परसो ममता दी का दिन था…आज प्रणब दा का है…बजट का दिन है…प्रणब दा को फिक्र होगी…फिस्कल घाटे की…जीडीपी की…रुपया आएगा कहां से…रुपया जाएगा कहां…लेकिन आंकड़ों की बाज़ीगरी के इस वार्षिक अनुष्ठान से हमारा-आपका सिर्फ इतना वास्ता होता है कि क्या सस्ता और क्या महंगा…इनकम टैक्स में छूट की लिमिट बढ़ी या नहीं…होम लोन सस्ता होगा या नहीं…लेकिन इस देश में 77 करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिनका प्रणब दा से एक ही सवाल है…रोटी मिलेगी या नहीं…
कल मोटे-मोटे पोथों में आर्थिक सर्वे संसद में पेश किया गया…सर्वे में सुनहरी तस्वीर दिखाई गई कि भारत ने आर्थिक मंदी पर फतेह हासिल कर ली है…अगले दो साल में नौ फीसदी की दर से विकास का घोड़ा फिर सरपट दौड़ने लगेगा…लेकिन आम आदमी को इस घोड़े की सवारी से कोई मतलब नहीं…उसे सीधे खांटी शब्दों में एक ही बात समझ आती है कि दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए भी उसकी जेब में पैसे होंगे या नहीं...
या दाल, चावल, आटे के दाम यूं ही बढ़ते रहे तो कहीं एक वक्त फ़ाके की ही नौबत न आ जाए…ये उसी आम आदमी का दर्द है जिसके दम पर यूपीए सरकार सत्ता में आने की दुहाई देते-देते नहीं थकती थी…चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस नारा लगाती थी…आम आदमी के बढ़ते कदम, हर कदम पर भारत बुलंद…लेकिन आठ महीने में ही आम आदमी की सबसे बुनियादी ज़रूरतों पर ही सरकार लाचार नज़र आने लगी…
महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है…लेकिन राष्ट्रपति के अभिभाषण के ज़रिए सरकार ने गिन-गिन कर वजह बताई कि खाद्यान्न की कीमतें क्यों काबू से बाहर हो गईं…सरकार के मुताबिक…
खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई…
दुनिया में दाल, चावल, खाद्य तेल के दाम तेज़ी से बढ़े…
किसानों को फसल का ज़्यादा समर्थन मूल्य दिया गया…
ग्रामीण इलाकों में लोगों की आय बढ़ी…
ज़ाहिर है कि खाद्यान्न की कीमतें काबू से बाहर हुईं तो लोगों को राहत पहुंचाना भी तो सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है…सौ दिन में तस्वीर बदलने के दावे करने वाली सरकार ने वादा तो पूरा किया…लेकिन नई तस्वीर आम आदमी को और बदहाल करने वाली रही…विरोधी दल महंगाई पर सरकार को घेरती है तो सरकार इसे राजनीति कह कर खारिज कर सकती है…लेकिन अगर सरकार का आर्थिक सर्वे ही सरकार पर उंगली उठाता है तो स्थिति वाकई ही गंभीर है…आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि
सरकार ने सूखे और मानसून फेल होने पर खरीफ़ ( मुख्यतया चावल) की फसल बर्बाद होने का ढिंढोरा पीटा, जिससे जमाखोरियों को बढ़ावा मिला…
सरकार ने स्टॉक में मौजूद खाद्यान्न को नज़रअंदाज किया नतीजन सही तस्वीर प्रचारित न होने से आपदा जैसी स्थिति महसूस की जाने लगी…
सरकार ने रबी (मुख्यता गेहूं) की फसल अच्छी रहने का सही अनुमान नहीं लगाया
आयातित चीनी को बाज़ार में लाने में देर की गई, जिससे अनिश्चितता का माहौल बना और महंगाई को पर लग गए..
ऐसे में स्पष्ट है मानसून फेल होने से स्थिति इतनी नहीं बिगड़ी जितनी कि बाज़ार शक्तियों ने मोटे मुनाफे के चक्कर में बंटाधार किया…सरकार इन शक्तियों पर काबू पाने की जगह अपने ही विरोधाभासों में उलझी रही…कभी कांग्रेस शरद पवार को महंगाई के लिए कटघरे में खड़ा करती तो कभी पवार पूरी कैबिनेट को ही नीतियों और फैसलों के लिए ज़िम्मेदार ठहरा देते…सरकार के इसी ढुलमुल रवैये के बीच आर्थिक सर्वे जो इशारे दे रहा है, वो आम आदमी की और नींद उ़ड़ाने वाले हैं…राशन के खाने, खाद और डीजल पर से सब्सिडी वापसी की तलवार और वार करने के लिए तैयार है…आर्थिक सर्वे में विकास दर में बढ़ोतरी के अनुमान के साथ आने वाला कल बेशक सुनहरा नज़र आए, लेकिन आम आदमी की फिक्र आज की है…और इस आज को सुधारने में सरकार भी हाथ खड़े करती नज़र आती है…और शायद यही सबसे बड़ा संकट है…
स्लॉग ओवर
मक्खन के पुत्र गुल्ली के स्कूल में इंस्पेक्शन के लिए इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल समेत बड़े अधिकारी आए हुए थे…अधिकारी गुल्ली की क्लास में पहुंचे…किस्मत के मारे गुल्ली पर ही इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल ने सवाल दाग दिया…अंग्रेजी में बताओ तुम्हारे क्लास टीचर का क्या नाम है…
गुल्ली थोड़ी देर तक सोचता रहा फिर बोला…ब्युटीफुल रेड अंडरवियर…
ये सुनकर इंस्पेक्टर को गुस्सा आ गया…क्लास टीचर से मुखातिब होते हुए कहा…व्हाट नॉनसेस, यही सिखाया है बच्चों को…
ये सुनकर टीचर ने डरते-डरते जवाब दिया…जनाब सही तो कह रहा है, मेरा नाम है… सुंदर लाल चड्ढा….