ब्लॉगवाणी, सुन ले अर्ज़ हमारी…खुशदीप

ज़रा सामने तो आओ छलिए,


छुप-छुप छलने में क्या राज़ है,


यूं छुप न सकेगा परमात्मा,


मेरी आत्मा की ये आवाज़ है…

सोच रहे होंगे, क्यों सुना रहा हूं आपको ये गाना…अब ये गाना न गाऊं तो और क्या करूं…कुछ पोस्टों से देख रहा हूं कि किन्हीं भद्रपुरुष को ये इंतज़ार रहता है कि कब मेरी पोस्ट ब्लॉगवाणी पर आए और कब वो नापसंदगी के चटके लगाना शुरू करें…कल तो कमाल ही हो गया…जैसे किसी ने कसम खा ली थी कि मेरी पोस्ट को ब्लॉगवाणी की हॉट लिस्ट में आने ही नहीं देना…जैसे ही आती वैसे ही उसे नापसंदगी का रेड सिग्नल दिखाकर मैदान से बाहर कर दिया जाता…

वैसे ये तो मैं कह-कह कर हार गया हूं, मेरी पोस्ट पर जो भी आपको नापसंद आए, आप खुलकर कमेंट के ज़रिए उसका इज़हार करें..मैं गलत हूंगा तो फौरन अपनी गलती मान लूंगा…अन्यथा यथाशक्ति आपकी शंकाओ को दूर करने की कोशिश करुंगा…लेकिन सिर्फ नापसंदगी का चटका लगाना और कमेंट में कुछ भी न कहना, इससे मैं अपने को कैसे सुधार पाऊंगा…

हां, अगर किसी का ये मकसद है कि मेरे नाम को देखते ही मेरी पोस्ट को टांग पकड़कर नीचे खींच लेना या बाहर का रास्ता दिखा देना…तो मैं उस सज्जन का काम आसान करे देता हूं…मेरा ब्लॉगवाणी से अनुरोध है कि मेरी पोस्ट को हॉट लिस्ट में डाला ही न जाए…इससे उन सज्जन को रोज़-रोज़ जेहमत नहीं उठानी पड़ेगी कि बिना नागा मेरी पोस्ट पर नापसंदगी का चटका लगाना है…

जो ब्लॉगरजन मुझे दिल से करीब मानते हैं, उनसे भी अनुरोध है कि आप मेरे ब्लॉग का लिंक सीधा अपने ब्लॉग पर जोड़ लें, जिससे पोस्ट डालते ही पता चल जाए…बाकी ये मैंने कभी किया नहीं कि किसी ब्लॉगर को कभी ई-मेल भेजा हो कि मेरी पोस्ट आ गई है, कृपया नज़रे इनायत कर दीजिए…ये मेरी फितरत में ही नहीं है…अगर पढ़ने लायक लिखूंगा तो आप ज़रूर पढ़ेंगे…कूड़ा लिखूंगा तो आप उस पर कोई तवज्जो दिए बिना रद्दी की टोकरी में पहुंचा देंगे…

एक बार फिर ब्लॉगवाणी से अनुरोध कि बंदर के हाथ उस्तरा देने वाले इस खेल के औचित्य पर दोबारा सोचे…ब्लॉगवाणी खुद भी तय कर सकता है कि वाकई किसी पोस्ट में नापसंद करने लायक कुछ है या नहीं…या फिर सिर्फ निजी खुन्नस निकालने के लिए ही नापसंदगी के चटके का इस्तेमाल किया जाता है….आखिर ब्लॉगवाणी ने नापसंदगी के चटके के प्रावधान की शुरुआत कुछ सोच समझ कर ही की होगी…ब्लॉगवाणी से फिर आग्रह है कि इस मुद्दे पर अपने विचार स्पष्ट करे…

स्लॉग ओवर

एक आदमी का रिश्तेदार ही डॉक्टर था…बड़ा हंसमुख….शार्प सेंस ऑफ ह्यूमर..

उस आदमी ने डॉक्टर से पूछा कि आप अपने प्रेस्क्रिप्शन में ऐसा क्या लिखते हैं जो सिर्फ कैमिस्ट या पैथोलॉजी लैब वालों को ही समझ आता है…

डॉक्टर…घर के आदमी हो इसलिए ट्रेड सीक्रेट बता देता हूं…हम प्रेस्क्रिप्शन में लिखते हैं…मैंने अपने हिस्से का लूट लिया है, अब तुम भी लूट लो…

डिस्क्लेमर…इन डॉक्टरों में डॉ अमर कुमार, डॉ टी एस दराल, डॉ अनुराग, डॉ प्रवीण चोपड़ा शामिल नहीं है