आज आपको एक सच्चा किस्सा सुनाने जा रहा हूं…ये मेरे एक नज़दीकी रिश्तेदार के घर की बात है…इसे पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि हमारे बुज़ुर्गों में भी कितना गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर होता है…ये किस्सा मुझे जब भी याद आता हे उस बुज़ुर्ग महिला का गरिमामयी चेहरा खुद-ब-खुद मेरे ज़ेहन में आ जाता है, साथ ही मेरे होठों पर मुस्कान भी आ जाती है…उस महिला को दुनिया छोड़े अब कई साल हो गए हैं…उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि…
अब आता हूं किस्से पर…जिस बुज़ुर्ग महिला की बात मैं कर रहा हूं, उनका अच्छा खासा मध्यमवर्गीय परिवार है…उसी महिला के पोते की शादी दिल्ली के एक बहुत ही रईस और ऊंचे घराने में हो गई….लड़की अपने मां-बाप की अकेली लड़की और तीन भाईयों की बहन थी…सभी उस पर जान छिड़कने वाले…लड़की पढ़ी लिखी थी लेकिन बचपन से ही लाडो से पली थी…इसलिए काम वगैरहा की ज़्यादा आदत नहीं थी…
शादी के बाद भी मायके वालों ने खूब तोहफे देना जारी रखा…छह सात महीने बाद घर में आने वाले नन्हे मेहमान की आहट हुई तो सब बड़े खुश…लड़की के मायके वालों की खुशी का तो पूछो नहीं…साथ ही बेटी के स्वास्थ्य की भी फिक्र…अब जब भी मायके से कोई आता…बस यही कहता बेटी अपना ध्यान रखो…आराम करो…अब वो आराम तो पहले से ही इतना करती थी…हर वक्त पलंग पर पसरे रह कर टीवी देखते रहना..ऊपर से मायके वाले हर बार आकर हिदायतें और दे जाते…बाकी घर वालों से भी कह जाते…बिटिया लापरवाह है, इसलिए आप सब ही इस का ध्यान रखिएगा…अब जब भी लड़की की मां आती यही रिकॉर्ड बजा जाती जैसे ससुराल वालों को जब तक कहा नहीं जाएगा वो बहू का ख्याल ही नहीं रखेंगे…
एक बार बेटी की मां आराम आराम की हिदायतें देते हुए अपनी रौ में ही बोले जा रही थी कि दादी अम्मा (बुज़ुर्ग महिला) का सब्र जवाब दे गया…धीरे से बोलीं…आराम तो बिटिया पहले से ही बहुत कर रही है…अब आप कहो तो उसके पलंग पर एक और पलंग डाल देते हैं….
स्लॉग ओवर
गुल्ली का बायोलॉजी का प्रैक्टीकल था…
वायवा (मौखिक इम्तिहान) लेने के लिए बाहर से एक्जामिनर आया हुआ था…
स्पेसीमेन के तौर पर एक पंछी की सिर्फ टांगे दिखाकर एक्ज़ामिनर ने गुल्ली से पूछा…उस पंछी का नाम बताओ जिसकी ये टांगे हैं…
गुल्ली ने बिना वक्त जाया किए कहा… मुझे नहीं पता…
एक्जामिनर…तुम इम्तिहान में फेल हो…अपना नाम बताओ…
गुल्ली… मेरी टांगे देखिए…
एक्जामिनर…क्यों…
गुल्ली…मेरे नाम का पता चल जाएगा…