ब्लॉगिंग का फीलगुड…खुशदीप

मुझे महसूस हो रहा है…शायद आपको भी हो रहा हो…न जाने क्यों मुझे लग रहा आने वाला साल हिंदी ब्ल़ॉगिंग के लिए कई खुशियां लेकर आने वाला है…इसकी सुगबुगाहट शुरू भी हो चुकी है…मुझे ब्ल़़ॉगिंग में आए चार महीने हो चुके हैं…मैं नोट कर रहा हूं, चार महीने पहले जो स्थिति थी, उसमें और आज में काफ़ी फर्क आ चुका है…

ब्लॉगिंग से कमाई को लेकर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है…बेशक हिंदी के लिए एडसेंस अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ है…लेकिन जिस तरह गूगल बाबा हिंदी में स्तरीय लेखन को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिता करा रहा है…‘है बातों में दम?’…वो संकेत देता है कि आज नहीं तो कल हिंदी को भी एड मिलना शुरू हो जाएंगे…ज्यादा दिन तक हिंदी को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता…ऐसी भी खबर है कि गूगल अभी एड का स्टॉक जमा कर रहा है…जिससे हिंदी में एड शुरू करने पर निर्बाध रूप से उन्हें जारी किया जाता रहे…वैसे इस मुद्दे पर जी के अवधिया जी और बी एस पाबला जी की पैनी नज़र है…वो वक्त-वक्त पर एडसेंस की हर हलचल से हमें अवगत भी कराते रहते हैं…

जहां तक मेरा सवाल है मेरे ब्लॉग पर एड तो एक भी नहीं है लेकिन मैं पिछले चार दिन से ढाई मिनट एड देखकर बीस रुपये रोज कमा रहा हूं…अभी तक सौ रुपये जमा हो चुके हैं…और ये मुमकिन हुआ है कल्पतरू वाले विवेक रस्तौगी भाई की बदौलत…उन्होंने ही अपनी एक पोस्ट में लिंक दिया था…चलिए ऊंट के मुंह में जीरा ही सही…खाता तो खुला…बड़ा आसान काम है…आप सब भी इससे वंचित न रहे, इसके लिए यहां मैं भी एड देखकर कमाई करने वाला लिंक दे रहा हूं…

कल संजीव तिवारी भाई ने भी एक अच्छी खबर दी थी कि रायपुर में एक सरकारी संस्थान ने नियमित रूप से ब्लॉग लिखवाने के लिए हिंदी ब्लॉगर की सेवाएं लेना शुरू कर दिया है…ये बड़ी अच्छी खबर है…ये सब आने वाले दिनों में हिंदी ब्लॉगिंग को स्वावलंबन की दिशा में ले जाने की उम्मीद जगाता है…खैर उम्मीद पर ही दुनिया कायम है…

ये तो रही ब्लॉगिंग के अर्थशास्त्र की बातें…आपने नोट किया हो इससे भी ज़्यादा सुखद और अच्छा पिछले कुछ महीनों में ब्लॉगिंग के साथ हुआ है…मैंने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो देखता था-सबसे ज़्यादा पसंद वाले कॉलम में ऊपर की पांच छह पोस्ट सिर्फ धर्म को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साधने वाली ही होती थीं…या फिर किसी पोस्ट में किसी ब्ल़ॉगर का नाम लेकर ही उसे ललकारा जाता रहता था…ये सब बिल्कुल बंद तो नहीं हुआ है, पहले से कम ज़रूर हो गया है…अब अलग-अलग मुद्दों पर जमकर लिखा जा रहा है…ये बड़ा सकारात्मक बदलाव है…हमें अपने ब्लॉग्स के लिए पाठक तभी ज़्यादा मिलेंगे जब उन्हें हमारे लिखे में विभिन्नता और गुणवत्ता मिलेगी…

एक और खुशगवार हवा का झोंका छत्तीसगढ़ से आया है…ये सच है कि ब्लॉगिंग को लेकर जितनी जागरूकता छत्तीसगढ़ में है, उतनी शायद किसी और राज्य में नहीं है…छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर भाइयों ने एक मंच बनाकर अच्छी शुरुआत की है…कंट्रोल्ड डिमॉलिशन के तहत लोकाचार और ब्लॉगिंग के हित में एक के बाद एक सीरियल ब्लॉस्ट किए जा रहे हैं…इस ब्रिगेड से भी यही खबरें मिल रही है कि हिंदी ब्लॉगिंग को एक साथ बहुत कुछ अच्छा सुनने को मिलने वाला है….मेरा छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर भाइयों से एक ही अनुरोध है कि सबको साथ लेकर चलें..

एक और निवेदन करना चाहता हूं कि ब्लॉगिंग में ऐसी मौज से किसी को परहेज नहीं होना चाहिए जो किसी दूसरे का दिल न दुखाती हो…सेंस ऑफ ह्यूमर सबसे बड़ी नेमत है…वरना गम और जद्दोजहद तो वैसे ही ज़िंदगी में भरे रहते हैं…किसी को रूलाना बहुत आसान होता है और किसी के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान लाना बहुत मुश्किल…इसलिए अगर किसी पर आप चुटकी लो तो आपमें इतना माद्दा भी होना चाहिए कि दूसरों की अपने पर चुटकी को भी स्पोर्ट्समैनशिप की तरह ही लें…ब्लॉगिंग में भी गुटबाज़ी होने लगी तो फिर इसमें और राजनीति में फर्क ही क्या रह जाएगा…मन में विद्वेष या बदले की भावना क्या कहर ढहा सकती है, ये तो हम राजनीति में देखते ही रहते हैं…हम सब ब्लॉगर्स को इस गाने को अपना सूत्रवाक्य बना लेना चाहिए…साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर हाथ बढ़ाना…

ब्लॉगिंग के फीलगुड पर पोस्ट है, इसलिए आज स्लॉग ओवर नहीं ब्लॉग ओवर-

ब्लॉग ओवर

एक सयाने की जिन्न से दोस्ती थी…एक बार जिन्न कुछ दिन तक सयाने से मिलने नहीं आया…सयाने को फिक्र हो गई…उसने किसी तरह जतन कर जिन्न को बुलाया…जिन्न आया तो लेकिन बदहवास हालत में…चेहरे से हवाइयां उड़ रही थीं…इस तरह जिस तरह किसी टार्चर रूम से बड़ी मुश्किल से निकल कर आया हो…सयाने ने पूछा…क्या हुआ जिन्न भाई, तुम दुनिया के होश उड़ाते हो तुम्हारी ये हालत किसने बना दी…जिन्न बोला….क्या बताऊं सयाने भाई…इस बार मुझे खुद ही मुझसे भी बड़ा जिन्न चिमड़ गया था…बड़ी मुश्किल से उसकी सौ-डेढ़ सौ पोस्ट पढ़ने के बाद जान छुड़ाकर आया हूं…बस डर यही है कि वो ब्लॉगर जिन्न और ताजा पोस्ट लेकर पीछे-पीछे यहां भी न आ धमके…

Khushdeep Sehgal
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