक ही पोस्‍ट में कई सवाल खड़े किए गए हैं।
आपकी तथ्यात्मक और विश्लेषणात्मक इस मेहनत से लिखी गई पोस्ट के लिए हार्दिकं बधाई.

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Rakesh Kumar
13 years ago

खुशदीप भाई,नेक नियत मंजिल आसान.

पहली बात तो यह कि बिना नेक नियत के सही
क़ानून बनाना और उसका अनुपालन कराना हो ही नहीं सकता.

फिर कितने भी क़ानून बना लिए जाएँ,बिना नेक
नियत के सब बेकार ही है.

आपकी तथ्यात्मक और विश्लेषणात्मक इस मेहनत से लिखी गई पोस्ट के लिए हार्दिकं बधाई.

Satish Saxena
13 years ago

एक बढ़िया लेख के लिए बधाई !
शुभकामनायें !

दिनेशराय द्विवेदी

आप ने बहुत से सवाल खड़े किए हैं। मैं सिर्फ राहुल के सुझाव पर कुछ और सवाल खड़े करना चाहता हूँ।
राहुल ने यह सुझाव संसद के सत्र के पहले क्यों नहीं दिया?
जब मुसीबत गले आन पड़ी तभी उन्हें यह सुझाव क्यों सूझा?
इस सुझाव पर क्या वे कोई काम कर रहे हैं? या फिर वह छवि पर पड़ी धूल झाड़ने के लिए ही था?
इंदिरागांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी। पर उस नारे के पीछे से निकली तानाशाही!
वर्तमान में पूंजीवाद को अपनी रक्षा के लिए तानाशाही की दरकार है। कहीं राहुल का बयान उसी का पूर्वाभ्यास तो नहीं?

प्रवीण पाण्डेय

क्रोध भ्रष्टाचार को लेकर है, जो भी संशय के घेरे में होगा उसे हानि होना स्वाभाविक है। पारदर्शिता समय की माँग है।

अजित गुप्ता का कोना

खुशदीप भाई एक ही पोस्‍ट में कई सवाल खड़े किए गए हैं। कल इण्डिया टीवी पर अरविन्‍द केजरीवाल आदि का रजत शर्मा जी के साथ साक्षात्‍कार था। इसमें भी यह प्रश्‍न आया था कि राहुल गांधी तो संवैधानिक संस्‍था की बात कह रहे हैं तो फिर आपत्ति क्‍यों?
मैं उस दिन प्रवास पर होने के कारण राहुल गांधी का प्रवचन नहीं सुन पायी थी। लेकिन मुझे एक बात समझ आ रही है कि किसी भी कथन के पीछे आपकी मंशा क्‍या है? प्रस्‍ताव अच्‍छा है लेकिन तात्‍कालिक समस्‍या को लटकाने वाला और भ्रमित करने वाला है। यही बात आप की अदालत में अरविन्‍द केजरीवाल ने कही कि हमने जब सरकार से बात की तब सरकार का यह कहना था कि हमारे पास आवश्‍यक बहुमत नहीं है इस कारण इतना कठोर लोकपाल हम पारित नहीं करा सकते तो फिर तीन चौथाई बहुमत से संविधान संशोधन कैसे पारित करा लिया जाता?
इसलिए यह सुझाव तात्‍कालिक समस्‍या को भ्रमित और लम्बित करने वाला था ना कि समस्‍या को सुलझाने वाला।
इस देश की जनता की यही समस्‍या है कि जब भी कोई राष्‍ट्रीय विचार सामने आता है तब हम दलगत राजनीति में बंट जाते हैं। इस देश में अनेक दल हैं लेकिन जैसा कांग्रेस के पक्षधरों ने विरोध किया वैसा किसी ने नहीं किया, इसका कारण क्‍या था? क्‍या अन्‍य दलों के पक्षधरों को उनके दलों की चिन्‍ता नहीं थी?

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