बिन मां के बच्चे और सतीश भाई की किताब…खुशदीप

 बचपन में दो साल की उम्र की धुंधली यादों में मुझे , २० वर्षीया उर्मिला दीदी की गोद आती है जो मुझे अपनी कमर पर बिठाये, रामचंदर दद्दा अथवा प्रिम्मी दद्दा के घर, अपने एक हाथ से मेरा मुंह साफ़ करते हुए , घुमाने ले जा रही हैं ! ढाई साल की उम्र में मेरी माँ की म्रत्यु के बाद, शायद वे मेरी सुरक्षा के लिए सबसे अधिक तडपी थीं  !कुछ समय बाद वे भी ससुराल चली गयीं, उन दिनों भी वे अक्सर पिता से, मुझे अपनी ससुराल हज़रत पुर,बदायूं  बुलवा लेतीं थी !माँ  के असामयिक चले जाने के बाद , पिता शायद बहुत टूट गए थे ! वे मुझे कभी नानी के घर (पिपला ) और कभी उर्मिला दीदी के घर( हज़रत पुर, बदायूं ) में, मुझे छोड़ जाते थे ! माँ के न रहने के कारण खाने की बुरी व्यवस्था और पेट के बीमार पिता को उन दिनों संग्रहणी नामक एक लाइलाज बीमारी  हो गयी थी जिसके कारण उनका स्वास्थ्य बहुत ख़राब होता चला गया ! लोगो के लाख कहने ने बावजूद उन्होंने अपने इलाज़ के लिए बरेली जाने से मना कर दिया था ! उन्हें एक चिंता रहती थी कि वे बच नहीं पायेंगे और उन दिनों इस लाइलाज बीमारी के लिए वे अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते थे ! वे अंतिम समय, अपनी चिंता न कर, मेरे  भविष्य के लिए अधिक चिंतित थे ! इस चिंता को वे अपनी दोनों विवाहित पुत्रियों से , व्यक्त किया करते थे !अंततः पिता के न रहने पर, बड़ी दीदी (कुसुम ) मुझे अपने साथ ले आयीं उसके बाद की मेरी परिवरिश बड़ी दीदी ने की, जिन्होंने अपने सात बच्चों के होते हुए भी, मुझे माँ की कमी महसूस नहीं होने दी ! अगर वे न होतीं तो शायद मेरा अस्तित्व ही न होता !अक्सर अकेला होता हूँ तो मन में, अपनी माँ का चित्र बनाने का प्रयत्न अवश्य करता हूँ ! बिलकुल अकेले में याद करता हूँ , जहाँ हम माँ बेटा दो ही हों , बंद कमरे में ….भगवान् से अक्सर कहता हूँ कि मुझ से सब कुछ ले ले… पर माँ का चेहरा केवल एक बार दिखा भर दे…बस एक बार उन्हें प्यार करने का दिल करता है, केवल एक बार …कैसी होती है माँ …??​
​​
ये है सतीश सक्सेना भाई जी के गीत-संग्रह मेरे गीत की भूमिका को लेकर लिखी पोस्ट की आरंभिक पंक्तियां…​

अभी मैं हास्पिटल में भर्ती था, तो सतीश भाई मेरा हाल-चाल पूछने आए…साथ ही मेरे गीत की एक प्रति भी साथ लेते आए…कि मेरा खाली वक्त इसे पढ़ कर कट जाएगा…मैंने सतीश भाई से कहा भी कि आपने पुस्तक की सबसे पहली प्रतियों में से एक मुझे पहले ही भेंट कर रखी है…उसे मैं घर से मंगा लूंगा, इसे किसी और को भेज दें…इस पर सतीश भाई ने अपनी पेटेंट स्माईल के साथ कहा, इसे आप ही जिसे चाहें भेंट कर देना…सतीश भाई, वही आपको बताना चाहता हूं कि इस प्रति को एक ऐसे शख्स को भेंट किया, जिसकी कहानी सटीक वैसी ही है, जैसा कि आपने किताब की भूमिका  में अपने बचपन का ज़िक्र किया है…​

ये शख्स और कोई नहीं, हास्पिटल में डबल रूम में मेरे साथ का ही पेशेंट था…पैंतीस-छत्तीस साल का सुदर्शन युवक…किसी रियल्टी सेक्टर की फर्म में मैनेजर​ के पद पर तैनात..नाम-सुरेश...मंने नोट किया कि सुरेश अक्सर अपने बच्चों को मोबाइल पर हिदायतें देता रहता था…होमवर्क कर लिया…आपस में लड़ना नहीं…छोटे भाई-बहन का ख्याल रखना…जो समझ नहीं आ रहा वो प्रोजेक्ट मैं घर आने के बाद करा दूंगा..मैं हैरान था कि सुरेश को मिलने उसके सब घर वाले बच्चे, माता-पिता, भाई-भाभी समेत दूसरे रिश्तेदार आते थे, लेकिन उसकी पत्नी कभी नहीं आई…मैंने पूछना भी मुनासिब नहीं समझा…

मिलनसार होने के बावजूद सुरेश अपनी बीमारी को लेकर काफ़ी चिंतित दिखता था…दरअसल उसका बुखार नहीं ​जा रहा था..फेफड़ों में कुछ इन्फेक्शन था…डाक्टर रोज़ तरह तरह के महंगे टेस्ट करा रहे थे, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुच पा रहे थे…यहां तक कि बायोप्सी के लिए उसके सेम्पल भेजे गए थे, जिसकी रिपोर्ट दस-पंद्रह दिन में आनी थी…एक डाक्टर ने डरा भी दिया कि कुछ भी हो सकता है…इसने सुरेश की परेशानी को और बढ़ा दिया था…

एक दिन सुरेश रूम से बाहर गैलरी में टहलने के लिए निकला तो उसके बुजुर्ग पिता मुझसे बात करने लगे…उन्हीं से​ पता चला कि सुरेश की पत्नी दो साल पहले दिल की बीमारी की वजह से चल बसी थी..तीन बच्चों को छोड़कर…बड़ा लड़का अब ग्यारह साल का है, बिटिया नौ साल की और छोटा बेटा छह साल का…एक दिन तीनों बच्चे हास्पिटल आए तो मैंने देखा कि बड़ा लड़का इस छोटी सी उम्र में ही काफ़ी गंभीर दिख रहा था…सुरेश के पिता से ही पता चला कि सुरेश की पत्नी भी बहुत ज़हीन, सुशील और घर में सब का ख्याल रखने वाली थी..उसके इलाज के लिए सुरेश अपने प्लाट वगैरहा  बेच कर अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था कि वो पहले ही भगवान के घर चली गई..मैंने सुरेश के पिता से पूछा कि घर पर इन बच्चों की देखरेख कौन कर रहा है…क्योंकि सुरेश के माता-पिता दोनों ही सरकारी नौकरी में हैं…इस पर सुरेश के पिता ने बताया कि बच्चों की अविवाहित बुआ (फिजीकली चैलेंज्ड) ही उनका सारा ख्याल रखती है…​सुरेश के पिता ने ये भी बताया कि इससे दूसरी शादी के लिए कहो तो भड़क जाता है…कहता है कि मैं बच्चों को लेकर कोई रिस्क नहीं ले सकता…
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ये सब जानने के बाद ये सोचकर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा था कि सुरेश की बीमारी को लेकर ऊपर वाला और कोई नाइंसाफ़ी न कर दे…मुझे रह-रह कर उसके बच्चों का ही चेहरा याद आ रहा था…जिस डाक्टर ने सुरेश को डराया था, वो सुरेश के सवालों का हमेशा उल्टा-सीधा ही जवाब देता था…आराम न आने की वजह से सुरेश ने उस डाक्टर को ही बदल दिया…नये डाक्टर ने सुरेश को मनोवैज्ञानिक तरीके से बड़ी अच्छी तरह हैंडल किया…फिर एक दिन उसी डाक्टर ने अच्छी खबर सुनाई कि उसे कोई लाइलाज बीमारी नहीं बल्कि टीबी से मिलता जुलता ही कोई इन्फेक्शन है जो लगातार दवा खाने से से ठीक हो जाएगा…ये सुनकर सुरेश और उसके घर वालों ने राहत की सांस ली और मैंने भी ऊपर वाले का शुक्रिया कहा…

हास्पिटल से मेरी छुट्टी पहले हुई…चलते वक्त मैंने सुरेश को सतीश भाई की मेरे गीत की प्रति दी और भूमिका ज़रूर पढ़ने के लिए कहा…छोटी उम्र में ही मां के बिछुड़ जाने का क्या दर्द का होता है…ये सतीश भाई से बेहतर    और कौन जान सकता है…​
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(एक अच्छी खबर ये कि मेरे हास्पिटल में रहने के दौरान ही मेरे बेटे सृजन का देश के सबसे प्रतिष्ठित कालेज सेंट स्टीफंस, दिल्ली में एडमिशन हो गया…ये आप ​सब की शुभकामनाओं का नतीजा है)

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Bhawna Kukreti
12 years ago

बहुत बहुत बधाई और आपके स्वास्थ्य हेतु शुभकामनाएँ.

बेनामी
बेनामी
12 years ago

चलिए.. उदास शुरुआत के बाद अंत में सब अच्छा-अच्छा पढ़ने को मिला.. सृजन को ढेर सारी शुभकामनाएं…

सञ्जय झा
12 years ago

pita-putra dwa ko badhai….aur subhkamnayen sureshji ko…..

pranam.

सञ्जय झा
12 years ago

apna no. nahi aaya

pranam.

ANULATA RAJ NAIR
12 years ago

हर अच्छी खबर की बधाई….
शुभकामनाएं आपको और सतीश जी को भी.

सादर
अनु

अजित गुप्ता का कोना

परिवार में बच्‍चों को कोई न कोई मां मिल ही जाती है लेकिन अब जब परिवार टूट रहे हैं तब प्रश्‍न चिन्‍ह लग रहे हैं। आप की पोस्‍ट आज आपके स्‍वास्‍थ्‍य की दुरस्‍ती का समाचार भी दे रही है।

Satish Saxena
12 years ago

स्वयं के खराब स्वास्थ्य के बावजूद, सुरेश के प्रति आप शुरू से ही चिंतित थे , भगवान का शुक्र है कि अब वे ठीक हैं !

इंसानियत का यह विशेष गुण आपको विशिष्ट सम्मानित दर्ज़ा देता है खुशदीप भाई !

सृजन का एडमिशन, सेंट स्टीफन में होना, एक सुखद घटना है, निस्संदेह वे मशहूर स्तेफेनियन साबित होंगे ! अगली मुबारक बाद आपको तीन वर्ष बाद मिलेगी !तैयार रहें… 🙂
हम सबकी आशीषें उनके साथ रहेंगी !

विवेक रस्तोगी

आपको बधाई बेटे के एडमीशन के लिये और सुरेश जी की लिए शुभकामनाएँ ।

रचना
12 years ago

आप को दुबारा लिखते देख और प्रति टिपण्णी देख अच्छा लगा
सतीश जी सम्बन्ध की गरिमा को जानते हैं और उनको परिवार में बुलाया जा सकता हैं
किताब बहुत लोग बहुत बेहतर लिख सकते हैं लेकिन छोटा भाई कहने के बाद उसका ख्याल रखना कम ही कर सकते हैं
आशा हैं आप दोनों का स्नेह बना रहेगा , काला टीका लगा ले क्युकी ब्लॉग जगत के सम्बन्ध को नज़र जल्दी लगती हैं 🙂

Archana Chaoji
12 years ago

सुरेश की बेहतरी के लिए शुभकामनाएं..
सॄजन को शुभाशीष…
और आपको बधाई. दो-दो खुशखबर सुनाने की…

ताऊ रामपुरिया

बालक को शुभकामनाएं, अब आप स्वस्थ हैं यह जानकर बडी प्रसन्नता हुई, सतीश जी वाकई प्रेरणास्पद सख्शियत हैं.

रामराम.

देवेन्द्र पाण्डेय

मेरे गीत की भूमिका पढ़कर मैं भी पुस्तक बंद कर कहीं खो गया था। सुरेश जी ने इस पोस्ट को पढ़ा जानकर अच्छा लगा। आपको स्वस्थ/सक्रीय देख कर खुशी हुई। सृजन को शुभकामनायें, बहुत बधाई।

Sushil Bakliwal
12 years ago

बेटे के मनपसंद एडमिशन की बधाई और आपके स्वास्थ्य हेतु शुभकामनाएँ…

shikha varshney
12 years ago

सृजन और आपको ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें.होनहार विरवान के होत चीकने पात.
सतीश जी एक सहृदय और संवेदनशील इंसान हैं.उनकी यही भावनाएं उनके गीतों में उजागर होती हैं.सुरेश जी के परिवार के लिए मंगलकामनाएं.

Khushdeep Sehgal
12 years ago

सुरेश (छोटे भाई की तरह हो, इसलिए जी-वी कुछ नहीं लगा रहा),
तुमने ब्लॉग पढ़ा, जान कर बहुत अच्छा लगा, तुम्हारे जज्बे को मैं सलाम करता हूँ, दुआ करता हूँ, तीनो बच्चे बड़े होकर परिवार का नाम पूरी दुनिया में रोशन करें…

जय हिंद…

Khushdeep Sehgal
12 years ago

मुकेश, अनजाने में लिखा लेकिन सही लिखा, समीरजी सृजन के ताऊजी हैं, इसलिए बधाई लेने का हक भी उनका मुझसे पहले बनता है…

जय हिंद…

Unknown
12 years ago

Meri life ko apane sabd dene ke liye dhanyawad Khushdeep ji………..Suresh

संतोष त्रिवेदी

आपकी तबीयत और सृजन के बारे में जानकर अच्छा लगा.

…सतीशजी,कवि तो अच्छे हैं ही,सहृदय और मिलनसार भी !

अनूप शुक्ल

बहुत दिन बाद आये ! अच्छा लगा। तबियत ठीक रहे।
बच्चे को बधाई और कैरियर में सफ़ल होने की मंगलकामनायें।

मुकेश कुमार सिन्हा

Dinesh sir ke comment se sahmat hoon…:) blog jagat ke do sirf dhurandhar nahi… dil se bhi pata nahi kyon najdik pata hoon:)
badhai Sameer bhaiya… bete ka admission ke liye:)

ब्लॉ.ललित शर्मा

इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

डॉ टी एस दराल

अपने जीवन में मस्त , अक्सर हम जीवन की हकीकतों से दूर रहते हैं . अस्पताल में रहकर ये हकीकतें हमारे सामने आकर अपने होने का अहसास दिलाती हैं . हमें तो यह रोज देखना पड़ता है .
बेटे के एडमिशन के लिए बधाई , सचमुच यह एक उपलब्धि है . आपके शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभकामनायें .
सतीश जी की पुस्तक को सही जगह पहुँचाया .

ब्लॉ.ललित शर्मा

बड़ा कठिन होता है बिन माँ के बच्चों का पलना। माँ बाप दोनों में कोई एक भी न रहे तो बच्चों का जीवन तकलीफ़देह हो जाता है चाहे उन्हे अन्यों से उससे अधिक स्नेह मिलता हो। पर माँ-बाप तो माँ-बाप ही होते हैं। बचपन में मेरे मित्र की माँ गुजर गयी थी और मैं कई दिनों तक सो नहीं पाया।

आप सदा स्वस्थ रहें यही मेरी कामना है और बेटे को ढेर सारा आशीष, खूब तरक्की करे।

दिनेशराय द्विवेदी

बेटे के प्रवेश के लिए ढेर सी बधाइयाँ।

दिनेशराय द्विवेदी

खुशदीप भाई आप और सतीश भाई दोनों ही बेहतरीन इंसान हैं। सुरेश जी से अधिक उस पुस्तक की आवश्यकता उन के बच्चों को है।

Rakesh Kumar
12 years ago

बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ,खुशदीप भाई.

आशा करता हूँ अब आप स्वस्थ हो रहे हैं.

सतीश जी का तो कोई जबाब ही नही.

प्रवीण पाण्डेय

सृजन को बधाई…आपका भी सृजन प्रारम्भ हो गया उसकी बधाई…सतीश जी की सृजनयात्रा से प्रभावित हो पोस्ट लिख चुका ही हूँ…

Arvind Mishra
12 years ago

आपको, सृजन को बहुत बधाई -आपने अपनी बीमारी के क्षणों का भी वैल्यू एडीशन कर दिया……
सतीश जी की काव्य कथा एक प्रेरणा कथा भी है और वे खुद एक प्रेरणा पुरुष!

Rahul Singh
12 years ago

आशंका और चिन्‍ता के बीच आशाओं के द्वीप.
आपके सृजन के लिए हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.

Smart Indian
12 years ago

संसार में कितनी कठिनाइयाँ हैं लेकिन जो उनका सामना करके तपकर सामने आते हैं, वे कभी हारते नहीं। सतीश जी के बारे में भी यह बात सही है। सृजन को बधाई, आपको शुभकामनायें!

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