बेटी की नज़र में एक अनसंग हीरो…खुशदीप

आज एक पोस्ट को पढ़ने के बाद से विचलित हूं…क्या ऐसे इनसान भी इस दुनिया में हो सकते हैं…आज जब लोग स्वार्थ के लिए अपनों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते…इसके विपरीत क्या कोई ऐसा भी हो सकता है जो दुनिया की भलाई के जुनून में अपनी पत्नी और चार छोटे बच्चों को भी छोड़ दे…वो भी ऐसा शख्स जिसके पास कभी करोड़ों रुपये की संपत्ति और कारोबार रहा हो…कॉमरेडों के वो आइिडयल थे और लालू यादव, नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं के लिए गुरुदेव…दूसरों को नेता बनाने की कुव्वत लेकिन खुद सत्ता के लोभ से हमेशा दूर रहे…

राम मनोहर लोहिंया, जय प्रकाश नारायण किंगमेकर बने लेकिन खुद कभी किंग नही बने…लेकिन उनके काम को जनता ने पहचाना और वो नेताओं से कहीं ऊपर महानायक बने…अब अन्ना हज़ारे भी इसी राह पर निकले हैं…लेकिन हमारे समाज में कुछ ऐसे अनसंग हीरो भी हैं जो पूरा जीवन दूसरों के लिए समर्पित कर देते हैं, बदले में अपने नाम की भी चाहत नहीं करते…ऐसे ही एक अनसंग हीरो हैं- सुरेश भट्ट…सुरेश भट्ट जी का छह साल पहले ब्रेन हैमरेज हुआ था…अब वो दिल्ली के एक ओल्ड होम में गुमनाम ज़िंदगी जी रहे हैं…जो नेता उन्हें गुरुदेव कहते थे, वो भी उनकी सुध लेने के लिए कभी एक मिनट नहीं निकाल सके…सुरेश भट्ट जी के बारे में उनकी बेटी असीमा भट्ट ने कविता के ज़रिए जो भावनाएं व्यक्त की हैं, उन्हे पढ़ने के बाद देश की हर बेटी को मेरा सैल्यूट…

अपने पिता सुरेश भट्ट के साथ असीमा भट्ट.

बस असीमा की कविता की दो पंक्तियां यहां लिख रहा हूं…

क्या यह वही पिता है मेरा…
साहसी, फुर्तीला,क्या मेरे पिता बूढ़े हो रहे है?
सोचते हुए मैं एकदम रूक जाती हूं,
आखिर पिता बूढ़े क्यों हो जाते हैं?
पिता, तुम्हें बूढ़ा नहीं होना चाहिए,
ताकि दुनिया भर की सारी बेटियां
अपने पिता के साथ,
दौडऩा सीख सके दुनिया भर में…

पूरी कविता और सुरेश भट्ट जी के बारे में और जानने के लिए आपको इस लिंक पर जाना होगा…वहां असीमा का संबल बढ़ाना मत भूलिएगा…

अब दुनिया के सामने एक सवाल हैं मेरे पापा-सुरेश भट्ट

दस मई को कैफ़ी आज़मी साहब की नौंवी पुण्यतिथि थी…कैफ़ी साहब की याद को सलाम करते हुए उन्हीं का लिखा फिल्म कागज़ के फूल का ये गाना सुनिए…