ब्लॉगरों से अख़बारों की चोट्टागिरी…खुशदीप

छपास का रोग बड़ा बुरा, बड़ा बुरा,
माका नाका गा भाई माका नाका,
ऐसा मेरे को मेरी  मां  ने कहा,
माका नाका नाका भाई माका नाका…

ब्लॉगिंग में हम पोस्ट चेप चेप कर कितने भी तुर्रम खान बन जाए लेकिन जो मज़ा प्रिंट मीडिया के कारे-कारे पन्नों में खुद को नाम के साथ छपा देखकर आता है, वो बस अनुभव करने की चीज़ है, बयान करने की नहीं…अब बेशक अखबार वाले ब्लॉग पर कहीं से भी कोई सी भी पोस्ट उठा लें, बस क्रेडिट दे दें तो ऐसा लगता है कि लिखना-लिखाना सफ़ल हो गया…अब ये बात दूसरी है कि बी एस पाबला जी अपने ब्लॉग इन मीडिया के ज़रिए सूचना न दें तो ज़्यादातर ब्लॉगर को तो पता ही न चले कि वो किसी अखबार में छपे भी हैं…

खैर, अब मुद्दे की बात पर आता हूं…अखबार किसी लेखक की रचना छापते हैं तो बाकायदा उसका मेहनताना चुकाया जाता है…लेकिन जहां बात ब्लॉगरों की आती है तो उनकी रचनाओ को सारे अखबार पिताजी का माल समझते हैं…कहीं से भी कभी भी कोई पोस्ट निकाल कर चेप दी जाती है…पारिश्रमिक तो दूर लेखक को सूचना तक नहीं दी जाती है कि उसकी अमुक रचना छपी है…अखबार इतनी दरियादिली ज़रूर दिखाते है कि पोस्ट के साथ ब्लॉगर और उसके ब्लॉग का नाम दे देते हैं…कभी-कभी तो ये भी गोल हो जाता है…

यहां तक तो ठीक है, लेकिन बात इससे कहीं ज़्यादा गंभीर है…कहते हैं न कि गलत काम पर न टोको तो  सामने वाले का हौसला बढ़ता ही जाता है…ऐसा ही हाल अखबारो का भी है…अभी हाल में ही एक अखबार के किए-कराए की वजह से भाई राजीव कुमार तनेजा को अनूप शुक्ला जी को लेकर गलतफहमी हुई…उन्होंने त्वरित प्रतिक्रिया में आपत्तिजनक टाइटल देते हुए पोस्ट लिख डाली…ये सब आवेश में हुआ…बाद में गलती समझ में आने पर राजीव जी ने वो पोस्ट अपने ब्ल़ॉग से हटा भी दी…लेकिन जो नुकसान होना था वो तो हो ही गया…और ये सब जिस अखबार ने किया, उसको रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा…हुआ ये था कि इस बार होली पर अखबार ने अनूप जी की पिछले साल होली पर लिखी हुई पोस्ट बिना अनुमति उठा कर धड़ल्ले से छापी और साथ रंग जमाने के लिए राजीव जी के ब्लॉग से कुछ चित्र उड़ा कर भी ठोक डाले…राजीव जी से भी इसके लिए कोई अनुमति नहीं ली गई…राजीव जी को ऐसा लगा कि सब कुछ अनूप शुक्ला जी ने किया है…जबकि वो खुद भी राजीव जी की तरह ही भुक्तभोगी थे…अब क्या इस अखबार के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू नहीं की जानी चाहिए…

चलिए इस प्रकरण को छोड़िए…अखबार ब्लॉगरों के क्रिएटिव काम को घर का माल समझते हुए कोई पारिश्रमिक नहीं देते, कोई पूर्व अनुमति नहीं लेते…यहां तक ब्लॉगर झेल सकते हैं…लेकिन ये कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है कि कोई आपके लिखे से खिलवाड़ करे और अपनी तरफ से उसमें नए शब्द घुसेड़ दे…पोस्ट को जैसे मर्जी जहां से मर्जी काट-छांट कर अपने अखबार के स्पेस के मुताबिक ढाल ले…शीर्षक खुद के हिसाब से बदल ले…वाक्य-विन्यास के साथ ऐसी छेड़छाड़ करे कि अर्थ ही अलग निकलता दिखाई दे…और ये सब आपका नाम देकर ही किया जाए…अखबार के पाठक को तो यही संदेश जाएगा कि जो भी लिखा है ब्लॉगर ने ही लिखा है…क्या ये चोट्टागिरी ब्लॉगर की रचनात्मकता के लिए खतरा नहीं…

आज ऐसा ही मेरी एक पोस्ट के साथ हुआ…लखनऊ के डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट अखबार ने मेरी पोस्ट अन्ना से मेरे दस सवाल को छापा…अब आप फर्क देखने के लिए मेरी पोस्ट को पहले पढ़िए....और फिर अखबार ने देखिए छापा क्या….

पहले तो शीर्षक ही बदल दिया गया…मेरा शीर्षक था अन्ना से मेरे दस सवाल और अखबार ने छापा अन्ना को कुछ सुझाव…दूसरी लाईन में मैंने लिखा कि अन्ना की ईमानदारी और मंशा को लेकर मुझे कोई शक-ओ-शुबहा नहीं…अखबार ने छापा…अन्ना की ईमानदारी और मंशा पर किसी को कोई शक नहीं…मैंने लिखा…कांग्रेस और केंद्र सरकार…छापा गया कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार…फिर कुछ लाइनें गोल कर दी गईं…और अखबार ने लिखा…मेरा कहना है कि नेता कौन से अच्छे है और बुरे, ये देश की जनता भी जानती है…जबकि मैंने यहां ये कहीं नहीं लिखा था कि मेरा कहना है…इस तरह के तमाम विरोधाभास मेरे नाम पर ही अखबार ने जो छापा उसमें भर दिए…मेरी सबसे ज़्यादा आपत्ति उस पैरे को लेकर है जिसमें मैंने स्वामी रामदेव के बारे में लिखा था…

मैंने अन्ना को अपने चौथे सवाल में लिखा था-
स्वामी रामदेव जैसे ‘शुभचिंतकों’ से सतर्क रहें…शांतिभूषण जी और प्रशांत भूषण को साथ कमेटी में रखे जाने को लेकर जिस तरह रामदेव ने आपको कटघरे में खड़ा किया, वैसी हिम्मत तो सरकार ने भी नहीं दिखाई…


और अखबार ने छापा…
स्वामी रामदेव जैसे शुभचिंतकों से जितना सतर्क रहा जा सके उतना ही अच्छा हो…आखिर उनकी शिक्षा ही कितनी है कि शांतिभूषण और प्रशांत भूषण को कमेटी में रखे जाने का विरोध करें…रामदेव ने तो अन्ना तक को कटघरे में खड़ा किया…ऐसी हिम्मत सरकार ने भी नहीं दिखाई…


देखिए है न कितना उलट…मैंने कब स्वामी रामदेव की शिक्षा जैसा प्रश्न उठाया…लेकिन जो भी अखबार में लेख को पढ़ेगा वो तो यही समझेगा कि मैंने ही ये लिखा है…साथ ही ये भी आभास होता है कि रामदेव ने तो अन्ना तक को कटघरे में खड़ा किया…जबकि मैंने वो बात शांतिभूषण और प्रशांत भूषण के संदर्भ को देते हुए लिखी थी…लेकिन आभास ऐसा हो रहा है कि रामदेव ने किसी और मुद्दे पर अन्ना को कटघरे में खड़ा किया…

आपने सब पढ़ लिया…आप खुद ही तय कीजिए कि अखबारों की ये मनमानी क्या जायज़ है…क्या इसीलिए ब्ल़ॉगर चुप बैठे रहें कि अखबार हमें छाप कर हमारे पर बड़ी कृपा कर रहे हैं…क्या अपनी रचनात्मकता से ऐसा खिलवाड़ बर्दाश्त किया जाना चाहिए…अखबार कोई चैरिटी के लिए नहीं छापे जा रहे हैं…अखबार सर्कुलेशन और एड दोनों से ही कमाई करते हैं…अपने कमर्शियल हित साधने के लिए ही वो ब्लॉग से अच्छी सामग्री उठा कर अपने पेज़ों की वैल्यू बढ़ाते हैं…इससे उनकी कमाई बढ़ती है…फिर वो क्यों ब्लॉगरों को पारिश्रमिक देने की बात भी नहीं सोचते…ऊपर से ब्लॉगरों के लिखे का इस तरह चीरहरण…आज मेरे साथ हुआ, अनूप शुक्ला जी के साथ हुआ, राजीव तनेजा जी के साथ हुआ…कल और किसी के साथ भी हो सकता है…क्या ब्लॉगजगत को अखबारों की ये निरंकुशता रोकने के लिए एकजुट होकर आवाज़ नहीं उठानी चाहिए…

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प्रतिभा सक्सेना

सचमुच ,बहुत बड़े हाथ होते हैं इन पत्रकार नामक बुद्धिजीवियों के
साल भर हो गया ,स्थितियाँ वहीं के वहीं – धन्य हम हिन्दीभाषी.

नुक्‍कड़

कांट छांट तो पसंद आती है
पर रचना कुतरी न जाए
तो सब ठीक है।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार

प्रिय बंधुवर खुशदीप जी
सादर सस्नेह अभिवादन !

मेरे साथ तो ऐसे हादसे होते ही रहते हैं ,
समाज हित की रचनाएं ले'कर अपने संकलनों में छापने के लिए जिन संस्थाओं के कर्ता धर्ता छापने के काम के साल में दो से पांच लाख रुपये मदद पा्ते है , वे चोरी से मेरी रचना ले'कर भी मुझे ससम्मान प्रति देने का शालीन व्यवहार भी नहीं जा्नते , पेमेंट के बारे में तो सोचते भी नहीं ।
ब्लॉग पर छपी रचनाएं भी कुछ लघु पत्र मालिक उठा कर छाप चुके ध्यान में आए हैं … पेमेंट तो दूर कमेंट भी नहीं दे गए … 🙂

सरस्वती का धन लूटने वालों कुछ शर्म करो !!
पैसा देने को नहीं है तुम्हारे पास , कोई बात नहीं , रचना मांग कर तो लो । छपने पर प्रति तो ससम्मान देना समझो ।

* वैशाखी की शुभकामनाएं ! *
– राजेन्द्र स्वर्णकार

अनूप शुक्ल

क्या किसी को अपना लेख तोड़-मरोड़ कर छापा जाना पसंद भी आ सकता है
किसी की तो नहीं कह सकता लेकिन जहां तक मेरा संबंध है तो पसंदगी/नापसंदगी इस बात पर निर्भर करेगी कि लेख किस तरह तोड़े-मरोड़े या संवारे गये हैं। मेरी ब्लाग पोस्टों के कई लेख अभिव्यक्ति की पूर्णिमा वर्मन जी ने मुझको बताकर उठाये हैं। हर बार वे लेख अभिवव्यक्ति पर छपने पर संवारे गये हैं। काटे-छांटे गये हैं। कट-छंटकर अभिव्यक्ति में छपने पर वे लेख संवर गये हैं। तो मुझे तो अच्छा लगा। अभी तक इसके विपरीत अनुभव हुआ नहीं। जब कभी होगा तब बताया जायेगा। 🙂

Khushdeep Sehgal
14 years ago

क्या किसी को अपना लेख तोड़-मरोड़ कर छापा जाना पसंद भी आ सकता है…अगर हां तो ताज्जुब है और वो सज्जन वाकई महान है…

जय हिंद…

अनूप शुक्ल

प्रवीण शाह की टिप्पणी से सहमत!

व्यक्तिगत तौर पर कोई मेरी पोस्ट अखबार में या पत्रिका में छापता है तो मुझे कोई एतराज नहीं। मुझसे जिन लोगों ने भी अनुमति चाही उनको मैंने कहा- आपको जो लेख मन आये उपयोग कर लें। बता सकें तो बता दें, न बता सकें तो भी कोई बात नहीं।

ब्लागजगत में प्रतिक्रिया व्यक्त करते समय हम लोग अक्सर भावावेश में रहते हैं। अकथनीय कह जाते हैं, अकरणीय कर जाते हैं। अगले का पक्ष भी कुछ हो सकता यह अक्सर नहीं सोच पाते।

ब्लागवाणी की शुरुआत भी उनके संचालकों पर चोरी के आरोप और उनकी जमकर लानत-मलानत से हुई थी। बाद में सबकी बेहद पसंदगी के बावजूद ब्लागवाणी के बंद होने के कारणों में से व्यवसायिक कारणों के अलावा उसके संचालकों के प्रति लोगों की बेहूदी प्रतिक्रियायें भी एक कारण रहा।

अगर सही में किसी को अपने लेख बिना अनुमति या तोड़-मरोड़कर अखबार या पत्रिकाओं छापा जाना पसंद नहीं है तो वह इस आशय की सूचना अपने ब्लाग पर लगाये कि उसके ब्लाग से बिना अनुमति लेख उठाना मना है और तोड़-मरोड़कर छापना अपराध। इसके बावजूद अगर कोई ऐसा करता है तो उसके खिलाफ़ नोटिस बाजी शुरु करके आगे बढ़ा जाये ताकि अखबार/पत्रिकायें आगे से ऐसा करने से पहले सोचे।

ऐसा चाहने वाले ब्लागर के लिये समय शुरु होता है अब! 🙂

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति

कम से कम ब्लोगर के ज्ञान में तो होना ही चाहिए .. एक खुशी ही सही… आपकी यह पोस्ट कल चर्चामंच पर होगी आप वह आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करेंगे .. सादर

डॉ टी एस दराल

ब्लॉग को उठाकर , तोड़ मरोड़ कर , बिना इज़ाज़त या सूचना के प्रकाशित करना तो दादागिरी लगती है प्रिंट मिडिया की ।
अभी कोई नियंत्रण नहीं है , इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं ये लोग ।

Rakesh Kumar
14 years ago

देर से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ.आपने एक अति गंभीर मसला उठाया है.हालांकि कहा गया है
'सत्यमेवजयते' लेकिन जागरूक रहना हम सभी का फर्ज है.आप जागरूक हैं कि कथित अखबार की
कारस्तानी का आपको पता चल गया.हम जैसे बहुत से ब्लोगर तो अनजान हैं इस ओर से.आँखें मीच लेने से भी तो काम नहीं चलता.एक मुहीम तो चलनी ही चाहिये एकजुट होकर.

अजय कुमार झा

आखिरकार आपने बिगुल बजा ही दिया खुशदीप भाई । अब इस मुद्दे पर मुझे भी विस्तर से लिखना ही होगा । आपकी इस बात से शत प्रतिशत सहमत हूं कि हमारे लिखे को तोड मरोड के उसका उपयोग करने का हक किसी को भी नहीं दिया जा सकता किसी को भी नहीं ।

प्रवीण
14 years ago

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सब के लिये हमेशा (२४ X ७) खुले रहने वाले ब्लॉग जैसे माध्यम में यदि कोई ब्लॉगर लिख रहा है… तो यदि अखबार उसके लिखे को छाप रहे हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है… मैं समझता हूँ कि जिस ब्लॉगर को पारिश्रमिक चाहिये वह अपने ब्लॉग पर इस आशय का नोटिस लिखे व अपने लिखे का कॉपीराईट रखे… अखबारों से यह अपेक्षा रखना कोई गलत नहीं है कि वह छापते समय ब्लॉगर के लेख की भावना व शब्दों में कोई तोड़मरोड़ न करे, उसके ब्लॉग का नाम, URL व ब्लॉगर के नाम को प्रमुखता से प्रदर्शित करे…

आपके इस आलेख से पूरी तरह सहमत हूँ …

समय चक्र
14 years ago

भैय्या अब समय आ गया है की ब्लागजगत में कोई अन्ना हजारे पैदा किया जाये …हः हा …

वन्दना अवस्थी दुबे

खुशदीप जी, राजीव तनेजा के साथ कुछ नहीं हुआ. हुआ तो शुक्ल जी के साथ है, और आपके साथ. आपकी पोस्ट को उन्होंने तोड़-मरोड़ के छापा है. निश्चित रूप से इन अखबारों के खिलाफ़ प्रेस परिषद में लिखित सूचना भेजी जानी चाहिये.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

चोरी चपाटि हर जगह है तो ब्लाग और प्रेस कैसे बच सकता है भला…. जब तक कोई अन्ना [भाइ लोग] अपना असर न दिखाये:)

Sushil Bakliwal
14 years ago

अर्थ का अनर्थ कर देने वाली इस सीनाजोर चोरी का पुरजोर विरोध हर हाल में होना ही चाहिये ।

shikha varshney
14 years ago

खुशदीप जी ! जब तक ब्लोगरों में ही अपने काम के प्रति गंभीरता और जागरूकता नहीं होगी अखबार वालों को क्या पड़ी है जो परवाह करें. यहाँ तो हालत यह है कि बस अपना नाम अखबार में छपा देख कर हम बोराए बोराए घूमते हैं.डिमांड कम है सप्लाई ज्यादा तो यही होगा.अगर ब्लोगर एकजुट होकर इसका विरोध करें फिर देखिये …

Unknown
14 years ago

kuch to karna hi hoga ….

ek notice editor ko talab kare..

jai baba banaras……

ZEAL
14 years ago

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अखबार वालों को क्या दोष दें । ब्लॉगर्स कौन से कम हैं । कुमार शेखावत नामक ब्लॉगर ने मेरी "जनसँख्या" पर लिखा आलेख पूरा का पूरा कॉपी करके अपने पिताजी के नाम से खोले हुए ब्लौग पर दो नए चित्रों के साथ लगा दिया ।

कुछ शुभचिंतक हैं जो मेल से सूचित कर देते हैं की मेरा ब्लौग अमुक व्यक्ति ने अपने ब्लौग पर लगा रखा है । क्या कर सकती हूँ , चोरों की फितरत तो नहीं बदली जा सकती न।

बस इतना जानती हूँ की मेरे मेरे नियमित पाठक मेरे लेखन की चोरी नहीं करते । बकिया ३०, ००० ब्लॉगर पर कौन निगरानी रख सकता है ।

हमने तो लिखने का मज़ा लेते हैं । चोरों को चोरी का और पाठकों को पढने का मज़ा लेने दीजिये।

originality का अपना एक अलग ही सुख है। जो केवल इमानदार ब्लॉगर्स के ही पास है।

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डा० अमर कुमार


क्रेडिट दे दें, इतनी भलमँशाहत की उम्मीद तो की ही जा सकती है, बकिया पईसा तो हाथ का मैल है ।
प्ण्डित दिनेश भाई के अगुवाई में इस पर कार्यवाही की रूपरेखा बननी ही चाहिये ।
वैसे खुशदीप मुँडे मुझे खुशी हो रही है.. जहाँ फल लगते हैं वहीं तो पत्थर मारे जायेंगे.. तू अब सेलेब्रिटी हो गया !

शिवम् मिश्रा

हम्म …

अविनाश वाचस्पति


प्रिंट मीडिया के बारे में इस पोस्‍ट में पारिश्रमिक के लिए कहा गया है

आज यहां भी कहा गया है कि ब्‍लॉग से प्रकाशित रचनाओं पर पारिश्रमिक मिलना चाहिए।

रवीन्द्र प्रभात

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे,अखबार की ईंट से ईंट बजा देनी चाहिए। इस अभियान में मुझे भी शामिल समझें।

Arunesh c dave
14 years ago

मै तो खैर अभी तीन महिने पुराना ब्लागर हूं मेरी दो ही पोस्ट जागरण ने छापी है जिसमे से नयी अन्ना हजारे और कुत्ते की दुम मे शीर्षक को छोड़ ज्यादा छेड़छाड़ नही की गयी है पर जब मेरी पहली पोस्ट छपी थी तभी मैने कुछ वरिष्ठ ब्लागरो से इस बारे मे बात की थी उनका सुझाव यह था कि छ्पने दो कोई नुकसान तो नही हो रहा बात और नाम लोगो तक पहुंच तो रहा है । पर कोई एहसान किये टाईप छापे और पाब्ला जी न हो तो सूचना भी न मिले यह निश्चित रूप से दुखी करता है । वैसे भारत का फ़्री प्रेस सचमुच एक दम फ़्री वाला है यह ब्लागर बनने के बाद ही मालूंम पड़ा ।

सञ्जय झा
14 years ago

apke suljhe vichar evem drishtikon se
purn sahmat……..

pranam.

प्रवीण पाण्डेय

सब चाहते हैं कि ब्लॉग पढ़े जायें। अखबार छापें पर बिना छेड़छाड़ के।

Dr. Yogendra Pal
14 years ago

निंदनीय कृत्य है, आपको कोई कदम उठाना ही चाहिए

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

कमाल है, आशीष जी की पोस्ट को भी मनमाना हिसाब से जोड़ घटा कर छाप दिया है.

कुछ ब्लागर बड़े खुश होते हैं कि उनकी पोस्ट अखबार में छप गयी, जबकि हकीकत इसके उलट है, अखबार को बिना कुछ दिये लिये बढ़िया सामान मिल जाता है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

बिल्कुल सत्यानाश करके रख दिया है. दूसरा ये भी देखिये कि आप के ब्लाग को छापने के बहाने रामदेव जी पर अपनी भड़ास भी निकाल ली. मतलब यह कि भड़ास उनकी और कंधा आपका.. अब इसी से स्तर जान लीजिये इन सबका…

श्यामल सुमन

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे। इस तरह की घटनाएँ आजकल आम हो गयीं हैं। लगभग हर प्रमुख अखबारों सहित अन्य अखबारों में आजकल ब्लाग की रचनाओं को नियमित स्थान दिया जा रहा है – कभी कभी तो उसके कुछ अंश से ही काम चलाया जा रहा है – या फिर अपने अखबार की जरूरत के हिसाब से। यह खतरनाक बात है। मेरे विचार से हर उस ब्लागर को इसका पुरजोर विरोध करना चाहिए। इस अभियान में मुझे भी शामिल समझें।

सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com

देवेन्द्र पाण्डेय

प्रकरण कष्टकारी है, अचंभित करने वाला है और इसकी जितनी भी निंदा की जाय वह कम है। किसी भी लेखक की बात उसके नाम से अपने शब्दों में नहीं प्रकाशित करनी चाहिए। या तो ज्यों का त्यों प्रकाशित हो या फिर यह लिखा जाय कि इस लेख का मैने यह आशय लगाया।

अनूप-तनेजा कांड को पढ़कर मै भी अचंभित था। इस ने तो भय भी पैदा कर दिया है। साधारण जिंदगी जीने वाले ब्लॉगर ऐसी ऊटपटांग पत्रकारिता की वजह से मुसीबत में भी फंस सकते हैं।

अभिव्यक्ति का यह खामियाजा लोकतंत्र के चौथे खंबे से मिले तो यह वाकई सोचनीय विषय है।

ब्लॉग जगत में बहुत से प्रबुद्ध पत्रकार हैं, वकील हैं, मेरा विश्वास है कि वे अपनी ओर से अवश्य इसका विरोध करेंगे।

वैसे हमारे जैसे अधिकांश की स्थिति तो गालिब के इस शेर जैसी है….

चोर आये घर में जो था उठा के ले गये
कर ही क्या सकता था बुढ्ढा खांस लेने के सिवा।

अजित गुप्ता का कोना

उस अखबार की ईंट से ईंट बजा देनी चाहिए। वर्तमान कानून में जैसे नौकरशाह और राजनेता को छूट मिली हुई है वैसे ही इन अखबार वालों को भी मिली हुई है इसलिए इन पर ब्‍लाग वाले ही नकेल कस सकते हैं। जिस अखबार का यह किया धरा है उसी के नाम से पोस्‍ट लिखिए और उसे भी मेल करिए। अन्‍य समाचार पत्रों को भी पोस्‍ट मेल करिए। पहले आम जनता के पास लिखने का अधिकार नहीं था इसलिए हमेशा इन्‍हें ही खूली छूट मिली हुई थी लेकिन अब हमारे पास भी ब्‍लाग की ताकत है तो उसका उपयोग कीजिए। कुछ हो या नहीं लेकिन एक कदम तो आगे बढेगा और हमने भी कुछ किया इस बात का संतोष मिलेगा।

Arvind Mishra
14 years ago

मुद्दा प्रासंगिक है मगर यह तभ भी सहनीय है जब उसमें अपनी कोई काट छांट योग्य सम्पादक जी न करें …(पराकाष्ठा अनूप काण्ड! ) बाकी त ऐसन घटना सेलिब्रिटी लोगन के साथ होता ही है -काहें अन्डू बंडू क लेख नहीं छपते!..हमें भी खुद सेलिब्रिटी होने के नए नए अहसास पाबला जी दिलाते रहते हैं उनका किस मुंह से आभार प्रगटाऊँ ?
खुशदीप भैया अपनी ऊर्जा इन बातन में लगाने का कौनो निष्कर्ष नाही निकले -यह एक भुक्तभोगी का (भोगा हुआ ) यथार्थ है -आप लिखते रहें ऊ छापते रहें बस इहीं शुभकामना के साथ …..

Shah Nawaz
14 years ago

यह तो बहुत गलत बात है, कल ही यह कटिंग पढ़ ली थी… पाबला जी की मेहनत को सलाम. लेकिन मैं यह गलती पकड़ ही नहीं पाया था…

थोडा बहुत एडिट करके शब्दों को कॉलम के हिसाब से कम करना तो समझ में आता है लेकिन इस तरह बात को बदल देना या यूँ कहें की बात का बतंगड़ बना देना निहायत गलत है. अखबार से इसकी शिकायत करनी चाहिए और एक खबर छाप कर स्पष्टीकरण देने के लिए कहना चाहिए. ना छापने पर आगे की कार्यवाही के बारे में भी सोचा जा सकता है…

वैसे यह आम बात हो गयी है. अभी कुछ दिन पहले अविनाश जी ने भी मेरी एक पोस्ट के किसी अखबार में छपने की बात बताई. अब अगर अविनाश जी उस अखबार को नहीं पढ़ते, या फिर उनकी नज़र मेरी पोस्ट पर नहीं पड़ती तो मुझे तो पता ही नहीं चलता. जो अखबार हमारी मेहनत को मुफ्त में इस्तमाल कर रहे हैं, कम से कम उन्हें हमें सूचित तो करना ही चाहिए.

पाबला जी भी कहाँ तक हर अखबार और अखबार के हर कॉलम पर नज़र रखेंगे???

मेरे ख्याल से ऐसा इसलिए होता है की ब्लोगर संगठित नहीं हैं. हर की अपनी ढपली अपना राग है और इसी का फायदा प्रिंट मीडिया उठता है…

Gyan Darpan
14 years ago

इन चोट्टों से सभी दुखी है पर इन बेशर्मों को शर्म कहाँ !!

honesty project democracy

किसी ब्लॉग लेख को किसी अखवार द्वारा अपने हितों के लिए तोर मरोर कर लिख देना गंभीर बात है इसके खिलाफ आवाज उठानी ही चाहिये…पारिश्रमिक का सवाल उतना महत्व नहीं रखता है,लेकिन आप अपने हिसाब से ब्लोगर के लेख की मूल भावना को अपनी भाषा देकर बदल कर छापें और ब्लोगर को सूचना तक ना दें ये बात ठीक नहीं …अख़बारों को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए…

Satish Saxena
14 years ago

और इनसे क्या उम्मीद करें ….??
मगर हमारे पास इन्हें झेलने के अलावा और चारा ही क्या है ! 🙁
शुभकामनायें आपको !

Udan Tashtari
14 years ago

निश्चित ही अखबार में छपने का लोभ छोड़ आवाज उठाना चाहिये..उचित मेहताना दें और पोस्ट लें…अब वह समय आ गया है.

शुरु में ब्लॉग का प्रारुप और उसकी जानकारी आमजन तक पहुँचाने तक यह ठीक था, अब तो रोज का काम बन गया है उनका.

दिनेशराय द्विवेदी

कुछ महत्वपूर्ण ब्लागर तय करें कि इस दिशा में कुछ काम करना है।
फिर इस का इलाज किया जाए।

Smart Indian
14 years ago

कमाल है! आपको सम्पादक को पत्र/फोन के ज़रिये अपना विरोध जताना ही चाहिये।

Rahul Singh
14 years ago

इस पर नियंत्रण जरूरी है.

Ashish Shrivastava
14 years ago

ये रही अखबार की कतरन http://vigyan.files.wordpress.com/2011/03/blog-media-vigyan-vishv-341×1024.jpg

आप ही देख लीजीये, दोनो लेखो मे कितना अंतर है !

Ashish Shrivastava
14 years ago

ये कारस्तानी मेरे एक लेख(http://vigyan.wordpress.com/2011/03/21/japandisaster/) के साथ की गयी थी! मेरे लेखों की सन्दर्भ के साथ प्रकाशन की अनुमति है लेकिन इन महानुभाव ने मेरे लेख के निगेटीव पक्ष को प्रकाशित कर दिया, मूल उद्देश्य का संपादन कर दिया !

Dr. Zakir Ali Rajnish
14 years ago

जब तक ब्‍लॉगर एक नहीं होंगे, अखबार वाले यही सब करते रहेंगे।

…………
ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

अविनाश वाचस्पति

जी बिल्‍कुल आवाज़ नहीं उठानी चाहिए। अब पोस्‍टें उठाएं, वे टिप्‍पणियां करें हम और आवाज़ भी हम ही उठाएं। नहीं उठायेंगे। और न ही उठानी चाहिए। क्‍या हम कुली हैं जो आवाज को उठायेंगे। इसलिए चुप ही रहते हैं।

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