आज की मेरी पोस्ट निर्मला कपिला जी को समर्पित है…साथ ही ये पोस्ट भारत से दूर परदेस में आशियाना बना चुके सभी भारतवंशियों के लिए भी है…मां से उसका बेटा दूर हो तो उसकी तड़प समझी जा सकती है…इसी तरह वतन यानि भारत मां से दूर होने का दर्द भी हर भारतीय के दिल में होता है…
निर्मला जी ने मुझे आदेश दिया था कि मैं अपना सबसे पसंदीदा गीत सुनवाऊं…निर्मला जी जो गीत मेरे दिल के सबसे ज़्यादा करीब है वो भी मां पर ही है…किसी मजबूरी के चलते मैं फिलहाल अपनी मां से दूर हूं…ये दूरी महज़ 70 किलोमीटर की है…लेकिन पेशेवर प्रतिबद्धताओं के चलते हर हफ्ते अपनी मां से नहीं मिल पाता…यही सोचता हूं…मां से इतनी कम दूरी होने के बावजूद मेरा ये हाल है तो उन मां के लालों के दिलों पर क्या बीतती होगी जो सात समंदर पार बसेरा बना लेते हैं…
हां, तो मैं जिस गीत की बात कर रहा था, वो मलकीत सिंह का गीत है…(मां ठंडी छांव होती हैं, जिसका आंचल सर पर हो तो संतान हर बला से दूर रहती है)…
गाने का सार कुछ इस तरह से है…बेटा चार पैसे कमाने की खातिर विदेश में है…वहीं उसे वतन से आई बहन की लिखी चिट्ठी मिलती है….वो चिट्ठी को पहले चूम कर आंखों से लगाने की बात कह रहा है….. बहन चिट्ठी में घर में बूढ़े मां बाप और अपना हाल सुना रही है…भाई बस भरोसा दिला देता है कि मां को समझा, मैं अगले साल घर वापस आऊंगा…
(ये असल गाना सवा मिनट बाद से शुरू होगा, वहीं से मैं अनुवाद दे रहा हूं….)
मावां ठंडिया छावां
नी चिट्ठिए वतना दिए तैनू चूम अंखियां नाल लावां
(वतन से आई चिट्ठी तुझे चूम कर आंखों से लगाता हूं)
पुत परदेसी होण जिना दे, रावां अडीकन मांवां
(बेटे जिनके परदेसी होते हैं, उनकी मां की नज़र रास्ते पर ही लगी रहती हैं)
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
(मां ठंडी छांव होती हैं, मां ठंडी छांव होती हैं)
दस हां चिट्ठिए केड़ा सनेहा वतन मेरे तो आया
(चिट्ठी तू मुझे बता कौन सा संदेश वतन मेरे से आया है)
किना हथां दी शो ए तैनू, किसने है लिखवाया
(तुझे लिखने वाले कौन से हाथ है, किसने लिखवाया है)
हरफ़ पिरो के कलम विच सारे मोतियां वांग सिधाया
(कलम से शब्द लिख-लिख कर मोतियों जैसे सजाया है)
लिख के पढ़या, पढ़ के सारा लिखया हाल सुणाया
(लिख के पढा, पढ़ के लिखा सारा हाल सुनाया)
किसने तैनू पाया डाके, किस लिखया सरनावां
(किसने तूझे डाक में डाला है, और किसने इस पर पता लिखा)
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
(मां ठंडी छांव होती हैं, मां ठंडी छांव होती हैं)
अपणा हाल सुणाया जुबानी, अंखियां दे विच भर के पानी
(अपना हाल सुनाया जुबानी, आंखों में भर के पानी)
हंजुआ दे डूब गेड़ निशानी, अपणे आप सुनाए कहानी
(आसुंओं में डूबे शब्द निशानी है, अपने आप सुनाते कहानी है)
हमड़ी जाई ने लिखया आपे, वीरा अडीकन बूढरे मा-पे
(मेरी बहन ने खुद लिखा है, भाई बूढ़े मां-बाप तेरा इंतज़ार करते रहते हैं)
जेड़ी सी तेरे गल लग रोई, बहण व्यावन जोगी होई
जो तेरे गले लग कर रोई थी, अब वो बहन शादी लायक हो गई है)
तू वीरा परदेस वसेंदा, कि कि होर सुणावां
(तू भाई परदेस में बसा है, क्या क्या और सुनाऊं)
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
(मां ठंडी छांव होती हैं, मां ठंडी छांव होती हैं)
अमड़ी जाइए नी निकिए बहणे, वीर सदा तेरे नाल नहीं रहणे
(मेरी छोटी बहना, भाई हमेशा तेरे साथ नहीं रहने)
तू एं बेगाणा धन नी शुदैने, रबियों ही विछोड़े सहणे
(तू पराया धन है, ऊपर वाले ने ही तेरा जुदा होना लिखा है)
रखिया कर तू मां दा ख्याल, अखियां रो रो होए निहाल
(मां का तू ख्याल रखना, आंखे रो-रो कर निहाल हैं)
कह देई मां नू तेरा लाल, घर आवेगा अगले साल
(मां से कह देना तेरा लाल, घर आएगा अगले साल)
पूरन पुत परदेसी जांदे, लकड न ततियावां
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
(मां ठंडी छांव होती हैं, मां ठंडी छांव होती हैं)
स्लॉग चिंतन
आप किसी शख्स को भारत से बाहर ले जा सकते हैं…लेकिन आप किसी भारतीय के दिल से भारत को कभी बाहर नहीं निकाल सकते….