अमर
ब्लॉगर डॉ अमर कुमार की 23
अगस्त
को तीसरी पुण्यतिथि है…
तीन
साल बीत गए डॉ अमर कुमार को
हमसे जुदा हुए…लेकिन
यकीन मानिए इस अर्से में एक
दिन भी ऐसा नहीं बीता होगा
जिस दिन मैंने उन्हें याद ना
किया हो….सुबह
प्रार्थना करता हूं तो अपने
दिवंगत पिता को याद करने के
साथ डॉ अमर कुमार स्वत:
ही
मस्तिष्क में आकर आशीर्वाद
दे जाते हैं…ठीक
वैसे ही जैसे वो कभी मेरी
पोस्टों पर अपनी टिप्पणियों
का प्रसाद दिया करते थे…
एक
ऐसी विभूति जिनसे साक्षात
मिलने का कभी मुझे मौका नहीं
मिला,
लेकिन
वो ब्लॉगिंग में संवाद के
ज़रिए ही मेरे दिल–ओ–दिमाग
पर छाते चले गए…
ब्लॉगर डॉ अमर कुमार की 23
अगस्त
को तीसरी पुण्यतिथि है…
तीन
साल बीत गए डॉ अमर कुमार को
हमसे जुदा हुए…लेकिन
यकीन मानिए इस अर्से में एक
दिन भी ऐसा नहीं बीता होगा
जिस दिन मैंने उन्हें याद ना
किया हो….सुबह
प्रार्थना करता हूं तो अपने
दिवंगत पिता को याद करने के
साथ डॉ अमर कुमार स्वत:
ही
मस्तिष्क में आकर आशीर्वाद
दे जाते हैं…ठीक
वैसे ही जैसे वो कभी मेरी
पोस्टों पर अपनी टिप्पणियों
का प्रसाद दिया करते थे…
एक
ऐसी विभूति जिनसे साक्षात
मिलने का कभी मुझे मौका नहीं
मिला,
लेकिन
वो ब्लॉगिंग में संवाद के
ज़रिए ही मेरे दिल–ओ–दिमाग
पर छाते चले गए…
27 फरवरी 2010 को मेरी इस पोस्ट पर डॉक्टर
साहब की ये टिप्पणी मिली थी–
साहब की ये टिप्पणी मिली थी–
डा०
अमर कुमार February
27, 2010 at 10:49 AM
अमर कुमार February
27, 2010 at 10:49 AM
वर्ष
के पहले हफ़्ते में मैंने गलत
तो नहीं कहा था,
के पहले हफ़्ते में मैंने गलत
तो नहीं कहा था,
कि
अक्सर तुम मेरी सोच को स्वर
दे ही देते हो,
अक्सर तुम मेरी सोच को स्वर
दे ही देते हो,
सो
मैं आलसी हो गया हूँ । लिखना
ऊखना कुछ नहीं बस बैठे बैठे
टिप्पणियाँ फ़ेंकते रहो ।
मैं आलसी हो गया हूँ । लिखना
ऊखना कुछ नहीं बस बैठे बैठे
टिप्पणियाँ फ़ेंकते रहो ।
इस
पोस्ट ने एक बार फिर तसल्ली
दी है,
पोस्ट ने एक बार फिर तसल्ली
दी है,
मैंनें
मसिजीवी की वह पोस्ट पढ़ी तो
थी,
टिप्पणी
देकर उनकी टी.आर.पी.
बढ़ाना
नहीं चाहा । मुझ सा अहमी कोय,
सो
मैं स्वयँ ही अहँवादियों से
बचता हूँ ।
मसिजीवी की वह पोस्ट पढ़ी तो
थी,
टिप्पणी
देकर उनकी टी.आर.पी.
बढ़ाना
नहीं चाहा । मुझ सा अहमी कोय,
सो
मैं स्वयँ ही अहँवादियों से
बचता हूँ ।
GHETTO;
इसका
अपने साथियों के सँदर्भ में
प्रयोग किया जाना मुझे भी
नागवार गुज़रा । मूलतः स्पैनिश
से उपजा यह शब्द नाज़ीयों ने
अपना लिया क्योंकि यह परिभाषित
करता था कि A
slum inhabitated by minority group isolated due to social or economic
pressures. ज़ाहिर
है कि नाज़ी इसे जिस सँदर्भ में
उपयोग किया करते थे वह तिरस्कारात्मक
ही था ।
इसका
अपने साथियों के सँदर्भ में
प्रयोग किया जाना मुझे भी
नागवार गुज़रा । मूलतः स्पैनिश
से उपजा यह शब्द नाज़ीयों ने
अपना लिया क्योंकि यह परिभाषित
करता था कि A
slum inhabitated by minority group isolated due to social or economic
pressures. ज़ाहिर
है कि नाज़ी इसे जिस सँदर्भ में
उपयोग किया करते थे वह तिरस्कारात्मक
ही था ।
इस
शब्द ने अमरीका तक की यात्रा
में अपना चरित्र और भी मुखर
किया । आज भी यह अपने तिरस्कारात्मक
चरित्र को ही जी रहा है ।
शब्द ने अमरीका तक की यात्रा
में अपना चरित्र और भी मुखर
किया । आज भी यह अपने तिरस्कारात्मक
चरित्र को ही जी रहा है ।
हड़काऊ
तर्ज़ पर यदि मात्र फ़ैशन के तौर
पर इसे उछाला जाता है,
तो भी
कौन कहता है कि फासीवाद मर
चुका है,
या कि
शब्दों में जान नहीं होती ?
तर्ज़ पर यदि मात्र फ़ैशन के तौर
पर इसे उछाला जाता है,
तो भी
कौन कहता है कि फासीवाद मर
चुका है,
या कि
शब्दों में जान नहीं होती ?
तुस्सी
साणूँ दिल खुश कित्ता खुशदीपे
!
साणूँ दिल खुश कित्ता खुशदीपे
!
डॉक्टर
साहब को याद करते हुए ये गीत
सुन रहा हूं,
आप भी
सुनिए…
दुनिया
से जाने वाले जाने चले जाते
हैं कहां…
से जाने वाले जाने चले जाते
हैं कहां…
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