गंगापुत्र स्वामी निगमानंद गुरुवार को शाम करीब साढ़े पांच बजे हरिद्वार में भू-समाधि में लीन हो गये… स्वामी निगमानंद के परिवार के तमाम विरोध के बावजूद प्रशासन ने आश्रम की इच्छा और संन्यासियों की परंपरा के अनुरूप भू-समाधि दिए जाने के हक में ही फैसला सुनाया…इससे पहले डॉक्टरों ने शव का एक बार फिर पोस्टमॉर्टम किया और विसरा निकाल लिया…लेकिन दिन में स्वामी निगमानंद के पिता प्रकाश झा ने मातृ सदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद पर बेटे को बहका कर अनशन कराने और मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया…उधर स्वामी शिवानंद का कहना था कि इतने साल बीतने पर भी स्वामी निगमानंद के परिवार ने उनकी सुध लेने की ज़रूरत क्यों नहीं समझी थी…आश्रम ने एक चिट्ठी भी पेश की, जिसे स्वामी निगमानंद के हाथ से लिखे होने का दावा किया था…जिसमें लिखा था…मेरे पूर्व जन्म (संन्यासी होने से पहले) के पिता भ्रष्टाचार में लिप्त थे, इसलिए उनके साथ रहना मुमकिन नहीं था…स्वामी निगमानंद के घरवालों ने उनका शव अंतिम संस्कार के लिए परिवार को न सौंपे जाने पर आत्मदाह की धमकी भी दे डाली थी…उसी के बाद प्रशासन को दखल देना पड़ा…
उधर, स्वामी निगमानंद की 13 जून को मौत के बाद से ही मातृ सदन आश्रम का ज़ोर रहा है कि इस पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच कराई जाए…स्वामी निगमानंद को 68 दिन अनशन पर बैठे रहने के बाद 27 अप्रैल को प्रशासन ने पहले हरिद्वार के ज़िला अस्पताल में भर्ती कराया था…मातृ सदन आश्रम की ओर से 11 मई को पुलिस में दर्ज शिकायत में कहा था कि किसी अनजान नर्स ने 30 अप्रैल को स्वामी निगमानंद को इंजेक्शन दिया था…उसी के बाद स्वामी निगमानंद की तबीयत ज़्यादा बिगड़नी शुरू हुई और फिर वो नर्स तभी से कहीं दिखाई नहीं दी..
मातृ सदन आश्रम की शिकायत के अनुसार हिमालय स्टोन क्रशर प्राइवेट लिमिटेड के मालिक जी के अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट अस्पताल हरिद्वार के स्टॉफ के साथ मिलकर स्वामी निगमानंद को ज़हर से मारने की साज़िश रची थी…अग्रवाल की इस कंपनी की ओर से किए जा रहे खनन के खिलाफ ही निगमानंद ने आंदोलन छेड़ रखा था…मातृ सदन आश्रम ने गंगा के आसपास फैलाए जा रहे प्रदूषण को रुकवाने के लिए अग्रवाल और उत्तराखंड सरकार के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी शुरू कर रखी थी…मातृ सदन के सदस्यों के मुताबिक अग्रवाल आरएसएस और उत्तराखंड सरकार का बेहद करीबी है…पिछले साल जुलाई में आरएसएस, हरिद्वार शाखा के गुरु दक्शिणा कार्यक्रम में अग्रवाल को मुख्य अतिथि बनाया गया था…अग्रवाल के पिता भी हल्द्वानी में आरएसएस के पदाधिकारी रह चुके हैं…
ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 26 मई को जब स्वामी निगमानंद के हक में फैसला सुनाया था तो उस वक्त उन्हें कोमा में गए पच्चीस दिन से ज़्यादा बीत चुके थे…हाईकोर्ट ने हिमालय स्टोन क्रशर को बंद कराने का आदेश देते हुए कहा था कि इससे न सिर्फ गंगा के पास पर्यावरण को बेहद नुकसान हो रहा था बल्कि ये लाइसेंस की शर्तों का खुला उल्लंघन कर रहा था…काश स्वामी निगमानंद अपने होशो-हवास में इस फैसले को सुन पाते…
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Swami Nigmanand Saraswati( Swarup Kumar Jha) ne khud ki aahuti dekar apne janmabhumi ka karj utar diya aur ek aadarsh sthapith kiya wo 17 sal ke umra me sanyast ho gaye aur Mata Ganga ke liya jo aamaran ansan kiya wo vandniya hai ek din jarur ma ganga un patito ka uddhar karegi jinhone swamijee ki jan li.wo sadaiv hamare dilon me rahenge unka balidan vyarth nahi jayega Jay bharat jay mithila.
एक दुखद घटनाक्रम…कुछ कहना बेकार है.
कुछ दिनों के लिए दिल्ली से बाहर था । यहाँ काफी गहमा गहमी हो गई है । सब बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है ।
लेकिन अब राजनीति के बजाय कुछ ठोस कदम उठाये जाएँ तो बेहतर होगा ।
यह पूरा वाकया ही बहुत दुखद रहा …विनम्र श्रद्धांजलि !
बड़ा ही दुखद रहा।
मुझे आज तक समझ नहीं आया की हम हर बार मुद्दों से ज्यादा व्यक्ति को महत्व क्यूँ देते हैं | नतीजा, जहाँ एक ओर निगमानंद जैसा कोई साधू गुमनामी के अँधेरे में गुम होकर इतने दिनों तक अनशन करके काल के गाल मे समां जाता है , वहीँ दूसरी ओर मीडिया के सपोर्ट से कुछ लोग ज़रुरत से ज्यादा हाईलाईट हो जाते हैं | खास तौर पर तो मीडिया का ये दायित्व बनता है की वो मुद्दों को महत्व दे न कि उनसे जुड़े लोगों को | क्यूंकि देश का हित तो मुद्दों में है न कि व्यक्ति विशेष में |
बहुत दुखद है सारा घटना क्रम। धार्मुक संस्थायें भी इस मौत को भुनाने का कोई अवसर नही छोडना चाहती पहले जिस प्रशासन की अनदेखी और जहर को ले कर संत समाज आग उगल रहा था वही अब प्रशासन के साथ हो गया बस अवसर भुनाने की दौड लेकिन शर्मनाक। एकि माँ को उसके बेटे का क्या आखिरी संस्कार करने का भी हक नही? इन्हीं सं तों ने उसके मरने तक इतने दिनों हाय तौबा क्यों नही मचाई चाहते तो उसे बचा सकते थे। धर्म के नाम पर देश को उजाडने मे लगे हैं ऐसे लोग।
डा. अमर कुमार जी से सहमत हूँ_——
किन्तु मन बहुत विचलित है…
यदि हम एक मृत शरीर को उचित सम्मान नहीं दे सकते तो अध्यात्म या नागरिक अधिकारों की बात करना तो दूर.. हम सभ्य नागरिक कहलाने की योग्यता नहीं रखते । सचमुच यह सब बहुत ही डिस्टर्ब करने वाला है ।
माफ़ करना… यदि हम एक मृत शरीर को उचित सम्मान नहीं दे सकते तो अध्यात्म या नागरिक अधिकारों की बात करना तो दूर.. हम सभ्य नागरिक कहलाने की योग्यता नहीं रखते । सचमुच यह सब बहुत ही डिस्टर्ब करने वाला है ।
आपने अच्छी जानकारी दी है। शुक्रिया !
एक जानकारी हम भी दे रहे हैं कि
सच्चा गणेश कौन है ? Real Ganesh
आप तो मिडिया से है आपके पास तो बहुत सी जानकारियां आती है , दिल्ली के पास अरावली की पहाड़ियों में भी अवैध खनन होता है सुना है वहां के सबसे बड़े खनन करने वालों में कांग्रेसी नेता भडाना जी का नाम है कृपया कभी दिल्ली के पास अरावली की पहाड़ी में होने वाले अवैध खनन पर भी प्रकाश डालें |
सब दोषी है … मिडिया को भी तो निगमानन्द के मरणोपराँत उनके बारे में लिखने और दिखाने का होश आया है …
दुःख होता है यह सब देख कर … ख़ास कर मिडिया की मौका देख फायेदा उठाने की आदत को देख कर … जिन से उम्मीद की जाती है कि वह बिना किसी पक्षपात के खबरों को संचारित करें … जब वो ही अपना असली मकसद भूल भेड़ चाल में शामिल हो जाएँ … तो आम जनता क्या करें !!
क्या नेता क्या पत्रकार कोई भी अब सच्चा नहीं !! सब बेईमान है ! सिर्फ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना फायेदा दिखाई देता है इनको !
जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश हमेशा की जाती है। यह सफल भी हो जाती है। लेकिन कभी न कभी इस की पोल खुलती ही है। तब जनता उस का प्रसंज्ञान लेती है।
जनता हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनती।
आज कल राजनीति ऐसी हो गई है जो मौत और लाश पर भी की जा सकती है.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
.माफ़ करना.. मैं फिर लौट आया, लगभग भोर होने को है, किन्तु मन बहुत विचलित है…
यदि हम एक मृत शरीर को उचित सम्मान नहीं दे सकते तो अध्यात्म या नागरिक अधिकारों की बात करना तो दूर.. हम सभ्य नागरिक कहलाने की योग्यता नहीं रखते । सचमुच यह सब बहुत ही डिस्टर्ब करने वाला है ।
फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं !
क्यों कि जानबूझ कर बने अँधों को टॉर्च दिखाने से भी कोई फायदा नहीं…
वह उसके पीछे छाये अँधेरे को देखने के लिये अभिशप्त हैं…. ताज़्ज़ुब नहीं कि उन्हें इसमें काँग्र्स का भूत ही दिख जाये !
निगमानन्द के मरणोपराँत काँग्रेस का उनको लेकर छेड़ा गया अभियान सुखद नहीं कहा जा सकता…… लाशों पर चलने वाली राजनीति की मैं निन्दा करता हूँ । निगमानन्द के शव को लेकर उनके गुरु और घर वालों में चल रही गरमागर्मी को देख मन और भी क्षुब्ध है….. हुँह, महान लक्ष्यों का दम भरने वालों के छोटे छोटे स्वार्थ !
.फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं !