नोटवा से आई, बोटवा से आई, समाजवाद बबुआ अब हार्वर्ड से आई…खुशदीप


समाजवाद बबुआ
धीरे धीरे आई
,
समाजवाद उनके
धीरे धीरे आई
,
हाथी से आई,
घोड़ा से आई,
अँगरेजी बाजा
बजाई
,
नोटवा से आई,
बोटवा से आई…
गोरख पाण्डेय ने 1978 में ये कविता लिखी थी तो मुलायम सिंह
यादव 
39 साल के थे. तब तक वो उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी बन
गए थे. विधायक तो खैर वो
1967 में ही बन गए
थे. खुद को राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह का शिष्य बताने वाले मुलायम ने खुद
की समाजवादी पार्टी बेशक
1992 में बनाई लेकिन
समाजवाद के लिए उनका झुकाव युवावस्था से ही रहा.
आज 1978 नहीं 2016 है. 38 साल का अरसा बीत
चुका है. मुलायम
77 साल के हो चले
हैं और उनके बेटे और यूपी के सीएम अखिलेश यादव अब
43 साल के हैं. मुलायम अपने कुनबे में कलह को लेकर जिस तरह की
चुनौती का सामना आज कर रहे हैं
, वैसा उन्होंने
जिंदगी में पहले कभी नहीं किया. कभी पहलवानी के शौकीन रहे  मुलायम राजनीति के अखाड़े  में विरोधियों को चित करने के लिए एक से बढ़ कर
एक दांव जानते हैं
, लेकिन अपने कुनबे
के घमासान  को शांत करना उनके लिए भी टेढ़ी
खीर साबित हो रहा है. एक खेमे में छोटे भाई शिवपाल यादव हैं. तो दूसरे खेमे में
पुत्र अखिलेश हैं. शिवपाल अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं
, उन्हें आउटसाइडर्स
का समर्थन बताया जा रहा है, वहीं अखिलेश के पीछे मुलायम के चचेरे भाई
प्रोफेसर राम गोपाल यादव खड़े बताए जा रहे हैं. परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े
रामगोपाल को समाजवादी का थिंकटैंक माना जाता रहा है.
शिवपाल ने दोबारा
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभालते ही अखिलेश के समर्थक युवा नेताओं को
किनारे लगाना शुरू कर दिया है
, वहीं नेताजी (मुलायम
सिंह) ने खुद
आउटसाइडर
अमर सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना
दिया. ये वो फैसले हैं जो शायद ही अखिलेश खेमे को रास आएं. अमर सिंह से पार्टी के
सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खान की खुन्नस किसी से छुपी नहीं है.
अब ऐसे में सवाल
उठता है कि जब कुनबे में ही इतनी घमासान है तो समाजवादी पार्टी चुनाव के लिए कैसे
खुद को तैयार करेगी
? वो भी तब जब यूपी
में चुनाव के लिए थोड़ा ही वक्त बचा है. मुलायम को शिवपाल के सांगठनिक कौशल पर
भरोसा है
, वहीं राजनीति में दूसरों
को साधने के लिए उन्हें अमर सिंह से बेहतर कोई नजर नहीं आता. मुलायम की कोशिश
अखिलेश को चेहरा बनाकर अपने पुराने भरोसेमंद मोहरों के जरिए ही यूपी चुनाव की
वैतरणी पार करने की है.
वहीं, अखिलेश अब अपने हिसाब से यूपी चुनाव में जाना
चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने यूपी चुनाव के लिए पार्टी टिकट बांटने का अधिकार अपने
पास रखा है. अखिलेश चुनाव में अपनी ऐसी छवि के साथ जाना चाहते हैं कि युवा पीढ़ी
की जरुरतों को उनसे बेहतर कोई नहीं समझता. साथ ही विकास के लिए जो ऊर्जा चाहिए
वैसी और किसी नेता के पास नहीं है. अखिलेश ने युवाओं  के लिए पहले अपने झोले से लैपटॉप निकाले
,
इस बार वो स्मार्टफोन्स देने का वादा कर रहे
हैं. अखिलेश की पूरी कोशिश है कि उन्हें लेकर यही संदेश जनता में जाए कि वो बाहुबल
की राजनीति को पसंद नहीं करते. यूपी के युवाओं को ऐसा लगे कि अखिलेश नए जमाने के
साथ कदमताल करने में पीछे नहीं है.
एनवायर्नमेंट
इंजीनियरिंग के ग्रेजुएट अखिलेश अब पिता की राजनीतिक छत्रछाया से बाहर निकल अपनी
छवि को खुद गढ़ना चाहते है. इसके लिए उन्होंने देश में किसी पर नहीं बल्कि
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्टीव जार्डिंग पर भरोसा किया है. जार्डिंग हार्वर्ड
केनेडी स्कूल में पब्लिक पॉलिसी (जन नीति) पढ़ाते हैं.
1980 से ही वे कैम्पेनर, मैनेजर, राजनीतिक सलाहकार
और रणनीतिकार की भूमिकाएं निभाते आ रहे हैं. उनकी सेवाएं लेने वाले दिग्गजों में
अमेरिकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन
, अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर और स्पेन के पीएम
मारिआनो रेजोय शामिल है.  


अखिलेश सरकार ने
लगातार दूसरी बार सत्ता में आने के लिए जार्डिंग को पार्टी के चुनाव अभियान की
जिम्मेदारी सौंपी है. जार्डिंग समाजवादी पार्टी को कई मुद्दों पर पहले ही सलाह दे
रहे थे. लेकिन अब वो स्ट्रैटेजिस्ट के तौर पर आधिकारिक रुप से जुड़ गए हैं.
जार्डिंग फिलहाल
अखिलेश सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं के पब्लिसिटी कैम्पेन को नए सिरे से धार
देने में लगे हैं. उन्हीं की सलाह पर समाजवादी पेंशन योजना की ब्रैंड एंबेसडर के
तौर पर एक्ट्रेस विद्या बालन को जोड़ा गया है. जार्डिंग चुनाव प्रचार के माइक्रोलेवल
प्रबंधन को तय करने के साथ और भी बहुत कुछ कर रहे हैं. जार्डिंग की टीम देहाती
क्षेत्रों में रह कर ग्राउंड रिपोर्ट सीधे अखिलेश को भेज रही हैं. इन रिपोर्ट के
आधार पर जिला अधिकारी
24 घंटे में एक्शन
ले रहे हैं.
जार्डिंग का ये
भी मानना है कि यूपी क्षेत्र और आबादी  के
हिसाब से इतना बड़ा है  कि पूरे प्रदेश के
लिए पार्टी का एक ही चुनाव घोषणापत्र काम नहीं कर सकता. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के
गन्ना किसानों की दिक्कतें अलग हैं और बुदेलखंड के किसानों की अलग. इसलिए हर
क्षेत्र के हिसाब से रणनीति बनाई जानी चाहिए. जार्डिंग पार्टी के उम्मीदवारों को
भी ट्रेंड करेंगे कि वोटरों से कैसे संवाद करना है और क्षेत्र के मुद्दों को कैसे
हैंडल करना है.
अब  देखना दिलचस्प होगा  कि समाजवादी पार्टी में कौन सा समाजवाद दिशा
देगा. वो समाजवाद जिसकी मुलायम दशकों से नुमाइंदगी करते रहे हैं. या हार्वर्ड से
इम्पोर्ट किया गया स्टीव जार्डिंग का समाजवाद
, जिस पर अखिलेश दांव खेल रहे हैं.
वाकई समाजवाद
बबुआ धीरे धीरे आई…

(This article of mine is already published in Ichowk.in)