ब्लॉगिंग की दुम…खुशदीप

कल अवधिया जी की पोस्ट पढ़ कर मज़ा आ गया…वाकई ब्लॉगर के मन की दशा को अवधिया जी ने हू-ब-हू लफ्ज़ों में उतार दिया…अपनी पोस्ट पर पल-पल टिप्पणियों की संख्या बढ़ती देखने की किसी ब्लॉगर की आतुरता को जिस सटीकता से अवधिया जी ने बयां किया है, ये साबित करता है कि धूप में बाल सफ़ेद करने का तज़ुर्बा क्या होता है…

टिपीकल ब्लॉगर बेशक किसी दूसरे की पोस्ट पर बड़ी मुश्किल से टिप्पणी दे, लेकिन अपनी पोस्ट पर चाहता है कि टिप्पणियों की संख्या लगातार बढ़ती रहे…क्यूं भई क्या सिर्फ आप ही व्यस्तता का बहाना दे सकते हो…क्या आप को ही दुनिया जहां के काम हैं…बाकी क्या सब खाली बैठे भुट्टे भून रहे हैं जो सिर्फ ये इंतज़ार करते रहें कि कब आपकी पोस्ट आए और वो टिप्पणी देकर खुद को धन्य कर लें…या फिर आपका ब्लॉग अमिताभ बच्चन के बिग अड्डा जैसा है…जो खुद किसी को एक टिप्पणी भी न दें या भूले से भी किसी पोस्ट पर अपने पढ़ने वाले पाठकों का ज़िक्र न करें लेकिन उनकी पोस्ट पर टिप्पणियों की गंगा अविरल बहती ही रहती है…

मैं खुद किसी घरेलू परेशानी में फंसा होने की वजह से दूसरी पोस्ट पर वैसे टिप्पणियां नहीं कर पा रहा जैसे कि पहले करा करता था…जब परेशानी दूर हो जाएगी तो फिर उसी रूटीन पर आ जाऊंगा…जैसी परेशानी मुझे है, ऐसी परेशानी दूसरे ब्लॉगर्स को भी हो सकती है…इसलिए मेरी टिप्पणियों का ग्राफ गिर रहा है तो मुझे कोई मलाल नहीं…ये संतोष ज़रूर है कि मुझे पढ़ने वाले पहले की तरह ही स्नेह बनाए हुए हैं…कोशिश करता हूं कि हर पोस्ट में कुछ अलग सा देता रहा हूं, जिससे प्रेडिक्टेबल न रहूं…मुद्दा हो या कोई लाइट बात, जो संदेश देना चाहता हूं बस वो सही संदर्भ में सब तक पहुंचता रहे…

अवधिया जी ने बड़े सही शब्दों में दर्द व्यक्त किया है कि टिप्पणी न मिलने पर आखिर कब तक अपने को धिक्कारा जा सकता है…अवधिया जी के शब्दों में…यही सोचकर तसल्ली दे लेते हैं अपने आपको कि लोगों में इतनी अकल नहीं है जो हम जैसे महान ब्लोगर के पोस्ट को समझ पायें…जब पोस्ट को समझेंगे ही नहीं तो भला टिप्पणी कहाँ से करेंगे?

अवधिया जी, फ़िक्र मत कीजिए, हम भारतीयों की आदत है कि या तो हम किसी महान व्यक्ति के दुनिया से जाने के बाद या फिर विदेश में कोई सम्मान मिल जाने के बाद उसको वो सम्मान देना शुरू करते हैं जिसका कि वो योग्य होता है…गुरुदत्त बेचारे को जीते जी क्या मिला…लेकिन दुनिया से जाने के बाद उनकी प्रतिभा के कसीदे गाए जाने लगे…या अभी देखिए कि फ्रांस की किसी नपुझन्नी संस्था से अपने लिए सम्मान का जुगाड़ कर लिया जाए और उसका जमकर भारत में प्रचार कराया जाए…फिर देखिए आपको महानता के किस ताड़ पर चढ़ा दिया जाता है…

आज स्लॉग ओवर भी कुछ खास है…इसे ब्लॉगजगत से ही जोड़ कर देखिएगा…

स्लॉग ओवर

मक्खन बेटे गुल्ली से…बताओ हाथी और घोड़े में क्या फर्क होता है…

गुल्ली…डैडी जी, डैडी जी…जो घोड़ा होता है न उसकी दुम पीछे होती है…और जो हाथी होता है न, उसकी न…

,,,

आगे-पीछे दोनों जगह दुम होती है…
 

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