मुद्दों पर आधारित गंभीर लेखन…हल्का फुल्का लेखन…स्लॉग ओवर…या इनका कॉकटेल…क्या लिखूं…मैं खुद कन्फ्यूजिया गया हूं…और आपकी कुछ टिप्पणियों ने तो मुझे और उलझा दिया
है…कुछ को गंभीर लेखन पसंद आ रहा है.. उनका कहना है कि गंभीर लेखन के साथ स्लॉग ओवर मिसमैच लगता है….बात तो सही है….एकदम से गंभीर ट्रैक से कॉमेडी के ट्रैक पर आना कुछ अटपटा तो लगता है…दूसरी तरफ ऐसी भी टिप्पणियां आई हैं जिसमें कहा गया है कि वो स्लॉग ओवर मिस कर रहे हैं…
अब मैं कौन सा रास्ता निकालूं…काफी दिमाग खपाई के बाद मुझे एक रास्ता नज़र आया है….और ये आइडिया मिला मुझे मेरे बेटे के ट्यूशन शैड्यूल से…वो एक दिन छोड़ कर (आल्टरनेट) एक विषय पढ़ता है…मुझे भी अपनी ब्लॉगिंग के लिए ये आल्टरनेट फॉर्मूला अच्छा लग रहा है…एक दिन मैं लेख लिखूंगा और एक दिन स्लॉग ओवर…मिसमैचिंग का भी खतरा खत्म हो जाएगा और जिसे जो चाहिए, उसे वो भी मिलता रहेगा…इस व्यवस्था पर बाकी जो पंच परमेश्वर (मेरे लिए आप सब परमेश्वर हैं) की राय होगी वो मेरे सिर माथे पर…आज प्रयोग के तौर पर मैं ऐसी चीज लिख रहा हूं जिसमें मुद्दा भी है और गुदगुदाने का मसाला भी…बाकी ये कॉकटेल कैसा रहा, बताइएगा ज़रूर…
स्लॉग ओवर
एक बार हांगकांग में पपी (कुत्ते के बच्चे) बेचने वाली दुकान पर दो ग्राहक पहुंचे…एक भारतीय और एक चीनी नागरिक…संयोग से दोनों को जुड़वा पपी पसंद आ गए….एक पपी को भारतीय ले गया…और एक पपी को चीनी….भारतीय नागरिक पशु कल्याण संस्था से जुड़ा था…लेकिन ये संस्था भी भारत की राष्ट्रीय बीमारी भ्रष्टाचार से पीड़ित थी…महंगे कुत्ते खरीद कर उन पर भारी-भरकम खर्च दिखाकर अनुदान झटक लेने में संस्था के कर्ताधर्ता माहिर थे….पशुओं के कल्याण से हकीकत में उनका कोई लेना-देना नहीं था…
डेढ़-दो साल बाद चीनी नागरिक को भारत में कुछ काम पड़ा…उसने सोचा पपी (जो अब डॉगी बन चुका था) को भी साथ ले चलूं…और मौका मिलेगा तो देखेंगे कि पपी के भाई का क्या हाल है…खैर चीनी नागरिक अपने पपी के साथ भारत आ गया…पशु क्ल्याण संस्था गया तो वहां पपी के भाई का कोई अता-पता नहीं मिला…निराश होकर चीनी नागरिक और पपी वापस जाने लगे…तभी एक नाले से एक कुत्ते के ज़ोर-ज़ोर से भौंकने की आवाज आई…ये आवाज सुनते ही चीन से आए पपी के कान खड़े हो गए…
लहू ने लहू को पहचान लिया…झट से चीन वाला पपी नाले के पास पहुंच गया तो देखा उसका भाई मुंह ऊपर कर लगातार रोने जैसी आवाज़ में भौंक रहा था…अपने भाई की दशा देखकर चीन वाले भाई को बड़ा तरस आया….बिल्कुल मरगिल्ला शरीर…खून जैसे निचुड़ा हुआ (निचुड़े भी क्यों न भारत के सारे कुत्ते-कमीनों का खून धर्मेंद्र भाजी जो पी चुके हैं)…. खैर दोनों भाइयों की नज़रें मिलीं…यादों की बारात के बिछुड़े भाइयों की तरह दोनों की आंखों में आंसू आ गए…
भारत वाले पपी ने चीन वाले भाई को देखकर कहा…तेरे तो बड़े ठाठ लगते हैं…घुपला घुपला शरीर उस पर जमीन तक झूलते बाल…बिल्कुल फाइव स्टार लुक…और बता क्या हाल है तेरे चीन में…चीन वाला पपी बोला…क्या बताऊं यार ये चीन वाले खाने को तो बहुत देते हैं…जितना मर्जी खाओ…लेकिन भौंकने बिल्कुल नहीं देते…खैर मेरी छोड तू अपनी बता, तेरी ये हालत कैसे….भारतीय पपी बोला…यहां बस दिन रात भौंकना ही भौंकना है…खाने को कुछ नहीं मिलता…
(निष्कर्ष– और कुछ हो न हो भारत में लोकतंत्र का इतना फायदा तो है कि हम यहां पान की दुकान, गली-नुक्कड़, चौपाल…. जहां चाहे, जिसे चाहे (राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री, वजीर हो संतरी), किसी की भी शान को अपने कटु वचनों से तार-तार कर सकते हैं…कोई कुछ कहने वाला नहीं है…यही काम आप चीन में करके दिखाओ…फिर पता चलेगा आटे-दाल का भाव)
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एक राजकपूर की फ़िल्म "अराउंड द वर्ल्ड इन एट डॉलर्स"
उन दिनों सरकार इतने ही पैसे विदेश ले जाने देती थी।जिसे FTSकहते थे,और हमे विदेश भ्रमण का शोक सर पर मंडरा रहा था,फिर क्या था टिकट ली और निकल पड़े हांगकांग,पहले तीन दिन गुरुद्वारे में बिताए,और बाकी किसी मित्र के यहाँ। गुरुद्वारे के भाई(प्रबंधक)ने एक बिल्ली पाल रखी थी,जो अक्सर मियाओ करते पास आया करती थी। एक रोज भाऊं को कोलून में कुछ काम पड़ गया, वह सुबह तड़के निकल गया,और जब शाम को लौटा तो अपनी बिल्ली ढूंढने लगा,बिल्ली के ना मिलने पर हमसे पूछा, कही बिल्ली देखी है !हमने कहाँ वह तो सुबह से नही देखी। फिर क्या था, भाऊ ने एक छड़ उठाई और अपनी चीनी पत्नी की धुलाई करने लगा,आखिर पत्नी ने कन्फेंस किया-वह बिल्ली खा गई,(यानी कि पत्नी ने बिल्ली काटकूट कर खां ली) चीन में बिल्ली हो या कुत्ता,चीनी फीसदी मांसाहारी है। गनीमत है वह नरभक्षी नही है,
बेहतर तो यह है कि जो आपको सही लगे, वही करिये…