न हिंदू, न मुसलमान…वो बस इनसान…खुशदीप

दो-तीन दिन पहले सतीश सक्सेना भाई ने देश की गंगा जमुनी तहज़ीब का हवाला देते हुए पोस्ट लिखी थी…साथ ही कौमी सौहार्द की मुहिम में साथ देने की अपील भी की थी…बहुत सोचा, सतीश भाई का किस तरह साथ दूं…यही सोचते-सोचते एक कहानी ने मेरे दिमाग में जन्म लिया…ज़िंदगी में पहली बार कहानी लिखी है…कोई कमी-पेशी हो तो अनाड़ी समझ कर माफ़ कर दीजिएगा…और अगर मुझे कहीं दुरूस्त कराने की ज़रूरत हो तो ज़रूर कीजिएगा…




कथा परिचय


मुखर्जी साहब बैंक के बड़े मैनेजर…बरसों से रहीम मियां मुखर्जी साहब के घर पर ड्राइवरी करते आ रहे थे…मुखर्जी साहब का बेटा सुदीप्तो तो अपने रहीम काका से इतना घुला-मिला था कि स्कूल जाने से पहले तैयार होने में मदद लेने से लेकर दूध भी उन्हीं के हाथों पीता था…सुदीप्तो ग्यारह साल का ज़रूर हो गया था लेकिन होश संभालने के बाद से ही रहीम काका को हर दम आंखों के सामने ही देखता आया था…उनके साथ खेलता…रोज़ नई कहानियां सुनता…या यूँ कहें कि रहीम काका को देखे बिना उसे चैन ही नहीं आता था…रहीम दिन भर मुखर्जी साहब के घर रहते बस रात को ही अपने घर सोने जाते…ये भी अच्छा था कि रहीम जिस अकबर टोला नाम के मोहल्ले में रहते थे, वो मुखर्जी साहब की कॉलोनी कालीबाड़ी के साथ ही सटा हुआ था…पैदल का ही रास्ता था…सुदीप्तो के एक-दो बार जिद पकड़ने पर कि रहीम काका का घर देखना है, रहीम उसे मोहल्ले में लेकर जाकर बाहर से ही अपना घर दिखा लाए थे…घर के अंदर की बदहाली को जानते हुए रहीम की सुदीप्तो को घर ले जाने की हिम्मत नहीं हुई थी…


दृश्य 1


मुखर्जी साहब को क्लोजिंग के चलते आज बैंक जल्दी निकलना है…रहीम गाड़ी पर कपड़ा मार रहे हैं…मुखर्जी साहब तेज़ी से निकलते हैं और रहीम से कहते हैं…रहीम मियां, शहर की फिज़ा बहुत ख़राब चल रही है…ये मंदिर-मस्जिद के विवाद में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता…तुम ऐसा करो, ये दो हज़ार रुपये रख लो और दस-पंद्रह दिन की छुट्टी लेकर घर पर ही रहो…मैं नहीं चाहता कि तुम किसी परेशानी में पड़ो…मेरी फिक्र मत करो मैं आफिस के ड्राइवर रमेश को बुला लूँगा या खुद ही गाड़ी ड्राइव करके काम चला लूंगा…जब माहौल ठंडा हो जाएगा, तब ड्यूटी पर आ जाना…रहीम के मुंह से इतना ही निकल सका…जी साहब…रहीम की आंखों में सुदीप्तो का ही चेहरा घूम रहा था…दस-पंद्रह दिन सुदीप्तो क्या करेगा…और खुद उनका दिन भी कैसे बीतेगा…ये तो अच्छा है कि सुदीप्तो दो दिन के लिए नानी के घर गया हुआ है…नहीं तो रहीम का मुखर्जी साहब के घर से जाना ही मुश्किल होता…रहीम भारी मन से अपने घर की ओर चल दिए…




दृश्य 2


दो दिन हो गए रहीम को ड्यूटी पर नहीं गए हुए…खाली दिन भर घर बैठना मुश्किल हो गया…रहीम गली के नुक्कड़ पर जान मोहम्मद की चाय की दुकान पर जाकर बैठ गए…वहां मज़हब को खतरे की दुहाई देते हुए मोहल्ले का छुटभैया नेता चार पांच लोगों को बैठा देख ज़ोरदार तकरीर झाड़ रहा था…हाथ पर हाथ रखे बैठे रखने से कुछ नहीं होगा…अपनी हिफ़ाजत का इंतज़ाम खुद ही करना होगा…ये पुलिस भी उन्हीं की है और कलेक्टर भी…कर्फ़्यू लगा तो हमारे मोहल्ले में ही सबसे ज़्यादा सख्ती बरती जाएगी…बॉर्डर (अकबर टोला और कालीबाड़ी को जोड़ने वाला नाका) के उस पार उन्हें सारी छूट रहेगी और हमारे बच्चे दूध को भी तरस जाएंगे...इन बातों को सुन रहीम के मुंह से इतना ही निकला…या मेरे मौला, रहम कर…तब तक जान मोहम्मद ने चाय का गिलास रहीम के आगे कर दिया…साथ ही बोला…क्यों बड़े मियां…ड्यूटी पर नहीं जा रहे हो ?…बड़ी बातें करते थे अपने साहब की नेकदिली की, देख लिया सब धरी रह गई…आखिर है तो वो हिन्दू ही न…कर दी न छुट्टी ड्यूटी से…रहीम ने सोचा…अब इस अक्ल के अंधे को क्या जवाब दूं…दिन भर दुकान पर फिरकापरस्ती की बातें सुन-सुन कर इसकी आंखों पर भी पट्टी पड़ गई है..




दृश्य 3


मुखर्जी साहब के घर पूजा हो रही है…सुदीप्तो का आज जन्मदिन जो है…पारंपरिक धोती-कुर्ते में सजा सुदीप्तो पूजा में बैठा तो था लेकिन उसकी आंखें चारों तरफ़ अपने रहीम काका को ही ढूंढ रही थीं…नानी के घर से आने के बाद पापा से कई बार रहीम काका के बारे में पूछ भी चुका था…हर बार यही जवाब मिलता…रहीम काका की तबीयत ठीक नहीं है…दो-चार दिन में ठीक होने के बाद आ जाएंगे...लेकिन जन्मदिन पर रह-रह कर सुदीप्तो को रहीम काका की याद ही आ रही थी…सोच रहा था, शाम को दोस्तों के लिए घर को कौन सजाएगा…गुब्बारे कौन लगाएगा…पापा के जाने के बाद सुदीप्तो घर के बरामदे में आकर बैठ गया…फिर उसे न जाने क्या सूझा…मम्मी को आवाज दी…मम्मा मैं अपने दोस्त भुवन के घर साथ में जा रहा हूं…अभी आ जाऊंगा…ये कहकर सुदीप्तो घर से निकल पड़ा…उसके कदम खुद-ब-खुद अकबर टोला में रहीम काका के घर की ओर बढ़ चले…देखकर आता हूं रहीम काका की क्या हालत है…कालीबाडी के मोड़ पर पहुंच कर सुदीप्तो को समझ नहीं आया कि इतनी पुलिस क्यों खड़ी है यहां…मोड़ पर आते जाते लोगों को हड़का रहे पुलिसवालों की नजर सुदीप्तो पर नहीं पड़ी…




दृश्य 4


नन्हा सुदीप्तो अकबर टोला में जान मोहम्मद की चाय की दुकान तक पहुंच गया…आते जाते लोग सुदीप्तो के धोती-कुर्ते और माथे पर तिलक को अजीब निगाहों से देख रहे थे…जैसे कोई दूसरी दुनिया का बच्चा मोहल्ले में आ गया हो…रहीम जान मोहम्मद की दुकान पर ही थे लेकिन उनका ध्यान अखबार पढ़ने पर था…उनका अखबार से ध्यान छुटभैये नेता की ये आवाज़ सुनकर ही हटा…देखो, बार्डर पार वालों की चालाकी…अब बच्चों को भी हमारी टोह लेने के लिए भेजने लगे हैं…आखिर है तो सपोला ही, मैं तो कह रहा हूं इसे ही ऐसा सबक सिखाओ कि वो हमेशा के लिए याद करे...ये सुनकर रहीम देखने की कोशिश करने लगे कि अचानक ये किस बच्चे की बात करने लगे…रहीम की नज़र सुदीप्तो पर पड़ी, उनके मुंह से निकल पड़ा…सुदीप्तो…ये यहां कैसे आ गया…ओ मेरे परवरदिगार हिफ़ाज़त कर मेरे बच्चे की…न जाने कहां से रहीम के बूढ़े शरीर में बिजली जैसी तेज़ी आ गई…इससे पहले कि छुटभैया नेता अपने दूसरे प्यादों के साथ सुदीप्तो के पास पहुंचता कि रहीम ने झट से जाकर सुदीप्तो को गले से चिपका लिया…मेरे बच्चे तू यहां कहां से आ गया…तब तक छुटभैया नेता भी वहां आ गया…और गरज कर बोला…रहीम मियां आप पीछे हट जाओ…इसे हमारे हवाले करो…हम भी तो जाने कि ये किस मकसद से यहां आया है…दो चार पड़ेंगे तो अभी तोते की तरह बोलने लगेगा…ये सुनकर रहीम ने सुदीप्तो को और ज़ोर से अपने से चिपका लिया…और पूरी ताकत लगा कर बोले…अरे अक्ल के मारों….शर्म करो…एक छोटे से बच्चे के लिए ऐसी बातें करते हो…ज़हर भर चुका है तुम्हारे दिमाग में…ये मेरा ज़िगर का टुकड़ा है…इसे कोई हाथ तो लगा कर देखे…मेरी लाश से गुज़र कर ही इस बच्चे को छू सकोगे…सुदीप्तो ये देखकर थर्रथर्र कांप रहा था और खुद को रहीम काका के पीछे छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगा…रहीम मियां का ये रूप देखकर छुटभैया नेता पैर पटकता और बड़बड़ाता हुआ जान मोहम्मद की दुकान की ओर लौट गया…और किसी को क्या इल्ज़ाम दे, जब तक ऐसे गद्दार हैं कौम का कुछ नहीं हो सकता…रहीम तेज़ी से सुदीप्तो को घर छोड़ने के लिए कालीबाड़ी की ओर बढ़ चले…




दृश्य 5


रहीम नाके पर सुदीप्तो को लेकर पहुंच गए…एक पुलिस वाले ने रौबदार आवाज़ में पूछा…क्यों मियां जी कहां चल दिए…और ये हिंदू बच्चे को लेकर कहां से आ रहे हो…रहीम इतना ही बोल सके…दारोगा जी, ये मेरे साहब का बच्चा है, गलती से इधर आ गया…इसे घर छोड़ने जा रहा हूं…पुलिसवाला–मियाँ जी, माहौल बड़ा खराब है…बच्चे को छोड़कर जल्दी वापस आओ…रहीम–साहब बस मैं झट से आया….रहीम नाके से निकल कर दो गलियों के बाद मंदिर वाले मोड़ पर पहुंचे ही थे कि अचानक शोर उठा…देखो…देखो…ये दढ़ियल हमारे बच्चे को लेकर कहां जा रहा है…मारो… मारो…रहीम इससे पहले कि कुछ बोल पाते कि शोर मचाने वालों में से एक ने सुदीप्तो को रहीम से छीन कर अलग कर लिया…रहीम रोकते ही रह गए और सुदीप्तो… काका, काका चिल्लाते ही रह गया…चारों तरफ़ से रहीम के बूढ़े शरीर पर लात-घूंसों की बरसात होने लगी…बूढा शरीर कब तक मार खाता…निढाल होकर वहीं सड़क पर गिर गया…अपनी बाजुओं की ताकत दिखाने वाले सुदीप्तो को वहां से लेकर चले गए…


सड़क पर गठरी की शक्ल में एक इनसान पड़ा था..ये देखने वाला भी कोई नहीं था कि सांसें चल रही हैं या थम गई…अब इनसान के साथ तो यही होना था…उसे यही सज़ा मिलनी चाहिए थी…आखिर पत्थरदिल दौड़ते भागते बुतों की दुनिया में एक इनसान का क्या काम…