महफूज़ की पोस्ट…कोई रोक सको तो रोक लो…पढ़ कर आज कुछ सोचने को मज़बूर हो गया कि ये महफूज़ का कॉन्फिडेंस है या ओवर-कॉन्फिडेंस…या फिर अकेले रहते-रहते महफूज़ किसी फोबिया का शिकार है…उसी के चलते खुद को सुपरमैन मानने लगा है…जो भी है इस हालत में महफूज़ को बहुत सारे प्यार की ज़रूरत है…बेहतर तो यही है इसके फौरन हाथ पीले हो जाएं (मतलब घोड़ी चढ़ जाए)….मैंने तो अपने जान-पहचान के लोगों को इस काम में लगा दिया है…आप की नज़र में महफूज़ के लिए कोई अच्छा मैच दिखे तो बताइएगा…बाकी इस बेकाबू दरिया पर मैंने कुछ तुकबंदी की है…
कोई रोक सको तो रोक लो
मैं झूमता दरिया हूं…
मुझे बढ़ते जाना है,
सिर्फ़ बढ़ते जाना…
मज़बूत हो चाहे बांध कितने,
नहीं टिकेंगे मेरे उफ़ान में…
मुझे बढ़ते जाना है,
सिर्फ़ बढ़ते जाना…
बहोगे साथ, जन्नत मिलेगी,
रोकोगे गर, कयामत दिखेगी…
मुझे बढ़ते जाना है,
सिर्फ़ बढ़ते जाना…
मैं बीते कल का गांधी नहीं,
मैं काले आज की आंधी हूं…
मुझे बढ़ते जाना है,
सिर्फ़ बढ़ते जाना…
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