ये है सतीश सक्सेना भाई जी के गीत-संग्रह मेरे गीत की भूमिका को लेकर लिखी पोस्ट की आरंभिक पंक्तियां…
अभी मैं हास्पिटल में भर्ती था, तो सतीश भाई मेरा हाल-चाल पूछने आए…साथ ही मेरे गीत की एक प्रति भी साथ लेते आए…कि मेरा खाली वक्त इसे पढ़ कर कट जाएगा…मैंने सतीश भाई से कहा भी कि आपने पुस्तक की सबसे पहली प्रतियों में से एक मुझे पहले ही भेंट कर रखी है…उसे मैं घर से मंगा लूंगा, इसे किसी और को भेज दें…इस पर सतीश भाई ने अपनी पेटेंट स्माईल के साथ कहा, इसे आप ही जिसे चाहें भेंट कर देना…सतीश भाई, वही आपको बताना चाहता हूं कि इस प्रति को एक ऐसे शख्स को भेंट किया, जिसकी कहानी सटीक वैसी ही है, जैसा कि आपने किताब की भूमिका में अपने बचपन का ज़िक्र किया है…
ये शख्स और कोई नहीं, हास्पिटल में डबल रूम में मेरे साथ का ही पेशेंट था…पैंतीस-छत्तीस साल का सुदर्शन युवक…किसी रियल्टी सेक्टर की फर्म में मैनेजर के पद पर तैनात..नाम-सुरेश...मंने नोट किया कि सुरेश अक्सर अपने बच्चों को मोबाइल पर हिदायतें देता रहता था…होमवर्क कर लिया…आपस में लड़ना नहीं…छोटे भाई-बहन का ख्याल रखना…जो समझ नहीं आ रहा वो प्रोजेक्ट मैं घर आने के बाद करा दूंगा..मैं हैरान था कि सुरेश को मिलने उसके सब घर वाले बच्चे, माता-पिता, भाई-भाभी समेत दूसरे रिश्तेदार आते थे, लेकिन उसकी पत्नी कभी नहीं आई…मैंने पूछना भी मुनासिब नहीं समझा…
मिलनसार होने के बावजूद सुरेश अपनी बीमारी को लेकर काफ़ी चिंतित दिखता था…दरअसल उसका बुखार नहीं जा रहा था..फेफड़ों में कुछ इन्फेक्शन था…डाक्टर रोज़ तरह तरह के महंगे टेस्ट करा रहे थे, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुच पा रहे थे…यहां तक कि बायोप्सी के लिए उसके सेम्पल भेजे गए थे, जिसकी रिपोर्ट दस-पंद्रह दिन में आनी थी…एक डाक्टर ने डरा भी दिया कि कुछ भी हो सकता है…इसने सुरेश की परेशानी को और बढ़ा दिया था…
एक दिन सुरेश रूम से बाहर गैलरी में टहलने के लिए निकला तो उसके बुजुर्ग पिता मुझसे बात करने लगे…उन्हीं से पता चला कि सुरेश की पत्नी दो साल पहले दिल की बीमारी की वजह से चल बसी थी..तीन बच्चों को छोड़कर…बड़ा लड़का अब ग्यारह साल का है, बिटिया नौ साल की और छोटा बेटा छह साल का…एक दिन तीनों बच्चे हास्पिटल आए तो मैंने देखा कि बड़ा लड़का इस छोटी सी उम्र में ही काफ़ी गंभीर दिख रहा था…सुरेश के पिता से ही पता चला कि सुरेश की पत्नी भी बहुत ज़हीन, सुशील और घर में सब का ख्याल रखने वाली थी..उसके इलाज के लिए सुरेश अपने प्लाट वगैरहा बेच कर अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था कि वो पहले ही भगवान के घर चली गई..मैंने सुरेश के पिता से पूछा कि घर पर इन बच्चों की देखरेख कौन कर रहा है…क्योंकि सुरेश के माता-पिता दोनों ही सरकारी नौकरी में हैं…इस पर सुरेश के पिता ने बताया कि बच्चों की अविवाहित बुआ (फिजीकली चैलेंज्ड) ही उनका सारा ख्याल रखती है…सुरेश के पिता ने ये भी बताया कि इससे दूसरी शादी के लिए कहो तो भड़क जाता है…कहता है कि मैं बच्चों को लेकर कोई रिस्क नहीं ले सकता…
ये सब जानने के बाद ये सोचकर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा था कि सुरेश की बीमारी को लेकर ऊपर वाला और कोई नाइंसाफ़ी न कर दे…मुझे रह-रह कर उसके बच्चों का ही चेहरा याद आ रहा था…जिस डाक्टर ने सुरेश को डराया था, वो सुरेश के सवालों का हमेशा उल्टा-सीधा ही जवाब देता था…आराम न आने की वजह से सुरेश ने उस डाक्टर को ही बदल दिया…नये डाक्टर ने सुरेश को मनोवैज्ञानिक तरीके से बड़ी अच्छी तरह हैंडल किया…फिर एक दिन उसी डाक्टर ने अच्छी खबर सुनाई कि उसे कोई लाइलाज बीमारी नहीं बल्कि टीबी से मिलता जुलता ही कोई इन्फेक्शन है जो लगातार दवा खाने से से ठीक हो जाएगा…ये सुनकर सुरेश और उसके घर वालों ने राहत की सांस ली और मैंने भी ऊपर वाले का शुक्रिया कहा…
हास्पिटल से मेरी छुट्टी पहले हुई…चलते वक्त मैंने सुरेश को सतीश भाई की मेरे गीत की प्रति दी और भूमिका ज़रूर पढ़ने के लिए कहा…छोटी उम्र में ही मां के बिछुड़ जाने का क्या दर्द का होता है…ये सतीश भाई से बेहतर और कौन जान सकता है…
(एक अच्छी खबर ये कि मेरे हास्पिटल में रहने के दौरान ही मेरे बेटे सृजन का देश के सबसे प्रतिष्ठित कालेज सेंट स्टीफंस, दिल्ली में एडमिशन हो गया…ये आप सब की शुभकामनाओं का नतीजा है)
- बिलावल भुट्टो की गीदड़ भभकी लेकिन पाकिस्तान की ‘कांपे’ ‘टांग’ रही हैं - April 26, 2025
- चित्रा त्रिपाठी के शो के नाम पर भिड़े आजतक-ABP - April 25, 2025
- भाईचारे का रिसेप्शन और नफ़रत पर कोटा का सोटा - April 21, 2025
बहुत बहुत बधाई और आपके स्वास्थ्य हेतु शुभकामनाएँ.
चलिए.. उदास शुरुआत के बाद अंत में सब अच्छा-अच्छा पढ़ने को मिला.. सृजन को ढेर सारी शुभकामनाएं…
pita-putra dwa ko badhai….aur subhkamnayen sureshji ko…..
pranam.
apna no. nahi aaya
pranam.
हर अच्छी खबर की बधाई….
शुभकामनाएं आपको और सतीश जी को भी.
सादर
अनु
परिवार में बच्चों को कोई न कोई मां मिल ही जाती है लेकिन अब जब परिवार टूट रहे हैं तब प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। आप की पोस्ट आज आपके स्वास्थ्य की दुरस्ती का समाचार भी दे रही है।
स्वयं के खराब स्वास्थ्य के बावजूद, सुरेश के प्रति आप शुरू से ही चिंतित थे , भगवान का शुक्र है कि अब वे ठीक हैं !
इंसानियत का यह विशेष गुण आपको विशिष्ट सम्मानित दर्ज़ा देता है खुशदीप भाई !
सृजन का एडमिशन, सेंट स्टीफन में होना, एक सुखद घटना है, निस्संदेह वे मशहूर स्तेफेनियन साबित होंगे ! अगली मुबारक बाद आपको तीन वर्ष बाद मिलेगी !तैयार रहें… 🙂
हम सबकी आशीषें उनके साथ रहेंगी !
आपको बधाई बेटे के एडमीशन के लिये और सुरेश जी की लिए शुभकामनाएँ ।
आप को दुबारा लिखते देख और प्रति टिपण्णी देख अच्छा लगा
सतीश जी सम्बन्ध की गरिमा को जानते हैं और उनको परिवार में बुलाया जा सकता हैं
किताब बहुत लोग बहुत बेहतर लिख सकते हैं लेकिन छोटा भाई कहने के बाद उसका ख्याल रखना कम ही कर सकते हैं
आशा हैं आप दोनों का स्नेह बना रहेगा , काला टीका लगा ले क्युकी ब्लॉग जगत के सम्बन्ध को नज़र जल्दी लगती हैं 🙂
सुरेश की बेहतरी के लिए शुभकामनाएं..
सॄजन को शुभाशीष…
और आपको बधाई. दो-दो खुशखबर सुनाने की…
बालक को शुभकामनाएं, अब आप स्वस्थ हैं यह जानकर बडी प्रसन्नता हुई, सतीश जी वाकई प्रेरणास्पद सख्शियत हैं.
रामराम.
मेरे गीत की भूमिका पढ़कर मैं भी पुस्तक बंद कर कहीं खो गया था। सुरेश जी ने इस पोस्ट को पढ़ा जानकर अच्छा लगा। आपको स्वस्थ/सक्रीय देख कर खुशी हुई। सृजन को शुभकामनायें, बहुत बधाई।
बेटे के मनपसंद एडमिशन की बधाई और आपके स्वास्थ्य हेतु शुभकामनाएँ…
सृजन और आपको ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें.होनहार विरवान के होत चीकने पात.
सतीश जी एक सहृदय और संवेदनशील इंसान हैं.उनकी यही भावनाएं उनके गीतों में उजागर होती हैं.सुरेश जी के परिवार के लिए मंगलकामनाएं.
सुरेश (छोटे भाई की तरह हो, इसलिए जी-वी कुछ नहीं लगा रहा),
तुमने ब्लॉग पढ़ा, जान कर बहुत अच्छा लगा, तुम्हारे जज्बे को मैं सलाम करता हूँ, दुआ करता हूँ, तीनो बच्चे बड़े होकर परिवार का नाम पूरी दुनिया में रोशन करें…
जय हिंद…
मुकेश, अनजाने में लिखा लेकिन सही लिखा, समीरजी सृजन के ताऊजी हैं, इसलिए बधाई लेने का हक भी उनका मुझसे पहले बनता है…
जय हिंद…
Meri life ko apane sabd dene ke liye dhanyawad Khushdeep ji………..Suresh
आपकी तबीयत और सृजन के बारे में जानकर अच्छा लगा.
…सतीशजी,कवि तो अच्छे हैं ही,सहृदय और मिलनसार भी !
बहुत दिन बाद आये ! अच्छा लगा। तबियत ठीक रहे।
बच्चे को बधाई और कैरियर में सफ़ल होने की मंगलकामनायें।
Dinesh sir ke comment se sahmat hoon…:) blog jagat ke do sirf dhurandhar nahi… dil se bhi pata nahi kyon najdik pata hoon:)
badhai Sameer bhaiya… bete ka admission ke liye:)
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
अपने जीवन में मस्त , अक्सर हम जीवन की हकीकतों से दूर रहते हैं . अस्पताल में रहकर ये हकीकतें हमारे सामने आकर अपने होने का अहसास दिलाती हैं . हमें तो यह रोज देखना पड़ता है .
बेटे के एडमिशन के लिए बधाई , सचमुच यह एक उपलब्धि है . आपके शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभकामनायें .
सतीश जी की पुस्तक को सही जगह पहुँचाया .
बड़ा कठिन होता है बिन माँ के बच्चों का पलना। माँ बाप दोनों में कोई एक भी न रहे तो बच्चों का जीवन तकलीफ़देह हो जाता है चाहे उन्हे अन्यों से उससे अधिक स्नेह मिलता हो। पर माँ-बाप तो माँ-बाप ही होते हैं। बचपन में मेरे मित्र की माँ गुजर गयी थी और मैं कई दिनों तक सो नहीं पाया।
आप सदा स्वस्थ रहें यही मेरी कामना है और बेटे को ढेर सारा आशीष, खूब तरक्की करे।
बेटे के प्रवेश के लिए ढेर सी बधाइयाँ।
खुशदीप भाई आप और सतीश भाई दोनों ही बेहतरीन इंसान हैं। सुरेश जी से अधिक उस पुस्तक की आवश्यकता उन के बच्चों को है।
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ,खुशदीप भाई.
आशा करता हूँ अब आप स्वस्थ हो रहे हैं.
सतीश जी का तो कोई जबाब ही नही.
सृजन को बधाई…आपका भी सृजन प्रारम्भ हो गया उसकी बधाई…सतीश जी की सृजनयात्रा से प्रभावित हो पोस्ट लिख चुका ही हूँ…
आपको, सृजन को बहुत बधाई -आपने अपनी बीमारी के क्षणों का भी वैल्यू एडीशन कर दिया……
सतीश जी की काव्य कथा एक प्रेरणा कथा भी है और वे खुद एक प्रेरणा पुरुष!
आशंका और चिन्ता के बीच आशाओं के द्वीप.
आपके सृजन के लिए हमारी हार्दिक शुभकामनाएं.
संसार में कितनी कठिनाइयाँ हैं लेकिन जो उनका सामना करके तपकर सामने आते हैं, वे कभी हारते नहीं। सतीश जी के बारे में भी यह बात सही है। सृजन को बधाई, आपको शुभकामनायें!