जो बात
कहते डरते हैं सब, तू वह बात लिख,
इतनी
अंधेरी थी न कभी पहले रात लिख…
जिनसे
क़सीदे लिखे थे, वह फेंक दे क़लम,
फिर
खून-ए-दिल से सच्चे क़लम की सिफ़ात लिख…
जावेद
अख़्तर के इस कहे को लेकर और भविष्य के अपने लेखन को लेकर सुबह फेसबुक पोस्ट में वादा
किया था कि रात को अपने ब्लॉग पर कुछ अहम लिखूंगा.
मैंने
जितने भी मीडिया संस्थानों में काम किया, अनुशासित सिपाही की तरह काम किया. वर्क
प्लेस पर कभी किसी संस्थान
की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं किया. लेकिन 2009 में हिन्दी ब्लॉगिंग की शुरुआत करने
के बाद मुझे एक ऐसा प्लेटफार्म मिला जहां मैं दिल की बात (मन की बात नहीं) कह सकता
था. ऊपर वाले के करम से ब्लॉगिंग में बहुत कम समय में ही मैं पहचान बनाने में
कामयाब रहा. मेरे ब्लॉग के
दाएं में एक आर्काइव लिस्ट है जहां से साल दर साल महीना दर महीना मेरी पुरानी पोस्ट पढ़ी जा सकती हैं. शुरुआती दो-तीन साल मैं बिना नागा हर रात एक पोस्ट लिखता था. फेसबुक, ट्विटर
के आने के बाद ब्लॉग लिखने का सिलसिला कम होता गया. इस पोस्ट से पहले तक मैंने अपने ब्लॉग देशनामा पर
करीब 1050 पोस्ट लिखी हैं.
अब
ब्लॉगिंग को एक बार फिर रफ्तार देने का फैसला किया है. लेकिन साथ ही मीडिया में
भविष्य देख रहे युवा साथियों के साथ अपने करीब तीन दशक की पत्रकारिता के अनुभव बांटने
का मिशन भी शुरू कर दिया है. अगर आप मेरे ब्लॉग्स, फेसबुक, ट्विटर की पुरानी
पोस्ट्स पर जाएंगे तो पाएंगे मैंने जब भी राजनीति पर लिखा, कटाक्ष और व्यंग्य किए
वो सब आम लोगों के हित को ऊपर रख कर किए. यूपीए सरकार की जनविरोधी नीतियों पर 2014
से पहले खूब लिखा. (मेरे पुराने ब्लॉग्स गवाह हैं). वहीं 2014 के बाद केंद्र में
एनडीए सरकार की पूंजीपतियों के समर्थन वाली नीतियों को लेकर भी जम कर निशाना बनाया.
हालांकि 2014 के बाद मैंने एक अलग बदलाव भी देखा. पहले सरकार की गलत नीतियों के
खिलाफ लिखने पर जो वाहवाही मिलती थी वही 2014 के बाद सरकार के विरोध में लिखने पर ‘नकारात्मकता’ बताई जाने लगी. विपक्ष का पैरोकार बताया जाने लगा. लेकिन मेरा व्यक्तिगत मानना यही है कि एक
पत्रकार को हमेशा आम जनता के हित वाले मुद्दों को पूरी ताक़त से उजागर करना चाहिए.
हिन्दी पत्रकारिता के पितामह गणेश शंकर विद्यार्थी का कहना था कि पत्रकार को
ताकतवरों (जाहिर है सत्ता) के उन कृत्यों को सामने लाना चाहिए जो वो जनता से
छुपाना चाहते हैं. इसके लिए ‘BETWEEN THE LINES’ पढ़ने और लिखने की कला
आनी चाहिए.
पिछले 7 साल में मैंने देखा कि राजनीतिक विचारधाराओं के टकराव को लेकर
दोस्तों, करीबियों, यहां तक कि रिश्तेदारों में जो विभाजन हुआ, वैसा पहले कभी नहीं
देश में देखा गया. शायद ये फेसबुक जैसे सुगम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आने की वजह
से हुआ. यहां सभी को अपनी बात आसानी से कहने का मौका मिल गया.
ये बात समझनी चाहिए कि सत्तापक्ष की ग़लतियों का विरोध देश-विरोध नहीं
होता. पार्टियों की सरकारें आएंगी, जाएंगी, लेकिन हमारा महान भारत देश वहीं रहेगा.
मैंने फेसबुक पर देखा कि जिस तरह से मैं सत्ता पक्ष के खिलाफ लिखता था तो मेरे कई पुराने
ब्लॉगर साथियों और दोस्तों ने इस पर मेरी पोस्ट्स से दूरी बनाना शुरू कर
दिया. हालांकि तथ्य ये है कि 2009 में ब्लॉगिंग शुरू करने के बाद मैंने उस वक्त की
सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ भी खूब लिखा था. लब्बोलुआब ये है कि राजनीति की वजह से आपस में तल्खियां आईं, नकारात्मकता
आई.
आज सुबह जब मैंने फेसबुक पर जावेद अख्तर साहब की लिखी ये पंक्तियां डालीं तो फेसबुक पर ज़्यादातर मित्रों को ये भ्रम हुआ कि मैं अब मेनस्ट्रीम मीडिया
से अलग हो गया हूं, इसलिए जो मन में आएगा वो बेबाक़ी के साथ लिखूंगा. क्योंकि मैं
अब किसी संस्थान की सोशल मीडिया पॉलिसी से नहीं बंधा हूं. लेकिन उन सब के इस
ख़्याल से अलग मैंने जो फ़ैसला किया है उससे सभी चौंकेंगे. लेकिन साथ ही मुझे
विश्वास है कि जिस नेक़ मकसद से मैंने ये फैसला किया, उसका वो समर्थन करेंगे.
अब मैंने पत्रकारिता,
क्रिएटिव राइटिंग और ब्लॉगिंग में करियर बनाने के आकांक्षियों को मुफ्त प्रैक्टिकल
नॉलेज देने का जो मिशन शुरू किया है, उसके लिए मुझे एक और अहम फैसला लेना पड़ रहा है. वो फैसला है
सोशल मीडिया पर राजनीतिक मुद्दों से दूरी बनाए रखने का. मैं अपने मिशन में सब कुछ
पॉजिटिव चाहता हूं. क्योंकि मेरे साथ जुड़ने वाले युवा किसी भी राजनीतिक विचारधारा
के हो सकते हैं. मेरा मकसद उन्हें अपने तीन दशक के मेनस्ट्रीम मीडिया के अनुभवों
से लाभ पहुंचाने का है. इसलिए निगेटिविटी की कहीं गुंजाइश न रहे मैंने सोशल मीडिया
पर किसी भी तरह का राजनीतिक लेखन नहीं करने का फैसला किया. क्योंकि अगर खुद
पॉजिटिव रहना है, दूसरों को भी पॉजिटिव रखना है तो दुनिया में और बहुत से विषय हैं जिन पर लिखा जा सकता है.
इसलिए सोशल मीडिया पर पॉलिटिकल राइटिंग को अब बाय बाय…
- पत्रकार की हत्या का जिम्मेदार सिस्टम? कुक से करप्शन किंग कैसे बना ठेकेदार सुरेश चंद्राकर - January 13, 2025
- ये पाकिस्तान की कैसी कंगाली? शादी में लुटा दिए 50 लाख, वीडियो देखिए - January 12, 2025
- दुनिया के सबसे शक्तिशाली क्रिकेट बोर्ड BCCI के सचिव बने देवाजीत सैकिया - January 12, 2025