टिप्पणी का टेंटुआ और मॉडरेशन महाराज…खुशदीप

कल की मेरी पोस्ट दो नंबरियों पर थी…लेकिन लाल परी उस पर भारी पड़ी…उम्मीद करता हूं कि शरारती बच्चों के कान ऐंठे जाने से जो लाल हो गए थे, वो अब अपनी रंगत में आ गए होंगे…आइन्दा कोई नटखट ब्लॉग पर ब्राउन जूस के साथ भी कभी फोटो नहीं छपवाएगा, जिससे कोई भ्रम हो और देश के ख़ज़ाने में एक्साइज़ रेवेन्यू बढ़ने के लिए प्रचार-प्रसार हो…

अजित गुप्ता जी ने एक सामान्य सी बात कही थी कि शराब पीने या उसके महिमामंडन का सार्वजनिक तौर पर प्रचार-प्रसार नहीं किया जाना चाहिए…ब्लॉग भी ऐसा ही सार्वजनिक मंच है…अजित जी ने एक दिन पहले ज़ाकिर अली रजनीश भाई की पोस्ट पर इस संबंध में टिप्पणी की थी…वो टिप्पणी मॉडरेशन की भेंट चढ़ गई…अगर वो टिप्पणी छप जाती तो अजित जी मेरी पोस्ट पर भूले से भी ऐसा कोई ज़िक्र नहीं करतीं…मेहनत से की गई टिप्पणी की घिच्ची घुप जाने पर कैसा दर्द होता है, ये भुक्तभोगी ही जानते हैं…

आप देश में लोकतंत्र की वकालत करते हैं…इंदिरा गांधी ने 1975 में इमरजेंसी लगाई तो उस दौर को देश के इतिहास में लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए काले अध्याय के तौर पर आज तक याद किया जाता है…ये कहां तक सही है कि हर कोई आपकी पोस्ट में बस हां में हां ही मिलाए…ज़रा सी किसी ने विरोध की लाइन पकड़ी नहीं कि झट से उस टिप्पणी का टेंटुआ पकड़ कर दबा दिया जाए…विरोध का भी सम्मान किया जाना चाहिए…मैंने बुज़ुर्गों की दशा पर बनी फिल्म रूई का बोझ पर तीन पोस्ट लिखीं…मैंने इस फिल्म के बारे में पहले कभी नहीं सुना था…लेकिन 19 दिसंबर को दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में ब्लॉगर मीट के दौरान बुज़ुर्गों की दशा पर चर्चा के दौरान सुरेश यादव जी ने इस फिल्म का ज़िक्र किया…मुझे सुरेश जी का ये अंदाज़े-बयां बहुत पसंद आया…मैंने घर आकर रूई का बोझ के बारे में और जानने के लिए गूगल पर सर्च किया…फिल्म की समरी के साथ अंग्रेज़ी में लिखा मैटीरियल भी सामने आया…Passionforcinema.com पर एक लेख में फिल्म की कहानी विस्तार से दी हुई थी…ये फिल्म चंद्र किशोर जैसवाल जी के उपन्यास रूई का बोझ पर ही आधारित थी…अब उस कहानी का ही मैंने अनुवाद कर, बुज़ुर्गों को जीवन की संध्या में क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए, अपने इस विषय के साथ जोड़ कर पोस्ट की शक्ल दे दी…अंग्रेज़ी के लेख में लेखक का नाम दिया होता तो चंद्र किशोर जैसवाल जी के नाम की तरह ही मैं उनका भी उल्लेख ज़रूर करता…यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि न तो मैंने उपन्यास पहले पढ़ा था और न ही फिल्म पहले देखी थी…अगर ऐसा किया होता तो मैं गूगल पर फिर सर्च ही क्यों करता…अब इसी बात पर विक्रम-बेताल की कथा के विक्रम की तरह एक बेनामी महोदय ( CinemaisCinema) ने मेरी पोस्ट पर आकर खरी-खोटी सुनाते हुए जमकर मेरा मान-मर्दन किया…एक बार नहीं बल्कि पांच-छह टिप्पणियां ठोक डाली…मेरी पिछली पोस्ट को भी नहीं बख्शा…लेकिन ऐसा करते हुए ये सज्जन एक बात का ध्यान रख रहे थे कि भाषा की मर्यादा न टूटे…मैंने भी उनकी सभी टिप्पणियों को जस का तस छापा…उन्होंने मुझे Plagiarism तक का दोषी करार दे डाला…वो अपनी जगह ठीक थे, मैं अपनी जगह ठीक था…अब किसी फिल्म की कहानी को पचास लेखों में लिखो, कहानी तो वही रहेगी, कहानी तो नहीं बदलेगी…ये बात वो सज्जन समझ लेते तो शायद वो मेरे ऊपर इतना बड़ा आरोप न टिकाते…हां ऐसा करते वक्त उन्होंने जो मेरा मुख्य मुद्दा था- बुज़ुर्गों की दशा, उसे ज़रूर थोड़ी देर के लिए पटरी से उतार दिया था…

मेरा यहां ये सब बताने का तात्पर्य यही है कि कहीं विरोध के स्वर सुनाई दें तो उनसे विचलित नहीं होना चाहिए…आप आउटराइट विरोध को खारिज कर देंगे तो ये कहीं न कहीं आपके रचनात्मक विकास को ही बाधित करेगा…मुझे यहां ऐसा भी अनुभव हुआ है कि किसी एक पोस्ट पर मॉडरेशन खुला होगा, दूसरी पोस्ट पर मॉडरेशन लगा होगा…यहां भी अपनी सुविधानुसार नियम तय कर लिया जाता है…या तो हमेशा मॉडरेशन लगाए रखिए या उसे पूरी तरह हटा दीजिए…ये बीच की पॉलिसी क्यों…हां, कभी-कभार अश्लील या बेहूदी भाषा का इस्तेमाल करने वाले बेनामियों की टिप्पणी हटाने के लिए कुछ देर के लिए मॉ़डरेशन ऑन करना पड़े तो वो बात तो समझ में आती है…खैर, जिसकी जैसी मर्जी, वैसे चले…दूसरा इसमें दखल देने वाला कौन होता है…लेकिन ब्लॉग को लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ बनाना है तो विरोध के स्वर सुनना तो हमें सीखना ही होगा…किसी कमेंट को किल करने का आधार सिर्फ भाषा की मर्यादा होना चाहिए…सम्मान का नाम देकर कमेंट्स की हत्या नहीं की जानी चाहिए…ये बस मेरा अपना विचार है…सब अपना रास्ता खुद चुनने के लिए स्वतंत्र हैं…

चलिए अब स्लॉग ओवर के ज़रिए विषय परिवर्तन करता हूं…ये स्लॉग ओवर मैंने 19 दिसंबर को शाहनवाज सिद्दीकी के साथ ऑटो पर छत्तीसगढ़ भवन जाते हुए ऑटो-ड्राईवर को सुनाया था…मैंने तब वादा भी किया था कि फिर किसी दिन आपको ये स्लॉग ओवर ज़रूर सुनाऊंगा…लेकिन ऐसा करने से पहले ही अजित गुप्ता जी से माफ़ी मांग लेता हूं, क्योंकि कमबख्त दारू इसमें भी अपनी टांग अड़ाए हुए है…और सबसे भी मेरा अनुरोध है कि इस स्लॉगओवर को हास्य के नज़रिए से ही लें, और कोई निहितार्थ न ढूंढे…

स्लॉग ओवर

एक बार एक महिला जानेमाने डॉक्टर के पास पहुंची…अपनी परेशानी बताई कि पति महाराज रोज़ रात को नशे में लड़खड़ाते हुए घर पहुंचते हैं और झगड़ा करना शुरू कर देते हैं…हाथापाई तक की नौबत आ जाती है...इस पर डॉक्टर ने कुछ देर सोचा और पत्नी को बाज़ार से लिस्ट्रीन की शीशी खरीदने की सलाह दी…साथ ही बताया कि जैसे ही पति रात को पी कर घर पर आए वो लिस्ट्रीन से गारगल (गरारे, कुल्ला) करना शुरू कर दे…एक हफ्ते बाद वही महिला डॉक्टर के पास पहुंची…आते ही बोली…डॉक्टर साहब आपके इस नुस्खे ने तो चमत्कार कर दिया…पूरे हफ्ते पति ने चूं तक नहीं की…अब घर आता है (नशे में ही), चुपचाप टेबल पर पड़ा खाना खाता है…फिर सोने चला जाता है…इस बीच मैं गरारे करती रहती हूं…लेकिन डॉक्टर साहब मुझे समझ नहीं आया कि गरारों का इस समस्या से क्या कनेक्शन है…इस पर डॉक्टर मुस्कुराते हुए बोला…
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इसके अलावा मेरे पास आपको चुप रखने का कोई और साधन नहीं था…



Khushdeep Sehgal
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PD
PD
14 years ago

आप लिखते हैं "मुझे यहां ऐसा भी अनुभव हुआ है कि किसी एक पोस्ट पर मॉडरेशन खुला होगा, दूसरी पोस्ट पर मॉडरेशन लगा होगा…यहां भी अपनी सुविधानुसार नियम तय कर लिया जाता है…या तो हमेशा मॉडरेशन लगाए रखिए या उसे पूरी तरह हटा दीजिए…ये बीच की पॉलिसी क्यों.."

और मेरा कहना है कि ये हर व्यक्ति पर नहीं छोडना चाहिए कि वो Moderation चाहे लगाए चाहे ना लगाए? ये किसी की भी निजी स्वतंत्रता का मामला है.. उसकी मर्जी, चाहे मर्जी का कोई भी कारण क्यों ना हो अथवा कारण ही ना हो!!

Unknown
14 years ago

स्लोग ओवर बढ़िया था ।

प्रवीण
14 years ago

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खुशदीप जी,

मेरा स्पष्ट मत है कि यदि आपने पोस्ट में टिप्पणी का आप्शन खुला रखा है तो मॉडरेशन नहीं होना चाहिये… आपत्तिजनक टिप्पणियों का या तो उचित जवाब दिया जा सकता है या बाद में कारण बताते हुऐ हटाया जा सकता है।

Arvind Mishra
14 years ago

मैं बार बार माडरेशन इसलिए लगता हूँ क्योंकि कुछ लोग अश्लीलता परसने लग जाते हैं ..सतीश जी ने कल मुझे चेताया तो एक सुपाडा सिंह और मस्तानी को माडरेट करना पड़ा! अब न चाहते हुए भी माडरेशन चालू है !

Satish Chandra Satyarthi

"किसी कमेंट को किल करने का आधार सिर्फ भाषा की मर्यादा होना चाहिए.."… पूरी तरह सहमत हूँ..
वैसे अगर ऐसे कमेन्ट बार बार आ रहे हों तभी मोदेरेशन वाले कवच का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.. वरना ब्लॉग न होकर आपकी पर्सनल डायरी कहना ज्यादा सही होगा उसको.. पाठक को अपनी बात रखने का पूरा मौक़ा मिलना चाहिए…
स्लॉग ओवर जानदार रहा…

S.M.Masoom
14 years ago

यदि आप का कोई विरोध ना करता हो तो समझ लें की आप कहीं ग़लत है..

अजय कुमार झा

सटीक और सार्थक बात …बस इत्ता ही लिखेंगे

डॉ. साहब से आज बतियाते हैं हम भी

अंतर्जाल पर मेरी दुनिया

शिवम् मिश्रा

ड़ाक्टर अमर कुमार जी के शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना करते हैं।

अजित गुप्ता का कोना

हमने अपनी गलती सुधार ली है और आज अपनी पोस्‍ट पर सार्वजनिक रूप से घोषित भी कर दिया है कि अब अनावश्‍यक टोकाटाकी नहीं।

डॉ टी एस दराल

मेरे विचार से मोडरेशन टिप्पणीकार के लिए एक टेस्ट जैसा हो जाता है । पता नहीं पास होंगे या नहीं ।
अवांछनीय टिप्पणियों के लिए टिपण्णी को डिलीट करना एक अच्छा विकल्प है । इससे दूसरों को भी पता चल जाता है कि कोई नाहक परेशान कर रहा है । हटाने से मुद्दे से भी भटकाव नहीं होता ।

स्लोग ओवर बढ़िया नुस्खा था ।

ब्लॉ.ललित शर्मा

ड़ाक्टर अमर कुमार जी के शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना करते हैं।

स्लागओवर मस्त रहा।

आभार

सतीश पंचम

रूई का बोझ की पिछली पोस्टें पढा और साथ ही विक्रम जी का कमेंट भी । उन्होंने भी अपनी बात को सलीके से रखा है और आपने भी।

हां, थोड़ा सा मुद्दे से भटकाव तो हुआ इस बतकही से लेकिन कुल मिलाकर एक स्वस्थ वाद लगा। थोडी बहुत गलतफहमी या कहें मिसअंडर्स्टेंडिंग होती रहती है यदा कदा।

Anyway, Good Post n nice approach.

प्रवीण पाण्डेय

कभी कभी यह लगना चाहिये कि यदि कोई विरोध नहीं कर रहा है तो कहीं ऐसा तो नहीं कि दिशा भटक गयी है?

सतीश पंचम

खुशदीप जी,

इसी किस्म का मुद्दा उठाते हुए मैंने वो पुरस्कारी लाल वाली पोस्ट लिखी थी जिसमें कि एक ओर तो छद्म दायरा बनाने की ललक में संवाद सम्मान बांटा जाता है और दूसरी ओर तनिक भी स्वस्थ आलोचना करती टिप्पणी आये तो उसे माडरेट करते हुए संवाद का गला घोंट दिया जाता है।

जो जितना बड़ा संवाद घोटू वो उतना बड़ा सम्मान बांटू 🙂

माडरेशन की जहां तक बात है तो इसे इसलिये नहीं लगाया जाना चाहिये ताकि विरोधी टिप्पणीयों को गड़प कर दिया जाय, याकि आलोचना वाली टिप्पणियों से मुँह चुराया जाय, बल्कि इसलिये कि कहीं कोई भाषाई छटंकीलाल या अश्लील अली वल्द जलील अली न पहुँच जांय।

कल अरविन्द जी की पोस्ट पर दो महानुभाव इसी किस्म के पधारे थे। अब ऐसे लोगों से बचाव हेतु सामयिक तौर पर माडरेशन लगाना पड़ जाता है। तब तो और जब कि पुरस्कारी लाल टाईप की कोई बमचक वाली पोस्ट लिखी गई हो 🙂

मैने भी इस माडरेशन के विकल्प का तब ही इस्तेमाल किया जब देखा कि मेरे यहां पोस्ट के मुद्दे से ध्यान भटकाने की उम्मीद लिये भाषाई छटंकीलाल लोग पधारना शुरू कर दिये हैं।

अब एक बार ऐसे लोगों की अश्लील टिप्पणीयां आने पर या तो मिटाओ या फिर ऐसे ही रहने दो । मिटा देने पर हें हें करते हुए ऐसे छटंकीलाल कहेंगे कि, देखा- हमें टिप्पणी गड़पू कह रहा था और खुद मिटा रहा है तो नहीं।

और न मिटाओ तो पोस्ट के मूल मुद्दे से बाकीयों का ध्यान भटकने दो जोकि ऐसे छटंकीलाल जैसों का मंसूबा ही होता है।

तो कुल मिलाकर यही कहना होगा कि जैसे ही कोई विचारोत्तेजक पोस्ट लिखने के बाद लगे कि छटंकीयों के आने की आशंका है तो माडरेशन तब तक थोड़ी देर के लिये लगाया जा सकता है, जब तक कि अपनी कही बात सबके सामने ढंग से प्रस्तुत न हो जाय।

चिंतन की लौ प्रज्वलित होने तक माडरेशन लगाना बुरी बात नहीं है।

आखिर दिया जलाते वक्त भी तो अंजुलियों की हल्की आड़ बनानी ही पड़ती है ताकि आवारा हवा से बचते हुए अच्छे से लौ प्रज्वलित हो और थोड़ा सा उजियारा होने पाये 🙂

रूई का बोझ की पहली पोस्ट मैंने पढ़ी थी। बाकी अब पढूंगा 🙂

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता वाकई है. आपके यहां तो है.

Rohit Singh
14 years ago

हाहाहाहहाहाहा मजा आ गया पिछली पोस्ट और आज की पोस्ट पढ़कर। क्या कहने।

राज भाटिय़ा

वाह जी अमर जी की टिपण्णी भी आ गई, इस का मतलब अब आगे से ठीक हो गये हे, अगर आप( डा० अमर) यह टिपण्णी पढे तो मुझे मेल कर अपना फ़ोन ना० मै जरुर फ़ोन करुंगा, ओर भगवान से आप की सेहत के लिये प्राथना करुंगा, मेरी शुभकामनऎं.

खुशदीप जी…इसके अलावा मेरे पास आपको चुप रखने का कोई और साधन नहीं था… यह भी एक नया पंगा हे जरा बचके जी:)

डा० अमर कुमार

Lage raho Munna Bhai..
I already started by-catching such blogs, It often aggravated my grief when I came across moderated comments given in those painful nights !
When an author thinks that he / she can never be wrong.. then why to seek reader's comment?
Agreed Puttar, and thanks for calling…
I am here, only because you are also !

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