सतीश सक्सेना भाई जी ने
दुनिया को दिखा दिया है कि इनसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता…रिटायरमेंट के बाद
जब बूट उतार कर घर में आराम करने की बातें कही जाती हैं…वहीं अपने सतीश भाई ने
जॉगिंग शूज कस कर दौड़ना शुरू किया…ऐसा दौड़े, ऐसा दौड़े कि देश की सभी जानी-मानी मैराथन दौड़ों
में शानदार मौजूदगी दर्ज करा डाली…ये सिलसिला बदस्तूर जारी है…दुआ यही है कि
इस क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियां सतीश भाई के नाम के साथ आने वाले दशकों में
जुड़ें…
दुनिया को दिखा दिया है कि इनसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता…रिटायरमेंट के बाद
जब बूट उतार कर घर में आराम करने की बातें कही जाती हैं…वहीं अपने सतीश भाई ने
जॉगिंग शूज कस कर दौड़ना शुरू किया…ऐसा दौड़े, ऐसा दौड़े कि देश की सभी जानी-मानी मैराथन दौड़ों
में शानदार मौजूदगी दर्ज करा डाली…ये सिलसिला बदस्तूर जारी है…दुआ यही है कि
इस क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियां सतीश भाई के नाम के साथ आने वाले दशकों में
जुड़ें…
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सतीश सक्सेना भाई जी की फेसबुक वॉल से साभार |
सतीश भाई खुद तो दौड़
ही रहे हैं, औरों
को भी इसके लिए लगातार प्रेरित कर रहे हैं…मैं पहले नोएडा में रहता था…सतीश
भाई का सेक्टर भी मेरे सेक्टर के पास ही था…अब उनका जज़्बा देखिए…मुझे
फिट करने के इरादे से पहले वे सुबह मेरे घर तक आते…फिर मुझे साथ लेकर ब्रिस्क
वॉक के लिए पार्क ले जाते…सतीश भाई अच्छी तरह जानते थे कि मेरे जैसा जीव जो रात
देर तक जागता है, उसके लिए खुद सुबह उठना आसान काम नहीं
था…खैर सतीश भाई ने मेरा सुबह पार्क जाने का सिलसिला शुरू करा दिया…लेकिन फिर
मैं नोएडा से घर बदल कर दिल्ली आ गया…अब सतीश भाई यहां तो सुबह आ नहीं सकते
थे…इसलिए सुबह सैर पर जाने की फिर छुट्टी हो गई…लेकिन फेसबुक पर ये ज़रूर
पढ़ता रहता था कि सतीश भाई के कहने पर कितने ही लोगों ने सुबह दौड़ को दिनचर्या का
हिस्सा बना लिया है…कुछ ने जिम का रास्ता पकड़ लिया…ये देख खुद की सुस्ती पर
कोफ्त होती थी…फिर एक दिन झटके में सुबह उठ कर पार्क पहुंच गया…अब बीते दो
महीने से अभ्यास में हो गया है पार्क में 45 मिनट तक ब्रिस्क वॉक करना…इसका असर
भी महसूस कर रहा हूं…
ही रहे हैं, औरों
को भी इसके लिए लगातार प्रेरित कर रहे हैं…मैं पहले नोएडा में रहता था…सतीश
भाई का सेक्टर भी मेरे सेक्टर के पास ही था…अब उनका जज़्बा देखिए…मुझे
फिट करने के इरादे से पहले वे सुबह मेरे घर तक आते…फिर मुझे साथ लेकर ब्रिस्क
वॉक के लिए पार्क ले जाते…सतीश भाई अच्छी तरह जानते थे कि मेरे जैसा जीव जो रात
देर तक जागता है, उसके लिए खुद सुबह उठना आसान काम नहीं
था…खैर सतीश भाई ने मेरा सुबह पार्क जाने का सिलसिला शुरू करा दिया…लेकिन फिर
मैं नोएडा से घर बदल कर दिल्ली आ गया…अब सतीश भाई यहां तो सुबह आ नहीं सकते
थे…इसलिए सुबह सैर पर जाने की फिर छुट्टी हो गई…लेकिन फेसबुक पर ये ज़रूर
पढ़ता रहता था कि सतीश भाई के कहने पर कितने ही लोगों ने सुबह दौड़ को दिनचर्या का
हिस्सा बना लिया है…कुछ ने जिम का रास्ता पकड़ लिया…ये देख खुद की सुस्ती पर
कोफ्त होती थी…फिर एक दिन झटके में सुबह उठ कर पार्क पहुंच गया…अब बीते दो
महीने से अभ्यास में हो गया है पार्क में 45 मिनट तक ब्रिस्क वॉक करना…इसका असर
भी महसूस कर रहा हूं…
खैर ये तो रही अपनी
बात…अब पार्क में क्या क्या होता है, वहां क्या क्या ऑब्सर्व किया वो बयां करने
के लिए अपने आप में ही मज़ेदार किस्सा है…लगभग हर पॉर्क में ही एक वॉकिंग ट्रैक
होता है…अब इस वॉकिंग ट्रैक पर ब्रिस्क वॉक करना या दौड़ना अपने आप में ही कला
है…इसके लिए हर शख्स की अपनी स्पीड होती है, अपने नियम कायदे होते हैं…कुछ
क्लॉक वाइस चलते हैं तो कुछ एंटी क्लॉक वाइस…अब ऐसे में कदम कदम पर क्लोज
एनकाउंटर होना तो लाजमी है…
बात…अब पार्क में क्या क्या होता है, वहां क्या क्या ऑब्सर्व किया वो बयां करने
के लिए अपने आप में ही मज़ेदार किस्सा है…लगभग हर पॉर्क में ही एक वॉकिंग ट्रैक
होता है…अब इस वॉकिंग ट्रैक पर ब्रिस्क वॉक करना या दौड़ना अपने आप में ही कला
है…इसके लिए हर शख्स की अपनी स्पीड होती है, अपने नियम कायदे होते हैं…कुछ
क्लॉक वाइस चलते हैं तो कुछ एंटी क्लॉक वाइस…अब ऐसे में कदम कदम पर क्लोज
एनकाउंटर होना तो लाजमी है…
पार्कों में आपने ये भी
नोटिस किया होगा कि युवा पीढ़ी कम ही दिखाई देती है…शायद इसलिए कि उनकी पहली
पसंद जिम ही होते होंगे…पार्कों में अधेड़ों और बुजुर्गों का ही बोलबाला दिखता
है…जिस पार्क में मैं जाता हूं, वहां सुबह एक कोने में पांच छह बेंचों पर
बुजुर्ग पुरुषों का जमावड़ा रहता है…रोज उनके वैसे ही हंसी ठहाके गूंजते रहते
हैं जैसे कि स्कूल-कॉलेजों के छात्र साथ बैठने पर होता है…हमउम्र होने की वजह से
इनमें ज़रूर कुछ नॉटी बातें भी होती होंगी…अच्छा इनका एक रूटीन और भी है…इनके
लिए वहीं बेंच पर हर दिन केतली में चाय आती है…प्लास्टिक के कपों में इनका चाय
पीना तो ठीक है लेकिन ये साथ में ब्रेड पकौड़े भी साफ करते दिखते हैं…अब ये इनकी
सेहत के लिए कितना बेहतर है यही बता सकते हैं….
नोटिस किया होगा कि युवा पीढ़ी कम ही दिखाई देती है…शायद इसलिए कि उनकी पहली
पसंद जिम ही होते होंगे…पार्कों में अधेड़ों और बुजुर्गों का ही बोलबाला दिखता
है…जिस पार्क में मैं जाता हूं, वहां सुबह एक कोने में पांच छह बेंचों पर
बुजुर्ग पुरुषों का जमावड़ा रहता है…रोज उनके वैसे ही हंसी ठहाके गूंजते रहते
हैं जैसे कि स्कूल-कॉलेजों के छात्र साथ बैठने पर होता है…हमउम्र होने की वजह से
इनमें ज़रूर कुछ नॉटी बातें भी होती होंगी…अच्छा इनका एक रूटीन और भी है…इनके
लिए वहीं बेंच पर हर दिन केतली में चाय आती है…प्लास्टिक के कपों में इनका चाय
पीना तो ठीक है लेकिन ये साथ में ब्रेड पकौड़े भी साफ करते दिखते हैं…अब ये इनकी
सेहत के लिए कितना बेहतर है यही बता सकते हैं….
पार्क के एक और कोने
में इसी तरह बेंचों पर महिलाओं का भी डेरा होता है…ये कभी तालियां बजातीं राम
राम करती दिखती हैं तो कभी घर-पड़ोस की बातों में मशगूल रहती हैं…
में इसी तरह बेंचों पर महिलाओं का भी डेरा होता है…ये कभी तालियां बजातीं राम
राम करती दिखती हैं तो कभी घर-पड़ोस की बातों में मशगूल रहती हैं…
हां, कुछ महिलाएं और
पुरुष खानापूर्ति के लिए पार्क के चक्कर भी लगाते हैं…लेकिन इनका भी उद्देश्य
सैर से ज्यादा बतरस होता है…अब ये दो, तीन, चार के झुंड में वॉकिंग ट्रैक को
पूरा घेर कर अपनी ही चाल से चलते हैं…अब पीछे वाला कितने ही पैर पटकता रहे…एक
दिन तो गजब हुआ, मैं अपनी चाल से चल रहा था, ऐसे ही सामने से दो बुजुर्ग बाते करते
हुए आते दिखे…अब मैं भी अपनी चाल चलता रहा, रूका नहीं…ऐसे में बुजुर्ग को
रुकना पड़ गया…अब उलटे वो मुझ पर ही ताव खाने लगे कि मैं साइड में होकर नहीं जा
सकता था क्या…अब मैंने उन्हें बताया कि मैंने जानबूझ कर ऐसा किया….सिर्फ इसलिए
कि वो हर दिन जो करते आ रहे थे, वो कैसे गलत था…उस दिन के बाद अब ये जरूर हो गया
कि वो बुजुर्ग बातें करते रहने के बावजूद मुझे देखकर रास्ता जरूर छोड़ देते हैं…
पुरुष खानापूर्ति के लिए पार्क के चक्कर भी लगाते हैं…लेकिन इनका भी उद्देश्य
सैर से ज्यादा बतरस होता है…अब ये दो, तीन, चार के झुंड में वॉकिंग ट्रैक को
पूरा घेर कर अपनी ही चाल से चलते हैं…अब पीछे वाला कितने ही पैर पटकता रहे…एक
दिन तो गजब हुआ, मैं अपनी चाल से चल रहा था, ऐसे ही सामने से दो बुजुर्ग बाते करते
हुए आते दिखे…अब मैं भी अपनी चाल चलता रहा, रूका नहीं…ऐसे में बुजुर्ग को
रुकना पड़ गया…अब उलटे वो मुझ पर ही ताव खाने लगे कि मैं साइड में होकर नहीं जा
सकता था क्या…अब मैंने उन्हें बताया कि मैंने जानबूझ कर ऐसा किया….सिर्फ इसलिए
कि वो हर दिन जो करते आ रहे थे, वो कैसे गलत था…उस दिन के बाद अब ये जरूर हो गया
कि वो बुजुर्ग बातें करते रहने के बावजूद मुझे देखकर रास्ता जरूर छोड़ देते हैं…
अब इसी पार्क में कुछ
लोग कुत्ते लेकर भी घुमाने लाते हैं…अब ये बात दूसरी है कुछ भीमकाय कुत्ते अपने
मालिकों को ही कई बार घसीटते साथ ले जाते हैं…कुछ लोग इतने निश्चिंत होते हैं कि
कुत्तों का पट्टा भी छोड़ देते हैं…अब भले ही उन्हें देखकर दूसरे लोगों के प्राण
सूखते रहें…ये तय करना भी कुत्तों का ही काम होता है कि उन्हें वॉकिंग ट्रैक पर
शिट करनी है या पार्क की घास पर…अब ये कोई विदेश तो है नहीं जहां कुत्ता मालिकों
को हाथ में थैली चढ़ाकर घूमना पड़ता है…जहां कुत्ता शिट करे वहीं हाथों हाथों
उसे उठाना भी पड़ता है…स्वच्छ भारत की स्वच्छ तस्वीर में ऐसा होना अभी बहुत दूर
की कौड़ी लगती है…
लोग कुत्ते लेकर भी घुमाने लाते हैं…अब ये बात दूसरी है कुछ भीमकाय कुत्ते अपने
मालिकों को ही कई बार घसीटते साथ ले जाते हैं…कुछ लोग इतने निश्चिंत होते हैं कि
कुत्तों का पट्टा भी छोड़ देते हैं…अब भले ही उन्हें देखकर दूसरे लोगों के प्राण
सूखते रहें…ये तय करना भी कुत्तों का ही काम होता है कि उन्हें वॉकिंग ट्रैक पर
शिट करनी है या पार्क की घास पर…अब ये कोई विदेश तो है नहीं जहां कुत्ता मालिकों
को हाथ में थैली चढ़ाकर घूमना पड़ता है…जहां कुत्ता शिट करे वहीं हाथों हाथों
उसे उठाना भी पड़ता है…स्वच्छ भारत की स्वच्छ तस्वीर में ऐसा होना अभी बहुत दूर
की कौड़ी लगती है…
ये सब चल ही रहा होता
है कि देश के कुछ भावी क्रिकेटर भी रबड़ की बॉल, बैट और विकेट लेकर पार्क के बीचोंबीच
हाथ आजमाने पहुंच जाते हैं…अब आप को वॉकिंग ट्रैक पर चलते चलते पूरी तरह सतर्क
हो कर चलना पड़ता है कि कहीं सुबह सुबह कोई होनहार आपके चेहरे पर ही बॉल ना चेप
दे…
है कि देश के कुछ भावी क्रिकेटर भी रबड़ की बॉल, बैट और विकेट लेकर पार्क के बीचोंबीच
हाथ आजमाने पहुंच जाते हैं…अब आप को वॉकिंग ट्रैक पर चलते चलते पूरी तरह सतर्क
हो कर चलना पड़ता है कि कहीं सुबह सुबह कोई होनहार आपके चेहरे पर ही बॉल ना चेप
दे…
अब बताइए इतना सब कुछ
होते हुए भी हर सुबह पार्क के 15 तेज चक्कर लगा देना मेरे जैसे आरामपंसद आदमी के
लिए बड़ी उपलब्धि है या नहीं…
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
होते हुए भी हर सुबह पार्क के 15 तेज चक्कर लगा देना मेरे जैसे आरामपंसद आदमी के
लिए बड़ी उपलब्धि है या नहीं…
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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अब बताइए इतना सब कुछ होते हुए भी हर सुबह पार्क के 15 तेज चक्कर लगा देना मेरे जैसे आरामपंसद आदमी के लिए बड़ी उपलब्धि है या नहीं… जी बिल्कुल बड़ी उपलब्धि है। मैं तो चाहकर भी वाक शुरू नही कर पाई।
मुझे गर्व है कि मैं सतीश सर और आपकी तथाकथित दोस्त हूँ। हैं न घूमने के अपराध बोझ से बचने के लिए मेरे पास भी अनगिनत बहाने हैं।
अब बताइए इतना सब कुछ होते हुए भी हर सुबह पार्क के 15 तेज चक्कर लगा देना मेरे जैसे आरामपंसद आदमी के लिए बड़ी उपलब्धि है या नहीं… जी बिल्कुल बड़ी उपलब्धि है। मैं तो चाहकर भी वाक शुरू नही कर पाई।
मुझे गर्व है कि मैं सतीश सर और आपकी तथाकथित दोस्त हूँ। हैं न घूमने के अपराध बोझ से बचने के लिए मेरे पास भी अनगिनत बहाने हैं।
जय जय
वाह ! मजे मजे में बहुत कुछ सिखा गए आप तो ।
सुबह की सैर के बड़े फायदे हैं । स्वास्थ्य के साथ साथ मनोरंजन भी हो जाता है और पूरा दिन भी अच्छा गुजरता हैं ।
सुबह की सैर के प्रति प्रेरित करता उम्दा लेख। आजकल ढलती उम्र को अकेलापन घेरने लगा है तब रोज़ सुबह मित्र-मंडली में ताज़ा गपशप और अपडेट जीने की राह आसान बनाते हैं।
aajkal nukkhd to nahi rahe lekin iska anand kuch aur hi hai . sach me walk jeevn badal deti hai . kuch gappa kuch masti aur dosto ki sehat bhari chaupal
पार्क। हर शहर की किसी गली में हुआ करता था नुक्कड़
Aaj Tak में एसोसिएट एडिटर Khushdeep Sehgal की व्यस्तता मैं तब से जानता हूँ जब वे ज़ी न्यूज़ में सीनियर प्रोड्यूसर हुआ करते थे ! वे हिंदी ब्लॉग जगत बेहतरीन लेखकों में से एक हैं और बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक हैं !
आज के मुश्किल समय में ऐसे लोग डायबिटीज जैसी बीमारियों को सबसे पहले ग्रहण करते हैं जो मन से सरल और संवेदनशील हों जो हर किसी की वेदना में अपने आपको समाहित कर लें , सो शुरू से मेरी इच्छा थी कि खुशदीप भाई कैसे भी हो रनिंग सीख लें ताकि डायबिटीज और आने वाले समय में हृदय पर आने वाले किसी भी खतरे से अपने आपको दूर रख सकें ! आज इस लेख के ज़रिये ही मुझे पता चला कि खुशदीप भाई ने मुझे भुलाया नहीं अपितु रोज सुबह तेज वाक् करने की आदत विकसित कर ली है !
अक्सर रनिंग पर लिखने का अर्थ यह नहीं रहा कि मैं अपनी तारीफ़ लिखूं इसका एक ही मतलब था कि अपने साथियों को बता सकूँ कि जब 63 वर्ष का मैं, अपनी कायाकल्प कर सकता हूँ तब निस्संदेह आप भी वृद्धावस्था से मुक्ति पाने में समर्थ हैं बशर्ते आप मेरी दिनचर्या अपनाएँ , हर पोस्ट के साथ ताजा फोटो इसीलिए लगाता हूँ ताकि आप देख सकें कि बूढ़े ऐसे भी होते हैं और अपने को जवान बनाये रखना बेहद आसान है !
सस्नेह मगलकामनाएँ खुशदीप सर के लिए !
वाह घूमना जारी रखें ये अनुभव तो हर जगह के हैं, आपने बखूबी वर्णन कर दिया है।
Keep scribing……its a writathon!!
N u sure are a champion in this field…
सुबह सवेरे ऑनलाइन दिखते ही मुझे भी हड़का दिया करते हैं बिस्तर से निकलने के लिए….